प्राथमिक चिकित्सक के क्या कर्त्तव्य हैं ? प्राथमिक चिकित्सा के मुख्य सिद्धान्त तथा प्राथमिक चिकित्सा हेतु आवश्यक वस्तुओं का वर्णन कीजिए।
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प्राथमिक चिकित्सक के कर्त्तव्य
1. प्राथमिक चिकित्सक को चाहिए कि वह प्रारम्भिक देखभाल के साथ ही, यदि आवश्यक समझे तो डॉक्टर को बुलाने की व्यवस्था करे। जिस व्यक्ति को डॉक्टर के पास बुलाने के लिए भेजा जाये उसे रोगी के सम्बन्ध में पूर्ण जानकारी होनी चाहिए, जिससे डॉक्टर आवश्यक तैयारी के साथ ही उपस्थित हो।
2. कभी-कभी भयंकर दुर्घटना एवं अधिक स्नाव के कारण रोगी मूर्च्छित हो जाता है तथा प्रायः मृत-सा प्रतीत होता है। ऐसी दशा में चिकित्सक के आने तक उसे कृत्रिम श्वास देते रहना चाहिए तथा अन्य सावधानियाँ भी बरतनी चाहिएँ।
3. यदि यह आशंका है कि रोगी ने विष पी लिया है तो उसे वमन, आदि कराने का उपाय करना चाहिए।
4. यदि व्यक्ति किसी आकस्मिक आघात के कारण पीड़ित है तो उसको मौसम के अनुसार गर्म या ठण्डा रखना चाहिए। रोगी के कमरे के खिड़की-दरवाजे आदि खोल देना उचित होगा ताकि उसे शुद्ध वायु मिल सके।
5. गरमी, घबराहट या दम घुटने से व्यक्ति यदि मूच्छित हो गया है तो उसको खुली हवा में लिटाकर पहने हुए वस्त्रों को ढीला कर देना चाहिए ताकि वह सरलतापूर्वक श्वास ले सके।
6. व्यक्ति को यदि किसी विषैले कीड़े जैसे साँप या बिच्छू आदि ने काट लिया है तो काटने के स्थान से कुछ ऊपर की ओर कसकर कपड़ा बाँध देना चाहिए, जिससे उस अंग का रक्त संचरण रुक जाये और शरीर के शेष भाग में विष नं फैल पाये।
7. चिकित्सक के आने तक घायल की पूरी तरह से देखभाल करनी चाहिए, जिससे उसकी दशा गम्भीर न हो जाये। यदि चोट के कारण रक्त बह रहा हो तो उसे रोकने का उपचार करना चाहिए।
8. रोगी के पास भीड़ एकत्रित नहीं होनी चाहिए। रोगी को हवादार स्थान पर लिटाना चाहिए तथा उसे पूर्ण विश्राम देने का प्रयत्न करना चाहिए।
9. यदि हड्डी टूटने की आशंका है, तो रोगी को घायल अंग को हिलाने-डुलाने नहीं देना चाहिए। रोगी को सीधी स्थिति में लेटे रहने देना चाहिए ताकि हड्डी अपने स्थान से न हट जाये ।
10. पानी में डूबे हुए व्यक्ति को उल्टा करके उसके पेट में से पानी निकालने का प्रयत्न करना चाहिए। मूर्च्छा की दशा में रोगी के वस्त्र ढीले करके उसे कृत्रिम रूप से श्वास देने का प्रयत्न करना चाहिए। रोगी के शरीर को गर्म रखना अच्छा रहेगा।
11. मोच आने पर या जोड़ उतरने पर अंग के वस्त्र, जूता आदि तुरन्त उतार देना चाहिए, क्योंकि सम्बन्धित अंग पर सूजन आ जाने पर उन्हें उतारने में अत्यन्त कठिनाई होगी तथा रोगी को कष्ट होगा।
प्राथमिक चिकित्सा के प्रमुख सिद्धान्त
प्रत्येक प्राथमिक चिकित्सक को कुछ नियमों व सिद्धान्तों का पालन करना चाहिए। उनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं-
