20वीं सदी में स्त्रियों की दशा में क्या परिवर्तन हुए?
20वीं सदी को एक महान् परिवर्तन का युग कहा जा सकता है। शैक्षिक, आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक हर क्षेत्र प्रभावित हुआ। सामाजिक क्षेत्र में स्त्रियों की दशा में आमूल परिवर्तन हुए:
1. शिक्षा के क्षेत्र में – इस काल तक इसाई मिशनरियों का शिक्षा पर काफी प्रभाव पड़ चुका था । राष्ट्रीय आंदोलन तथा जनजागरण के कारण स्त्री शिक्षा का तीव्रता से विकास हुआ। 1904 में एनी बेसेंट ने सेंट्रल हिन्दू विद्यालय की स्थापना की। सन् 1906 में लेडी हार्डिंग मेकिडल कालेज स्त्रियों को एम.बी.बी.एस. की डिग्री प्रदान करने लगा। कर्जन ने नारी शिक्षा की दशा में सुधार करने के लिए कुछ आदर्श विद्यालयों की स्थापना पर जोर दिया और 1913 के गवर्नमेंट रेजोल्यूशन ऑन एजुकेशन पॉलिसी की सिफारिशों के अनुसार नारी शिक्षा की प्रत्येक स्तर पर प्रगति करने की ओर ध्यान देने का प्रयास किया 1916 में पुणे में एस.एन.डी.टी. इण्डियन वूमेन यूनिवर्सिटी की स्थापना की गई। 1917 में कोलकाता विश्वविद्यालय आयोग ने स्त्री वर्ग के लिए कॉलेज स्तर की शिक्षा की व्यवस्था करने पर बल दिया । सन् 1919 में गोखले ने अनिवार्य शिक्षा विधेयक की प्रेरणा से विभिन्न प्रान्तों में बालिकाओं के लिए शिक्षा की व्यवस्था की।
1922 से महात्मा गाँधी ने राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय भाग लेना प्रारम्भ कर दिया था उन्होंने स्त्री शिक्षा के प्रसार पर विशेष बल दिया तथा पर्दा प्रथा का घोर विरोध किया। 1926 में ‘अखिल भारतीय स्त्री संघ’ की स्थापना हुई जिसने स्त्री शिक्षा के व्यापक प्रसार की माँग की। 1927 में ‘हींग समिति’ ने स्त्री शिक्षा के विकास के लिए अनेक सुझाव प्रस्तुत किए। द्वितीय महायुद्ध में सरकारी विभागों में भी शिक्षित स्त्रियों ने काम करना प्रारम्भ कर दिया इन दिनों महंगाई भी पर्याप्त बढ़ गई थी, अतः स्त्रियों ने काम करना प्रारम्भ कर दिया तथा नौकरी प्राप्त करने के लिए शिक्षा प्राप्त करना आवश्यक समझने लगीं। परिणामस्वरूप स्त्री शिक्षा का विकास अत्यन्त तीव्रता के साथ हुआ। 1947 तक सामान्य तथा विशिष्ट शिक्षा प्रदान करने वाली स्त्रियों के लिए 16,951 संस्थाएँ थीं जिनमें शिक्षा प्राप्त करने वाली लड़कियों की संख्या प्राय: 35,50,503 तक पहुँच गई थीं। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् स्त्री शिक्षा का तीव्रता से विकास हुआ। इसके साथ ही स्त्रियों में चेतना का विकास भी हुआ । वे अपने अधिकारों के प्रति पूर्व की अपेक्षा अधिक सचेत हो गई हैं। जीवन प्रत्येक क्षेत्र में स्त्रियाँ पुरुषों से प्रतियोगिता करके अपनी प्रतिभा का परिचय दे रही हैं।
2. वैवाहिक या पारिवारिक क्षेत्र में – आधुनिक समय में विवाह के क्षेत्र में स्त्रियों को सभी प्रकार के अधिकार प्राप्त हैं तथा अब वे अपने अधिकारों का अधिक से अधिक उपयोग करने के पक्ष में भी होती जा रही हैं। हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 के द्वारा स्त्रियाँ अब किसी भी जाति के पुरुष से विवाह कर सकती हैं। शारदा ऐक्ट ने बाल विवाह पर पहले से ही रोक लगा दी है। अब स्त्रियाँ पुनर्विवाह कर सकती हैं तथा आवश्यकता पड़ने पर तलाक भी प्राप्त कर सकती हैं। यह सच है कि कानून द्वारा स्त्रियों को पर्याप्त सुरक्षा मिल ई है परंतु यथार्थ में उनकी स्थिति में कोई क्रांतिकारी परिवर्तन नहीं आये हैं। केवल शिक्षित स्त्रियाँ ही स्वतंत्रता और अपने अधिकार का उपयोग कर पाती हैं, वह भी सब नहीं। गाँवों और नगर की निरक्षर स्त्रियाँ तलाक और पुनर्विवाह की बात तक नहीं सोच पातीं बहुपत्नी की स्थिति में अवश्य परिवर्तन आ गया है। आजकल एक से अधिक स्त्री रखने की बात कम सुनने में आती है। वैसे इसका कारण आर्थिक अधिक प्रतीत होता है और सामाजिक सुधार या परिवर्तन कम ।
