भूगोल शिक्षण में व्याख्यान विधि के गुण व दोषों की विवेचना कीजिये।
व्याख्यान विधि अत्यन्त प्राचीन है। भारत में इसका प्रयोग आश्रम व्यवस्था के समय से चल रहा है। यूरोपीय देशों में इसका प्रयोग मध्य काल से प्रारम्भ हुआ। इस विधि के अन्तर्गत शिक्षक किसी एक पाठ्यांश की व्याख्यान द्वारा विस्तृत विवेचना करता हैं तथा छात्र अपना ध्यान व्याख्यान पर केन्द्रित कर ज्ञानार्जन करते हैं। इस विधि में छात्र श्रोता मात्र रहते हैं और कोई भी क्रियात्मक कार्य नहीं करते हैं। बिनिंग और बिनिंग के अनुसार अधिक छात्रों वाली कक्षा में प्रयोग की जाने वाली यही एक मात्र सरल विधि हैं। निःसन्देह भारत जैसे देश में इसी कारण इसका व्यापक प्रयोग होता है।
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व्याख्यान विधि के गुण
व्याख्यान विधि में निम्नलिखित गुण पाये जाते हैं-
- व्याख्यान विधि छात्रों में तर्क शक्ति का विकास करती हैं।
- व्याख्यान विधि से विषय वस्तु को अधिकतम रूप में स्पष्ट किया जा सकता हैं।
- व्याख्यान विधि से शिक्षण करने पर समय और श्रम दोनों की बचत होती हैं।
- अच्छी तरह तैयार व्याख्यान छात्रों में विषय-वस्तु के प्रति रुचि पैदा करता हैं।
- नवीन प्रकरण, पाठ योजना या इकाई की प्रस्तावना तैयार करने के लिए यह उपयुक्त विधि हैं।
- व्याख्यान विधि छात्रों के उच्चारण दोष को दूर करने में सहायक हैं।
- व्याख्यान विधि में शिक्षक विषय-वस्तु को अपनी व्याख्या, हावभाव तथा आचरण द्वारा अधिक स्पष्ट कर सकता है।
- व्याख्यान के समय छात्रों से प्रश्न पूछकर उनको सक्रिय बनाया जा सकता
व्याख्यान विधि के दोष
- व्याख्यान विधि में छात्र केवल श्रोता मात्र बनकर रहते हैं।
- व्याख्यान पद्धति में विषय के सैद्धान्तिक ज्ञान पर बल दिया जाता है। करके सीखने के सिद्धान्त की अवहेलना होती है।
- ज्ञान का क्रिया से सम्बन्ध न होने से भाषण विधि द्वारा अर्जित ज्ञान अधिक स्थायी नहीं होता है।
- छात्र इतनी अवधि तक ध्यान केन्द्रित करने में असफल रहते हैं।
- इस विधि में छात्रों मौलिक चिन्तन करने की प्रेरणा का अभाव रहता
- कक्षा में शिक्षण क्रिया प्रभावहीन रहती है।
- इसका उपयोग उच्च कक्षाओं में ही सम्भव है।
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