1. यह देखिए कि रोगी कितना घायल हुआ है। सावधानीपूर्वक उसके पूरे शरीर को देखकर यह अनुमान लगाने का प्रयास करना चाहिए कि वास्तव में उसकी दशा कितनी गम्भीर है ? क्या उसकी श्वास नियमित है ? क्या कहीं रक्तस्राव हो रहा है ? यदि हो रहा है तो कहाँ ? यदि आवश्यक हो तो घायल भाग से वस्त्र हटा दीजिए। गम्भीर रक्तस्राव को शीघ्रातिशीघ्र नियन्त्रण में लाने का हर सम्भव प्रयत्न करना चाहिए। क्या कोई टूट गयी है ? घायल भाग को हिलाने में सावधानी रखिए। असावधानी से हिलाने पर हड्डी के सिरे त्वचा में प्रवेश करके चोट को और अधिक गम्भीर बना सकते हैं। जले हुए स्थान को सावधानीपूर्वक देखिए।
2. घायल को हिलाने में अपेक्षित सावधानी बरतनी चाहिए। घायल को अनावश्यक रूप से हिलाना घातक हो सकता है, विशेष रूप से यदि मेरुदण्ड में अस्थि भंग हो गयी हो। घायल जहाँ पर लेटा है, खपच्ची उसी स्थान पर बाँधना अधिक श्रेयस्कर है।
3. केवल उतना ही उपचार करना चाहिए जो घायल की दशा को यथास्थित बनाये रखने में सहायक हो तथा उसकी हालत अधिक बिगड़ने न पाये व उसे आराम मिले।
4. परिस्थिति पर नियन्त्रण करना चाहिए। कुशलता एवं दृढ़तापूर्वक कार्य करना चाहिए। यदि अन्य लोग कार्य में हस्तक्षेप करने का प्रयत्न करें तो उन्हें अन्यत्र किसी अन्य उपयोगी कार्य पर भेज देना चाहिए: यथा-डॉक्टर को बुलाने या परिवार के सदस्यों को सूचित करने के लिए।
5. घायल को लेटे ही रहने दीजिए, उसे बैठाने का प्रयत्न मत कीजिए। उसकी चोट का परीक्षण करते समय उसका सिर छाती के स्तर पर ही रहना चाहिए। उसे हर सम्भव प्रोत्साहन दीजिए। उसके भय को दूर करने का प्रयत्न कीजिए। उसे आराम दीजिए।
6. शान्त रहना चाहिए और जो कुछ भी सम्भव हो सके तत्काल करना चाहिए। यदि रक्तस्राव अधिक हो रहा है तो जितनी जल्दी सम्भव हो उसे रोकने का प्रयत्न करना चाहिए।
7. डॉक्टर या एम्बुलेन्स बुलाने का प्रबन्ध कीजिए तथा एम्बुलेन्स वालों एवं डॉक्टर को यह स्पष्ट बताइए कि चोट किस प्रकार की है और घायल व्यक्ति किस स्थान पर हैं। सम्भव हो तो डॉक्टर को ही खपच्ची बाँधने देना चाहिए, किन्तु यदि वह दूर है तो यह कार्य करने के लिए आपको ही तैयार रहना चाहिए।
निम्नलिखित लक्षणों को देखिए-
टूटी हुई हड्डी गम्भीर बात है। इस सम्बन्ध में कुछ कार्यवाही अवश्य की जानी चाहिए, किन्तु तात्कालिक रूप से नहीं। पहले इससे अधिक महत्त्वपूर्ण कार्य कीजिए। सामान्यतः टूटी हुई हड्डी जीवन की सामान्य प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न नहीं करती है, जब तक कि खोपड़ी की हड्डी न टूटी हो। किन्तु तीन दशाएँ ऐसी हैं, जिनकी ओर तत्काल ध्यान देना चाहिए-
1. गम्भीर रूप से रक्तस्त्राव – साधारणतः इस प्रकार का रक्तस्राव शरीर की सतह कटने या फटने से होता है। अधिकतर रक्तस्राव के क्षेत्र पर दबाव डालने से रक्तस्राव बन्द हो जाता है। यदि रक्त निरन्तर बह रहा है तथा गहरे रंग का है तो इस बात की सम्भावना अधिक है कि कोई बड़ी नलिका कट गयी है। ऐसी स्थिति में कटे हुए स्थान पर दबाव पर्याप्त होगा।
