B.Ed Notes

पंचकोष की परिकल्पना

पंचकोष की परिकल्पना
पंचकोष की परिकल्पना

पंचकोष की परिकल्पना का वर्णन कीजिये।

पंचकोष की परिकल्पना 

1. अन्नमय कोष : अन्नमय कोष सबसे बाहरी परत है। इसको मुख्यतः उस भोजन (अन्न) से पोषण मिलता है जिसे ग्रहण करते हैं इसलिए इसे अन्नमय कोष कहा जाता । यह शरीर भौतिक स्तर पर कार्य करता है। यह हमारे स्थूल शरीर को निरूपित करता है जिसका आंकलन भौतिक साधनों से किया जा सकता है। इस कोष में हमारे शरीर के वे अंग और तंत्र होते हैं जिन्हें शरीर रचना और शरीर विज्ञान की सहायता से जाना जा सकता है।

यह आवश्यक है कि हम इस शरीर को स्वस्थ रखें क्योकि केवल स्वस्थ शरीर में ही अन्य कोषों का कार्य सुगमता से हो सकता है। आंतरिक स्वच्छता अभ्यास (षट्कर्म) एवं योगासन स्थूल शरीर के विकास के लिए मुख्य प्रक्रियाएं हैं (नागरत्न, 2005)। अन्नमय कोष के लिए लचीलापन, तनावमुक्ति, शक्ति, रंगत, संतुलन व सामान्य उपयुक्तता प्राप्त करने के लिए आसन एक प्रभावी साधन हैं (विवेकानन्द, 2005)।

2. प्राणमय कोष :- प्राणमय कोश स्थूल शरीर से ढका हुआ है और इसका आकार स्थूल शरीर की ही भांति है। इसमें जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण प्राण (जैव ऊर्जा) सन्निहित है। हम इस कोष के कारण ही जीवित हैं। जीवन की व्युत्पत्ति इसी शरीर से होती है और हमारी ज्ञानेन्द्रियां – आंखें, कान, जीभ, नाक व त्वचा अपने कार्य इस शरीर के द्वारा ही करतीं हैं।

प्राणमय कोष हमारे स्थूल शरीर का आधार है। हम सब जानते हैं कि प्राण के बिना हमाउ स्थूल शरीर निर्जीव हो जाता है। इस कोष में नाडियां, चक्र व विभिन्न प्रकार के प्राण (उदान, प्राण, समान, अपान व व्यान) होते हैं। प्राणों का प्रवाह नाडियों (ऊर्जा वाहिकाओं) के द्वारा होता है। कुल 72000 नाड़ियां बताई गई हैं परंतु मुख्य नाडियां हैं पिंगला, इडा व सुषुम्ना (विवेकानंद 2005)। प्राणमय कोष तक प्राणायाम के द्वारा पहुंचा जा सकता है (नागरत्न 2005 ) ।

इस कोष से हमारा शारीरिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है। यह शरीर अन्नमय कोष (स्थूल शरीर) एवं मनोमय कोष (मानसिक शरीर) के बीच की कड़ी है।

3. मनोमय कोष : यह प्राणमय कोष (ऊर्जा शरीर) के अंदर की ओर होता है। इस कोष का संबंध हमारे भावनात्मक तथा संज्ञानात्मक व्यवहार से होता है, जिसमें भावनाएं, संवेदनाएं, सहज-प्रवृत्तियां, इच्छाएं व सुरक्षा व खतरे से बचाव जैसी विभिन्न आवश्यकताएं सम्मिलित हैं। प्यार, घृणा, डर, उदासी, क्रोध, अरुचि हमारे ये सब भाव इस कोष से ही संबंधित हैं।

इसके साथ मनोमय कोष में मनस्, अहंकार, स्मृति व निचले स्तर की तार्किक बुद्धि भी सम्मिलित होती है। अनुभूतिमूलक ज्ञान, विचार एवं विवेचनात्मक व निगमनात्मक, दोनों प्रकार की विवेकबुद्धि भी इसी कोष का भाग हैं। यहां, बुद्धि (बुद्धि-मन) भावनाओ व आदतों के दबाव में आ सकती है अथवा यह आवेग और पुरानी योजनाओं से मुक्त हो स्वतंत्र निर्णय कर सकती है। इंद्रियों से प्राप्त जानकारियों के प्रति हमारी अनुक्रिया इस कोष से ही नियंत्रित होती है (विवेकानदं 2005)। दिन प्रति दिन के कार्यकलापों में तर्कसंगत चिंतन के द्वारा बेहतर निर्णय लेने में मनोमय कोष मानस (मन) की सहायता करता है (राम 1976)। इस स्तर पर व्यक्ति दिन-प्रतिदिन के जीवन में प्रमाणों और तर्क-वितर्क के आधार पर निष्कर्ष निकालने की ओर प्रवृत्त होता है। संक्षेप में, यह कहा जा सकता है कि भावनात्मक स्तर पर हमारे क्रिया-कलापों व निचले स्तर की बुद्धि से मनोमय कोष का संबंध होता है।

