एक विषय के रूप में इतिहास का उद्भव किस प्रकार हुआ था।
अथवा
इतिहास उपागम का उदय किस प्रकार हुआ था, इतिहास के विषय के रूप में विभिन्न चरणों का उल्लेख कीजिए।
इतिहास एक अध्ययन विषय के रूप में बहुत नया क्षेत्र हैं। यह 18वीं व 19वीं शताब्दी के दौरान एक पृथक क्षेत्र के रूप में विकसित हुआ। 17वीं शताब्दी के दार्शनिकों के लेखों का इस पर उल्लेखनीय प्रभाव पड़ा। इनके दार्शनिक विश्वासों का इतिहास के नवीन मान्यता प्राप्त दोनों द्वारा अभिव्यक्त किया गया। इससे पहले इतिहास मध्यकाल व्याकरण का एक भाग था इतिहास के विकास की धारा में यूनानी, ईसाई और आधुनिक धाराओं की त्रिवेणी बनती हैं। इसके अतिरिक्त धरती की विभिन्न सभ्यताओं की अपनी विशिष्ट परम्परागत अवधारणाओं से युक्त रही हैं।
19वीं शताब्दी से पूर्व अनेक तत्वों के सम्मिलन से उस बौद्धिक शान शाखा का विकास हुआ था। इतिहास के इतिहास की दृष्टि से वर्णन का प्रारम्भ परम्परावादी यूनानी और यहूदी ईसाई विचारों से निम्नांकित सोपानों में होता हैं।
(i) यूनानी काल:- इतिहास शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग यूनानी संस्कृति में हुआ था हिस्तोर उस विशेषज्ञ को कहा जाता था जिसमें झगड़ों के निपटारे के लिए प्रार्थना की जाती थी। यूनानी इतिहासकारों में उल्लेखनीय नाम हयूसीडाय डीज का हैं। इसकी प्रसिद्ध रचना पेलोपोने शियन युद्ध का इतिहास सर्वाधिक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक रचना हैं। यूनानी चिन्तन में ऐतिहासिक प्रपंच को महत्वहीन माना जाता था। इसे यर्थाथ की छाया स्वीकार किया जाता था इसी कारण ऐतिहासिक घटनाओं का लेखन कम हुआ। यूनानी दार्शनिकों ने अपनी विचार शक्ति का प्रयोग इतिहास के दर्शन निर्माण में बहुत कम किया। यह प्रवृत्ति प्राचीन भारतीय चिन्तन के समकक्ष हैं। यूनानी काल का इतिहास एक प्रकार से साहित्य का अंग बना रहा।
(ii) ईसाई परम्परा:- यूनानी परम्परा से विपरीत ईसाई दर्शन इतिहास प्रधान हैं। यह इस विश्वास पर आधारित हैं कि मनुष्य परम सत्य की प्राप्ति इतिहास के मध्य करता हैं जिसमें ईश्वर अपनी सृष्टि के लिए आत्म प्रकाशन करता हैं। ईसाइयों ने अपना यह ऐतिहासिक स्परूप यहूदी पूर्वजों से उत्तराधिकार में प्राप्त किया था। यहूदी धर्म का प्रारम्भ ऐतिहासिक घटनाओं की समृद्धि के साथ हुआ कुछ घटनाऐं यदि वास्तव में घटित नहीं होती तो यहूदी धर्म का आधार ही मिथ्या बन जाता। यहूदी ऐतिहासिक मान्यता के अनुसार प्रकृति का भौतिक विकास महत्वपूर्ण नहीं हैं वरन् मनुष्य और ईश्वर का संबंध महत्वपूर्ण हैं। इस संबंध की कथा ही इतिहास है जिसे नैतिक शब्दावली में प्रस्तुत किया जा सकता हैं। यहूदी धर्म के उत्तराधिकारी के रूप में ईसाई धर्म यह दावा करता हैं कि ईसा के रूप में यहूदी आशा को पूर्णत्व प्राप्त हुआ हैं। ईसा के द्वितीय आविर्भाव को इतिहास का तथ्य माना गया।
(ii) सन्त ऑगस्टिन:- अफ्रीका के ईसाई विशप सन्त ऑगस्टिन ने पांचवी शताब्दी ई. में सही अर्थों में इतिहास दर्शन की रचना की। उसका प्रसिद्ध ग्रन्थ “सिटी ऑफ गॉड” हैं जिसमें उसने बताया कि इतिहास में दो नगर होते हैं-मनुष्य का नगर और ईश्वर का नगर अर्थात राज्य तथा चर्च।
इतिहास की दृष्टि से इन दोनों में भेद किया जा सकता हैं लेकिन स्पष्ट रूप से इनको पृथक नहीं किया जा सकता। सन्त ऑगस्टिन ने यूनानियों द्वारा प्रतिपादित इतिहास के चक्रीय विकास की अवधारणा को अस्वीकार किया। उसने माना कि एक ईसाई के लिए इतिहास एक अर्थपूर्ण रूप से मोक्ष की ओर एक ही दिशा में विकासमान हो रहा हैं। इन विचारों का प्रभाव मध्यकाल में बना रहा। आधुनिक युग के प्रारम्भ में मध्यकालीन ईश्वर की धारणा धीरे-धीरे पृष्ठभूमि में चली गई और पुनर्जागरण एवं सुधार के कारण एक नए प्रकार का विश्वास विकसित हुआ। अब प्राचीन साहित्य में जनसामान्य की रूचि के कारण यूनान और रोम के इतिहास का अध्ययन किया जाने लगा। यूनान की समीक्षात्मक बुद्धि को एक सदगुण के रूप में पुनः प्रतिष्ठा प्राप्त हुई। उस काल में अनेक ऐतिहासिक रचनाएं हुई।
