समस्या समाधान विधि में आप क्या समझते है? उसके सामान्य सिद्धान्तों को बताइये ।
समस्या समाधान विधि :- समस्या विधि वह शिक्षण विधि हैं जिस में शिक्षण कार्य किसी समस्या के गिर्द आयोजित एवं गठित किया जाये। यह औपचारिक शिक्षण विधियों से भिन्न हैं क्योंकि इसमें विद्यार्थी का सक्रिय सहयोग तथा संलग्नता रहती है। यह ऐसी क्रिया विधि है जो विद्यार्थियों के सम्मुख कोई चुनौती पूर्ण समस्या रखकर उन्हें समाधान के खोज की तकनीक में प्रशिक्षण प्रदान करती है। इस विधि में विद्यार्थियों के सम्मुख वास्तविक जीवन की भी परिस्थितियां उत्पन्न कर दी जाती है और क्रियात्मक चिन्तन द्वारा उनमें उन परिस्थितियों का सफलतापूर्वक सामना करने की योग्यता विकसित की जाती है। सी. वी. गुड ने समस्या विधि को परिभाषित करते हुए कहा हैं समस्या विधि ऐसी शिक्षण विधि है जिस में चुनौती पूर्ण स्थितियों द्वारा सीखने के लिए प्रेरित किया जाता है। यह ऐसी विशिष्ट प्रक्रिया है जिसमें एक प्रमुख समस्या का समाधान तत्सम्बन्धी छोटी-छोटी समस्याओं के मिश्रित समाधान से किया जाता है।
समस्या समाधान मात्र तथ्यों का संग्रह या तर्क के अभाव में विचारों, धारणाओं आदि की स्वीकृति नही हैं वरन् यह विमर्शी चिन्तन की प्रक्रिया है। डीवी के अनुसार विमर्शी चिन्तन के दो पहलू हैं। प्रथम वह संदेहात्मक स्थिति, हिचकिचाहट एवं मानसिक कठिनाई जिसमें चिन्तन का जन्म होता है। द्वितीय वह खोज कार्य जो सन्देह एवं हिचकिचाहट को दूर करेगा तथा मानसिक कठिनाई का समाधान प्रदान करेगा। जार्ज जान्सन ने लिखा हैं – मस्तिष्क को प्रशिक्षित करने का सर्वोत्तम ढंग वह हैं जिसके द्वारा मस्तिष्क के समक्ष वास्तविक समस्या उत्पन्न की जाती है और उसको उनका समाधान निकालने के लिए अवसर तथा स्वतन्त्रता प्रदान की जाती है। समस्या विधि योजना विधि से पर्याप्त समानता रखती है। इन दोनों विधियों में अन्तर इस बात का है कि योजना विधि में प्रायोगिक कार्य को महत्व प्रदान किया जाता है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि योजना विधि में शारीरिक एवं मानसिक दोनों प्रकार की क्रियाएं होती हैं जबकि समस्या विधि में केवल मानसिक हल ही प्रदान किया जाता है। इस प्रकार समस्या विधि में किसी समस्या या प्रश्न को एक विशेष स्थिति में वैज्ञानिक ढंग से हल किया जाता है। अतः इस विधि का सबसे प्रमुख गुण मानसिक क्रिया एवं विमर्शी चिन्तन है। सामाजिक विज्ञान शिक्षण में इस विधि का महत्वपूर्ण स्थान है।
समस्या समाधान विधि के सामान्य सिद्धान्त
सामान्य विधि तभी उपयोगी हो सकती हैं जब समस्या समाधान के सामान्य सिद्धान्तों को सामने रखकर इसका प्रयोग किया जाएं ये सिद्धान्त निम्नलिखित हैं :-
1. मानसिक और बौद्धिक स्तर के अनुकूल समस्या :- समस्या विद्यार्थियों के मानसिक एवं बौद्धिक स्तर के अनुकूल होनी चाहिए। इससे विद्यार्थियों को समस्या के प्रति स्वतः रुचि उत्पन्न होगी और वे उसके समाधान के लिए प्रेरित होंगे।
2. सुरुचिपूर्ण और महत्वपूर्ण समस्या – समस्या सुरुचिपूर्ण एवं महत्वपूर्ण होनी चाहिए ताकि विद्यार्थी उसे तन मन से अपना सकें। समस्या के प्रति यह अपनापन उन्हें समस्या की गहराई तक पहुंचाने और उसका समाधान ढूंढने के लिए प्रेरित करता है।
3. आसान शब्दावली :- समस्या प्रस्तुत करते समय अस्पष्ट एवं क्लिष्ट शब्दावल का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। ऐसी शब्दावली का प्रयोग किया जाना चाहिए जिससे समस्या के सभी विचारणीय पहलु स्पष्ट हो जाएं।
4. समस्या समाधान के लिए आवश्यक एवं उपयोगी सामग्री :- सामग्री का चुनाव करते समय भी विद्यार्थियों की मानसिक एवं बौद्धिक क्षमताओं का ध्यान रखना चाहिए। ऐसी सामग्री चुननी चाहिए जिसका विद्यार्थी सुगमता से प्रयोग कर सके।
5. सुनिश्चित और स्पष्ट समाधान :- समस्या का समाधान सुनिश्चित एवं स्पष्ट होना चाहिए। समाधान में किसी प्रकार के भ्रम का स्थान नहीं होना चाहिए।
6. समस्या का समाधान थोपना नहीं :- समस्या का समाधान विद्यार्थियों पर थोंपना नहीं चाहिए। इसका अर्थ यह है कि समस्या के हल को सही मानने के लिये विद्यार्थियों को बाध्य नही करना चाहिए बल्कि उन्हें स्वयं अपने निष्कर्षो द्वारा उसी समाधान पर पहुंचने की स्वतन्त्रता देनी चाहिए। समाधान की पूरी आलोचना होनी चाहिए और उसका उचित मूल्यांकन होना चाहिए। विद्यार्थियों को मानसिक एवं बौद्धिक सन्तुष्टि के पश्चात् समाधान को स्वीकार करने के लिए अनुप्रेरित करना चाहिए।
IMPORTANT LINk
- समस्या समाधान विधि के चरण
- भूमि निर्वाह नीति की विशेषताओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
- शिक्षण योजना पर टिप्पणी लिखिये।
- भूमि निर्वाह नीति से आपका क्या अभिनय है? इसके चरणों को लिखिये।
- इकाई योजना से आपका क्या अभिप्राय है? समझाइये।
- वार्षिक योजना तैयार करने के चरणों को संक्षेप में लिखिये।
- राजनीति विज्ञान में समस्या समाधान विधि द्वारा समस्या चयन सम्बन्धी कौनसी सावधानियाँ रखी जानी चाहिए?
- सतत्- आन्तरिक मूल्यांकन एवं सत्रान्त-बाह्य मूल्यांकन की तुलना कीजिये ।
- सतत् व व्यापक मूल्यांकन (CCE) की संकल्पना को विकसित कीजिये।
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- इकाई योजना के सोपानों को लिखिये।
- इकाई के प्रकारों का उल्लेख कीजियें।
- सतत् व व्यापक मूल्यांकन (CCE) की आवश्यकता को बताइये।
- पाठ योजना के प्रकार समझाइये।
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