पाठ्यक्रम में इतिहास का क्या स्थान है ? विवेचना कीजिए। अथवा पाठ्यक्रम में इतिहास के महत्त्व की विवेचना कीजिए।
विद्यालयी पाठ्यक्रम में इतिहास का स्थान अथवा महत्त्व विद्यालयी पाठ्यक्रम में इतिहास का स्थान अथवा महत्त्व को निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट किया गया है-
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(1) कर्त्तव्यनिष्ठ नागरिकों के निर्माण में सहायक-
देश की सारी शासन व्यवस्था शान्ति, स्थायित्व तथा प्रगति मूल रूप से देश के नागरिकों पर ही निर्भर करती है। कर्त्तव्यविमुख व्यक्तियों से सम्पन्न प्रजातन्त्रीय देश में किसी भी प्रकार की प्रगति और विकास की अधिक समय तक अपेक्षा नहीं की जा सकती। अधिक संख्या में अयोग्य नागरिकों के उपस्थित होने के कारण आज भारतीय जन-जीवन अत्यधिक अशान्त हो चुका है। सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्रों में अविरल रूप से चली आ रही विभिन्न जातिगत, दलगत, भाषा सम्बन्धित और साम्प्रदायिक समस्याओं ने राष्ट्र की एकता में विभिन्न अवरोध उत्पन्न कर दिये हैं। अतः वर्तमान परिस्थितियों में तो विशेष रूप से भारत जैसे विशाल भूभाग तथा विशाल आबादी वाले राष्ट्र में सुयोग्य नागरिकों के निर्माण में अत्यन्त आवश्यक है। भूतकालीन पराधीनता और पराधीनता से मुक्त (स्वतन्त्र) होने के लिए किये गये संघर्षशील प्रयासों से सम्बन्धित तथ्यों, भूतकालीन भारतीय संस्कृति के उज्ज्वलतम पक्षों और समाज व मनुष्य के कष्ट साध्य विकास से सम्बन्धित तथ्यों पर प्रकाश डालकर इतिहास छात्रों को यह अनुभूति कराने से सहायक सिद्ध होता है कि वह अपने राष्ट्र, समाज तथा संस्कृति के अस्तित्व, प्रगति तथा विकास के लिए स्वतः कर्त्तव्यनिष्ठा की दिशा में अग्रसर हों।
(2) अतीत से प्रेम उत्पन्न करने के लिए-
अतीत से प्रेम उत्पन्न होने पर ही छात्र अपनी सभ्यता और संस्कृति के महत्त्व को आत्मसात् कर सकते हैं और उसकी सुरक्षा, हस्तान्तरण और विकास में अपना योगदान दे सकते हैं। अतीत के सम्बन्ध में विश्वसनीयता और समग्रतायुक्त विवरण केवल इतिहास में ही उपलब्ध होता है एवं इसी कारण अतीत कालीन राष्ट्रीय इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों में अतीत के प्रति प्रेम उत्पन्न करने की सामर्थ्य निहित रहती । इतिहास में भूतकालीन महापुरुषों, विजेताओं और सन्तों आदि के ऐसे अनेक कार्यों का विवरण होता है जिनके कारण हमारे राष्ट्र की प्रगति तथा गौरव में अनुपम वृद्धि हुई और जिनके कार्यों के फलस्वरूप ही हम अपना अस्तित्व, वर्तमान युग में बनाये रखने में समर्थ हो सके। इस प्रकार की जानकारी निःसन्देह छात्रों को अपने अतीत की ओर उन्मुख करके उन्हें अपने अतीत के प्रति प्रेम प्रदर्शित करने के लिए विवश करती है और छात्र अपने अतीत का सम्मान करने के लिए उद्यत हो जाते हैं।
(3) सामाजिक क्षमताओं के विकास के लिए-
अपनी शारीरिक और मानसिक आवश्यकताओं की समयानुकूल पूर्ति के लिए व्यक्ति को सामाजिक इकाइयों पर आश्रित रहना ही पड़ता है। सामाजिक विकास या छात्रों में विभिन्न सामाजिक क्षमताओं, योग्यताओं और कौशलों का विकास करके, उन्हें समाज के समायोजन हेतु योग्य बनाया जा सकता है। छात्रों के समाजीकरण की इस प्रक्रिया में इतिहास किसी रूप में अपना विशिष्ट योगदान देता है।
