संरचनावादी सिद्धांत का वर्णन करें ।
शिक्षा की समस्याओं को सुलझाने के दृष्टिकोण से इन चारों सिद्धांतों की प्रभावपूर्ण उपस्थिति देखने को मिलती है तथा जहाँ तक एक तरफ समाजीकरण सिद्धांता अन्तर सिद्धान्त उदारवादी पंथ के माने जाते हैं वहीं संरचनावाद तथा विखंडन सिद्धांत उत्तर आधुनिक रुझान की तरफ जाते हुए दिखते हैं। इसमें भी जब इस शिक्षा के संरचनावादी दृष्टिकाण की बात करते हैं तो हम पाते हैं कि संरचनावादी मुख्यतः स्थायी सत्ताओं की व्यवस्था को अधिक मूल्य प्रदान करते हैं जबकि विखंडनवादी दृष्टिकोण लगातार परिवर्तनशील सांस्कृतिक व्यवस्थाओं पर ध्यान केन्द्रित करता है। दोनों सिद्धांत संरचनावादी तथा विखण्डनवादी किसी भी अन्य सिद्धान्त से अधिक व्यापक । समाजीकरण सिद्धांत, उदारवादी नारीवादी सिद्धान्तों के शैक्षिक निहितार्थों पर आधारित है जो स्त्री और पुरुष के प्रति समान व्यवहार करने पर जोर देता है । जेन्डर अन्तर सिद्धान्त स्त्रियों के स्त्रीत्व तथा संबंधपरक रुझानों को स्थापित करने में संस्कृति, शिक्षा तथा नैतिकता का तर्क देता है परन्तु अक्सर इसी सिद्धान्त को जेण्डर अन्तर सिद्धांत से मिलाकर देखा जाता है तथा संरचनावादी एवं विखंडन सिद्धांत परस्पर घुले-मिले हो सकते हैं। सभी सिद्धान्त से मिलाकर देखा जाता है तथा संरचनावादी एवं विखंडन परस्पर घुले-मिले हो सकते हैं। सभी सिद्धान्त अपने मूल्यों के आधार पर शिक्षा के भिन्न-भिन्न उद्देश्य की संरचना करते हैं तथा इसके आधार पर जेन्डर असमानताओं को दूर करने की प्रविधियों का सुझाव देते हैं ।
संरचनावादी विश्लेषण कुछ विशिष्ट लोगों द्वारा सत्ता तथा विशेषाधिकार के एकत्रीकरण पर ध्यान केन्द्रित करते हैं। इन सिद्धांतों के अनुसार, सत्ता या शक्ति को एक समूह दूसरे समूह पर आरोपित करता है। वह विभिन्न विषयों द्वारा हो सकता है, धन, बल द्वारा या नेतृत्व या संस्थानीकरण द्वारा किया जा सकता है। जेण्डर तथा अन्य प्रकार की असमानताओं के विरुद्ध एकजुट भी प्रतीत होती है। उदाहरण के तौर पर पाश्चात्य देशों में विषम लैंगिक समूहों के अन्य समूहों जैसे या लेस्बियन समूहों से ज्यादा सुविधाएँ प्राप्त हैं जिनमें अपने जीवन साथी का बीमा, दत्तक संतान लेने के नियम आदि ? विवाह का अधिकार तथा किसी भी प्रकार की असमानता के विरुद्ध कानूनी संरक्षण प्राप्त होता है। अन्य प्रकार की संरचनात्मक असमानता के उदाहरणों में महिलाओं को कम वेतन वाले कार्यों में संलग्नता या कम सम्मान वाले कार्यों में संलग्नता (जैसे होटल की आया तथा वेटर एवं पिंक कला जौब्स जैसे अध्यापिका, सेक्रेटरी तथा नर्स) का होना है। पुरुषों को वरीयता देने वाली पदोन्नति योजनाएँ होती हैं तथा चिकित्सा से सम्बन्धित शोधों में भी ‘पुरुष होने’ को ही प्रतिमान माना जाता है । (हृदय रोग तथा एड्स शोधों में) तथा ऐसे कानून व नियम होते हैं जिसमें महिला को गर्भधारण के लिए तो उत्तरदायी मानते हैं परन्तु उन्हें गर्भपात का अधिकार नहीं होते ।
संरचनात्मक असमानता ज्ञान के तंत्र को भी प्रश्न करती है । समाजीकरण तथा संरचनात्मक सिद्धांतकार समान रूप से इस बात को सामने रखते हैं कि सैन्य इतिहासों में, साहित्य में, कला एवं विज्ञान में हाशिये के लोगों को उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है। उनको शिक्षा के अवसरों तथा नेतृत्व के पदों से दूर रखा गया। चिकित्सा के स्तर को ऊँचा उठाने के लिए, श्वेत पुरुषों द्वारा यूनाइटेड स्टेट्स में महिलाओं को (मिडवाइफ सहित) “वास्तविक” चिकित्सकीय ज्ञान की पहुँच से दूर रखा तथा बाद में इन्हीं कारणों से श्वेत महिलाओं द्वारा अफ्रीकन अमेरिकन महिलाओं को नर्सिंग कॉलेजों में प्रवेश लेने से रोक दिया गया।
