सामाजिक विज्ञान का शिक्षणशास्त्र एवं शिक्षण सामग्री चयन पर टिप्पणी लिखिये।
सामाजिक विज्ञान का शिक्षणशास्त्र
यह पाठ्यक्रम प्रांत के परिवेश, आधारभूत शैक्षिक ढांचे और उपलब्ध संसाधन, प्रांत के गौरवशाली अतीत एवं वर्तमान शैक्षिक जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाया गया है। पाठ्यक्रम में विषय-वस्तुओं के चयन में व्यावहारिकता एवं मानसिक तथा सामाजिक परिवेश का भी ध्यान रखा गया है। सामाजिक विज्ञान के तहत इतिहास, भूगोल, समाजशास्त्र, राजनीतिशास्त्र तथा अर्थशास्त्र को स्थान दिया गया है।
इतिहास विषय में शिक्षक को पोषण काल से लेकर स्वातंत्रायोत्तर भारत तक की जानकारी रखना आवश्यक है क्योंकि स्थानीय उदाहरणों के साथ इसकी गहन चर्चा छात्रों के बीच की जानी है। इन सभी पाठों के माध्यम से ‘बच्चों में इतिहास की क्रमबद्ध समझ, कल्पना तथा तर्क-शक्ति का विकास कैसे होगा’ इस बात की समझ शिक्षकों को होनी चाहिए। अतएवं वर्तमान पाठ्यक्रम में उपर्युक्त सभी बातों को ध्यान में रखा गया है।
समाज एवं राजनीति की जानकारी विभिन्न परिस्थितियों में सामंजस्य बैठाने में सहायक सिद्ध होती है। वर्तमान पाठ्यक्रम के विषयवस्तु शिक्षकों को इस बात की पूर्व मानसिक तैयारी करने में सहायता प्रदान करेंगे। इससे वे छात्रों से सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक ताने-बाने पर एक संवाद बना पाएंगे। प्रारंभ काल से ही धरातल एवं उसकी विभिन्नताएं मानव के आकर्षण व जरूरत का केंद्र रही है। सौरमंडल की विविधता, बदलते मौसम, प्राकृतिक आपदा, प्राकृतिक सौंदर्य आदि ने मनुष्य को स्वतंत्र चिंतन करने, समझने तथा तर्क द्वारा सही निष्कर्ष पर पहुंचने को बाध्य किया है। इस पाठ्यक्रम में भौगोलिक विशेषताओं एवं विधिताओं का उल्लेख शिक्षकों की इस सोच को बढ़ाने में मदद करेगा। इससे वे विषय-वस्तु बच्चों की सोच एवं तार्किक शक्ति को बढ़ाने में मदद करने के साथ-साथ सच्चाई की तह तक पहुंचने की प्रवृत्ति को बढ़ाएंगे। ज्ञान विस्तार एवं ज्ञान के विस्फोट के इस युग में शिक्षक की भूमिका काफी संवेदनशील है। बच्चों की जरूरतों के संदर्भ और दुनिया के बदलते परिवेश में वे अपने आपको अनुकूलित कर सकें इसका भी प्रयास इस पाठ्यक्रम में किया गया है।
आर्थिक बदलाव के परिणामस्वरूप सभी लोगों की सोच एवं मूल्यों में काफी परिवर्तन हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में अर्थशास्त्र के मूलभूत उद्देश्य ज्ञानवर्द्धन के साथ-साथ ऐसी आलोचनात्मक समझ का विकास करना भी है जो आर्थिक समस्याओं को समझने, उसका हल करने तथा देश के आर्थिक पुनर्निर्माण में सक्रिय रूप से भाग लेने की क्षमता पैदा करे।
सामाजिक विज्ञान शिक्षण के क्रम मुख्य तौर पर निम्न शिक्षण विधियां अपनायी जाती हैं। एक अध्यापक के लिए यह जरूरी है कि वह इन विधियों और उनकी सीमाओं के संदर्भ में एक समीक्षात्मक समझ रखें।
कथात्मक विधि, निर्देशन योजना निर्माण इकाई योजना एवं पाठ-योजना की तैयारी स्रोत विधि की तरह सामाजिक विज्ञान का शिक्षण, नक्शा की विधि की तरह प्रयोग, परियोजना विधि, क्षेत्रीय विधि, समस्या समाधान विधि, क्षेत्र भ्रमण, मौसम चार्ट का निर्माण, रिकॉर्ड रखना, क्षेत्रीय अध्ययन, आंकड़ों का संकलन, सर्वे, फील्ड ट्रीप (स्थानीय एवं अन्य) योजना-निर्माण एवं प्रतिवेदन। अवलोकन विधि, केस स्टडी, द्विपक्षीय प्रश्नोत्तर विधि, नाटक विधि, सतत् अभ्यास रीति, वृत्त चित्र, उदाहरण रीति, साक्षात्कार विधि, प्रकृति अध्ययन, समूह शिक्षण विधि।
शिक्षण सामग्री के चुनाव को लेकर शिक्षक को न सिर्फ सतर्क रहना होता है बल्कि नियमित रूप से रचनात्मक सोच के आधार पर नए व स्थानीय सामग्रियों के निर्माण, संग्रह व चुनाव की जरूरत होती है। कुछ महत्त्वपूर्ण शिक्षण सामग्री निम्न हैं-
- ऐतिहासिक स्थलों का शिक्षायी प्रयोग और बुजुर्ग का अनुभव को जानना।
- मानचित्र प्रकार एवं पठन, रेखाचित्र, विद्यालय का मानचित्रण, स्थानीय एवं अन्य मानचित्र, मानचित्र के सार तत्वों का उपयोग
- ग्लोब-ग्लोब के प्रकार, ग्लोब का शिक्षण में प्रयोग चार्ट, पोस्टर, कार्टून, फोटोग्राफर, रेखीय, उपकरण एवं इसका उपयोग।
- फिल्म, टेपरिकार्डर, वी.सी.आर., वी.सी.डी., कम्प्यूटर का उपयोग।
- चट्टान, मिट्टी एवं खनिज का संकलन
- श्यामपट कार्य एवं रेखांकन कौशल
- अखबार की कतरनें, पुरानी पत्रिकाएं, फिल्म इत्यादि
- रिकॉर्ड किए गए समाचार एवं अन्य सामग्रियां
- चुनावी घोषण पत्र एवं बुलेटिन
- तथ्य एवं आंकड़े
- विभिन्न प्रकाशकों की विषय से संबंधित पुस्तकें एवं पुरानी पाठ्य पुस्तकें
- सरकार द्वारा प्रकाशित विभिन्न सूचना युक्त पैम्फलेट, किताबें ।