शिक्षा एवं मनोविज्ञान के पारस्परिक सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
शिक्षा तथा मनोविज्ञान व्यवहार कर समन्वय है। शिक्षा तथा मनोविज्ञान के पारस्परिक सम्बन्ध का ज्ञान मानव के समन्वित तथा संतुलित विकास के लिए आवश्यक है। शिक्षा के समस्त कार्य मनोविज्ञान के सिद्धान्तों पर आधारित हैं। क्रो एवं क्रो के अनुसार – “मनोविज्ञान सीखने से सम्बन्धित मानव विकास के ‘कैसे’ की व्याख्या करता है, शिक्षा सीखने के ‘क्या’ को प्रदान करने की चेष्टा करती है। शिक्षा मनोविज्ञान सीखने के ‘क्यों’ और ‘कब’ से सम्बन्धित है।”
ब्राउन के अनुसार – ” शिक्षा वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है” और पिल्सबरी ने मनोविज्ञान को ‘मानव व्यवहार का विज्ञान’ बताया है। इस प्रकार मनोविज्ञान मानव व्यवहार का अध्ययन करके व्यावहारिक परिवर्तन में सहायता करता है। अतः शिक्षा और मनोविज्ञान, दोनों को जोड़ने वाली कड़ी ‘मानव व्यवहार’ है। इसलिए दोनों का सम्बन्ध होना स्वाभाविक है। शिक्षा अपने नवीन अर्थां में मनोविज्ञान की सहायता के बिना अपने उद्देश्यों को कभी नहीं प्राप्त कर सकती। इस बात से प्रभावित होकर रूसो, पेस्टालॉजी, हरबार्ट, फ्रोबेल, मॉन्टेसरी आदि शिक्षाशास्त्रियों ने शिक्षा में मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति लाने का सफल प्रयास किया है।
शिक्षाशास्त्र और मनोविज्ञान दोनों ही सामाजिक विज्ञान हैं। शिक्षा समाजीकरण की प्रक्रिया है और मनोविज्ञान इस प्रक्रिया को विकसित करने में सहायता करता है। इसके अतिरिक्त दोनों के अध्ययन क्षेत्र का केन्द्र भी सामान्यतः एक ही है- व्यक्ति और समाज, इसके क्रियाकलाप तथा क्रिया-विधि शिक्षा और मनोविज्ञान दोनों मानव-व्यवहार से सम्बन्धित हैं। शिक्षा व्यवहार का परिमार्जन करती है और मनोविज्ञान व्यवहार का अध्ययन करता है। दोनों का सम्बन्ध मानव-व्यक्तित्व के विकास से है। इस दृष्टि से शिक्षा और मनोविज्ञान दोनों में पारस्परिक सम्बन्ध है। इसका अर्थ यह है कि मनोविज्ञान का प्रभाव शिक्षा के विभिन्न पहलुओं पर पड़ता है और शिक्षा भी मनोविज्ञान के विषय-वस्तु, क्षेत्र तथा अन्य बातों को प्रभावित करती है, अतः इन दोनों के पारस्परिक सम्बन्धों को एक-दूसरे पर प्रभाव के रूप में समझना उचित होगा।
शिक्षा और मनोविज्ञान का सम्बन्ध
शिक्षा एक प्रक्रिया तथा शास्त्र के रूप में मनोविज्ञान से किस प्रकार सम्बन्धित है ? यह एक विचारणीय प्रश्न है। यह निश्चित ही है कि दोनों में घनिष्ठ सम्बन्ध है, फिर भी निम्नलिखित दृष्टिकोण से इनके घनिष्ठ सम्बन्ध को व्यक्त करना आवश्यक है-
(1) शिक्षा और मनोविज्ञान दोनों का आधार मानव व्यवहार- शिक्षा की परिभाषा के विषय में मतैक्य नहीं है। कोई इसे चरित्र-विकास का महत्वपूर्ण साधन मानता है तो कोई इसे बौद्धिक विकास अथवा व्यावसायिक उन्नयन का एक यंत्र समझता है। कोई इसे विकास की प्रक्रिया कह कर इसके अर्थ को स्पष्ट करने का प्रयास करता है। किन्तु इस प्रकार के मत वैभिन्य में एक बात की समानता भी पाई जाती है, जिस पर सभी शिक्षाशास्त्री एक मत हैं। वह समान तत्व यह है कि शिक्षा व्यवहार