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यौन शिक्षा से क्या तात्पर्य है ? What do you mean by sex education?
डॉ. लॉरेन्स के. फ्रैंक ने बालक और बालिकाओं की तीन स्थितियों का बहुत ही सहज रूप में वर्णन किया है। ये तीन स्थितियाँ हैं—
- मत करो (The don’t stage)
- करो (The do’s stage)
- क्यों इसलिए (Why because stage)
‘मत करो’ की स्थिति में बालक क्रियाशील होता है तो उसे टोका-टाकी कर ‘यह मत करो’ जैसी बातें निरन्तर सुनने को मिलती हैं। यहीं से यह सामाजिक व्यवस्था (Social order) के बन्धनों को भी स्वीकार करना प्रारम्भ करता है । यौनांगों (Genitals) की अनतिक्रमणीयता (inviolability) भी वह इसी स्तर पर सीखता है। ये बाह्य (External prohibitions) उसके व्यवहार के अतिनिषेध (Inhibitions) का रूप धारण कर लेते हैं।
मत करो की स्थिति के साथ-साथ ‘करो’ या ‘करना चाहिए’ की स्थिति भी चलती रहती है । ‘करो’ की स्थिति में स्वीकृत व्यवहार के ढंग, पहनावा, स्वच्छता, स्वास्थ्य की आदतें, तथा स्त्रियोचित अलग-अलग भूमिकाओं को सीखना, भाषा का प्रयोग तथा व्यवहार के अंगों एवं प्रतीकों का सीखना सम्मिलित है।
‘क्यों इसलिए’ में बालक सामाजिक नियमों, रीति-रिवाजों, धार्मिक विश्वासों, दर्शन एवं जीवन, दर्शन, कला तथा विज्ञान आदि के विषय में जानकारी प्राप्त करना चाहता है जैसे-जैसे बालक तथा बालिकायें बड़े होते हैं, उनमें जिज्ञासाओं की उत्पत्ति के परिणाम तमाम प्रकार के प्रश्न उभरने लगते हैं, जिसमें बालक तथा बालिकाओं में एक-दूसरे की शारीरिक संरचना, बच्चे के जन्म इत्यादि के विषय में प्रश्न उभरते हैं।
यौन शिक्षा के द्वारा युवाओं को लिंग के जुड़े विषयों की वैज्ञानिकतापूर्ण शिक्षा, शारीरिक संरचना एवं बनावट, शारीरिक सम्बन्ध तथा प्रक्रिया आदि के विषय में बताया जाता है।
विशेषतायें (Characteristics)
यौन शिक्षा की विशेषतायें निम्नवत् हैं—
1. यौन शिक्षा स्वस्थ लैंगिक दृष्टिकोणों का विकास करती है।
2. यौन शिक्षा शारीरिक संरचना और बनावट का ज्ञान प्रदान करती है।
3. यौन शिक्षा के द्वारा विभिन्न आयु में होने वाले शारीरिक परिवर्तन और प्रक्रिया का ज्ञान प्रदान कराया जाता है।
4. यौन शिक्षा के द्वारा शारीरिक सम्बन्धों और उनसे जुड़ी जानकारी वैज्ञानिक रूप से प्रदान की जाती है।
5. यौन जनित रोगों से बचाव की शिक्षा दी जाती है।
6. यौन शिक्षा के द्वारा यौन जनित दुर्व्यवहारों इत्यादि की रोकथाम तथा इनकी पहचान की शिक्षा दी जाती है।
7. यौन शिक्षा के द्वारा बालक तथा बालिकाओं की भ्रान्तियों का निराकरण किया जाता है।
यौन शिक्षा की आवश्यकता तथा महत्त्व (Need and Importance of Sex Education)
यौन इच्छायें और इनके प्रति जिज्ञासा होना स्वाभाविक प्रक्रिया है । मनुष्य की मूल प्रवृत्तियों में से ‘काम’ भी एक है, परन्तु बालक तथा बालिकाओं को रूढ़िवादी समाज में यौन शिक्षा नहीं प्रदान की जाती है। परिणामतः वे इसे सामाजिक निषेध की वस्तु मानकर चोरी-छिपे इसके विषय में अवास्तविक तथा भ्रान्तिपूर्ण अपूर्ण जानकारी एकत्र करते हैं, जिसका आगे चलकर उनके शारीरिक, मानसिक तथा नैतिक विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। ऐसे में यौन शिक्षा अत्यधिक आवश्यक तथा महत्त्वपूर्ण है जिसका निरूपण निम्नवत् है-
1. उचित धारणाओं के निर्माण तथा विकास हेतु।
2. स्वस्थ लैंगिक दृष्टिकोण के विकास में सहायक ।
3. वयस्क पारिवारिक जीवन को सुखी बनाने में सहायक।
4. परिवार नियोजन हेतु ।
5. बच्चों में अन्तर रखने हेतु ।
6. काल्पनिक यौन दुनिया तथा वास्तविक यौन दुनिया के मध्य अन्तर समझने हेतु ।
7. यौन इच्छाओं तथा शारीरिक परिवर्तनों को एक प्रक्रिया के रूप में ग्रहण करने के लिए, क्योंकि इसके कारण बालक तथा बालिकायें तनाव और भग्नाशा से ग्रस्त हो जाते हैं।
8. विपरीत लिंग के प्रति आदर की भावना के विकास हेतु ।
9. यौन शिक्षा के द्वारा यौन जनित अपराधों पर लगाम कसी जा सकती है, क्योंकि तब स्वस्थ परिचर्चा और पूरा ज्ञान प्राप्त होगा।
10. अश्लील साहित्य तथा क्रिया-कलापों से दूरी हेतु।
11. बच्चों के पालन-पोषण तथा गर्भ धारण इत्यादि के विषय में जानकारी हेतु ।
12. मातृत्व मृत्यु दर तथा बाल मृत्यु दर में कमी और माता तथा बालक के स्वस्थ विकास में सहायक ।
13. यौन रोगों (Sexually Transmitted Diseases ; STD) से बचाव हेतु ।
14. एच. आई. वी. एड्स जैसी घातक संक्रामक बीमारी से बचाव हेतु ।
15. लिंग तथा कामुकता के मध्य अन्तर की समझ हेतु।
16. स्वस्थ समाज के निर्माण हेतु।
17. बालिकाओं को विद्यालय, घर तथा बाहर सुरक्षात्मक अनुभूति कराने हेतु
18. सामान्य तथा असामान्य यौन क्रियाओं के विषय में जानकारी प्रदान करने हेतु ।
19. विवाह जैसी महत्त्वपूर्ण संस्था और सामाजिक नियमों तथा रीति-रिवाजों को समझने में सहायक ।
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