यदि रक्त चमकीले लाल रंग का एवं थक्के के रूप में आ रहा है तो आशंका इस बात की है कि धमनी फट गयी है। कटे हुए स्थान को लगातार दबाकर रखिए। यदि इस पर भी रक्तस्राव बन्द न हो तो टूर्नीकट बाँधना उपयुक्त होगा।
यदि चेहरे, गर्दन या शरीर पर कटने का घाव हो गया है तो इन स्थानों में टूर्नीकेट का प्रयोग नहीं किया जा सकता है। ‘दबाव बिन्दु’ में से किसी एक को दबाकर रखना होगा। यह ध्यान रखिए कि यदि रक्तस्त्राव हृदय से आ रहा है तो घाव के निकटस्थ दबाव डालना चाहिए।
2. श्वास का अवरुद्ध होना – सामान्यतः घायल की छाती की गति को देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वह श्वास ले रहा है अथवा नहीं। यदि वह श्वास नहीं ले रहा है तो तुरन्त कृत्रिम रूप से श्वास देना आरम्भ कर देना. चाहिए। यदि पसली या मेरुदण्ड में फ्रैक्चर हो गया है तो कृत्रिम रूप से श्वास देने में विशेष सावधानी रखनी चाहिए। टूटी हुई हड्डियों पर दबाव पड़ेगा तो घायल की दशा और गम्भीर होने की आशंका है।
3. विष- रोगी के ओंठ तथा मुँह की दशा का सावधानीपूर्वक निरीक्षण कीजिए। यह देखिए कि कहीं त्वचा के रंग में परिवर्तन तो नहीं दिखायी दे रहा है। यह विष के लक्षण हैं। निराश व्यक्ति अधिक मात्रा में नींद की गोली ले सकते हैं। इससे मूर्च्छा आ जायेगी, जिससे व्यक्ति को उठाया नहीं जा सकता है। डॉक्टर को तुरन्त चाहिए।
प्राथमिक चिकित्सा हेतु आवश्यक वस्तुएँ
प्राथमिक चिकित्सा के लिए सभी आवश्यक वस्तुएँ प्राथमिक चिकित्सक को एक डिब्बे में रखनी चाहिए, जिससे आपात स्थिति में उनका तुरन्त उपयोग किया जा सके और सामान के लिए इधर-उधर न भटकना पड़े। साधारणतः प्राथमिक चिकित्सा के डिब्बे में निम्नांकित सामान होता है-
स्वच्छ रुई, धागा, पिन, फीता, कैंची, सुइयाँ, पैड्स, खपच्चियाँ, चम्मच, गिलास, चाकू, पट्टियाँ, दियासलाई, टूर्नीकिट, आँख धोने का गिलास, थर्मामीटर, गर्म पानी की बोतल, बर्फ की थैली, ड्रापर आदि।
प्राथमिक चिकित्सा, गृह परिचर्या हेतु निम्नलिखित दवाइयों का उपलब्ध होना भी आवश्यक है-
1. अमृतधारा हैजा, उल्टी, दस्त के लिए, पचनोल अफारे के लिए, 2. ग्लूकोज कमजोरी, चक्कर दूर करने के लिए, 3. ब्राण्डी ठण्ड को दूर करने के लिए, 4. कुनेन मलेरिया बुखार दूर करने के लिए, 5. क्रोसिन तीव्र बुखार कम करने के लिए, 6. सेरीडोन, 7. एनासीन, 8. कोडोपायरिन, सिर दर्द को कम करने के लिए आवश्यक है। इसके अतिरिक्त, 9. डेटॉल, 10. बोरिक पाउडर घाव धोने के लिए, 11. स्प्रिट, 12, टिंचर, 13. मरक्यूरो क्रीम, 14. सिवाजोल, 15. बोरोलीन, मलहम, घाव पर लगाने के लिए, 16. फिटकरी रक्त बहना रोकने के लिए आवश्यक है। 17. जैतून का तेल, 18. बरनौल जली त्वचा पर लगाने के लिए, 19. सरसों का तेल कान से कीड़ा या अन्य वस्तु को निकालने के लिए, 20. लौक्युला आँख में लाली दूर करने के लिए उपलब्ध होना चाहिए। 21. आयोडेक्स, 22. शहद चोट के कारण उत्पन्न हुई सूजन पर, 23. ग्लिसरीन मुँह में छालों पर लगाने के लिए आवश्यक है। बरालगन, एवोमिन, विक्स आदि का सदैव प्रबन्ध रहना चाहिए।