Contents
स्त्रोत से क्या अभिप्राय हैं? इतिहास के प्राथमिक स्त्रोत के रूप में अभिलेखागार की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
अनुसंधान के कार्य में स्त्रोत एक आधार का कार्य करते हैं। एक इतिहासकार को जब कोई ठोस तथा प्रमाणिक तथ्यपूर्ण स्त्रोत प्राप्त होता हैं तभी वह किसी निश्चित दिशा में अनुसंधान का कार्य करता है। ये स्त्रोत इतिहासकार के लिए तथ्य और प्रमाण होते हैं। यदि किसी स्त्रोत से इतिहासकार को सन्दर्भ प्राप्त न हो तो उसे अनुसंधान कार्य में कठिनाई होती हैं। इतिहासकार सभी उपलब्ध सामग्री को संग्रहित करके काल विशेष के इतिहास का निर्माण करता हैं। जिसमें उसके प्रयास निष्पक्ष, सजीव व प्राणवान होगें उतने ही उसके लिए उपयोगी सिद्ध होगें। वर्तमान को अतीत से जोड़ने वाली कड़ी को इतिहास कहते हैं और ऐतिहासिक स्त्रोत ही वर्तमान को अतीत से जोड़ते हैं किन्तु इनकी उपलब्धि एक कठिन काम हैं ऐतिहासिक स्त्रोत या तो समाधि में समा जाते हैं या नई शासन व्यवस्था पुराने कार्यों और कृतियों को मिटा देना आवश्यक समझती हैं।
भारत में समय पर हुए यवन, हुण मंगोल और तुर्क आक्रमणों ने इतिहास के स्त्रोतों को नष्ट-भ्रष्ट कर अपनी सभ्यता और संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया था। 1921 में सिन्धु घाटी में हुए उत्खनन कार्य के बाद प्राप्त अवशेषों के आधार पर पुरातत्ववेत्ता सर जॉन मार्शल ने आर्य सभ्यता के स्थान पर सिन्धु सभ्यता को भारत की प्रथम सभ्यता के रूप में मान्यता प्रदान की थी। उन्होंने भारत के इतिहास को सुरक्षित रखने के लिए पुरातत्व विभाग की स्थापना कर अभिलेखागार की आधुनिक अवधारणा को जन्म दिया।
अभिलेखागार की आधुनिक अवधारणा
अभिलेखो के महत्व को समझने के साथ ही अभिलेखागार की अवधारणा मानव मन में विकसित होने लगी। जहाँ तक ज्ञात होता हैं कि यूरोप महाद्वीप में अभिलेखो को व्यवस्थित करने की प्राचीन परम्परा यूनान में प्राप्त होती हैं। ईसा से चौथी और पांचवीं शताब्दी पूर्व एथेन्सवासी अपने महत्वपूर्ण अभिलेखों को मदर ऑफ गॉडेस के मंदिर में संरक्षित किया करते थे। यह स्थान मेटरून नाम से जाना जाता था जो कोर्ट हाऊस के पास स्थित था। इस मंदिर में मुख्य रूप से ग्रीस द्वारा समय-समय पर की गयी संधियों की संपादित प्रतियाँ कानूनी प्रलेख, पोपुलर एसेम्बली की कार्यवाहियाँ तथा अन्य महत्वपूर्ण अभिलेखों को रखा जाता था। ऐसे अभिलेखों में सुकरात के वक्तव्य, एसचिलस, सोफो कलेश और यूरिपिडिस द्वारा तैयार किये गये नमूने के नाट्कों की प्रतिलिपियाँ तथा ओलंपिक प्रतियोगिताओं के विजेताओं की सूचीयाँ आदि प्रमुख हैं। यह सारी सामग्री ईसा की मृत्यु के बाद तीसरी सदी तक पेजीरस रोल के रूप में संरक्षित थी। उसके बाद यूरोप में एक लम्बे अन्तराल तक अभिलेख प्रशासन के विकास की कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं होती हैं किन्तु सन् 1302 में बोलोग्ना में अभिलेखो के निदान कार्य के लिए प्रथम पुरालेखपाल की नियुक्ति की जानकारी प्राप्त होती हैं।
यह माना जाता हैं कि अभिलेख प्रशासन का विचार इटली से इंग्लैण्ड में पहुंचा था। इंग्लैण्ड में सर्वप्रथम एडवर्ड प्रथम ने अपने यहाँ अभिलेखागार की स्थापना की और टॉवर ऑफ लंदन के एक भाग में एक्सचेकर के अभिलेखो को सुरक्षित करवाया। आगे चलकर सन् 1578 में महारानी एलिजाबेथ ने इंग्लैण्ड में स्टेट पेपर ऑफिस की स्थापना की। 14 अगस्त 1838 में इंग्लैण्ड में भी एक केन्द्रीय अभिलेख संस्थान स्थापित किया गया तो बाद में पब्लिक रिकॉर्ड ऑफिस के नाम से जाना जाता था। इसी प्रकार संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकार ने भी 19 जून 1934 ई. के एक अधिनियम के द्वारा राष्ट्रीय अभिलेखागार की स्थापना की थी।
