इतिहास शिक्षण में कौन-कौन सी शिक्षण सामग्री का प्रयोग किया जाता है ? उदाहरण सहित समझाइए।
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शिक्षण सामग्री का महत्त्व
एक इतिहास शिक्षक के सम्मुख सबसे बड़ी समस्या यह रहती है कि वह इतिहास को वास्तविकता के रंग में कैसे रंगे ? कैसे वह अपने पाठ में सजीवता लाये और कैसे बालकों के मन में इतिहास विषय के प्रति श्रद्धा को उत्पन्न करे ? इतिहास की पुस्तकों को केवल कक्षा में कुछ बालकों द्वारा वाचन करा देना पर्याप्त नहीं है। इससे बालकों में क्रियाशीलता नहीं आती। वे चुप बैठे सुना करते हैं और तत्पश्चात् उन्होंने क्या पढ़ा ? उसका जीवन में क्या उपयोग है ? इन सब बातों से उनका कोई सम्बन्ध नहीं।
शिक्षक की बहुत कुछ समस्या का हल हमें इस तथ्य में मिल जाता है कि ‘सहायक सामग्री’ ही इतिहास शिक्षण की आत्मा है। प्रत्येक इतिहास – शिक्षक को इस ओर पूर्ण ध्यान देना चाहिए। सहायक सामग्री का जितना महत्त्व इतिहास शिक्षण में है उतना अन्य किसी विषय में नहीं क्योंकि यह विषय निर्जीव होता है। हमें भूतकालीन तथ्यों को सामने लाना होता है अतः इसे सजीव बनाने के लिए इसमें सरसता एवं रोचकता लाने के लिए सहायक सामग्री का आश्रय लेना ही होता है।
इसके अतिरिक्त सहायक सामग्री के आधार पर इतिहास पाठ को व्यावहारिक भी बनाया जा सकता है। बालक जब कान से सुनकर आँख से देख भी लेते हैं तो उनका ज्ञान बिल्कुल स्थायी रूप से उनके मस्तिष्क में जम जाता है। फिर वे उसे कभी नहीं भूलते। अतः शिक्षक को चाहिए कि वह अपना पाठ कोरे सैद्धान्तिक रूप में ही न पढ़ा दे वरन् सहायक साधनों के प्रयोग द्वारा उसे व्यावहारिक बनाते हुए बालकों के सम्मुख रखें।
जो पाठ सहायक साधनों के आधार पर पढ़ाया जाता है, वह रोचक एवं सरस होता है। बालक रुचि से काम लेते हैं और उनका मन उसमें इतना रम जाता है कि उसे इधर-उधर भागने का मौका नहीं मिलता। सहायक साधनों से स्वयं शिक्षक का भी कार्य सरल हो जाता है। उसे अधिक लेक्चरबाजी करने की आवश्यकता नहीं होती, वह तो इशारों से अपना काम सफलतापूर्वक निकाल लेता है। जो चीज सूक्ष्म थी उसे वह मूर्त रूप में बालकों के सम्मुख लाकर रखता है।
सहायक सामग्री तो वास्तव में शिक्षक के लिए अस्त्र का काम करती है। जिस प्रकार बिना अच्छे अस्त्रों के कोई भी योद्धा रणक्षेत्र में सफलता नहीं प्राप्त कर सकता, उसी प्रकार बिना सहायक साधनों के शिक्षक भी अपने शिक्षण में पूर्ण सफल नहीं हो सकता है। उसे भी एक अच्छे सिपाही के समान अपने अस्त्र-शस्त्रों को पैना कर रखना चाहिए और सदैव ही अच्छे एवं उपयुक्त औजारों (साधनों) की खोज में भी रहना चाहिए।
इतिहास शिक्षण में सहायक साधन
इतिहास शिक्षण में उपयोग किये जाने वाले सहायक साधन निम्नलिखित हैं-
(1) पाठ्य-पुस्तकें (Text Books) – इतिहास का शिक्षक वास्तव में वही सफल शिक्षक कहा जा सकता है जो कि कम-से-कम इतिहास की पुस्तक का प्रयोग कक्षा में करे किन्तु ऐसा होता कहाँ है ? अधिकतर तो शिक्षक कक्षा में इतिहास की पुस्तक का पाठ करा देना ही पर्याप्त में समझते हैं। इतिहास पुस्तक का प्रयोग बालकों के लिए है। उन्हें कक्षा के बाद घर पर उसी के आधार पर पढ़ना होता है। शिक्षक को तो मौखिक रूप से ही सहायक साधनों के माध्यम से शिक्षण कार्य करना चाहिए। बालक जिस पाठ्य पुस्तक का अध्ययन करते हैं, उसमें कौन-कौन सी विशेषताएँ होनी चाहिए इस पर भी विचार कर लेना चाहिए।