यह कोष बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि हमारा दिन-प्रतिदिन के क्रियाकलाप मनोमय कोष से ही निर्धारित होते है। यदि कोई व्यक्ति आवेगशील है, अपनी भावनाओं को नियंत्रित नहीं कर पाता तो उस व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व के भावनात्मक में सुधार लाने के लिए इस कोष पर काम करना चाहिए।

यह कोष प्राणमय कोष (ऊर्जा शरीर) और विज्ञानमय कोष (प्रज्ञा शरीर) के बीच की कड़ी है। इस कोष या शरीर का अध्ययन ध्यान को अंतर्मुखी करके मन की कार्यप्रणाली पर केन्द्रित करके किया जा सकता है। श्वास को नियंत्रित करके मन पर ध्यान केन्द्रित किया जा सकता है। ध्यान व सत्संग का प्रयोग इस कोष के विकास के लिए किया जा सकता है। क्रोध, घृणा, डर आदि अपने नकारात्मक भावनाओं की अभिव्यक्ति से व संरचनात्मक तरीकों जैसे संगीत, खेलकूद व क्रीडा, कहानियों, लेखों आदि से इस कोष को स्वस्थ बनाया जा सकता है।

4. विज्ञानमय कोष (प्रज्ञा शरीर): यह मनोमय कोष के अंदर की ओर होता है। इसमें उच्चस्तरीय बुद्धि का समावेश होता है जिसका संबंध विभेद करने व अपने बारे में सच्ची समझ से होता है। यह कोष अन्य शरीरों के भावावेशों से प्रभावित नहीं होता (राम तथा अन्य 1976)। यह शुद्ध बुद्धि का क्षेत्र है। यह स्तर विचार और तर्क से परे है। इस स्तर पर बुद्धि भावनाओं, आदतों, इंद्रिय-प्रभावों, प्रत्यक्ष ज्ञान या निजी लाभ व संचालित होती है। यदि कोई व्यक्ति सही और गलत में अंतर कर सकता है तो कहा जा सकता है कि वह व्यक्ति ज्ञानमय कोष पर काम कर रहा है।

विज्ञानमय कोष भनोमय कोष (मानसिक शरीर) व आनंदमय कोष (आनंद शरीर) के बीच में कड़ी बनता है। निचले स्तर के तीन कोषों की बाधाओं को दूर करके और उनसे अपने जुड़ाव को कम करते हुए उन पर काम करके हम इस कोष तक पहुंच सकते हैं। एक और मार्ग है अच्छी गतिविधियों में लगना और उच्चतर स्तर पर कार्यरत व्यक्तियों जैसे विचारकों, आनदं मग्न व्यक्तियों, योगियों जैसे व्यक्तियों से जुड़ना। नए मार्गों का अनुसंधान, और ज्यादा सीखना और अच्छे कार्यों को सम्पन्न करने आदि से इसको विकसित करने में सहायता मिलती है (विवेकानदं 2005)। यौगिक मार्ग की समस्याओं को समझने और उनके विश्लेषण से इस कोष को विकसित किया जा सकता है।

5. आनंदमय कोष : आनंदमय कोष सर्वाधिक सूक्ष्म शरीर है। यह विशुद्ध उर्जा या आत्मा, जो हम सबका परम सत्य हैं, के घनिष्ठ संपर्क में रहता है। आनंदमय काष आत्मा के आनंदमय स्वरूप को निरूपित करता है जो शांति, प्रेम व परमानदं के शब्दातीत अनुभव से होता है। यह कोष उन लोगों में सक्रिय होता है जो निःस्वार्थ प्रेम से परिचालित होते हैं। इस स्तर पर सक्रिय व्यक्ति आनंद की स्थिति में रहता है। वह किसी बाहरी उकसावे या घटना या वस्तु से प्रभावित नहीं होता। इस स्तर पर व्यक्ति पूर्ण मानसिक समरसता की स्थिति में, यहां तक कि बुद्धि से भी परे, रहता है। परमानंद की इस स्थिति में रहने वाले व्यक्ति के लिए तार्किकता या अनुभूतिजन्य अनुभवों का कोई अर्थ नहीं रह जाता।

सामान्यतः हम इस कोष तक नहीं पहुंच पाते क्योंकि हम निचले स्तर के क्रिया कलाप में लिप्त रहते हैं और अन्य कोषों से जुड़े रहते हैं (विवेकानंद, 2005)। हर परिस्थिति में प्रसन्न रहने का अभ्यास करके व निष्काम कर्म करके हम इस कोष तक पहुंच सकत हैं (नागरत्न, 2005)। यदि हम गंभीरता से विचार करें तो पाएंगे कि समग्र व्यक्तित्व के लिए सभी पांच शरीर महत्वपूर्ण हैं।

यदि हम आत्मा को-व्यक्तित्व के मर्म को- विकसित करना चाहते हैं तो सभी शरीरों में समन्वय होना चाहिए व सभी पर पर्याप्त ध्यान दिया जाना चाहिए। पंचकोष की परिकल्पना उन सभी आयामों को द्योतित करती है और समग्र व्यक्तित्व के विकास के लिए पांचों शरीरों के समन्वय पर बल देती है।

IMPORTANT LINK

Disclaimer

Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: targetnotes1@gmail.com

About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment