संवेदना से आप क्या समझते हैं ? संवेदना के मुख्य प्रकार तथा विशेषताओं का वर्णन कीजिए। संवेदना का शिक्षा में क्या महत्व है ?
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संवेदना का अर्थ व स्वरूप (Meaning & Nature of Sensation)
संवेदना को ज्ञान का द्वार कहा गया है। हमारे शरीर में ज्ञानवाही तथा गतिवाही तन्तुओं का जाल फैला है। ज्ञानवाही तन्तुओं में एक सिरा ग्राहक (Receptor) होता है और दूसरे का सम्बन्ध बोध केन्द्र (Sensory centre) से होता है। कोई सूचना ग्राहक के द्वारा तन्तुओं से होती हुई बोध केन्द्र में पहुँचती है। बोध केन्द्र, मस्तिष्क को सूचना देता है। मस्तिष्क गतिवाही तन्तुओं को सूचित करता है और प्राप्त सूचना की प्रतिक्रिया होने लगती है। इसी ज्ञान को संवेदना या इन्द्रियजन्य ज्ञान कहते हैं।
जब बालक का जन्म होता है, तब वह अपने वातावरण के बारे में कुछ भी नहीं जानता है। कुछ समय के बाद उसकी ज्ञानेन्द्रियाँ कार्य करना आरम्भ कर देती हैं। परिणामस्वरूप उसे उनसे विभिन्न प्रकार का ज्ञान प्राप्त होने लगता है। इसी ज्ञान को ‘संवेदना’ अथवा ‘इन्द्रिय-ज्ञान’ कहते हैं।
‘संवेदना’ का पूर्व-ज्ञान या पूर्व अनुभव से कोई सम्बन्ध नहीं होता है; उदाहरणार्थ, शिशु के कानों में कोई आवाज आती है। वह उसे सुनता है, पर वह यह नहीं जानता है कि आवाज किसकी है और कहाँ से आ रही है। उसे इस प्रकार की आवाज का न तो पूर्व-ज्ञान होता है तथा न पूर्व-अनुभव। आवाज के इसी प्रकार के ज्ञान को ‘संवेदना’ कहते हैं।
हमें बाह्य संसार का सब ज्ञान, ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा प्राप्त होता है। इसीलिए इनको ‘ज्ञान के द्वार’ (Gateways of Knowledge) कहा जाता है। एक इन्द्रिय से केवल एक प्रकार का ज्ञान प्राप्त होता है; उदाहरणार्थ, आँखों से प्रकाश का और कानों से आवाज का ज्ञान।
‘संवेदना’ सबसे साधारण मानसिक अनुभव और मानसिक प्रक्रिया का सबसे सामान्य रूप है। यह ज्ञान प्राप्ति की पहली सीढ़ी है। यह सभी प्रकार के ज्ञान में होती है। इसके अभाव में किसी प्रकार का अनुभव सम्भव नहीं है। कुछ मनोवैज्ञानिकों ने ‘संवेदना’ को केवल नवजात शिशु द्वारा अनुभव किया जाने वाला शुद्ध ज्ञान माना है। वार्ड (Ward) के अनुसार-“शुद्ध संवेदना, मनोवैज्ञानिक कल्पना है।” (“Pure sensation is a psychological myth.”)।
हम ‘संवेदना’ के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए कुछ परिभाषाएँ दे रहे हैं; यथा-
1. जेम्स- “संवेदनाएँ ज्ञान के मार्ग में पहली वस्तुएँ हैं।
“Sensations are first things in the way of consciousness.” – James
2. जलोटा- “संवेदना एक साधारण ज्ञानात्मक अनुभव है।”
“A sensation is an elementary cognitive experience.” – Jalota
3. डगलस व हॉलैण्ड– “संवेदना शब्द का प्रयोग सब चेतना-अनुभवों में सबसे सरलतम का वर्णन करने के लिए किया जाता है।”
“The term sensation is used to describe the simplest of all conscious experiences.” –Douglas & Holland
संवेदना से प्राप्त ज्ञान, मनोक्रिया का प्रथम चरण है। इसे मानसिक प्रक्रिया का सामान्य रूप माना जाता है। संवेदना, सभी प्रकार के ज्ञान के लिए उत्तरदायी है। संवेदना के अभाव में किसी भी प्रकार के ज्ञान की अनुभूति नहीं की जा सकती।
संवेदना के प्रकार (Types of Sensation)
ज्ञानेन्द्रियों के अलावा, शरीर की माँसपेशियाँ, शरीर के भीतर के अंग आदि भी संवेदनाओं के कारण हैं। हैरिक्स (Herricks) ने अपनी पुस्तक “Introduction to Neurology” में उनकी बहुत लम्बी सूची दी है। उनमें से डगलस व हालैण्ड (Douglas & Holland) ने निम्नलिखित को महत्वपूर्ण बताया है-