में परिवर्तन लाने को कहते हैं। व्यवहार में परिवर्तन लाने का अर्थ है व्यवहार को आदर्श रूप देना। शिक्षा का उद्देश्य कुछ भी हो सकता है। किन्तु किसी भी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए व्यवहार में परिवर्तन आवश्यक है। मनोविज्ञान का भी सम्बन्ध ‘व्यवहार’ से है। व्यवहार में परिवर्तन तभी आ सकता है। जब हम व्यवहार के स्रोतों तथा कारणों को भली-भाँति समझें। यदि शिक्षक व्यवहार के स्रोतों को प्रभावित कर सकता है, तो वह आसानी से व्यवहार में भी परिवर्तन ला सकता है। चूँकि मनोविज्ञान के अध्ययन का विषय ‘व्यवहार’ ही है इसलिए शिक्षा तथा मनोविज्ञान का सम्बन्ध घनिष्ठ है। शिक्षा के द्वारा बालक के व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिये यह आवश्यक है कि बालक के बौद्धिक, सामाजिक तथा संवेगात्मक वातावरण का अध्ययन किया जाये। किन्तु ये सभी बाते मनोविज्ञान की विषय-सामग्री के अन्तर्गत आती हैं। अतः इनका अध्ययन उन शिक्षकों के लिए आवश्यक है जो कि शिक्षण कार्य से सम्बन्धित है। अतः मनोविज्ञान के ज्ञान के बिना सफल एवं पूर्ण शिक्षा संभव नहीं है।
(2) शिक्षा तथा मनोविज्ञान दोनों सामाजिक विज्ञान है- शिक्षा तथा मनोविज्ञान दोनों सामाजिक विज्ञान हैं अर्थात् दोनों का सम्बन्ध मनुष्य और उनके व्यवहारों के अध्ययन, सुधार, विकास आदि से है जिससे समाज की रचना होती है। शिक्षा समाजीकरण की एक प्रक्रिया है, मनोविज्ञान इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में सहायता प्रदान करता है। इसके अलावा दोनों का अध्ययन-क्षेत्र भी सामान्यतः एक ही है- व्यक्ति तथा समाज, इनके क्रिया-कलाप तथा क्रिया-विधि। एक सुप्रसिद्ध मनौविज्ञान का कथन है- “शिक्षा एक सामाजिक विज्ञान होने के नाते तथा बालक के मन की दीक्षा से सम्बन्ध रखने के नाते मनोविज्ञान सम्बन्धी अनुसंधानों के ताने-बाने से बुनी हुई है और इन्हीं पर निर्भर है कि वह क्या करें और कैसे।”
(3) मनोविज्ञान तथा सीखने की प्रक्रिया- शिक्षा मनोविज्ञान के अध्ययन से शिक्षक बालक को शैक्षिक परिस्थितियों को समझने का प्रयास करता है और इसके फलस्वरूप वह सीखने की प्रक्रिया को रोचक बनाता है। सीखने की प्रक्रिया के मूलभूत सिद्धान्तों तथा तथ्यों की जानकारी से शिक्षक बालकों को सीखने में सहायता प्रदान करता है। क्रो तथा क्रो ने मनोविज्ञान, शिक्षा तथा शिक्षा मनोविज्ञान के सम्बन्ध को इस प्रसंग में निम्नलिखित शब्दों में व्यक्त किया है- “मनोविज्ञान सीखने से सम्बन्धित मानव विकास के ‘कैसे’ की व्याख्या करता है, शिक्षा सीखने के ‘क्या’ को प्रदान करने की चेष्टा करती है, शिक्षा मनोविज्ञान सीखने के ‘क्यों’ और ‘कब’ से सम्बन्धित है।”
मनोविज्ञान ही हमें यह बतलाता है कि बालक की शिक्षा कब, कैसे और किस अवस्था में प्रारम्भ होनी चाहिए ? मनोविज्ञान का ज्ञान अध्यापक को यह अवगत कराना है कि सीखने की सर्वश्रेष्ठ विधियाँ तथा स्मरण करने की मितव्ययी विधियाँ कौन-कौन सी है? थकान के क्या कारण है? और उसको कैसे दूर किया जा सकता है? इस प्रकार हम देखते हैं- शिक्षा तथा मनोविज्ञान दोनों सीखने की प्रक्रिया से सम्बन्धित है।