विभिन्न सामाजिक इकाइयों के उद्भव, विकास तथा महत्त्व से परिचित कराकर छात्रों को सामाजिक सम्बन्धों को मजबूत बनाने और समाज के लिए योगदान करने के लिए प्रेरित करता है।
(4) भूतकाल के आधार पर वर्तमान का स्पष्टीकरण-
इसमें सन्देश नहीं है कि किसी भी विषय की उपयोगिता के अभाव में हम अधिक समय तक उस विषय को सार्थक महत्त्व प्रदान नहीं कर सकते हैं। यदि उपयोगिता ही किसी वस्तु, व्यक्ति, या किसी ज्ञान की शाखा के महत्त्व की कसौटी है, या उसके महत्त्व का प्रतिपादन करती है, तो इतिहास को सर्वप्रथम महत्त्व इसीलिए प्रदान किया जाता है और इसी कारण हम इतिहास में अपनी रुचि प्रकट करते हैं।
जॉन ड्यूवी के अनुसार, “हमारी रुचि इतिहास में इसलिए नहीं है कि वह अतीत के गौरव को बताता है, वरन् इसमें रुचि इसलिए है कि क्योंकि इसके द्वारा वर्तमान सामाजिक जीवन के भिन्न-भिन्न स्वरूपों और शक्तियों का स्पष्टीकरण किया जाता है, साथ-साथ यह हमें भविष्य के विषय में सोचने के लिए तैयार करता है।”
कार्ल, मूलर आगस्त के अनुसार, “इतिहास के द्वारा हम अपने काल की क्रियाओं का अर्थ लगा सकते हैं। यदि इतिहास नहीं होगा तो विद्यालय अध्ययन और अध्यापन बेकार है, क्योंकि इतिहास ही हमारे वर्तमान को स्पष्ट करता है।”
(5) समन्वयात्मक ज्ञान द्वारा मनोवैज्ञानिक विकास-
समन्वयात्मक ज्ञान के अभाव में न तो छात्रों को पर्याप्त जानकारी प्राप्त हो सकती है और न ही वे पर्याप्त ज्ञान को अपने जीवन का स्थायी अंग बनाने में सक्षम हो सकते हैं। विखण्डित रूप में प्रदत्त ज्ञान छात्रों की अवबोध क्षमता का विकास करने में बाधा उत्पन्न करता है। सुसम्बद्ध ज्ञान के अभाव में छात्र अपनी विभिन्न समस्याओं का निराकरण निकालने और सुसम्बद्ध और व्यापक ज्ञान के आधार पर उपयुक्त निष्कर्ष निकालने में भी असमर्थ रहते हैं। सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक एवं सांस्कृतिक आदि क्षेत्रों में घटित भिन्न-भिन्न भूतकालीन घटनाओं या मानवीय क्रिया-कलापों का सुसम्बद्ध विवरण प्रदान करके, न केवल छात्रों की जिज्ञासाओं को शान्त किया जा सकता है, अपितु व्यापक और सुसम्बद्ध अनुभवों के आधार पर सार्थक ज्ञान प्रदान करके, प्रदत्त ज्ञान को उनके जीवन का स्थायी अंग बनाया जा सकता है।
(6) राष्ट्रीय दृष्टिकोण से इतिहास का महत्त्व-
राष्ट्रीय प्रगति के अभाव में व्यक्ति या समाज की प्रगति की कल्पना नहीं की जा सकती। अतः इस दृष्टि से राष्ट्रीय अखण्डता, राष्ट्र-प्रेम, राष्ट्रीय जागृति आदि की भावनाओं का विकास आवश्यक है। इतिहास में निहित तथ्यों के आधार पर हमें यह ज्ञात होता है कि राष्ट्र की प्रगति अथवा अस्तित्व विभिन्न धर्मों, जातियों, वर्गों और राष्ट्र की वर्तमान स्थिति आदि के योगदानों का ही परिणाम है। भारतीय संस्कृति और सभ्यता के विकास एवं स्वतन्त्रता के महत्त्व का ज्ञान भी उन्हें इतिहास के द्वारा प्राप्त होता है। उसके द्वारा उनमें राष्ट्रीय प्रतीकों, राष्ट्रीय पर्वों आदि के प्रति सम्मानजनक दृष्टिकोण उत्पन्न होता है।
(7) छात्रों के मानसिक विकास में सहायक-
विद्यालय पाठ्यक्रम में इतिहास ही एकमात्र ऐसा विषय है जो छात्रों की बहुपक्षीय मानसिक शक्तियों के विकास में सहायक है।
के० डी० घोष के शब्दों में, “इतिहास के द्वारा छात्रों को एक विशेष प्रकार की मानसिक शिक्षा प्रदान की जाती है जो कि विद्यालय के अन्य किसी भी विषय के द्वारा प्रदान नहीं की जा सकती।”