1. ध्वनि- संवेदना (Hearing Sensation) – सब प्रकार की आवाजें, ध्वनियाँ आदि
2. स्वाद-संवेदना (Taste Sensation) – सब प्रकार के स्वाद
3. माँसपेशी-संवेदना (Muscle Sensation)- सब प्रकार की माँसपेशियों की गतियों से सम्बन्धित
4. दृष्टि-संवेदना (Visual Sensation)- सब प्रकार के रंग-रूप आदि
5. घ्राण-संवेदना (Smell Sensation)- सब प्रकार की गन्ध
6. स्पर्श-संवेदना (Touch Sensation) – सब प्रकार के स्पर्श, दबाव आदि ।
7. शारीरिक संवेदना (Organic Sensation) – शरीर के अन्दर के अंगों द्वारा प्राप्त होने वाले सब प्रकार के अनुभव। संवेदना के इन सभी प्रकार को तीन श्रेणियों-स्नायविक (स्थिति, गरि प्रतिरोध), शारीरिक (अंग-प्रत्यंग से प्राप्त), विशिष्ट (दृष्टि, श्रवण, घ्राण, स्वाद तथा स्पर्श) में रखा जा सकता है।
संवेदना की विशेषताएँ (Characteristics of Sensation)
संवेदना के गुण या विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
1. तीव्रता (Intensity) – प्रत्येक संवेदना में तीव्रता की विशेषता होती है। दो संवेदनाएँ समान रूप से तीव्र नहीं होती हैं। उनमें से एक प्रबल और एक निर्बल होती है; उदाहरणार्थ, लाल और सफेद रंगों की तीव्रता में अन्तर होता है।
2. स्पष्टता (Clearness ) – प्रत्येक संवेदना में स्पष्टता की विशेषता पाई जाती है। अल्पकालीन संवेदना की तुलना में दीर्घकालीन संवेदना अधिक स्पष्ट होती है। इसके अलावा, जिस संवेदना पर हमारा ध्यान जितना अधिक केन्द्रित होता है, उतनी ही अधिक उसमें स्पष्टता होती है।
3. विस्तार ( Extension)- यह विशेषता प्रत्येक संवेदना में नहीं पाई जाती हैं। ज्ञानेन्द्रिय के कम क्षेत्र को प्रभावित करने वाली संवेदना का विस्तार कम और अधिक क्षेत्र को प्रभावित करने वाली संवेदना का विस्तार अधिक होता है; उदाहरणार्थ, सुई की नोंक से होने वाली संवेदना की तुलना में तकुए की नोंक से होने वाली संवेदना का विस्तार अधिक होता है।
4. गुण (Quality) – प्रत्येक संवेदना में एक विशेष गुण पाया जाता है। एक ज्ञानेन्द्रिय द्वारा अनुभव की जाने वाली दो संवेदनाओं में भी समानता नहीं होती है, उदाहरणार्थ, दो फूलों की सुगन्ध और दो मनुष्यों की आवाज में भिन्नता होती
5. अवधि (Duration) – प्रत्येक संवेदना की एक निश्चित अवधि होती है। उसके बाद व्यक्ति उसका अनुभव नहीं करता है। कुछ संवेदनाएँ अल्पकालीन होती हैं और कुछ दीर्घकालीन; उदाहरणार्थ, एक मिनट सुनी जाने वाली आवाज की संवेदना अल्पकालीन और एक घण्टे सुनी जाने वाली आवाज की संवेदना दीर्घकालीन होती है।
6. स्थानीय चिन्ह (Local Sign)- प्रत्येक संवेदना में स्थानीय चिन्ह की विशेषता होती है; उदाहरणार्थ, यदि हमारे हाथ को किसी स्थान पर दबाया जाए, तो हम बता सकते हैं कि स्पर्श-संवेदना का स्थान कौन-सा है।
संवेदना का शिक्षा में महत्व (Importance of Sensation in Education)
संवेदना को ज्ञान की प्रथम सीढ़ी कहा गया है, इसलिए बालक की शिक्षा का आरम्भ संवेदना से होता है। संवेदना से वस्तु की सत्ता का आभास होता है। संवेदना का शिक्षा में महत्व इस प्रकार है-
- वस्तु की सत्ता का ज्ञान होना।
- प्रत्यक्षीकरण के लिए संवेदना का होना आवश्यक है।
- ज्ञानेन्द्रियों का उचित प्रयोग ।
- प्रारम्भिक ज्ञान के उपरान्त वस्तु के गुण समझना।
- मानसिक विकास में सहायक।
- अर्थज्ञान के लिए पृष्ठभूमि तैयार करना।
- मान्टेसरी एवं किन्डरगार्टन जैसो शिक्षण पद्धतियों का ज्ञान ।
इन सभी विशेषताओं के कारण संवेदना शिक्षा की प्रक्रिया में विशेष महत्व रखती है