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चुनौतीपूर्ण लिंग के संबंध में विद्यालय की भूमिका | Role of school with special reference to challenging Gender in Hindi

चुनौतीपूर्ण लिंग के संबंध में विद्यालय की भूमिका | Role of school with special reference to challenging Gender in Hindi
चुनौतीपूर्ण लिंग के संबंध में विद्यालय की भूमिका | Role of school with special reference to challenging Gender in Hindi

चुनौतीपूर्ण लिंग के संबंध में विद्यालय की भूमिका का वर्णन करें। 

विद्यालय वर्तमान में अनेक कारणों से महत्त्वपूर्ण और आवश्यक है। इसी कारण शिक्षा का व्यापक रूप से प्रसार किया जा रहा है। विद्यालयी शिक्षा व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन के साथ-साथ समाज, राष्ट्र और सम्पूर्ण विश्व के लिए आवश्यक है। परिवार तथा समाज के प्रत्येक व्यक्ति की अपनी मान्यतायें और दृष्टिकोण होते हैं। यदि औपचारिक शिक्षा की व्यवस्था न हो तो प्रत्येक परिवार अपने अनुसार बालक को शिक्षा प्रदान करेगा और कुछ परिवार किसी भी प्रकार की शिक्षा नहीं देंगे, बस बालक अपने आप चाहे जो कुछ सीख ले, इस परिस्थिति में समाज में असभ्यता के लक्षण द्योतित होने लगेंगे और प्रजातांत्रिक व्यवस्था की बात करना भी बेमानी हो जायेगा। विद्यालयों की स्थापना शिक्षा प्रदान करने के साथ-साथ कुछ अन्य उद्देश्यों को लेकर भी होती है। ये उद्देश्य निम्न प्रकार है-

  1. सोद्देश्यपूर्ण शिक्षा ।
  2. स्वानुशासन की प्रवृत्ति का विकास ।
  3. कुशलता दिलाना ।
  4. लोकतन्त्र की सफलता ।
  5. आदर्श नागरिकों की तैयारी ।
  6. विश्व के श्रेष्ठ ज्ञान तथा साहित्य आदि से परिचय ।
  7. सांस्कृतिक विकास हेतु ।
  8. राष्ट्रीय एकता का विकास ।
  9. स्वस्थ दृष्टिकोण का विकास ।
  10. सर्वांगीण विकास ।
  11. अन्वेषी तथा तर्कपूर्ण मस्तिष्क का विकास ।
  12. ऊँच-नीच, जाति-पाँति, अमीर-गरीब, धर्म तथा स्त्री-पुरुष के भेद-भाव से ऊपर उठकर सभी के साथ समान व्यवहार करना ।

समूह की भावना का विकास – विद्यालय में तीव्र गति से होता है क्योंकि परिवार में बच्चों का दायरा उनके परिवारीजनों तक ही सीमित रहता है और वर्तमान में एकाकी परिवारों के प्रचलन के कारण यह दायरा और भी सीमित हो गया है। शहरीकरण की प्रवृत्ति में बालक का अपने समाज के साथ उतना सम्पर्क स्थापित नहीं हो पाता है जितना होना चाहिए। ऐसे में विद्यालय में बालकों में समूह की भावना विकसित होती है । विद्यालय में सभी धर्मों, सभी प्रकार की जातियों, आर्थिक पृष्ठभूमि, विविध भाषाओं और संस्कृतियों तथा लिंग के बालक-बालिकायें साथ-साथ अध्ययन करते हैं। अध्ययन ही नहीं अपितु वे अपने जीवन के महत्त्वपूर्ण दिनों, अनुभवों और ज्ञान को साझा करते हुए एक-दूसरे की सहायता करते आगे बढ़ते हैं। विद्यालय समूह की भावना का विकास करने हेतु निम्नांकित कार्य करते हैं-

1. विद्यालय में किसी भी आधार पर भेद-भाव और पक्षपात नहीं किया जाता है जिससे बालकों में सामूहिकता की भावना का विकास होता है।

2. सह-शिक्षा (Co-education) के द्वारा बालकों तथा बालिकाओं के मन में प्रारम्भ से ही स्वस्थ दृष्टिकोण, सहयोग और आदर की प्रवृत्ति का विकास होता है ।

3. विद्यालय में पाठ्य सहगामी क्रियाओं के आयोजन द्वारा समूह की भावना विकसित की जाती है।

4. विद्यालय में सामूहिकता की भावना पर बल देने के लिए सामूहिक क्रिया-कलाप सम्पादित कराये जाते हैं।

5. विद्यालय में प्रेम तथा भ्रातृत्व आदि गुणों के विकास पर बल दिया जाता है जिससे सामूहिकता की भावना विकसित होती है ।

6. विद्यालय में पाठ्यक्रम और पाठ्य-पुस्तकों में वर्णित सामग्री को प्रभावपूर्ण ढंग से पढ़ाया जाता है जिससे सुनिश्चित उद्देश्य प्राप्त हों। इस प्रकार के शिक्षण के द्वारा समूह की भावना और महत्त्व से परिचय प्राप्त होता है ।

7. विद्यालयी वातावरण की सफलता, सफल संचालन, प्रशासन और शिक्षण सामूहिकता के बिना अपूर्ण है। अतः यह स्वयं में आदर्श और उदाहरण है।

8. विद्यालय में समूह की भावना के द्वारा चुनौतीपूर्ण लिंग की असमानता में कमी और उनकी सशक्त भूमिका के प्रस्तुतीकरण में महत्त्वपूर्ण है उपर्युक्त प्रकार की समानता में विद्यालय समूह ही भावना के द्वारा सहयोग प्रदान करते हैं ।

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Anjali Yadav

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