लैंगिक भेदभाव से जुड़ी ऐतिहासिक कृतियों की चर्चा कीजिए।
औपनिवेशिक शासनकाल के दौरान दो विवादास्पद पुस्तकों ने भारत में महिलाओं के प्रश्न पर अन्तर्राष्ट्रीय ध्यान खींचा हैं। पंडिता रमाबाई ने द हाई कास्ट हिन्दू विभेन (1887) और कैथोरिन मेयो ने मदर इण्डिया (1927) में भारतीय सभ्यता में महिलाओं की परिस्थिति की कड़ी आलोचना की। बी. सी. लॉ ने विमेन इन बुद्धिस्ट लिटरेचर (1927) आई ली हॉर्नर ने विमेन अन्डर प्रिमिटिव बुद्धिज्म (1930) और ए. एस. अल्टेकर ने द पोजिशन ऑफ विमेन इन हिन्दू सिविलाइजेशन फ्रोम द प्रिहिस्टोरिक राइम्स टू द प्रेजेन्ट (1938) में काफी पहले भारतीय सभ्यता में महिलाओं की स्थिति पर गंभीरता से विचार किया था।
नारीवादी आन्दोलन और 1975 में अन्तर्राष्ट्रीय महिला वर्ष की शुरूआत होने के बाद महिला आन्दोलन के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति हुई। बी. आर. नन्दा के संपादन में निकली पुस्तक इंडियन विभेन फ्रोम पर्दा टू मॉडरनिटि (नई दिल्ली 1976 ) इस दिशा में एक प्रमुख पहल थी परन्तु जल्द ही महिलाओं के इतिहास का आधार विस्तृत हुआ और लैंगिक भेदभाव से जुड़ा इतिहास जटिल रूप लेने लगा।
महिलाओं का अलग से अध्ययन करने के बजाए इतिहासकारों ने समाज में स्त्री और पुरूष के बीच के शक्ति संबंधों के सन्दर्भ में इस समस्या का अध्ययन करने लगे। कुमकुम सांगरी और सुदेश बैद के संपादन में निकली पुस्तक “रिकास्टिंग विमेन: एस्सेज इन कोलोनियल हिस्ट्री” (1989) एक महत्वपूर्ण कृति थी जिसने लैंगिक भेदभाव से जुड़ी इतिहास संकल्पना का प्रतिपादन किया। इसके बाद के लेखों में कई संग्रह निकले जिन्होंने लैंगिक भेदभाव को नए परिष्कृत रूप में रखा।
उदाहरण के लिए कृष्णामूर्ति द्वारा विमेन इन कोलोनियल इण्डिया: एस्सेज ऑन सरवाइवल वक्र ऐंड द स्टेट (नयी दिल्ली 1989), भारती राय (संपा) फ्रोम द सीम्स ऑफ हिस्ट्री: एस्सेज ऑन इण्डियन विमेन (नई दिल्ली 1995) और अपर्णा बसु और अरूप तनेजा (संपा) ब्रेकिंग आउट ऑफ इनविजिबिलिटी विमेन इन इण्डियन हिस्ट्री (नयी दिल्ली 2002) सुजी थारू आर के ललिता के संपादन में निकली पुस्तक विमेन राइटिंग इन इण्डिया 600 B C टू द प्रजेन्ट में विभिन्न युगों में महिलाओं की अभिव्यक्तियों को शामिल किया गया हैं।
जुलिया जेसली ने द परफेक्ट वाइफ द अर्थोडाक्स हिन्दू विमेन एकॉडिंग टू द द स्त्रीवार्म पद्धति ऑफ ट्राइअम्ब क्याणवान (1989) और वारबरा मेटकाफ ने परफेक्टिंग विमेन, मौलाना अशरफ अली थानावीत्र बिहिश्ती जेन्ट (1990) में क्रमश हिन्दू और मुस्लिम महिलाओं की स्थिति का आलोचनात्मक परीक्षण किया गया हैं।
महिला आन्दोलन में बंगाल ने अगुआ की भूमिका निभाई, इसीलिए औपनिवेशिक बंगाल में लैंगिक भेदभाव से सम्बन्धित कई पुस्तकें निकाली। इन कृतियों में महत्वपूर्ण हैं-उषा चक्रवर्ती, कंडिशन ऑफ बंगाली विमेन सराठण्ड द सैकेण्ड हाफ ऑफ द नाइनटीन सेंचुरी (1963) | सोनिया निशात अमीन द्वारा द वर्ल्ड ऑफ मुस्लिम विमेन इन कोलोनियल बंगाल (1876-1939)। भारत के अन्य प्रांतो में भी इस दिशा में काम किया गया हैं। मसलन प्रेम चौधरी द बेल्ड विमेन: शिफ्टिंग जेन्डर इक्वेशन इन रूरल हरियाणा (1880 1990), सीता अनन्था रामन्. गेंटिंग गर्ल्स टू स्कूल: सोशल रिफार्म इन द तमिल डिस्ट्रिक्ट्स (1870-1930) और गेल मिनॉल्ट विमेन्स एजुकेशन एण्ड मुस्लिम सोशल रिफार्म इन कोलोनियल इण्डिया। द न्यू कैम्ब्रिज हिस्ट्री ऑफ इण्डिया सीरीज: जेराल्डीन फोर्ल्स, विमेन इन मॉर्डन इण्डिया (1996) में आधुनिक काल में भारतीय महिलाओं का सामान्य अध्ययन किया गया हैं।
हाल ही में लैंगिक भेदभाव के इतिहास को और व्यापक बनाया गया और इसमें केवल महिलावाद पर ही विचार नहीं किया गया बल्कि पुरूषत्व पर भी विचार किया गया। मृणालिनी सिन्हा की पुस्तक कोलोनियल मैसकु लिनिटी द मैनली इंगलिशमैन एण्ड द इफेमिनेट बंगाली इन द लेट नाइनटीन्थ संचुरी इसका एक उदाहरण हैं, अब लैंगिक भेदभाव के इतिहास के साथ-साथ प्रजाति, समुदाय, जाति और जनजाति जैसे पक्ष भी जुड़ गये हैं। सामाजिक अध्ययन के दो क्षेत्र आपस में मिल गए हैं और एक समृद्ध इतिहास लेखन की शुरूआत हुई।