आर्थर सीसल पीगू का जीवन परिचय (Arthur Cecil Pigou in Hindi)
जन्म : 1877, इंगलैंड
मृत्यु : 1959
व्यापार में होने वाले उतार-चढ़ाव की विस्तृत विवेचना करने वाले इस अर्थशास्त्री ने अर्थशास्त्र को एक व्यापक परिप्रेक्ष्य में व्याख्यायित किया। इसमें आर्थिक कल्याण का पक्ष अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इकोनॉमिक्स ऑफ वेलफेयर (1920), इकॉनोमिक्स ऑफ प्रैक्टिस (1935), सोशलिज्म वर्सेस कैपिटलिज्म (1937), द व्हील ऑफ मनी (1949) इनकी प्रमुख पुस्तकें हैं।
जॉन पीगू प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री थे। वे केवल एक सैद्धांतिक अर्थशास्त्री ही नहीं थे, बल्कि उन्होंने अनेक व्यावहारिक आर्थिक समस्याओं का भी अध्ययन किया था। वे कुछ समितियों और आयोगों के सदस्य भी रहे। उन्होंने अर्थशास्त्र की परिभाषा को एक व्यापक दायरा दिया और इस हेतु उन्होंने आर्थिक कल्याण के पक्ष को विशेष महत्व प्रदान किया। पीगू ने राष्ट्रीय आय की गणना में उत्पादन धन को बहुत महत्वपूर्ण माना, लेकिन केवल उन्हीं वस्तुओं और सेवाओं को शामिल किया जिन्हें द्रव्य के रूप में नापा जा सकता है। पीगू ने राष्ट्रीय आय और आर्थिक कल्याण के बीच के संबंध की भी व्याख्या की। उन्होंने बताया कि सामान्यतया यदि राष्ट्रीय आय के वितरण में निर्धन के पक्ष में कोई परिवर्तन होता है तो उससे आर्थिक कल्याण में वृद्धि होती है। पीगू ने बेरोजगारी का कारण मजदूरी की दरों का ऊंचा होना ही बताया अर्थात उनके अनुसार बेरोजगारी को दूर करने के लिए मजदूरी की दरों में कटौती आवश्यक है। मजदूरी की दरों में कटौती उत्पादकों को अधिक मजदूरों की मांग के लिए प्रेरित करेगी, जिससे बेराजगारी स्वतः ही ठीक हो जाएगी। पीगू के अनुसार औद्योगिक उच्चावचन व्यापारियों की मनोवृत्ति के परिवर्तनों का परिणाम है अर्थात व्यापार चक्र हमारी मनोवृत्तियों में ही निहित है।
व्यापारियों के मस्तिष्क में आशावादिता व निराशावादिता की लहरें एक के बाद एक उठा करती हैं। इन लहरों को जीवन की भौतिक दशाओं में प्रोत्साहन मिला करता है। यही लहरें हैं जिनसे व्यापार के उतार-चढ़ाव के कारणों का स्पष्टीकरण होता है। इस प्रकार पीगू की दृष्टि से निराशावादिता से उत्पादन में कमी होती है, जिससे आय कम हो जाती है, जो फिर मांग में कमी पैदा करती है। इस कुचक्र के चलते मंदी का दौर छा जाता है। ठीक इसी प्रकार कुछ ही समय बाद अर्थव्यवस्था में तेजी व अभिवृद्धि की अवस्था उत्पन्न हो जाती है। पीगू ने मुद्रा के परिमाण सिद्धांत के समीकरण में सुधार किया और ‘साम्य फर्म’ की धारणा को भी परिभाषित किया।
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