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भारत में बालिकाओं की शिक्षा से सम्बन्धित विभिन्न समितियों की सिफारिशों का वर्णन करें ?
भारत में स्वतंत्रता के पश्चात् बालिका शिक्षा हेतु चहुँमुखी प्रयास किये गये, जिनके फलस्वरूप इनकी शिक्षा एवं नामांकन में पर्याप्त वृद्धि हुई है। भारतीय जनमानस की मानसिकता में जब बालिका शिक्षा के प्रति परिवर्तन हुआ है, वे बालिकाओं को बालकों के समान ही शिक्षा प्रदान करने के प्रति प्रयासरत हुए हैं। संविधान लागू होने के पश्चात् संविधान की धारा 45 में 6-14 आयु वर्ग में सभी बालक-बालिकाओं को अगले 10 वर्षों में अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा प्रदान करना शासन का दायित्व निश्चित किया गया । इन सरकारी प्रयासों के फलस्वरूप सन् 1950-52 बालिका शिक्षा का द्रुत गति से प्रसार हुआ । किन्तु वर्ष 1952-55 के दौरान शिक्षा मद में कटौती करने के कारण जिला परिषदों ने अनेक बालिका विद्यालय कम कर दिये एवं अध्यापिकाओं की छँटनी कर दी। जो बालिका शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा पक्षपात था। द्वितीय पंचवर्षीय योजना 1956-61 में बालिका शिक्षा के क्षेत्र में पुनः सुधार हुआ।
राष्ट्रीय महिला शिक्षा समिति : 1958 (National Women’s Education Committee : 1958)
केन्द्रीय सरकार ने सन् 1958 में श्रीमती दुर्गाबाई देशमुख की अध्यक्षता में महिला शिक्षा पर विचार करने हेतु एक समिति गठित की। इस समिति ने बालिका शिक्षा से सम्बन्धित समस्याओं पर विचार कर अपनी रिपोर्ट में बालिका शिक्षा के क्षेत्र में विभिन्न निम्नलिखित सिफारिशें प्रस्तुत की-
(i) केन्द्र सरकार को सभी राज्यों में बालिका शिक्षा के विस्तार हेतु नीति निर्धारित करनी चाहिए और उसका क्रियान्वयन करने हेतु राज्य सरकारों को आर्थिक सहायता प्रदान करनी चाहिए ।
(ii) केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय के अधीन बालिका शिक्षा के संचालन हेतु एक पृथक विभाग होना चाहिए।
(iii) बालिका शिक्षा को देश की प्रमुख समस्याओं में स्थान प्रदान करना चाहिए।
(iv) बालक एवं बालिका शिक्षा के क्षेत्र में जो विषमता बनी हुई है, उसे शीघ्रातिशीघ्र समाप्त किया जाना चाहिए।
(v) केन्द्र सरकार को बालिका शिक्षा से सम्बन्धित भार स्वयं वहन करना चाहिए और इसके प्रसार हेतु सुव्यवस्थित एवं समयबद्ध योजना बनाकर निश्चित समय में इसे लागू करनी चाहिए।
(vi) ग्रामीण क्षेत्रों में बालिका शिक्षा का भरसक प्रयास किया जाय, जिसका सारा खर्च सरकार द्वारा उठाया जाय ।
(vii) प्रत्येक राज्य में बालिका शिक्षा के प्रसार हेतु बालिका एवं स्त्री शिक्षा हेतु राज्य समितियाँ गठित की जाय।
राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद् 1959 (National Council of Women’s Education 1959)
केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय ने राष्ट्रीय महिला समिति, 1958 की सिफारिशों को अपनाते हुए सन् 1959 में राष्ट्रीय महिला परिषद् की स्थापना की। इसका सन् 1964 में पुनर्गठन किया राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद् ने बालिका शिक्षा के क्षेत्र में निम्नलिखित कार्य किये-