भारत में अभिलेख प्रशासन को अवधारणा के संबंध में कहा जाता हैं कि यह ईस्ट इण्डिया कम्पनी के साथ इंग्लैण्ड से यहाँ आयी किन्तु ऐतिहासिक प्रमाणों से यह सिद्ध होता हैं कि भारत में अभिलेख प्रशासन प्राचीन काल से ही पर्याप्त विकसित स्थिति में था। भारत में 600 ई. पू. बौद्ध जातकों के रूप में अभिलेखो को सुरक्षित रखने की परम्परा के बड़े युद्ध प्रमाण उपलब्ध होते हैं। इसके बाद 300 ई. पूर्व के लगभग कौटिल्य के अर्थशास्त्र में तो तत्कालीन अभिलेख प्रशासन की विकसित अवस्था की जानकारी हमें स्पष्ट रूप से मिलती हैं। अर्थशास्त्र में अक्षपटल नाम का उल्लेख मिलता हैं जो विद्वानों की राय में अभिलेखागार का उस समय नाम था। इसी प्रकार उक्त अर्थशास्त्र में हमें एक आदर्श अभिलेखागार एवं अभिलेख व्यवस्था की भी जानकारी प्राप्त होती हैं।
320 ई. में बौद्ध साहित्य में निलापिता का उल्लेख मिलता हैं जिसका आशय अभिलेखागार से लिया जाता हैं। 328 ई. और 329 ई. में समुद्रगुप्त गया शिलालेख अक्षपटटालाधिकृता का उल्लेख मिलता हैं जिसका अर्थ विद्वानों ने कानूनी प्रलेखों के अभिलेखागार का प्रभारी किया हैं। 767 ई. में शीलादित्य सप्तम के शिलालेख में महाक्षपट्टालिका का उल्लेख मिलता हैं। विद्वानों के मतानुसार उसका अर्थ महानिदेशक अभिलेखागार हैं। दक्षिण भारत में चोल शासकों ने (1000-1300 ई.) अपने यहाँ के ताड़पत्रों के अभिलेखों की देखभाल के लिए ओलायन्यागम की नियुक्ति कर रखी थी। इसी प्रकार शुक्र नीति में भी अभिलेख प्रशासन संबंधी अच्छी जानकारी उपलब्ध होती हैं।
सल्तनतकाल में अभिलेखागार के विकास की कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं होती यद्यपि उस समय दीवान-ए-इन्शा नामक कार्यकाल की जानकारी अवश्य मिलती हैं जिसका मुख्य कार्य शाही खातों की देखभाल करना था। साथ ही यह कार्यालय शाही आदेशों को तैयार करता था और उनको गन्तव्य स्थानों को भेजता था। मुक्ति और आमिलों से प्राप्त पत्र व्यवहार का काम भी यही कार्यालय किया करता था। सल्तनतकाल में मजूमदार द्वारा जनता को दिये जाने वाले ऋण एंव बकाया का रिकॉर्ड सम्भाल कर रखे जाने की भी जानकारी उपलब्ध होती हैं। उक्तकाल में विजयनगर में शाही रिकॉर्ड ऑफिस होने की सूचना अवश्य मिलती हैं। सन् 1442 में अब्दुल रज्जाक नामक व्यक्ति ने बिजयनगर की यात्रा की थी। उसने अपने यात्रा विवरण में दीवानखाने के पास एक व्यवस्थित अभिलेखागार होने का उल्लेख किया हैं।
सल्तनतकाल के बाद मुगल साम्राज्य में अभिलेखागार के विकास की स्पष्ट झलक दिखाई देती हैं। अकबरनामा से ज्ञात होता हैं कि 1574 ई. में अकबर ने एक अभिलेखागार की स्थापना की थी जो फतेहपुर सीकरी में महल-ए-खावगाह के पास स्थित था। अकबर की दृष्टि में अभिलेखागार का कितना महत्व था इसका पता आईने अकबरी में उल्लेखित उसके इस कथन से ही चल जाता हैं कि अपने अभिलेखों को संभालकर रखना किसी सरकार के लिए सर्वश्रेष्ठ कार्य हैं और समाज के प्रत्येक वर्ग के लिए यह बहुत आवश्यक हैं। अनेक विद्वानों ने मुगल सरकार को कागजी सरकार की संज्ञा दी हैं जो मात्र इस कारण हैं कि उसके अधिकारीगण अनेक प्रकार की अभिलेख सामग्री से देखभाल एवं व्यवस्था करते थे।
