इतिहास शिक्षण की वाद-विवाद विधि (Discussion Method) पर प्रकाश डालिए।
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इतिहास शिक्षण की वाद-विवाद विधि
नवीन शैक्षिक विचारधारा के प्रवर्त्तक विद्वानों का कथन है कि छात्र को मात्र श्रोता मानना अनुचित है। सीखने की प्रक्रिया में छात्र का सक्रिय रहना आवश्यक है। बालक को सक्रिय बनाये रखने हेतु वाद-विवाद पद्धति अति आवश्यक है। वाद-विवाद पद्धति में शिक्षक स्वयं या छात्रों की सहायता से किसी प्रकरण या समस्या का निश्चय किया जाता है। तत्पश्चात् छात्र आपस में करने के लिए स्वयं विषय सामग्री का संकलन करते हैं। वाद-विवाद पद्धति में छात्रों को अपने विचारों, भावों तथा अनुभवों व्यक्त करने की स्वतन्त्रता रहती है। वाद-विवाद व्यक्तिगत या सामूहिक दोनों ही हो सकता है। वाद-विवाद विधि में शिक्षक छात्रों को पथ-प्रदर्शन करता है। जब छात्र वाद-विवाद करते समय संवेगात्मक से प्रभावित होकर विषयान्तर हो जाते हैं तो शिक्षक अपने अध्ययन के आधार पर छात्रों को नियन्त्रित करने का प्रयास करता है।
जेम्स एम० ली० ने वाद-विवाद की परिभाषा इस प्रकार की है- “वाद-विवाद एक शैक्षिक सामूहिक क्रिया है जिसमें शिक्षक तथा छात्र सहयोगी रूप से किसी समस्या या प्रकरण पर बातचीत करते हैं।”
जब वाद-विवाद प्रारम्भ हो जाये तो शिक्षक का कर्त्तव्य है कि वह आवश्यकता के अनुरूप कठिन बातों की व्याख्या करता रहे। वाद-विवाद को अधिक उपयोगी बनाने के लिए आवश्यक है कि वह सम्पूर्ण कक्षा को कई भागों में विभाजित कर दे तथा प्रत्येक वर्ग के कार्य संचालन हेतु एक-एक नेता चुन दे। प्रत्येक वर्ग के नेता का यह कर्त्तव्य होगा कि वह सर्वप्रथम अपने वर्ग का प्रतिवेदन प्रस्तुत करे। शिक्षक इन्हीं प्रतिवेदनों के आधार पर वाद-विवाद कराता है। नागरिकशास्त्र के अन्तर्गत नागरिकों की विभिन्न समस्याओं का अध्ययन किया जाता है; जैसे निर्धनता, स्त्रियों की हीन दशा तथा सुरक्षा समस्या । वाद-विवाद प्रतियोगिता के द्वारा छात्र तार्किक ढंग से इन समस्याओं के समाधान हेतु विचार प्रस्तुत करते हैं अगर कहीं कोई संदेह उत्पन्न होता है तो शिक्षक निराकरण कर देता है।
वाद-विवाद विधि के गुण
- वाद-विवाद पद्धति के द्वारा छात्र क्रियाशील बने रहते हैं।
- छात्रों की निर्णय-शक्ति, कल्पना-शक्ति और तर्क-शक्ति का विकास इस पद्धति द्वारा आसान हो जाता है।
- छात्र मिल-जुलकर कार्य करने की ओर प्रेरित होते हैं।
- छात्रों में सामुदायिकता की भावना उत्पन्न होती है।
- यह छात्रों में स्वस्थ प्रतियोगिता की भावना का विकास करती है।
- वाद-विवाद पद्धति में छात्रों में विचारों की क्रमबद्धता, तारतम्यता तथा अभिव्यंजना शक्ति का विकास करती है।
- यह छात्रों में सहयोग, सहानुभूति और सहिष्णुता की भावना का विकास करती है।
- छात्रों को विषय-वस्तु का चयन करने और उसको संगठित करने की योग्यता प्रदान करती है।
वाद-विवाद विधि के दोष
- इस विधि से कुछ ही छात्र लाभान्वित होते हैं तथा शेष निष्क्रिय श्रोता ही रह जाते हैं।
- निरर्थक और अनुपयोगी वाद-विवाद में पड़कर अमूल्य समय नष्ट होने की सम्भावना रहती है।
- लज्जाशील एवं पिछड़े बालक इस विधि से प्रगति नहीं कर पाते हैं।
- छोटी कक्षाओं के लिए यह विधि अव्यावहारिक है।
- इस विधि से मूल्यांकन करने में व्यक्तिगत राग-द्वेष और पक्षपात की सम्भावना हमेशा बनी रहती है।
- अप्रशिक्षित और अकुशल अध्यापक वाद-विवाद का संचालन ठीक प्रकार से नहीं कर पाते।
- इस विधि से सम्पूर्ण पाठ्यक्रम समय के अन्तर्गत समाप्त नहीं हो पाता है।
- अनेक वाद-विवाद में विषयान्तर हो जाता है।
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