(iv) 17वीं शताब्दी का काल :- 17वीं शताब्दी में आधुनिक विज्ञान का प्रारम्भः हो चुका था। इसके प्रभाव से साक्ष्य और प्रत्यक्ष अनुभव मात्र को ही ज्ञान का प्रमाणिक आधार माना गया। 18वीं शताब्दी ज्ञानो दीप्ति का काल माना जाता है। इस काल में नए विश्वास लोकप्रिय बने और उनका व्यापक प्रचार हुआ। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मानव स्वभाव को अपरिवर्तनशील माना गया है और इस तरह इतिहास एक ऐसे दर्शन के बीच आ पड़ा जो मूलत: इतिहास विरोधी था। इस युग में सर्वांगीण रूचि प्रदर्शित की जाती थी। वाल्तेयर इस काल का प्रतिनिधि इतिहासकार है। इसने लुई 14 का युग के इतिहास में सांस्कृतिक तत्वों को राजनीतिक तत्वों की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण माना।
इस दृष्टिकोण के कारण इतिहास में शामिल की जाने वाली सामग्री के नए प्रतिमान स्थापित हुए और युग विशेष की आत्मा का विचार भी प्रारम्भ हुआ। बाल्तेयर पहला इतिहासकार था जिसने गम्भीर रूप से एशिया की संस्कृति पर लिखा। अब प्राचीन भारत और चीन की महान् संस्कृतियों की ओर यूरोप वालों का ध्यान गया। अब केवल यूरोप पर केन्द्रित इतिहास को पूर्ण नहीं माना जा सकता था क्योंकि एशिया भी यूरोप के समान सभ्य था। वाल्तेयर तथा ज्ञानो दीप्ति काल का ऐतिहासिक दृष्टिकोण यूनानी परम्परा से अधिक मिलता है इसमें विशिष्ट तत्व है, मनुष्य तथा प्रकृति के प्रति व्यापक जिज्ञासा है। ज्ञान के प्रति समीक्षात्मक और तर्कशील दृष्टिकोण है तथा उपदेशात्मक उद्देश्य है।
(v) विको तथा हर्डर:- वाल्तेयर की परम्पराओं की आलोचना करने वालों में विको तथा हर्डर के नाम उल्लेखनीय हैं। विको ने The New Science नामक ऐतिहासिक रचना की। उसके विचारों को बहुत समय तक गम्भीरतापूर्वक पढ़ा नहीं गया। विको ने स्पष्ट रूप से कहा कि इतिहास का ज्ञान प्रकृति के ज्ञान से भिन्न हैं प्रकृति ईश्वर की रचना हैं जबकि इतिहास का रचयिता मनुष्य हैं, इसीलिए व्यक्ति प्रकृति की अपेक्षा इतिहास को अधिक स्पष्ट रूप से जान सकता हैं।
वैज्ञानिक प्रवृति की लोकप्रियता के कारण इतिहासकार एक अधिक सन्तोषजनक रीति विज्ञान अपनाने की ओर आकर्षित हुए। विको ने एक अन्य विचार यह प्रकट किया कि इतिहास आत्म प्रकाशनीय हैं इसका अपना विशेष अर्थ होता हैं। विको की मान्यता के अनुसार किसी भी समाज के स्वरूप का सूत्र उसकी भाषा का विश्लेषण हैं। धर्म शास्त्रीय और दार्शनिक विधियाँ क्रमशः ईश्वर और तर्क को प्रारम्भ बिन्दु मानते हैं। विको ने इन दोनों विधियों का विकास किया।
हर्डर जर्मनी की धार्मिक परम्परा में पला होने के कारण ज्ञानो दीप्ति के विचारों का आलोचक था। उसने 1774 में 30 वर्ष की आयु में (Yet Another Philosophy of History) नामक पुस्तक लिखी थी।
हर्डर की मान्यता है कि इतिहास में सामान्यीकरण नहीं हो सकता। प्रत्येक समाज विशिष्ट होता हैं और उस समाज के विकास का प्रत्येक क्षण भिन्न होता हैं। ऐतिहासिक विशिष्टता की यह अवधारणा इतिहासवाद की मुख्य विशेषता हैं।
हर्डर के कथनानुसार इतिहास में प्रत्येक क्षण की अपनी विशेष व्याख्या हैं। इतिहास न केवल आत्म प्रकाशनीय होता हैं वरन् स्वयं का औचित्य स्थापित करने वाला और अन्तिम भी होता हैं। हर्डर ने ज्ञानो दीप्ति की आलोचना की और कहा कि मनुष्य मन से कुछ अधिक हैं। वह केवल तर्कशील प्राणी नहीं हैं वरन् निश्चय करने वाला और अनुभव करने वाला प्राणी हैं। मनुष्य को उसकी सम्पूर्णता में समझने के लिए तर्क की अपेक्षा कुछ अधिक की आवश्यकता हैं, इस प्रकार अनुभव तर्क के ऊपर हैं। हर्डर अतीत के यथार्थ और विशिष्ट रूप को समझने के लिए अन्त दृष्टि के तत्व पर विशेष जोर देता हैं।
इतिहास के क्षेत्र में उक्त विकासों के साथ-साथ रीति विज्ञान की तीव्र गति से विकसित हो रहा था यह मान्यता स्थापित हो रही थी कि ऐतिहासिक अध्ययनों का अनुशीलन अनुशासित रूप से होना चाहिए। इस प्रकार धीरे-धीरे इतिहास एक पृथक अनुशासन के रूप में होना चाहिए।
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