हैपील्ड के शब्दों में, “इतिहास के अध्ययन से छात्र बहुत से धार्मिक, सामाजिक या राजनीतिक विवादास्पद प्रश्नों और समस्याओं के विषय में अपना मस्तिष्क स्थिर रखना सीख जाता है, अर्थात् उसमें उनको सुलझाने की क्षमता का विकास हो जाता है।”
(8) वर्तमान समस्याओं के स्पष्टीकरण और समाधान के लिए-
इतिहास में निहित विभिन्न तथ्यों के आधार पर न केवल भूतकालीन मानवीय क्रिया-कलापों का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है वरन् वर्तमान जीवन में उत्पन्न विभिन्न समस्याओं का समाधान भी सफलतापूर्वक किया जा सकता है। किसी समस्या के उद्गम कारणों और पूर्व-परिस्थितियों का ज्ञान अत्यधिक आवश्यक होता है। आधुनिक युग में व्याप्त अनेक समस्याओं, विषमताओं या जटिलताओं के उन्मूलन हेतु इतिहास का ज्ञान और भी आवश्यक है। इसके अतिरिक्त समस्याओं के उन्मूलन के लिए, जिस सजगता, चेतना, जागृति, उत्साह तथा निष्ठा की जरूरत होती है उसको विकसित करने में भी इतिहास का योगदान कम पड़ता प्रतीत नहीं होता है।
(9) अन्तर्राष्ट्रीय भावना के विकास के लिए-
आधुनिक युग में सम्पूर्ण राष्ट्र अपनी भौगोलिक सीमाओं को तोड़कर किसी न किसी रूप में परस्पर सम्बद्ध हैं। सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक एवं सांस्कृतिक आदि विविध क्षेत्रों में प्रत्येक राष्ट्र एक-दूसरे पर किसी न किसी तरह आश्रित है। इतिहास के माध्यम से छात्रों को राष्ट्रों के पारस्परिक योगदानों के सम्बन्ध में ज्ञान प्राप्त होता है। उसके द्वारा उन्हें यह ज्ञात होता है कि विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय व्यक्तियों द्वारा उनके राष्ट्र के लिए क्या योगदान किया गया है। विश्व के विभिन्न राष्ट्रों के सम्बन्ध में अन्योन्याश्रितता का यह भाव ही उन्हें परस्पर सहयोग करने, संकीर्ण राष्ट्रीय मनोवृत्तियों को त्यागने और विश्व संस्कृतियों के प्रति सम्मानपूर्ण दृष्टिकोण को विकसित करने में सहायक सिद्ध हो सकता है तथा उनमें अन्तर्राष्ट्रीय भावना को प्रस्फुरित, पुष्पित, पल्लवित और विकसित करता है।
(10) व्यक्तित्व और चरित्र का विकास करने के लिए-
व्यक्तित्व और चरित्र का विकास ही सफल जीवन व्यतीत करने के योग्य बना सकता है अतः इस उद्देश्य को भी शिक्षा मुख्य उद्देश्य के अन्तर्गत स्वीकार किया जाता है। इतिहास में भिन्न-भिन्न महापुरुषों, सन्तों, के प्रशंसकों आदि की जीवन शैली और कार्यों का वर्णन किया जाता है। इसके द्वारा छात्रों को इनकी जीवन शैली का अनुसरण करने और समाज कल्याण के लिए विशेष कार्य करने की प्रेरणा मिलती है।
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- विभिन्न स्तरों पर इतिहास शिक्षण के उद्देश्य प्राथमिक, माध्यमिक तथा उच्चतर माध्यमिक स्तर
- इतिहास शिक्षण के उद्देश्य | माध्यमिक स्तर पर इतिहास शिक्षण के उद्देश्य | इतिहास शिक्षण के व्यवहारात्मक लाभ
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- शिक्षा के वैकल्पिक प्रयोग के सन्दर्भ में एस० एन० डी० टी० की भूमिका
- राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (एन.सी.एफ.-2005) [National Curriculum Framework (NCF-2005) ]
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