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बिन पत्रकों तथा स्टोर्स लेजर खातों में अन्तर के कारण तथा स्टॉक के भौतिक जाँच की विधि

बिन पत्रकों तथा स्टोर्स लेजर खातों में अन्तर के कारण तथा स्टॉक के भौतिक जाँच की विधि
बिन पत्रकों तथा स्टोर्स लेजर खातों में अन्तर के कारण तथा स्टॉक के भौतिक जाँच की विधि
बिन पत्रकों तथा स्टोर्स लेजर खातों में अन्तर के कारण बताइए तथा स्टॉक के भौतिक जाँच की विधि बताइए।

बिन पत्रकों तथा स्टोर्स लेजर खातों में अन्तर- संग्रहागार की प्रत्येक वस्तु का लेखा दो स्थानों पर साथ-ही-साथ रखा जाता है— एक, कोठरी द्वारा बिन-पत्रकों में, दूसरे, स्टोर्स लेखपाल द्वारा स्टोर्स लेखाबही में इन दोनों के शेष सामान्यतया आपस में मिलने चाहिए, लेकिन यदि अन्तर पाया जाता है तो उसके निम्न कारण होते हैं-

1. त्रुटिपूर्ण खतौनी करना- खतौनी की गलती बिन-पत्रक में अथवा स्टोर्स खाते या दोनों में ही हो सकती है। खतौनी गलत बिन-पत्रक में अथवा गलत स्टोस खाते में या इसके गलत पक्षों में करने से शेषों में अन्तर आ जाता है।

2. खतौनी न करना- या तो बिन-पत्रक में या स्टोर्स खाते में से किसी एक में स्टॉक की प्रविष्टि न की जाय, तो अन्तर आना स्वाभाविक है। कभी-कभी ऐसा होता है कि दस्तावेज की प्रति स्टोर्स-लेखपाल के पास नहीं पहुँचती है तो वह सम्बन्धित खाते में प्रविष्टि नहीं कर पाता है जबकि कोठारी उस दस्तावेज के आधार पर बिन-पत्रक में प्रविष्टि कर लेता है।

3. शेष निकालने में हिसाबी त्रुटि।

4. ऐसी सामग्री व स्टॉक जो प्रदायकों का वापस किया जाना हो, यदि बिन-पत्रक में चढ़ा दिया गया हो तो खाताबाही से अन्तर पैदा हो जाता है।

उपर्युक्त प्रकार से अन्तरों को दूर करके बिन-पत्रकों व खाताबही व शेषों का मिलान किया जाता है।

स्टॉक की भौतिक जाँच (Physical Stock Verification)- बिन-पत्रकों व स्टॉक खातों के शेषों का मिलान करने के पश्चात् यह आवश्यक है कि उन शेष की संग्रहागार में उपस्थित वास्तविक स्टॉक से भौतिक जांच की जाय।

स्टॉक जाँच दो प्रकार की होती है-

  1. आवर्ती स्टॉक जाँच,
  2. सतत् स्टॉक जाँच।

(1) आवर्ती स्टॉक जाँच- इस प्रकार की जाँच निश्चित अवधियों पर की जाती है, आमतौर पर वर्ष में एक बार यानि लेखांकन वर्ष के अन्त में, ताकि स्टॉक का मूल्यांकन अन्तिम खाते व वार्षिक चिट्ठा बनाने के लिए किया जा सके। यदि यह जाँच वर्ष में दो या तीन अवधियों में की जाती है तो कारोबार की फुर्सत का समय देखकर की जाती है। इस जाँच के लिए कारखाना कार्य जाँच के दिनों में बन्द कर दिया जाता है और जाँच शीघ्रता से करनी पड़ती है। कारखाने का एक दिवस के लिए भी बन्द करना बहुत मँहगा पड़ता है। अतः यह पद्धति बड़ व्यवसायों को पसन्द नहीं आती है। दूसरे स्टॉक के खाने व चोरी चले जाने का भय अधिक रहता है क्योंकि जाँच लम्बी अवधि के बाद होती है।

यह पद्धति स्टॉक की उन मदों के लिए उपयुक्त है जो निरन्तर स्टॉक सूची प्रणाली में सम्मिलित नहीं हो पाते है, जैसे स्थल पर उपभोग्य स्टोर्स, खुले औजार व अतिरिक्त पुजें जो विभाग या कार्यशाला में पड़े हों, माप यन्त्र व औजार जो निरीक्षण कर्मचारियों के पास हों आदि।

(2) सतत् स्टॉक की जाँच – इस पद्धति में स्टॉक की जाँच वर्ष भर व्यवस्थित रूप में होती है। जाँच की योजना व प्रोग्राम इस प्रकार बनाये जाते हैं तथा गणना करने, मारने, तौलने व मदों की सूची बनाने का कार्य इस प्रकार नियाजित व वितरित किया जाता है कि समूचे स्टॉक की जाँच वर्ष पर्यन्त आराम से चलती रहती है। जाँच किये जाने वाले विशेष स्टॉक की सूचन कोठारी को उसी दिन दी जाती है जिस दिन जाँच की जानी होती है। कारखाने का कार्य जाँच की अवधि में सामान्य रूप से चलता रहता है। चूँकि जाँच का कार्य लगातार चलता रहता है, कम मूल्य की भारी वस्तुओं की जॉच वर्ष में एक या दो बार ही की जाती है।

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Anjali Yadav

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