इतिहास की पाठ्य पुस्तक की विशेषताएँ
1. इतिहास की पाठ्य पुस्तक की पहली विशेषता यह होनी चाहिए कि उसमें प्रमुख घटनाओं को कारण और परिणाम सहित रखा गया हो, इतिहास को एक सारांश के रूप में दे देना ठीक नहीं। उन घटनाओं का वर्तमान सामाजिक जीवन से क्या सम्बन्ध है ? उनसे हम क्या शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं? उन्होंने हमारे वर्तमान समाज पर क्या प्रभाव डाला है ? आदि प्रमुख तत्त्वों की विशद् व्याख्या होनी चाहिए। सम्पूर्ण इतिहास का दिया जाना तो किसी भी रूप में सम्भव नहीं और प्रमुख घटनाओं को छोड़ देना भी हितकर नहीं। अतः विषय सामग्री का चुनाव ऐसा होना चाहिए जो हमारी तात्कालिक स्थिति से सम्बन्धित हो और जिन्हें पढ़कर बालक लाभान्वित हो सकें।
2. इतिहास पुस्तक की लेखन विधि कुछ ऐसी रोचक होनी चाहिए कि बालक जिज्ञासापूर्वक उसे पढ़ें। भाषा सरल एवं बोधगम्य होनी चाहिए। क्लिष्ट भाषा देकर भाषा ज्ञान कराना ध्येय न होना चाहिए। क्लिष्ट भाषा से उनकी रुचि का खण्डन हो जायेगा और वे एक-दो पन्ने पढ़कर बन्द कर देंगे। लेखक का उद्देश्य तो केवल तथ्यों से बालकों को परिचित कराना ही होना चाहिए।
3. इतिहास की पुस्तक बिना चित्रों के सूनी-सी लगती है। उसमें प्रमुख युद्धों के चित्र, महान् विजेताओं के चित्र एवं अन्य रेखाचित्र अवश्य ही होने चाहिए। इसके अतिरिक्त यथासम्भव वंश वृक्ष एवं अन्य दरबार आदि के दृश्य दे देने चाहिए। इनसे पुस्तक की सुन्दरता बढ़ जाती है और साथ ही साथ उपयोगिता भी।
4. एक अच्छी पाठ्य-पुस्तक में विषय-सूची होनी चाहिए जिससे कि बालकों को आसानी हो।
5. पाठ के अन्त में कुछ अभ्यास अवश्य होने चाहिए। ये अभ्यास या प्रश्न बहुत ही सोच-समझकर वर्तमान स्थिति को ध्यान में रखते हुए देने चाहिए।
6. ऊपर से देखने में ही वह इतिहास की पुस्तक दृष्टिगत होती हो। उसकी छपाई बालकों की अवस्था एवं योग्यता के अनुकूल होनी चाहिए।
7. विषय सामग्री को क्रमिक रूप में विषयानुसार एवं पाठानुसार देना चाहिए।
8. एक अच्छी पाठ्य-पुस्तक वास्तव में वही है जिसको कि स्वयं एक योग्य शिक्षक पसंद करता हो ।
9. पाठ के अन्त में प्रतिपादित विषय सामग्री पर ऐसे प्रश्न हों जिनमें कि बालकों की बुद्धि का प्रयोग होता हो। वे अपनी कल्पना-शक्ति के आधार पर ही उनका उत्तर निकाल सकें।
10. जूनियर स्तरों के लिए जो किताबें लिखी जायें, वे कथात्मक विधि के आधार पर लिखी जायें। इसी प्रकार बालकों की आयु एवं योग्यता के अनुकूल ही पुस्तकों को लिखना चाहिए।
11. किताबों का मूल्य भी कम होना चाहिए जिससे कि सभी बालक सुविधा के साथ खरीद सकें और उनसे लाभान्वित हो सकें।
