भूगोल के विकास में सम्भववाद के योगदान की समीक्षा कीजिये।
भूगोल में सम्भववाद की विचारधारा का जन्म उस समय हुआ जब मानव ने अपने बौद्धिक, चातुर्य और वैज्ञानिक तकनीकी के विकास के आधार पर प्रकृति प्रदत्त संसाधनों का उपयोग अपनी पसन्द के आधार पर करने लगा। इससे पूर्व वह वातावरण के पराधीन था। संसाधनों के चयन में उसको पसंद के अनुसार चयन का अधिकार नही था।
बीसवीं शताब्दी तक उत्तरी अमेरिका, यूरोप आदि देशों में संसाधनों की अधिकता तथा मानव संसाधन के गुणात्मक सुधार के परिणामस्वरूप आर्थिक विकास हुआ और इसके परिणामस्वरूप लोगों का जीवन स्तर ऊँचा उठा। प्रकृति पर विजय के फलस्वरूप निश्चयवाद की विचारधारा कमजोर पड़ने लगी तथा मानव का आत्मविश्वास बढ़ने से सम्भववाद की विचारधारा बल पकड़ने लगी।
सम्भववाद की विचारधारा की पुष्टि में यहाँ कुछ उदाहरण प्रस्तुत करना उपयुक्त होगा। गेहूँ की कृषि एक निश्चित अक्षांश के उत्तर में प्रतिकूल जलवायु दशाओं के कारण करना सम्भव नहीं था लेकिन साइबेरिया और उत्तरी अमेरिका में उत्तर की और गेहूँ की खेती का विस्तार मानव की वातावरण पर विजय का उदाहरण है। इसी प्रकार रबड़ दक्षिणी अमेरिका के भूमध्यरेखीय प्रदेश की प्राकृतिक उपज है लेकिन दक्षिण पूर्वी एशिया आज रबड़ के उत्पादन में प्रमुख उत्पादक बन गया है।
यदि हम आदिम जातियों का उदाहरण ले तो ज्ञात होगा कि समान वातावरण होने पर भी लोगों की क्रियाओं, खान-पान, वेश-भूषा में अन्तर पाया जाता है। कांगो, इण्डोनेशिया और ब्राजील में समान भौगोलिक दशाएँ होने पर भी वहाँ के निवासियों के सांस्कृतिक विकास में काफी भिन्नता है । इण्डोनेशिया के लोगों ने इतना विकास कैसे किया। इससे स्पष्ट है कि मानव क्रियाएँ केवल वातावरण द्वारा ही नियंत्रित नही होती है।
यही स्थिति उद्योग और व्यवसायों पर भी लागू होती है। ये अब पूर्णतः वातावरण पर ही निर्भर नही है। लोगों की पसंद और चयन प्रमुख हो गया है। उदाहरण के लिए डेनमार्क में पहले गेहूँ पैदा किया जाता था लेकिन बाद में अपनी पसन्द का पशु पालन व्यवसाय प्रारम्भ किया। इसी प्रकार इंग्लैण्ड में गेहूँ की खेती को त्यागकर उद्योगों के विकास को पसन्द किया। कैलीफोर्निया में आदिवासियों ने कभी भी अंगूर या रसदार फलों की खेती करना प्रारम्भ नही किया। लेकिन बाद में यूरोपीय लोग जब वहाँ जाकर बस गए तो अंगूर की खेती प्रारम्भ की। आज विश्व में कैलीफोर्निया अंगूर उत्पादन में प्रमुख स्थान रखता है। स्पष्ट है कि प्राकृतिक वातावरण विभिन्न प्रदेशों में अनेक सम्भावनाएँ प्रस्तुत करता है। लेकिन मानव उनमें से अपनी पसन्द के अनुसार चयन करके अपनी जीविका को निश्चित करता है। सम्भववाद से आशय मानव द्वारा प्रस्तुत सम्भावनाओं में से किसी एक का चयन करके आर्थिक विकास करना है।
सम्भववाद के जन्मदाता फ्रांसीसी विद्वान थे जिन में फेक्रे, ब्लॉश, बूंश, डिमाजिया का नाम उल्लेखनीय है। अमेरिकन भूगोलवेत्ता ईसा बोमेन और कार्ल सावर ने भी सम्भववाद का समर्थन किया।
फेब्रे प्रथम भूगोलवेत्ता थे जिन्होंने सम्भववाद शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम किया। उसने प्राकृतिक वातावरण के स्थान पर मानव को अधिक महत्व दिया। उसने लिखा है कि कही आवश्यकताएँ नही है सब ओर सम्भावनाएँ है, मानव उनके स्वामी के रूप में निर्णायक है।
ब्लास का है कि मनुष्य एक क्रियाशील प्राणी है। वह अपने वातावरण का उपयोग अनुभव के आधार पर करता है। वातावरण के कुछ भागों पर उसका नियंत्रण है और कुछ पर नही है। उसके मतानुसार मनुष्य क्रियाशील भी है और निष्क्रिय भी है।
बूंस का कहना है कि मनुष्य को अपने वातावरण में रहकर कार्य में संलग्न रहना पड़ता है परन्तु इसका यह अर्थ नही है कि वह वातावरण का दास है। मनुष्य सामान्य नियम से मुक्त नही रह सकता है लेकिन उसकी समस्त क्रियाएँ पूर्व निश्चित नहीं होती है।
किरचॉफ के अनुसार मनुष्य कोई स्वचालित मशीन नही है। जिसकी कोई कामना या इच्छा नही होती है। उसके जन्मस्थान की परिस्थितियाँ कभी उसे एक दब्बू और कभी भिन्न प्रकार के शिष्य के रूप में पाती है।
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