इतिहास शिक्षण की कौन-कौन सी विधियाँ हैं ? उनमें से किसी एक विधि का वर्णन कीजिए।
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इतिहास शिक्षण की प्रमुख विधियाँ
इतिहास शिक्षण की कोई एक ही विधि ऐसी नहीं है जो उपयोग में लाई जाती रही हो या लायी जाती हो। बहुत-सी विधियाँ हैं जिनको शिक्षकगण अपनी स्वेच्छा से उपयोग में लाते हैं, किन्तु उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए। सर्वप्रथम उन्हें हर विधि को समझ लेना चाहिए फिर बालकों की आयु एवं स्तर के अनुकूल विधि को अपनाना चाहिए। इन विधियों में कहानी के विधि, जीवनी विधि, घटना वर्णन विधि, अध्ययन विधि, स्रोत विधि एवं समस्या विधि अथवा प्रोजेक्ट विधि प्रमुख रूप से आते हैं। अब हम इन सभी विधियों का एक-एक करके वर्णन करेंगे।
1. कहानी विधि (The Story Method)-
यह विधि इतिहास शिक्षण के अन्तर्गत सर्वोत्तम मानी जाती है किन्तु प्रारम्भिक स्तर पर ही। छोटे-छोटे बालकों के लिए यह विधि इसलिए उत्तम मानी जाती है, क्योंकि बालकों को कहानी सुनने का बड़ा शौक होता है और एक शिक्षक महापुरुषों की कहानियाँ सुनाकर ही उनको बहुत से ऐतिहासिक तथ्यों से परिचित करा सकता है। इसके अतिरिक्त प्रारम्भिक स्तर पर इतिहास भी कुछ ऐसा नहीं होना चाहिए जिसकी विषय सामग्री को कहानी का रूप दिया जा सकता हो । प्रो० एफ० आर० वर्ट्स० (F. R. Worts) के अनुसार, “Story or narrative should be the chief mode of sound के historical teaching up to the age of 13 plus.”
कहानियाँ बालकों की जिज्ञासा को बढ़ाती एवं कल्पनाशक्ति को विकास देती हैं। कहानी भी विशद् व्याख्यायुक्त शिक्षाप्रद होनी चाहिए। वास्तव में कहानी का मूल्य उसके कहने की रीति (Style) पर निर्भर करता है।
2. जीवनी विधि (The Biographical Method)-
यह विधि इस सिद्धान्त पर आधारित है कि बालकों को इतिहास का शिक्षण महापुरुषों की जीवन कथाओं के रूप में क्रमिक रूप से देना चाहिए।
आलोचना- सबसे पहला आक्षेप इस विधि पर यह लगाया जाता है कि यह विधि “Greatman Theory” की पोषक है। प्रजातंत्र सरकार में यह विधि अपनाना उचित नहीं है क्योंकि इसमें जनसाधारण की उपेक्षा की झलक मिलती है।
इसके अतिरिक्त दूसरा आक्षेप यह है कि यह विधि सामूहिक जीवन को नहीं पहचानती है। यह केवल अल्प महान विभूतियों के ही जीवन दर्शन पर प्रकाश डालती है।
है इन महान् व्यक्तियों की जीवनियाँ समाज के प्रत्येक पक्ष पर प्रकाश नहीं डालतीं। यह विधि केवल छोटे बच्चों के लिए उपयुक्त है। उच्च बालकों के लिए यह विधि बिल्कुल ही खिलौना है।
3. घटना वर्णन विधि (The Telling Method) –
इतिहास शिक्षण में इस विधि के अन्तर्गत इस बात पर जोर दिया जाता है कि इतिहास के शिक्षण में शिक्षक को प्रमुख घटनाओं एवं तत्त्वों को अवश्य ही कक्षा में बता देना चाहिए। ऐसे तत्त्वों की व्याख्या पूर्ण लगन एवं सतर्कता से होनी चाहिए। पुस्तकीय अध्ययन हमारे इस उद्देश्य की पूर्ति सम्यक् रूप से नहीं कर सकतीं।
“At other times it become necessary to evoke enthusiasm or whole hearted sanction or forceful condemnation.” इस कार्य की पूर्ति पाठ्य पुस्तकों के आधार पर नहीं हो सकती।
इस विधि के अन्तर्गत मिश्रित विधि ‘Mixed Method’ को भी उपयोग में लाया जा सकता है अर्थात् यदा-कदा शिक्षक प्रश्नोत्तर विधि को भी अपना सकता है।
इस विधि का सबसे बड़ा दोष यह है कि इसके द्वारा सभी शिक्षण कार्य का संचालन शिक्षक द्वारा ही होता है। बालक केवल मूक श्रोता की भाँति बैठे रहते हैं।
4. अध्ययन विधि (The Study Method) –