(2) नक्शे (Maps) – इतिहास शिक्षण में नक्शों का बहुत काफी महत्त्व है। ये नक्शे एक प्रमुख साधन के रूप में इतिहास शिक्षक द्वारा अपनाये जाते हैं। इनके द्वारा वह अपने कथन की पुष्टि करता है। प्रमुख स्थानों, नदियों, पहाड़ों एवं मार्गों को इन्हीं के द्वारा व्यावहारिक रूप में समझाया जाता है। किस शासक का साम्राज्य कितना विस्तृत था ? इसी के द्वारा ज्ञात होता है। कौन जाति किस मार्ग से आई ? आर्य किन रास्तों से होकर भारत आए ? उन्होंने कहाँ-कहाँ डेरे डाले, कौन शाखा किस रास्ते से होकर कहाँ गई आदि प्रश्न इन्हीं नक्शों के द्वारा ही हल होते हैं।
अध्यापक को चाहिए कि नक्शों का प्रयोग करते समय Pointer का भी प्रयोग करें। अँगुली से संकेत करने पर गलतफहमी हो सकती है और इसके अतिरिक्त अँगुली रखने के लिए उसे नक्शे के निकट आना होगा जिससे कि बालक देख न सकेंगे तथा प्वाइंटर द्वारा दूर ही से काम चल जायगा। इस प्रकार नक्शों की पूर्णता प्वाइंटर के ही साथ में है।
(3) चित्र (Pictures)- जैसा कि हम पहले ही कह आये हैं कि महान् पुरुषों के बड़े-बड़े चित्र और विशेषकर भित्ति चित्र (Wall Pictures) इतिहास कक्ष की विशेषता है। इतिहास पाठ को मूर्त रूप देने के लिए, इमारतों, स्थानों एवं महान् पुरुषों के बड़े-बड़े चित्र नितांत आवश्यक होते हैं। किसी युद्ध के विषय में यदि बालकों को चित्र दिखा दिया जायगा तो वे एक बार अवश्य ही भूतकालीन राजनैतिक स्थिति के विषय में सोचेंगे। इससे उनकी कल्पना शक्ति का विकास होगा और वे वर्तमान स्थिति को ध्यान में रखते हुए एक तुलनात्मक अध्ययन व्यवहार रूप में कर लेंगे।
चित्र बहुत ही साफ और स्वाभाविक होने चाहिए। उनमें किया गया अंकन बिल्कुल ही वातावरण के अनुकूल होना चाहिए, किन्तु हमारी पाठशालाओं में न तो आमतौर से इतिहास कक्ष ही पाया जाता है और न कक्षाओं में सुन्दर ऐतिहासिक चित्रों की ही व्यवस्था की जाती है। वास्तव में यह कार्य शिक्षक का है। शिक्षक को चाहिए कि वह इस ओर पूर्ण ध्यान दे और अपने श्रम एवं लगन से अपने कक्ष को सजाये। उसे स्वयं ही नहीं वरन् बालकों को भी प्रेरित करना चाहिए, वे भी अपने सतत प्रयत्न से प्रभावित स्वनिर्मित एवं स्वअर्जित चित्रों द्वारा अपनी कक्षा को सजायें।
(4) रेखाचित्र और चार्ट (Diagrams and Charts) – ये तो अधिकांश रूप में स्वनिर्मित होते हैं। शिक्षक को चाहिए कि वह स्वयं इनको बनायें और छात्रों को भी इनके निर्माण में सहायता दें। इन साधनों के द्वारा तारीखें एवं घटनाएँ स्मृति पटल पर स्थायी रूप से जम जाती हैं। इन साधनों से और भी लाभ ये हैं कि इससे हम इतिहास के काफी अंश को बालकों के सम्मुख रख सकते हैं अपेक्षाकृत मौखिक वर्णन के।
(5) समाचार पत्र एवं पत्रिकाएँ (Newspaper and Magazines) – इनके द्वारा – बालकों को नवीन से नवीन सूचनाएँ मिलती रहती हैं। प्रजातंत्र के बदलते हुए सिद्धान्तों एवं नियमों को अवश्य ही जानना चाहिए और इससे सम्बन्धित सूचनाओं के लिए समाचार पत्र और साप्ताहिक या दैनिक पत्रिकाएँ बड़ी ही उपयोगी होती हैं। उच्चतर माध्यमिक स्तर पर बालक प्रायः राजनीति एवं नित्य प्रति के समाचारों में रुचि लेने लगते हैं, ऐसी अवस्था में उनके लिए समाचार पत्रों एवं अन्य शिक्षा प्रद पत्रिकाओं की व्यवस्था होनी चाहिए।
लाभ :
- समाचार-पत्र एवं पत्रिकाएँ बालकों के दृष्टिकोण को वृहद् करते हैं, उनकी समझ को विकास देते हैं और इनमें विवरण भी हमें बड़े ही व्यवस्थित ढंग से मिलते हैं।
- इनके द्वारा बालक अन्यान्य समाचारों से सूचित होते रहते हैं, फलतः वे अपने समाज, राष्ट्र अथवा देश की स्थिति से पूर्ण अवगत हो जाते हैं और उसी के अनुकूल अपने राष्ट्र को ऊँचा उठाने के लिए सक्रिय हो उठते हैं।
(6) चलचित्र (Cinema)- सिनेमा की उपयोगिता को कौन नहीं समझता ? यह तो विचारों एवं भावों को दूसरों तक पहुँचाने के लिए एक अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण साधन है, किन्तु इस साधन का इस पक्ष में उपयोग भारत जैसे देश में अभी नहीं हो पा रहा है। हाँ ! पश्चिमी देशों में इसे बड़े जोर-शोर से अपनाया गया है। बालकों को नवीन सूचनाएँ देने एवं अन्यान्य समाचारों से परिचित कराने के लिए यही साधन एक माध्यम के रूप में अपनाया जा रहा है।
इतिहास के बालकों को चलचित्र द्वारा नवीन ऐतिहासिक सामग्री, सिक्कों, इमारतों एवं खिलौनों आदि का भी प्रदर्शन किया जा सकता है। ऐतिहासिक दृश्यों को भी इसी साधन द्वारा दिखाया जा सकता है।
हर एक अच्छी संस्था में कम-से-कम एक ‘Light Weight Cinema Projector’ की व्यवस्था अवश्य ही होनी चाहिए।
लाभ :
- इसके द्वारा एक ही समय में सहस्रों बालकों को एक ही साथ सूचनाएँ दी जा सकती हैं।
- इनके द्वारा पदार्थों को काफी बड़े आकार में दिखाया जाता है, अतः बालकों को हर चीज काफी साफ दिखाई देती है।
- इनके द्वारा बालक रुचि के साथ खेल-खेल में बहुत कुछ सीख लेते हैं।
- चलचित्र द्वारा घटनाओं एवं ऐतिहासिक तथ्यों को मूर्तरूप में बालकों के सम्मुख रखा जा सकता है और इस प्रकार वे अपने ज्ञान को सूक्ष्मातिसूक्ष्म अवयवों से पूर्ण बना सकता है।
- शिक्षक इनके द्वारा इतिहास को एक सजीव रूप देकर बालकों के सम्मुख रखता है।
(7) रेडियो (Radio)- UNESCO की रिपोर्ट के शब्दों में “It serves to interpret the schools to community and the community to the schools.” रेडियो ने काल और स्थान पर विजय प्राप्त करते हुए समस्त विश्व को एकाकार करने में कोई कसर नहीं बाकी रखी है। इस माध्यम द्वारा हमारी शिक्षा सम्बन्धी बहुत कुछ समस्याएँ हल की जा सकती हैं। नित्यप्रति की समस्याओं का तो ज्ञान इन्हीं के द्वारा सम्भव है।
लाभ :
- इसके द्वारा हमें महान् व्यक्तियों के विविध अनुभवों से परिचय प्राप्त होता है।
- यह हमारे सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक, आर्थिक, नैतिक, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय विचारों को उच्चता प्रदान करता है।
- समस्त विश्व में घटने वाली अनेकानेक घटनाओं से यह हमें परिचित कराता है।
- इसमें बालकों के व्यवहार एवं आचार में पर्याप्त सुधार हो जाते हैं।
- महान् पुरुषों की अप्रत्यक्ष संगति पाकर एवं उनकी वाणी का रसास्वादन कर उनमें भी वैसे ही महान् पुरुष बनने की भावना उद्भूत होती है।
- UNESCO का मत है कि रेडियो की व्यवस्था अनिवार्य रूप से पाठशालाओं में शिक्षा के हितार्थ होनी चाहिए।
(8) फिल्म एवं फिल्म पट्टियाँ (Films and Film Strips) – इसके द्वारा बालकों को भूतकाल से परिचित कराया जा सकता है। इसके द्वारा इतिहास को एक तारतम्य रूप में बालकों के सामने रखा जा सकता है। ऐसी फिल्मों को यदा-कदा बालकों को दिखाते रहना चाहिए। शिक्षकों को भी उनके प्रशिक्षण काल में इन साधनों का थोड़ा-बहुत ज्ञान अवश्य करा देना चाहिए। फिल्म को दिखाने के पश्चात् विषय पर वार्ता आवश्यक है किन्तु दिखाने के तुरन्त ही बाद ऐसी वार्ता अनुपयोगी होगी। इसके लिए बालकों को कुछ थोड़ा समय देना चाहिए जब वे पूर्ण रूप से उसे हृदयंगम कर चुकें, तब उस पर कक्षा के अन्तर्गत वार्ता होनी चाहिए।
लाभ- खोजों के आधार पर यह बात सिद्ध कर दी गई है कि इनके द्वारा 45 प्रतिशत ज्ञान बालकों को व्यवहार रूप में दिया जा सकता है। इससे बालकों की शक्ति को बढ़ाया जा सकता है। फिल्म स्ट्रिप्स को इधर-उधर ले नहीं जाया जा सकता। इसके द्वारा जो भी घटनाएँ दिखाई जाती हैं वे साफ, सुन्दर एवं सजीव होती हैं।
(9) संग्रहालय (Museum)- घोष (K. D. Ghose) के अनुसार- “It is true that all the wealth of painting, music, sculptures, dress, industries, tools and religious outlooks, all the significant phases of life that are well illustrated in the important museums of the land cannot be adequately represented in the school history museum, but an attempt must be made to put in a variety of materials to be used as aids which will help the imagination to picture the life that is gone and yet at the same influences the present in a subtle, thought very real way.”
इसका संगठन (Organization) –
- अध्यापकों एवं विद्यार्थियों के सम्मिलित प्रयत्न द्वारा।
- विद्यार्थियों को महान् पुरुषों के चित्रों आदि को लाने के लिए प्रेरित किया जाय।
- विभिन्न प्रकार की इमारतों एवं स्थानों के चित्रों का संकलन।
- सिक्कों, औजारों, खिलौनों, बरतनों और टिकटों को संकलित करना ।
- बालकों द्वारा चार्ट, रेखाचित्र एवं नक्शों को बनवाना।
- शिक्षक की सहायता से नवीन प्रकार के शिक्षा सम्बन्धी उपयोगी खिलौने एवं रेखाचित्रों को बनाना।
ऐतिहासिक स्थलों की यात्रा (Various Outdoor Excursions) – इनसे बड़ा लाभ होता है। बालकों को इनके द्वारा व्यावहारिक ज्ञान की प्राप्ति होती है। विभिन्न ऐतिहासिक इमारतों और स्थानों को देखकर बहुत कुछ ऐतिहासिक ज्ञान अर्जित कर सकते हैं। ‘History is the action and reaction of nature and thought.’
IMPORTANT LINK
- आदर्श इतिहास शिक्षक के गुण एंव समाज में भूमिका
- विभिन्न स्तरों पर इतिहास शिक्षण के उद्देश्य प्राथमिक, माध्यमिक तथा उच्चतर माध्यमिक स्तर
- इतिहास शिक्षण के उद्देश्य | माध्यमिक स्तर पर इतिहास शिक्षण के उद्देश्य | इतिहास शिक्षण के व्यवहारात्मक लाभ
- इतिहास शिक्षण में सहसम्बन्ध का क्या अर्थ है ? आप इतिहास शिक्षण का सह-सम्बन्ध अन्य विषयों से किस प्रकार स्थापित करेंगे ?
- इतिहास क्या है ? इतिहास की प्रकृति एवं क्षेत्र
- राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान के विषय में आप क्या जानते हैं ?
- शिक्षा के वैकल्पिक प्रयोग के सन्दर्भ में एस० एन० डी० टी० की भूमिका
- राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (एन.सी.एफ.-2005) [National Curriculum Framework (NCF-2005) ]
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