(i) बालिका (महिला) शिक्षा के पक्ष में लोकमत का निर्माण करने हेतु उचित उपाय सुझाना।
(ii) बालिका शिक्षा के क्षेत्र में होने वाली प्रगति का समय-समय पर मूल्यांकन करना और भावी कार्यक्रम की प्रगति के बारे में सोचना ।
(iii) बालिका शिक्षा से सम्बन्धित समस्याओं पर विचार करने हेतु आवश्यकतानुसार अनुसंधान, सर्वेक्षण एवं विचार गोष्ठियों के आयोजन हेतु केन्द्र सरकार से सिफारिश करना ।
(iv) औपचारिक बालिका शिक्षा (विद्यालय शिक्षा) अनौपचारिक बालिका शिक्षा (प्रौढ़ शिक्षा) से सम्बन्धित समस्याओं पर सरकार को परामर्श प्रदान करना ।
(v) बालिका शिक्षा के क्षेत्र में बालिकाओं (महिलाओं) की शिक्षा के प्रसार-प्रचार एवं सुधार हेतु कार्यक्रमों, नीतियों, लक्ष्यों के विषय में सरकार का सुझाव देना ।
(vi) बालिका शिक्षा के क्षेत्र में व्यक्तिगत प्रयोगार्थ विभिन्न उपाय सुझाना ।
हंसा मेहता समिति : 1962 (Hansa Mehta Committee : 1962) — राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद् के उत्तरदायित्वों का निर्वाह करने के उद्देश्य से सन् 1962 में हंसा मेहता समिति का गठन किया गया। इस समिति का मुख्य उद्देश्य विद्यालयी स्तर पर बालक-बालिकाओं के पाठ्यक्रमों में लैंगिक भिन्नता सम्बन्धी निर्णय लेना था।
हंस मेहता समिति के सुझाव (Suggestions of Hansa Mehta Committee)
बालिका शिक्षा के सन्दर्भ में हांस मेहता समिति के निम्नलिखित सुझाव थे-
(i) हंसा मेहता समिति का सुझाव था कि भारतीय समाज में लिंग के आधार पर विद्यालयी पाठ्यक्रमों में अंतर करने की आवश्यकता नहीं है ।
(ii) बालक एवं बालिकाओं के सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक कार्यों के अंतर के आधार पर पाठ्यक्रम में विभेद करना चाहिए। किन्तु पाठ्यक्रम की विभिन्नता समाज के निर्माण कार्य में बाधक न बने ऐसा भी प्रयास करना चाहिए।
कोठारी कमीशन : 1964-66 (Kothari Commission: 1964-66)
कोठारी आयोग ने बालिका शिक्षा के उन्नयन हेतु अनेक सुझाव प्रस्तुत किये, जो अग्रलिखित हैं-
(i) बालिकाओं में अनिवार्य शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार करने हेतु भारतीय संविधान द्वारा प्रतिपादित लक्ष्य की प्राप्ति हेतु विशेष प्रयास किये जाने चाहिए।
(ii) उच्च प्राथमिक स्तर पर बालिका शिक्षा हेतु अलग से विद्यालय स्थापित किये जायें ।
(iii) बालिकाओं के मुफ्त पाठ्य पुस्तकें, लेखन सामग्री, वस्त्र आदि प्रदान कर उन्हें शिक्षा के प्रति आकृष्ट किया जा सकता है।
(iv) बालिकाओं को बालकों के प्राथमिक विद्यालयों में भेजने के लिए लोकमत का निर्माण करना।
(v) 11-14 आयु वर्ग की सभी बालिकाओं की अल्पकालीन शिक्षा का प्रबंध करना चाहिए।
(vi) बालिका शिक्षा के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करने हेतु ठोस कदम उठाये जायें ।
(vii) बालक/बालिकाओं (स्त्री एवं पुरुषों) के बीच जो खाई बनी हुई है उसे यथाशीघ्र समाप्त करने के लिए योजनाएँ बनायी जायें ।
