राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा (NCF) 2005 के प्रपत्र की मुख्य अभिशंसाओं का वर्णन कीजिये।
विद्वानों के साथ विचार-विमर्श तथा परामर्श की व्यापक प्रक्रिया के बाद एन.सी.ई.आर.टी. ने वर्ष 2005 में राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा प्रस्तुत की। इसकी आवश्यकता का कारण यह था कि विद्यालय स्तर पर उस समय चल रहे पाठ्यक्रम में अनेक कमियाँ थी। देश के शिक्षाविद तात्कालिक पाठ्यक्रम की आलोचना करते थे। उनके अनुसार प्रचलित पाठ्यक्रम लोकतंत्र प्रणाली तथा देश के सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों तथा उद्देश्यों की पूर्ति करने में असफल रहा है। इस ओलाचना से प्रेरित होकर नवीन पाठ्यक्रम की रूपरेखा तैयार की गई जिसको सितम्बर, 2005 में शिक्षा की केन्द्रीय सलाहकार परिषद् ने स्वीकृति प्रदान की। यह प्रपत्र विद्यालय शिक्षा के सभी स्तरों तथा सभी क्षेत्रों में सुधार के सुझाव प्रस्तुत करता है। जिन क्षेत्रों में सुधार के सुझाव दिये हैं वे पाठ्यक्रम, पाठ्य-पुस्तक, शिक्षण विधि, विद्यालय में स्मय का विभाजन, मूल्यांकन, अधिगम स्त्रोत, नैतिक शिक्षा प्रभावशाली नेतृत्व, कला, क्राफ्ट, कार्य, स्वास्थ्य और सूचना-संवाद तकनीक आदि हैं। यह प्रपत्र परीक्षा और शिक्षक प्रशिक्षण के क्षेत्र में सुधार के भी सुझाव देता है। इसके द्वारा विभिन्न क्षेत्रों के लिए दिये गए सुझावों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-
1. पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकों के विश्व कोष जैसे प्रारूप और सामाजिक नैतिक मूल्यों में परिवर्तन क्योंकि अधिगमकर्त्ता पर इनका दबाव रहता है।
2. प्रपत्र के अनुसार ऐसा परिवर्तन छात्रों को अभिव्यक्ति, काम करने की उत्सुकता का पोषण, प्रश्न पूछने और नई खोज की प्रवृत्ति को जारी रखने, अपने अनुभवों को समझाने की योग्यता में वृद्धि तथा पाठ्यपुस्तकीय ज्ञान को नकारने को प्रोत्साहित करेगा।
3. कला, कार्य तथा स्वास्थ्य शिक्षा को पाठ्यक्रम में सम्मिलित करने से छात्र को अपनी पहिचान बनाने का अवसर मिलेगा जिससे अधिगम के सभी क्षेत्रों में सीखने। की प्रेरणा मिलेगी।
4. शिक्षा की गुणात्मकता जीवन के सभी पक्षों के गुणात्मक विकास को प्रभावित करती है। गुणात्मकता के प्रमुख तत्व शान्ति, पर्यावरण का संरक्षण और सामाजिक परिवर्तन के प्रति सकारात्मक सोच हैं। सांस्कृतिक धरोहर और राष्ट्रीय पहिचान को शक्तिशाली बनाने के उद्देश्य से पाठ्यक्रम ऐसा हो जो नई पीढ़ी को अपने भूतकाल का वर्तमान प्राथमिकताओं तथा नवीन सामाजिक दृष्टिकोण के संदर्भ में पुनर्मूल्यांकन और विवेचन के योग्य बनाए।
5. उभरती नवीन सामाजिक आवश्यकताओं के अनुकूल पाठ्यक्रम सम्बन्धी, सभी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण परिवर्तन होने चाहिए।
6. पाठ्य पुस्तक आधारित परीक्षण के स्थान पर समस्या समाधान तथा योग्यता आधारित परीक्षण होना चाहिये क्योंकि प्रचलित परीक्षण रटने के अधिगम को देता है और परम्परागत शिक्षण विधियों के प्रयोग पर बल देता है और ये दोनों ही परीक्षा का दबाव छात्र पर बढ़ाते हैं।
7. शैक्षिक कार्यक्रमों तक पहुँच का विस्तार करने के उद्देश्य से शैक्षिक तकनीकी और ICT का प्रयोग होना चाहिये।
8. शिक्षक केन्द्रित के स्थान पर बालक केन्द्रित शिक्षा कार्यक्रम शिक्षक प्रशिक्षण में सम्मिलित करने चाहिये।
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