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परिवार से क्या तात्पर्य है ? What do you mean by Family.
परिवार से क्या तात्पर्य है ? परिवार का महत्त्व बालक के लिए सर्वाधिक है, क्योंकि वह अपना प्रथम रुदन, हँसना और ऊँगली पकड़कर चलना भी परिवार में ही सीखता है। परिवार को गृह, कुटुम्ब, गेह, सदन, घर इत्यादि नामों से जाना जाता है। यह समाज की आधारभूत तथा महत्त्वपूर्ण इकाई है। परिवार के लिए अंग्रेजी में ‘Family’ (फैमिली) शब्द प्रयुक्त किया जाता है जो ‘Famulus’ (फैमुलस) से निष्पन्न हुआ है, जिसका तात्पर्य होता है—’नौकर’ (Servant)।
Family → Famulus = Servant
परन्तु वर्तमान में परिवार से तात्पर्य ‘नौकर’ शाब्दिक अर्थ न लेकर इसका अर्थ होगा- परिवार ऐसी आधारभूत संरचना है जहाँ रक्त सम्बन्धियों, जैसे- माता-पिता, दादा-दादी, बुआ, चाचा-चाची तथा चचेरे भाई-बहिन इत्यादि साथ-साथ निवास करते हैं।
परिभाषायें— परिवार के अर्थ के और अधिक स्पष्टीकरण हेतु कुछ परिभाषायें अग्र प्रकार दृष्टव्य हैं—
मैकाइवर तथा पेज के अनुसार- “परिवार एक ऐसा समूह है जो पर्याप्त रूप से लैंगिक सम्बन्धों पर आधारित होता है तथा जो इतना स्थायी होता है कि इसके द्वारा बालकों के जन्म तथा पालन-पोषण की व्यवस्था हो जाती है ।”
“The family is a group defined by sex relationship sufficiently precise and end ring to provide for the procreation and upbringing of children.”
क्लेयर के अनुसार -“परिवार से हम सम्बन्धों की वह व्याख्या समझते हैं जो माता-पिता तथा उनकी सन्तानों के मध्य पायी जाती है।”
“By family we mean a system of relationship between parents and children.”
परिवार की विशेषताएँ (Characteristics of Family)
उपर्युक्त विवेचन से परिवार की निम्नांकित विशेषतायें दृष्टिगत होती हैं-
1. लैंगिक सम्बन्ध पर आधारित ।
2. स्थायी संस्था है।
3. पालन-पोषण तथा भरण-पोषण हेतु उत्तरदायित्वों का पालन किया जाता है।
4. बालक की प्राथमिक पाठशाला है।
5. मानव समाज की आधारभूत तथा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण इकाई है।
6. रक्त सम्बन्धों पर आधारित है
7. परिवार में सहयोग तथा मिल-जुलकर रहने से लिंगीय भेद-भावों में कमी आती है।
परिवार के प्रकार (Types of Family )
परिवार के प्रकारों का वर्गीकरण हम परिवार के प्रकार निम्न प्रकार कर सकते हैं-
परिवार का प्रकार उपर्युक्त में से चाहे जिस प्रकार का भी हो, परन्तु उसके महत्त्व और आवश्यकता की अनदेखी कदापि नहीं की जा सकती है। परिवार की आवश्यकता तथा महत्त्व निम्न प्रकार है-
1. परिवार बालकों के लालन-पालन और पोषण का कार्य करने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है ।
2. परिवार बालक के सामाजिक, सांवेगिक, मानसिक, शारीरिक, भाषायी, शैक्षिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक इत्यादि के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है ।
3. परिवार में बालकों का विकास स्वाभाविक रूप से सम्पन्न होता है ।
4. सामाजिक उत्तरदायित्व बोध की भावना का विकास परिवार में ही होता है ।
5. परिवार में बालक तथा बालिकाओं दोनों का समान विकास कर समानता की भावना का विकास किया जाता है ।
6. परिवार के द्वारा बालकों में आत्म-अनुशासन तथा सामाजिक क्रिया-कलापों में रुचि का विकास होता है।
7. समाजीकरण की प्रक्रिया का प्रारम्भ परिवार से ही होता है, अतः यह महत्त्वपूर्ण है।
