इतिहास शिक्षण में प्रयुक्त किन्हीं दो नवीन प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
भूमिका निर्वाह (छद्धाभिनय) क्या है? इसके महत्त्व, सोपान, विशेषताओं तथा सीमाओं का उल्लेख कीजिए।
छद्धाभिनय या भूमिका निर्वाह (Role play)
छद्धाभिनय (Role play or Role Playing) को ‘भूमिका निर्वाह’ भी कहा जाता है। यह शिक्षण की एक व्यूह रचना है। इस व्यूह रचना के प्रवर्त्तक कैनेथ एच. हूबर महोदय है। आपके अनुसार, “इस व्यूह रचना में व्यक्तियों के अंतः व्यक्तिगत संबंधों को कल्पित, किन्तु प्रतिनिधि परिस्थितियों के माध्यम से स्थापित किया जाता है। इसका प्रयोजन शिक्षार्थियों को इस योग्य बनाना है कि वे उन व्यक्तियों की अभिवृत्तियों, भावनाओं या परिस्थितियों को समझ सके, जिनकी भूमिका वे कर रहे हैं।”
इस व्यूह रचना को जो कि शिक्षण की नवीन प्रवृत्ति है, ‘नायीकरण’ शिक्षण विधि भी कहा जा सकता है। इतिहास शिक्षण में यह उपयोगी सिद्ध हुई है। यह शिक्षक प्रशिक्षण में शिक्षण-कौशलों के संशोधन के लिए भी प्रयुक्त की जाती है। शिक्षार्थियों के चुने हुए समूह के शिक्षार्थी विभिन्न भूमिकाओं (Roles) का अभिनय कर विषय-वस्तु या समस्या का प्रस्तुतीकरण रोचक ढंग से कर सकते हैं। भूमिका निर्वाह पर्वाभ्याम के बाद ही प्रभावी बनता है, कैसे बिना पूर्वाभ्यास के भी इसका प्रयोग किया जा सकता है। इस शिक्षण में नवीन प्रवृत्ति के उपर्युक्त प्रयोजन के अतिरिक्त निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति भी इसके प्रयोजन हैं-
(1) भाषायी अभिव्यक्ति विकास,
(2) श्लाघात्मक विकास,
(3) मनोरंजन,
(4) सामाजिक कुशलता का विकास
(5) शारीरिक भाव-भंगिमा द्वारा अभिव्यक्ति का विकास
(6) संवेगों का विकास।
इस अभिनय शिक्षण-प्रवृत्ति या व्यूह रचना के लिए निम्नांकित सोपानों का अनुकरण किया जाना चाहिए-
(1) कार्यक्रम की रूपरेखा निर्माण,
(2) शिक्षक द्वारा निर्देशन व शिक्षार्थियों द्वारा पूर्वाभ्यास,
(3) शिक्षार्थियों की भूमिका निर्धारण,
(4) शिक्षक द्वारा भूमिका निर्वाह का प्रेक्षण,
(5) अभिनय के बाद शिक्षक व शिक्षार्थियों द्वारा सुझाव पृष्ठ पोषण।
छद्धाभिनय या भूमिका निर्वाह की विशेषताएँ
भूमिका निर्वाह की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) कल्पित परिस्थितियों में अभिनय द्वारा संबंधित भूमिकाओं तथा प्रकरण का अवबोध होना।
(2) अभिनय कौशल का विकास।
(3) मनोरंजन द्वारा ज्ञानार्जन।
(4) सामाजिक कौशलों का विकास।
छद्धाभिनय या भूमिका निर्वाह की सीमाएँ तथा सावधानियाँ
डॉ. गुप्ता ने छद्धाभिनय या भूमिका निर्वाह की निम्नलिखित सीमाएँ व सावधानियाँ बताई है-
(1) भूमिका निर्वाह में वातावरण कृत्रिम व कल्पित होता है जिसके कारण अभिनय जीवन्त नहीं हो पाता। अतः अभिनय कुशल शिक्षार्थियों का चुनाव कर उन्हें प्रभावी अभिनय का पूर्वाभ्यास कराना चाहिए।
(2) भूमिका निर्वाह का प्रयोग विशिष्ट विषयों व प्रकरणों में ही हो सकता है, अतः ऐसे प्रकरणों की सीमित संख्या में चुनाव कर पूरी तैयारी के साथ इसका प्रयोग किया जाएं।
(3) भूमिका निर्वाह में भूमिका निर्वाह करने वाले शिक्षार्थी ही सक्रिय रहते हैं, शेष अन्य निष्क्रिय रहते हैं। अत: भूमिका निर्वाह के बाद तथा पूर्व की क्रियाएँ पूरी कक्षा के समक्ष की जानी चाहिए तथा कक्ष-शिक्षण में उसका पूरक के रूप में प्रयोग किया जाना चाहिए।
(4) भूमिका निर्वाह श्रम साध्य है जिससे शिक्षक इसे प्रयुक्त करने में अनिच्छा रखते हैं, अतः कुल सीमित संख्या में ही प्रकरण चुनकर उनमें लागू किया जाएं, लेकिन प्रभावी रूप से।
(5) पंचम, शाला व कक्षा व्यवस्था में इसके अनुकूल परिवर्तन करना भी कठिन होता है, अतः पूर्व नियोजित सीमित अवसरों पर इसका प्रयोग होना चाहिए।