अधिकतर संरचनावादी नजरियों में, पहले ‘दमन’ को समझना पड़ता है तब इसे बदलने की कोशिश की जाती है। इसके मद्देनजर ही संरचनात्मक नारीवादी शैक्षिक उपचार या सुधार, प्राथमिक रूप से एक उदारवादी शिक्षण शास्त्र तथा एक विपरीत नायकत्व पाठ्यचर्या पर आधारित होते हैं। इन दोनों तरीकों के द्वारा छात्रों को स्वयं की तथा दूसरों की स्थितियों को मान एवं समझने की शक्ति दी जाती है। कुछ संरचनावादी नारीवादी, अस्तित्वमान सत्ता एवं शक्ति संबंधों को प्राकृतिक योग्यतावादी मानते रहने की चुनौती देते हैं, वहीं दूसरी ओर अन्य नए तथा वैकल्पिक संरचनाओं को खोजने पर जोर देते हैं। प्रथम प्रकार के संरचनावादी, किन्हीं सामाजिक समूहों के मदद को खुलकर सामने रखते हैं तथा यह भी स्पष्ट करते हैं कि किस प्रकार मदद ने उन लोगों को फायदा पहुँचाया है जो पहले से सत्ता में हैं। अक्सर ही ऐसे भौतिक विषय जैसे इतिहास, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र के क्षेत्र में काम करने वाले संरचना नारीवादी इसलिए इन विषयों में जेण्डर समानता को लाने के लिए वस्तुनिष्ठता की बात करते हैं। प्रभुत्वकारी विचारधारा के लोग जो वर्णनात्मकता तथा मेरिट को महत्व देते हैं, उनमें अक्सर ही देखा गया है कि यदि अधीनस्थ समूह उनसे कहीं बेहतर प्रदर्शन करने लगता है तो वे अपने मानकों को पुनः परिभाषित कर लेते हैं। इसी प्रकार यदि स्त्रियाँ, पुरुषों में किसी परीक्षा में अधिक अंक लाए या अधिक मैडल लाएँ तो अक्सर ही स्त्रियों की शिक्षा की पहुँच तक सीमित कर दिया जाता है या फिर परीक्षण की वैधता, या शिक्षण प्रश्न पर ही चिह्न लगा दिए जाते हैं।
दूसरी तरफ यदि स्त्रियों के बदले हुए स्तर से समाज को कोई लाभ प्राप्त होता है जो विचारधारा इसको चारों तरफ से घेर लेती है। उदाहरण के लिए स्त्रियों की प्राकृतिक जगत ‘घर’ है यह ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक धारणा है परन्तु यदि श्रमिकों की कमी पड़ रही हो तो इस धारणा को भी निकाल फेंका जा सकता है तथा उनसे श्रमिक का कार्य बड़ी आसानी से कराया जा सकता है। इस प्रकार से रचनाओं को खुले रूप में प्रस्तुत करके छात्रों को इसमें शैक्षिक निहितार्थ से परिचित कराया जाता है जिससे वे जेन्डर, लिंग, नस्ल तथा वर्ग के पैटर्न को समझ सकें तथा यह भी जान सकें कि वे किसके लाभ के लिए कार्य कर हैं।
प्रभुत्ववादी विचारधारा की प्रत्यक्ष रूप में आलोचना करने के बजाय कुछ दूसरे संरचनाकारी इन अर्थों के विपरीत सांस्कृतिक फ्रेमवर्क विकसित करते हैं। जैसे- वीमेन स्टडीज प्रोग्राम का उद्देश्य वास्तव में मुख्य धारा के ज्ञान को सही करना नहीं होता। इसके बजाय वे छात्रों को स्त्री केन्द्रित पाठ्य तथा विश्लेषण में डूब जाने देते हैं जिससे कि वे धारा के सत्ता सम्बन्धों का नया विकल्प सुझा सकें। यह डूब जाने वाली प्रविधियाँ छात्रों को मुख्य प्रभुत्ववादी विचारधाराओं से अलग हटकर सोचने में मदद करती है। साथ ही स्त्रियाँ द्वारा स्वयं विकसित किए गए उपकरणों, प्रविधियों व ज्ञान की सहायता से उनकी स्थिति के सुधार की ओर कार्य करने को प्रेरित करती है।
इसके अतिरिक्त छात्र अन्य नारीवादी विचारधाराओं, जैसे मार्क्सवादी, रेडिकल, फ्रिटिकल रेस थ्योरिस्ट से भी विचार लेकर ऐसे सिद्धांत विकसित कर सकते हैं जिससे वर्तमान में प्रचलित सत्ता सम्बन्धों को प्रश्न कर सकते हैं तथा उघाड़ सकते हैं। इस प्रकार से वे प्रभुत्ववादी विचारधारा के मनगढ़ंत विश्वासों को स्वयं के अनुभव एवं विचारों से प्रश्न कर सकते हैं। चूँकि ऐसा तभी संभव हो सकता है जब छात्रों को पाठ्य तथा पाठ्यचर्या की आलोचनात्मक अध्ययन की जानकारी हो। इसलिए संरचनात्मक नारीवादी शिक्षा में इस बात पर जोर दिया जाता है कि पाठ्य वस्तुओं में समालोचनात्मक शिक्षा को बढ़ावा दिया जाए जिससे वे प्रभुत्ववादी विचारधारा की विध्वंसकारी प्रवृत्तियों को समझ सके ।
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