इनमें पत्र व्यवहार की प्रतियाँ, अधिकारियों के इतिहास, अखबारात एवं लेखा संबंधी कागजात आदि की देखभाल एवं व्यवस्था प्रमुख थी। व्यवहार रूप में इस प्रकार के समस्त सरकारी अभिलेखों को आला दीवान के कार्यालय में उसके अवलोकनार्थ भेजना पड़ता था जिन्हें वह अपने कार्यालय में सुरक्षित रख दिया करता था। दीवान का कार्यालय जिसे दफ्तर-ए-दीवान आला कहा जाता था उस समय केन्द्रिय अभिलेख कक्ष होता था। दीवान का कार्यालय में भेजे जाने वाले अभिलेख दो भागों में बटे हुए थे पहला शिदा के नाम से जाना जाता था जिसमें जमा और खर्च का लेखा जोखा रहता था। यह दोनों प्रकार 24 समूहों और 47 उपसमूहों में विभक्त थे। केन्द्रिय सरकार के अधिकारियों की भांति प्रान्तीय दीवानों को भी अपने अभिलेख जिन्हें वे दफ्तर-ए दीवान-ए सुबा (प्रान्तीय अभिलेख कक्ष) में रखते थे। आला दीवान के कार्यालय में उसके अवलोकनार्थ भेजना पड़ता था। मुगलकाल में अभिलेखाकार और अभिलेख प्रशासन का यह क्रम अन्तिम मुगल बादशाह बहादुर शाह तक विद्यमान था। उसके समय के मुहाफिज़-ए-दफ्तर-ए भारूजा एवं मुफाजित-ए-दफ्तर-ए-आहालत सुल्तानी दिल्ली आदि उल्लेखनीय हैं।
मुगलकाल में ही दक्षिण भारत में भी अभिलेख प्रशासन का पर्याप्त विकास हुआ। शिवाजी ने सरकारी अभिलेखों को सुरक्षित रखने के लिए दफ्तर खाना स्थापित किया था और उसके अधिकारी के रूप में दफ्तार को नियुक्त किया था। शिवाजी के पश्चात् पेशवाओं ने अपने आय और व्यय संबंधी सभी प्रकार के अभिलेखों को सुरक्षित रखने के लिए हजूर दफ्तर स्थापित किया था।
भारत में अंग्रेजों के आगमन के समय से ही अभिलेख प्रशासन के आधुनिक रूप का विकास दृष्टिगत होने लगता था। 1763 ई. में कंपनी ने कौंसिल के कामों को दो भागों में बांट दिया था जिन्हें पब्लिक एवं सीक्रेट विभागों के नाम से जाना जाता था। यद्यपि यह दोनों विभाग एक ही सचिव के अधीन थे किन्तु दोनों के अभिलेखों को अलग-अलग रखने की व्यवस्था थी। 1770 ई. में एक रेवेन्यू कमेटी बनायी गयी जो आगे चलकर 1772 में रेवेन्यू बोर्ड बन गई इसी रेवेन्यू बोर्ड की परीणति 1775 ई. में रेवेन्यू डिपार्टमेन्ट के रूप में हो गई। इस प्रकार तब पब्लिक सीक्रेट एवं रेवन्यू इन तीन विभागों के रूप में अभिलेखागार अस्तित्व रहा। अभिलेखागार का एक और रूप था कोर्ट अभिलेखागार 1891 ई. में कलकत्ता में केन्द्रिय अभिलेखागार (इम्पीरियल रिकार्ड डिपार्टमेन्ट) स्थापित किया गया। 1911 ई. जब भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानान्तरित की गई तब इस विभाग को भी दिल्ली स्थानान्तरित कर दिया गया। 1947 ई. में भारत के स्वतन्त्र होने के साथ ही इम्पीरियल रिकॉर्ड डिपार्टमेन्ट का नाम राष्ट्रीय अभिलेखागार रखकर उसमें पूर्वोल्लिखित ब्रिटिश रेजीडेन्सी और पॉलिटिकल एजेन्सीज के रिकॉर्ड भी स्थानान्तरित कर दिया गया। अब राष्ट्रीय अभिलेखागार में उपर्युक्त अभिलेखों के अतिरिक्त ईस्ट इंडिया कम्पनी के महत्वपूर्ण अभिलेखों के साथ-साथ सन् 1857 के विद्रोह एवं उसके बाद के अभिलेख सुरक्षित हैं।
IMPORTANT LINK
- डाल्टन पद्धति का क्या तात्पर्य है ? डाल्टन-पद्धति का उद्देश्य, कार्य प्रणाली एंव गुण-दोष
- बेसिक शिक्षा पद्धति | Basic Education System In Hindi
- मेरिया मॉन्टेसरी द्वारा मॉण्टेसरी पद्धति का निर्माण | History of the Montessori Education in Hindi
- खेल द्वारा शिक्षा पद्धति का क्या तात्पर्य है ?
- प्रोजेक्ट पद्धति क्या है ? What is project method? in Hindi
- किण्डरगार्टन पद्धति का क्या अर्थ है ? What is meant by Kindergarten Method?