अल्फ्रेड मार्शल का जीवन परिचय
जन्म : | 26 जुलाई, 1842 |
जन्म स्थान | ब्रिटेन |
मृत्यु : | 13 जुलाई, 1924 |
मार्शल ने मानव कल्याणकारी अर्थशास्त्र का मार्ग प्रशस्त करते हुए अपनी विश्वप्रसिद्ध पुस्तक ‘प्रिंसीपल्स ऑफ पॉलिटिकल इकोनॉमी’ में ‘आपूर्ति और मांग’, ‘उपयोगिता’ तथा ‘उत्पादन लागत’ के सिद्धांतों को मिलाकर एक समन्वित अर्थशास्त्रीय सिद्धांत का प्रतिपादन किया।
ब्रिटेन में जन्मे मार्शल अपने समय के ऐसे दिग्गज अर्थशास्त्री थे, जिन्होंने एडम स्मिथ के समय से चली आ रही आर्थिक धारणाओं को बदल डाला। 1890 में जब मार्शल की पुस्तक ‘प्रिंसीपल्स ऑफ इकोनॉमिक्स’ प्रकाशित हुई तो अर्थशास्त्र की दुनिया में तहलका मच गया। इससे पूर्व, अर्थशास्त्रियों ने धन को साध्य मान लिया था। सर्वप्रथम मार्शल ने धन की अपेक्षा ‘मानव कल्याण’ को अधिक महत्व दिया। मार्शल ने निःसंकोच घोषित किया कि ‘धन’ मनुष्य के लिए है, न कि मनुष्य ‘धन’ के लिए। अर्थशास्त्र के अध्ययन में मनुष्य के भौतिक कल्याण पर बल देते हुए मार्शल ने अर्थशास्त्र को इस प्रकार से परिभाषित किया- ‘अर्थशास्त्र में मानव जीवन के साधारण व्यापार संबंधी कार्यों का अध्ययन किया जाता है। यह व्यक्तिगत तथा सामाजिक क्रियाओं के उस भाग की जांच करता है, जिसका निकट संबंध भौतिक साधनों की प्राप्ति तथा उसके उपयोग से है, जो कल्याण के लिए आवश्यक है।’ मार्शल अर्थशास्त्र को विज्ञान के साथ-साथ कला भी मानते थे। उनका कहना था कि अर्थशास्त्र में आर्थिक घटनाओं का क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है, इसलिए वह वास्तविक विज्ञान है। अर्थशास्त्र चूंकि मानव कल्याण के आदर्शों को व्यावहारिक रूप प्रदान करता है, इसलिए वह कला भी है। उपयोगिता को मापने का गणनावाचक दृष्टिकोण देते हुए मार्शल ने कहा, ‘किसी वस्तु की इकाई के उपभोग से वंचित रहने की अपेक्षा उस वस्तु की इकाई के लिए जितना मूल्य देने की तत्परता रहती है, वही उस वस्तु से प्राप्त होने वाली उपयोगिता का मौद्रिक माप है।’ इस संदर्भ में मार्शल ने ‘सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम’ (लॉ ऑफ डिमिनिशिंग मार्जिनल यूटिलिटी) की वैज्ञानिक व्याख्या की। मार्शल का मत था कि किसी वस्तु का उत्तरोत्तर उपयोग करते रहने से उस वस्तु की प्रत्येक अगली इकाई से मिलने वाली अतिरिक्त उपयोगिता घटने लगती है। घटती हुई अतिरिक्त उपयोगिता को ही सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम कहा जाता है। मार्शल पहले ऐसे अर्थशास्त्री थे, जिन्होंने मांग की लोच को परिभाषित किया। मांग की लोच का अभिप्राय कीमत के सूक्ष्म परिवर्तन के कारण उत्पन्न होने वाली मांग की मात्रा में परिवर्तन की माप से है ।
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