इस विधि के अनुसार शिक्षक को चाहिए कि वह बालकों में स्वाध्याय की प्रवृत्ति को जन्म दे जिससे कि वे प्रमुख ऐतिहासिक पुस्तकों को पढ़कर उनकी प्रमुख बातों को हृदयंगम कर सकें। पुस्तकें वास्तव में ज्ञानार्जन का एक सबसे प्रमुख तत्त्व होती हैं। इनके प्रति श्रद्धा उत्पन्न कराना शिक्षक का कर्त्तव्य होना चाहिए। इस विधि का सबसे बड़ा श्रेय इस बात में है कि यह विधि बालकों को आत्मनिर्भर बनाती है और स्वबुद्धि प्रयोग के लिए प्रेरित करती है। आगे चलकर उच्च स्तरों पर और विद्यालयों से निकलने के बाद तो उन्हें ही सब कुछ करना होता है। इस स्थिति में तो उन्हें कोई पथ-प्रदर्शक मिलता नहीं अतः यह आदत उनकी समस्त ऐसी समस्याओं को हल कर देती है।
यह विधि शिक्षा संस्थाओं में अधिक सफल हो सकती है यदि उनमें डाल्टन पद्धति का प्रचलन हो जाय। इसके अन्तर्गत हर विद्यार्थी को कुछ गृहकार्य दे दिया जायेगा और शिक्षक के आदेशानुसार उन्हें निश्चित अवधि में पूरा करना होगा।
5. स्त्रोत विधि (The Source Method)-
यह विधि ऐतिहासिक घटनाओं के तथ्यों के स्रोत पर आधारित होती है और माध्यमिक कक्षाओं के लिए उपयोगी होती है।
प्रारम्भिक स्तरों पर उपर्युक्त साधनों में कुछ अवश्य ही उपयोग में लाये जा सकते हैं। इनके उपयोग से वातावरण की सृष्टि होगी और उनका पाठ भी सजीव हो उठेगा।
माध्यमिक स्तर पर ऐसे अभ्यासों का निर्माण किया जाता है जिनसे उनको अध्ययन में प्रेरणा मिले, उनकी तर्क एवं विचार-शक्ति को विकास का अवसर मिले। वे स्वयं अपनी बुद्धि का उपयोग करते हुए मौलिक विचारधारा को हमारे सम्मुख लायें। ऐसे साधन बड़े ही उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं-
अब प्रश्न यह उठता है कि बालक इन साधनों को किस प्रकार उपयोग में लायें। इसके लिए साधन पुस्तिका (Source-book) की व्यवस्था होनी चाहिए। इस पुस्तिका में दी गई सूझ के अनुसार उन्हें साधनों को ऐतिहासिक ज्ञानार्जन के हितार्थ प्रयोग में लाना चाहिए।
इस विधि के अनुसार अन्वेषणात्मक कार्य माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक स्तरों पर सम्भव नहीं। यह तो केवल विश्वविद्यालयी स्तर पर सम्भव हो सकता है। माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक स्तरों पर तो बालकों के लिए उत्साहवर्धनार्थ साधन पुस्तकों का सहायक पाठन एवं अध्ययन ही पर्याप्त होगा। शिक्षक को चाहिए कि वह बालकों भ्रमण एवं अन्य ऐतिहासिक स्थानों, संग्रहालयों में ले जाकर खोज (Research) की प्रवृत्ति को उत्पन्न करे।
6. समस्या विधि अथवा प्रोजेक्ट विधि (The Problem and Project Method) –
यह विधि बालकों की विचार-शक्ति को जन्म देती है। बालकों में क्रियाशीलता आती है और परिस्थितियों का सामना करने की क्षमता भी उनमें उत्पन्न हो जाती है। इस विधि के अनुसार बालकों के सम्मुख कोई समस्या रख दी जाती है और उन्हें स्वयं अपनी बुद्धि एवं विचार शक्ति का उपयोग करते हुए उसका हल निकालना होता है। ऐतिहासिक विषय सामग्री को समस्याओं के रूप में ही बालकों के सम्मुख प्रस्तुत किया जाता है।
इस विधि द्वारा बालकों में अपने ज्ञान को व्यावहारिक रूप देने की क्षमता आती है। यह विधि उन्हें भविष्य में एक व्यावहारिक ज्ञान सम्पन्न प्राणी के रूप में तैयार करती है। बालकों में तर्कशक्ति का विकास होता है एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण को जन्म देना इस विधि का ध्येय है। इसके अतिरिक्त इससे बालकों में सामाजिकता आती है और उनमें आपस में सहानुभूति एवं सहृदयता की भावनाएँ एक-दूसरे के प्रति उत्पन्न होती हैं। बालकों में आत्मविवेचना की प्रवृत्ति जाग्रत होती है। शिक्षक विषय सामग्री को समस्याओं में परिवर्तित कर पाठ को इकाइयों में विभक्त कर देता है और बालकों को सामूहिक रूप से उनका हल निकालना पड़ता है, किन्तु यह विधि इतिहास शिक्षण के सभी पक्षों में नहीं अपनायी जा सकती। कुछ तत्त्वों को स्वयं ही पढ़कर ग्रहण करना होता है। ज्ञान एक शृंखलाबद्ध न होकर तितर-बितर रहता है, फिर भी काफी लाभदायक है।
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