सामाजिक विज्ञानों की एक विषय के रूप में प्रकृति या स्वरूप का वर्णन कीजिये।
समाज का अध्ययन करना ही सामाजिक विज्ञानों का मुख्य केन्द्र बिन्दु होता है। आदिम अवस्था से मानव समूह के रूप में रहने का अभ्यस्त था और यह सभी जीवों को प्रकृति प्रदत्त उपहार है कि वे समूह में रहना पसन्द करते हैं। समूह गठन की प्रकृति सभी प्रकार के जीव जन्तुओं में देखने को मिलती है। यहाँ तक कि वनस्पति में भी एक प्रजाति के पौधे एक स्थान पर समूह में उगे हुए देखे जाते है। में समूह मिलकर समाज की रचना करते हैं। मानव समूहों ने जिस समाज का गठन किया उसे मानव समाज कहा जाता है। व्यक्ति और समाज में घनिष्ठ सम्बन्ध है। समाज में अलग व्यक्ति का कोई अस्तित्व नहीं है। समाज में रहकर वह अपनी आवश्यकताओं को पूरा कर सकता अथवा विकास करते हुए उन्नति के पथ पर आगे बढ़ सकता है। यही बात समाज के बारे में भी सत्य है। समाज का निर्माण व्यक्ति करते हैं। अतः व्यक्तियों के बिना समाज अर्थहीन है। समाज अपनी एकता और उन्नति के लिए व्यक्तियों पर निर्भर है। उनके सहयोग के बिना समाज की प्रगति सम्भव नहीं है।
समाज के कुछ मूल्य तथा नीति निर्धारक तत्व होते हैं जो समाज के अस्तित्व को बनाये रखने में सहायता करते हैं। सामाजिक मूल्यों में न्याय, परोपकार, अनुशासन, समायोजन, सहयोग, समानता, परिश्रम आदि है। इसी प्रकार नैतिक मूल्यों में ईमानदारी, नैतिकता, चरित्र, सत्यता, करुणा, दया, अहिंसा, सहानुभूति, आत्म संयम, विनम्रता आदि प्रमुख हैं। सांस्कृतिक मूल्यों में शारीरिक श्रम की प्रतिष्ठा के सूचक हैं। परिवर्तित समाज का आधार प्राचीन सामाजिक, नैतिक और सांस्कृतिक मूल्य होते है। इन पुराने मूल्य तथा कला का ज्ञान इतिहास से होता है। नागरिक शास्त्र व्यक्ति को समाज का एक योग्य व क्रियाशील नागरिक बनाने में सहायता करता है। अर्थशास्त्र समाज की अर्थव्यवस्था का ज्ञान कराता है और भूगोल मानव और वातावरण के सम्बन्धों काज्ञान कराता है। इन सभी विषयों को सामाजिक विज्ञान कहते है।
सामाजिक विज्ञान विषय की प्रकृति को निम्नांकित रूप में व्यक्त किया जा सकता है।
(1) सामाजिक शिक्षण एक आत्मनिर्भर विषय है – सामाजिक शिक्षा एक आत्मनिर्भर विषय है। यह अर्थशास्त्र, भूगोल, नागरिक शास्त्र, इतिहास जैसे सामाजिक विज्ञानों, भौतिक या प्राकृतिक विज्ञानों जैसे रासायनिक विज्ञान, जीव विज्ञान, मनोवैज्ञानिक आदि और कला विज्ञान जैसे चित्रकला, नृत्य, संगीत तथा नाट्य शैली आदि से विषय सामग्री ग्रहण करता है। यह मनुष्य एवं उसके वातावरण से सम्बन्धित सम्बन्धों के बारे में बताता है।
(2) संगठित तथा एकीकृत विषय – सामाजिक शिक्षा अर्थशास्त्र, इतिहास, नागरिक शास्त्र, मनोवैज्ञानिक, तर्कशास्त्र, धर्मशास्त्र आदि का जोड़ ही नहीं, अपितु इन सबका मिश्रित रूप है और मनुष्य और उनके वातावरण के बीच सम्बन्ध को बताता है। यह इन सबका एकीकृत रूप है, जिसमें मनुष्य के अपने वातावरण के साथ संघर्ष की व्याख्या है। इसका सीधा सम्बन्ध मनुष्य तथा मानवीय समाज के विकास तथा प्रबन्ध से है।
(3) सामाजिक विज्ञान की एक शाखा – सामाजिक शिक्षा सामाजिक विज्ञानों की शाखा है। सामाजिक शिक्षा का ज्ञान स्कूल के पाठ्यक्रम में क्रियाओं के सही विकास के लिए बच्चों को दिया जाता है। इसके साथ-साथ सामाजिक शिक्षा में नागरिकों की योग्यता तथा बुद्धिमता के विकास के बारे में बताया जाता है।
( 4 ) गतिशील प्रक्रिया – सामाजिक शिक्षा गतिहीन विषय की बजाय गतिशील विषय है और जिसका समय-समय पर सामाजिक प्रक्रियाओं तथा मुश्किलों में बदलाव के कारण लगातार विकास हो रहा है।
(5) समकालीन मानवीय जीवन पर बल – सामाजिक शिक्षा का सम्बन्ध मनुष्य के बीते इतिहास की अपेक्षा समकालीन मानवीय जीवन और उनकी मुश्किलों से हैं।
(6) समुदाय का अध्ययन – सामाजिक शिक्षा का क्षेत्र समाज के सभी समुदाय चाहे वे क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हो, मानव और उसके वातावरण से आपसी सम्बन्धों की व्याख्या करता है।
(7) सम्बन्धों की प्रक्रिया का अध्ययन – सामाजिक शिक्षा सम्बन्ध का जाल है जो कि मनुष्य और उनके वातावरण के बीच विकास के बारे में बताता है। सामाजिक जीवन शैली के पहलुओं को विकसित सामाजिक जीवन तथा पाठकों के प्रति प्रतिक्रियाओं से जाना जा सकता है।
(8) सामाजिक जीवन की तैयारी – सामाजिक शिक्षा का मुख्य लक्ष्य विद्यार्थियों को सम्पूर्ण सामाजिक जीवन में रहने के लिए अनुबंध करना है। जिससे उन्हें अपनी इच्छा अनुसार सामाजिक रिवाजों-नियमों को विकसित करने के अवसर प्राप्त होंगे ताकि सामाजिक तथा राजनीतिक संस्थाओं के कार्यक्षेत्र को विकसित किया जा सकें।
( 9 ) जिम्मेदार नागरिकों का निर्माण – सामाजिक शिक्षा का मुख्य कार्यक्षेत्र विद्यार्थियों को संसार के बारे में समझने में सहायता करना है, जिसमें वे रहते हैं, जिससे वे जिम्मेदार नागरिक बन जायें।
निष्कर्ष में यह कहा जा सकता है कि सामाजिक शिक्षा एक एकीकृत उपयुक्त गतिशील तथा प्रयोगात्मक विषय है जिसकी प्रकृति का सारांश इस प्रकार है-
- मानवीय सम्बन्ध ।
- मानवीय समाज के प्रबन्ध तथा विकास।
- जीवन को अच्छा बनाना।
- सामाजिक शक्तियों को समझना।
- समाजवादी, प्रजातांत्रिक और धर्म निरपेक्ष समाज को आदर्श बनाना।
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