8. कर्त्तव्य-निष्ठा, त्याग, ईमानदारी, सहयोग तथा परोपकार जैसे गुणों का विकास करने की दृष्टि से परिवार महत्त्वपूर्ण है ।
9. जाति-पाँति, अमीर-गरीब, ऊँच-नीच के भावों की समाप्ति बालकों में परिवार के द्वारा ही हो सकती है।
10. पीढ़ी-दर-पीढ़ी किये जाने वाले उद्योग-धन्धों, सांस्कृतिक परम्पराओं को जीवित रखने की दृष्टि से परिवार महत्त्वपूर्ण है ।
11. परिवार के द्वारा बालकों में संकीर्ण विचारों की अपेक्षा व्यापक विचार तथा मानवता की अवधारणा पर बल दिया जाता है।
परिवार के महत्त्व पर विद्वानों के कुछ विचार दृष्टव्य हैं-
1. रूसो के अनुसार “शिक्षा जन्म से प्रारम्भ होती है तथा माता उपयुक्त परिचायिका है।”
2. पेस्टालॉजी के अनुसार “परिवार प्यार तथा स्नेह का केन्द्र, शिक्षा का सर्वोत्तम स्थान, बालक का प्रथम विद्यालय है।”
3. फ्रोबेल के अनुसार – “मातायें बालकों की आदर्श गुरु होती हैं तथा परिवार द्वारा प्राप्त अनौपचारिक शिक्षा सर्वाधिक प्रभावशाली और प्राकृतिक होती है । “
4. मेजिनी के अनुसार “बालक नागरिकता का प्रथम पाठ माता के चुम्बन एवं पिता के संरक्षण के बीच सीखता है।”
5. रेमॉण्ट के अनुसार — “घर ही वह स्थान है, जहाँ वे महान गुण उत्पन्न होते हैं। जिनकी विशेष सहानुभूति है। घर में ही घनिष्ठ प्रेम की भावनाओं का विकास होता है । यहीं बालक उदारता, और अनुदारता, निःस्वार्थ और स्वार्थ, न्यास और अन्यास, सत्य और असत्य, परिश्रम तथा आलस्य में अन्तर सीखता है। यहीं उसमें इनमें से कुछ की आदत सबसे पहले पड़ती है।”
6. एच. सी. एण्डरसन के अनुसार- “हमारे अपराधियों में से 80% असहानुभूतिपूर्ण घरों से आते हैं।”
7. लॉरी के अनुसार – “शैक्षिक इतिहास के सभी स्तरों पर परिवार बालक की शिक्षा का प्रमुख साधन है।”
8. के. जी. सैयदेन के अनुसार “व्यक्ति की शिक्षा पारिवारिक वातावरण पर निर्भर करती है यदि ये सभी वातावरण परिवार के अच्छे रीति-रिवाजों पर आधारित हैं, जो इनका व्यक्ति की विचारधारा और विकास पर प्रशंसनीय प्रभाव पड़ेगा तथा उसकी शिक्षा न केवल उसके लिए अपितु सम्पूर्ण समाज के लिए लाभप्रद होगी।”
“The education of man depends of the environment that he enjoys if these environments are based on good customs and traditions of the family they will spread influence on this ideas and development and his education will be useful not only to him but to the whole community.”
परिवार के कार्य (Functions of Family)
शिक्षा की दृष्टि से परिवार को अनौपचारिक अभिकरणों के अन्तर्गत रखा जाता है, परन्तु बालकों की शिक्षा और समग्र विकास का कार्य परिवार में सम्पन्न होता है। पारिवारिक वातावरण ही बालक का भविष्य सुनिश्चित करता है। परिवार के कुछ कार्य निम्न प्रकार हैं-
परिवार के कार्य
- शारीरिक विकास तथा भरण-पोषण का कार्य
- मानसिक विकास का कार्य,
- संवेगात्मक विकास का कार्य
- धार्मिक विकास का कार्य
- भाषायी विकास का कार्य
- व्यक्तित्व विकास का कार्य
- सांस्कृतिक संरक्षण एवं हस्तान्तरण का कार्य
- रुचियों तथा आदतों के विकास का कार्य
- नैतिकता तथा चारित्रिक विकास का कार्य
- जन्मजात प्रवृत्तियों के विकास का कार्य
- व्यावहारिक एवं व्यावसायिक विकास का कार्य
- लैंगिक मुद्दों पर सकारात्मक विचारों के विकास का कार्य
- व्यापक दृष्टिकोण तथा मानवीयता के विकास का कार्य
- सहयोग, शान्ति, सद्भाव तथा प्रेम के विकास का कार्य
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