(viii) बालिका शिक्षा की निगरानी हेतु केन्द्र तथा राज्य स्तर पर उपयुक्त प्रशासनिक कदम उठाये जायें।
(ix) स्त्रियों के लिए अंशकालिक रोजगारों की व्यवस्था की जाय, जिससे वे पारिवारिक कार्यों से मुक्त होकर शिक्षा का समुचित लाभ उठा सकें ।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति : 1986 (National Education Policy : 1986)
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत बालिका शिक्षा के क्षेत्र में अनेक परिवर्तन हुए, किन्तु उनके परिणाम सन्तोषजनक नहीं रहे । राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 ने यह महसूस किया कि तमाम प्रयासों के बावजूद वर्त्तमान शिक्षा प्रणाली महिलाओं की समानता के प्रति पर्याप्त भूमिका अदा नहीं कर सकी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने बालिका की प्रगति हेतु निम्नलिखित नीति सम्बन्धी निर्देश जारी किये-
(i) 15-35 आयु वर्ग की महिलाओं के लिए सन् 1995 तक प्रौढ़ शिक्षा का एक चरणबद्ध एवं समयबद्ध कार्यक्रम ।
(ii) प्रारम्भिक शिक्षा का बालिकाओं हेतु चरणबद्ध एवं समयबद्ध कार्यक्रम ।
(iii) लिंगमूलक विभाजन को शिक्षा में से समाप्त किया जाय एवं गैर परम्परागत एवं आधुनिक काम धन्धों में महिलाओं की भागीदारी से सुनिश्चित किया जाय ।
(iv) महिलाओं की स्थिति में बुनियादी परिवर्तन लाने हेतु शिक्षा का उपयोग एक साधन में किया जाय । अतीत से चली आ रही विकृतियों एवं विषमताओं को समाप्त करने के लिए शिक्षा व्यवस्था का स्पष्ट झुकाव महिलाओं के पक्ष में होगा ।
(v) नये मूल्यों की स्थापना हेतु शिक्षण संस्थाओं के सक्रिय सहयोग से पाठ्यक्रमों तथा पठन-पाठन सामग्री की पुनर्रचना की जायेगी तथा अध्यापकों एवं प्रशासकों को पुनः प्रशिक्षण प्रदान किया जायेगा ।
आचार्य राममूर्ति समिति : 1990 (Acharya Ramamurti Committee : 1990)
आचार्य राममूर्ति समिति ने बालिका शिक्षा के अभीष्ट लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति में निम्नलिखित किये-
(i) कक्षा 1 से 3 तक का पाठ्यक्रम शिशु शिक्षा केन्द्रों के आधार पर बनाया जाय ।
(ii) आँगनबाड़ी कार्यकत्ताओं एवं विद्यालय शिक्षकों में समन्वय स्थापित किया जाय।
(iii) 300 से अधिक आबादी वाले क्षेत्रों में प्राथमिक विद्यालय स्थापित किये जायें।
(iv) 500 से अधिक आबादी वाले क्षेत्रों में बालिकाओं के लिए उच्च प्राथमिक विद्यालय स्थापित किया जाय ।
(v) विद्यालय की समयावधि को स्थानीय क्षेत्र की आवश्यकताओं के अनुकूल निर्धारित किया जाय ।
(vi) शाला-त्यागी बालिकाओं के लिए औपचारिक केन्द्रों पर नामांकन की व्यवस्था की जाय ।
(vii) बालिकाओं को मध्याह्न भोजन, पोशाक, पाठ्य पुस्तकें एवं शैक्षणिक सामग्री मुफ्त प्रदान की जाय ।
(viii) बालिकाओं को विद्यालय जाने हेतु परिवहन की व्यवस्था की जाय ।
(ix) योग्य बालिकाओं को छात्रवृत्ति प्रोत्साहन योजना में सम्मिलित किया जाय।
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