3. आर्थिक क्षेत्र में – स्त्रियों में शिक्षा के साथ-साथ आत्म-निर्भरता की भावना भी आती जा रही है। अब वे पहले के समान पूर्णतया पुरुषों पर आश्रित नहीं हैं। आज सभी क्षेत्रों में जीविका उपार्जित करने वाली स्त्रियों की संख्या बढ़ती जा रही है। शिक्षा, उद्योग, व्यापार, बैंक तथा सरकारी सेवाओं में उनकी संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। आर्थिक के समान क्षेत्र में आत्म-निर्भरता ने स्त्रियों के विचारों को भी पर्याप्त स्वतंत्र कर दिया है। हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के अनुसार, पिता की सम्पत्ति में पुत्री को भी पुत्र ही अधिकार प्राप्त हो गया है। इस प्रकार सम्पत्ति के अधिकार मिल जाने से भी स्त्रियों की आर्थिक स्थिति दृढ़ हो गई है, परंतु यह स्थिति केवल नगरों में ही है। गाँवों में स्त्रियाँ आज भी आर्थिक दृष्टि से पूर्णतया पुरुषों पर निर्भर रहती हैं।
4. राजनीतिक क्षेत्र में – पर्याप्त काल तक स्त्रियों को राजनीतिक अधिकारों से वंचित रखा गया है। 18 दिसम्बर, 1917 को भारतीय स्त्रियों के प्रतिनिधि मण्डल ने प्रथम बार भारत के मंत्री मॉण्टेग्यू से मिलकर स्त्री अधिकारों की माँग प्रस्तुत की परंतु जब कोई नतीजा नहीं निकला तो स्त्री प्रतिनिधि मण्डल ने अपने अधिकारों की माँग के समर्थन में एक प्रतिवेदन इंग्लैण्ड भेजा। 1919 में द्वैध शासन विधान में महिला मताधिकार प्रदान करने की सुविधा दी गई। इसके अनुसार 1926 में मद्रास व्यवस्थापिका के चुनाव में स्त्रियों को वोट डालने का अधिकार मिला।
धीरे-धीरे सरकार ने भी स्त्रियों की राजनीतिक स्थिति को दृढ़ बनाने का प्रयास किया । 1935 के भारत सरकार कानून में प्रान्त तथा केन्द्रीय परिषदों में स्त्रियों के स्थान सुरक्षित रखे गये ।
स्वतंत्रता के पश्चात् स्त्रियों की दशा में क्रांतिकारी परिवर्तन आये। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 में स्पष्ट रूप उल्लेख किया गया है कि जाति अथवा लिंग के आधार राजनीतिक अधिकारों की प्राप्ति हो गई जो कि पहले पुरुषों को प्राप्त थे। अब वे केवल पर राज्य नागरिकों में कोई भेद नहीं रखेगा। परिणामस्वरूप, स्त्रियों को उन समस्त वोट ही नहीं डालतीं, वरन् चुनाव में भी खड़ी होती हैं। केन्द्र में लोक सभा और राज्यों में विधान सभा और विधान परिषद् में उनका प्रतिनिधित्व बढ़ता जा रहा है।
आज कल प्रत्येक राजनीतिक दल में स्त्रियाँ सक्रिय रूप से देश और समाज के समस्त क्षेत्रों में जनप्रतिनिधित्व सम्बन्धी आंदोलनों का नेतृत्व भी कर रही हैं।
IMPORTANT LINK
- लिंग की समानता की शिक्षा में संस्कृति की भूमिका | Role of culture in education of Gender Equality in Hindi
- लिंग पाठ्यक्रम | Gender Curriculum in Hindi
- लिंग की समानता की शिक्षा में जनसंचार की भूमिका | Role of Mass Media in Education of Gender Equality in Hindi
- लिंग की समानता की शिक्षा में जाति की भूमिका | Role of Caste in education of Gender Equality in Hindi
- लिंग की समानता की शिक्षा में धर्म की भूमिका | Role of Religion in education of Gender Equality in Hindi
- बालिका शिक्षा की समस्याएँ तथा समाधान | Problems and Solutions of Girls Education in Hindi
- लिंग की समानता की शिक्षा में परिवार की भूमिका | Role of Family in Education of Gender of Equality in Hindi
- संस्कृति से आप क्या समझते हैं ? What do you mean by culture? in Hindi
- विद्यालय से क्या तात्पर्य है ? विद्यालय के महत्त्व, आवश्यकता एवं कार्य | What do you mean by School ? importance, need and functions of School in Hindi