लिंग-विभेदीकरण के संबंध में नारीवादी विचारधारा का वर्णन करें । (Describe the feminist views on gender discrimination.)
आधुनिक युग में राजनीतिक अध्ययन का प्रमुख विषय ‘नारी और उसके अधिकार’ को माना जाता है। इसीलिये आज नारीवाद को महत्त्वपूर्ण विषय माना जाता है । आज समाज की स्थिति बड़ी विचित्र है, क्योंकि सामाजिक न्याय के सन्दर्भ में ‘नारी मुक्ति’ और अधिकार की माँग की जाती है, तो कभी लिंग समानता को विवाद का विषय मान लिया जाता है नारी की अस्मिता को बनाये रखने के लिये ही आधुनिक समाज में ‘नारीत्व’ को परिभाषित करने का प्रयास किया जा रहा है।
नारीवाद विचारकों द्वारा आजकल इस बात को महत्त्व दिया जाता है कि नारी के अधिकारों को मानवीय अधिकारों की श्रेणी में शामिल किया जाना चाहिये तथा साथ ही साथ स्त्री पुरुषों में समानता तथा स्त्री को सामाजिक न्याय दिलाना चाहिये आदि नारीवादी विचारकों द्वारा इस तथ्य पर भी बल दिय गया कि स्त्री को मानव के समान ही समाज के प्रत्येक क्षेत्र में समझना चाहिये ।
आजकल नारीवादी विचारक यह भी माँग कर रहे हैं कि प्रत्येक आवश्यक स्थान पर नारी को, पुरुष प्रधान समाज में अपने अधिकारों तथा अस्तित्व को निश्चित करना चाहिये । नारी का संसद में नीति निर्धारण करने, न्यायालयों में उचित एवं अनुचित की समीक्षा जन प्रतिनिधित्व करने की भी माँग नारीवादी विचारकों द्वारा समय-समय की जाने लगी है। इसीलिये ये विचारक राजनीति को नये तरीकों से परिभाषित भी करने लगे हैं इस सम्बन्ध में उनका विचार है कि “जीवन के जिन क्षेत्रों को व्यक्तिगत मानकर राजनीति से अलग किया जाता है, उनकी राजनैतिक प्रकृति को भी मान्यता दी जानी चाहिये ताकि पुरुष शक्ति को चुनौती दी जा सके।” अब तक समाज में राजनीति की परिभाषा पितृ सत्तात्मक समाज को ध्यान में रखकर की गई है। आधुनिक परिस्थिति में आवश्यकता इस बात की है कि पुरुष समाज को नारी की योग्यता, साहस एवं क्षमता का सम्मान करना चाहिये।
नारीवाद का आशय (Meaning of Feminism) – आधुनिक समाज में नारीवाद एक नवीन अवधारणा के रूप में जानी जाती है। इस अवधारणा की प्रमुख मान्यता यह है कि “नारी पुरुष से किसी भी अर्थ में कम नहीं है। अतः उसको पुरुष के समान ही समझा जाना चाहिये।” इस अवधारणा को प्रतिपादित करने का श्रेय विश्व की प्रथम नारीवादी मेरी वोल स्टोनक्राफ्ट (M. Woll Stonecraft) को दिया जाता है। इन्होंने अपनी पुस्तक Vindicatim of the Right of Women 1978 में लिखा है कि “मैं यह नहीं कहती कि पुरुष के बदले अब स्त्री का वर्चस्व पुरुष पर स्थापित होनी चाहिये। जरूरत तो इस बात की है कि स्त्री को स्वयं अपने बारे में सोचने-विचारने और निर्णय का अधिकार मिले। स्टोनक्राफ्ट के इस विचार ने समस्त विश्व में नारी अधिकार की माँग को प्रोत्साहित किया।
अपनी इस पुस्तक में स्टोनक्राफ्ट ने नारी शिक्षा के सम्बन्ध में लिखा कि “महिलायें हर जगह दुर्दशा की शिकार हो रही हैं उनकी मासूमियत बनाये रखने के स्थान पर सच्चाई उनसे छुपाई जाती है और इससे पहले कि उनकी सामर्थ्य विकसित हो उन पर कृत्रिम चरित्र थोप दिया जाता है। उन्हें शिक्षा से वंचित रखा जाता है, जिससे उनकी बुद्धि का विकास नहीं हो पाता है और उन्हें बच्चे पालने तथा घर का काम करने के लिए विवश किया जाता । उनका कार्यक्षेत्र व्यक्तिगत सीमाओं में बँधकर रह जाता है।
एक अन्य नारीवादी विचारक कंट मिलेट ने अपनी पुस्तक Sexual Politics-1985 में लिखा है कि “पितृतंत्र ऐसी राजनैतिक व्यवस्था है, जो पुरुष की प्रधानता तथा नारी के शोषण को महत्त्व देती है।” मिलेट के अनुसार “इस व्यवस्था ने नारी को पीछे धकेल दिया है और नारी को पुरुष का दास बनाकर उनका दमन किया है। अतः नारी के द्वारा पितृतंत्रीय व्यवस्था से मुक्ति को बनाये रखना ही नारीवाद कहलाता है।
सुप्रसिद्ध अंग्रेज विचारक जे. एस. मिल ने भी, उन्नसवीं शताब्दी में नारीवाद की वकालत की थी। उन्होंने अपनी पुस्तक Subjection of Women, 1869 में लिखा है कि “स्त्री-पुरुष के सम्बन्ध का आधार प्रेम-सौहार्द्र एवं मित्रता है। स्त्री-पुरुष सहचर हैं। कोई किसी पर अपना प्रभुत्व स्थापित नहीं कर सकता दोनों को समाज में बराबर का हक मिला हुआ है।” उनकी इसी विचारधारा के आधार पर उनको इंग्लैण्ड में “स्त्री मुक्ति आंदोलन का प्रणेता” माना जाता है।
‘नारीवाद’ की प्रमुख प्रवर्तक बेट्टी फ्रीडन ने अपनी पुस्तक The Feminist mystic में नारीवाद का समर्थन घरेलू स्त्री से किया है। इस सम्बन्ध में उन्होंने लिखा है कि “पति का पत्नी पर वर्चस्व स्थापित करना स्त्रियों को कुछ व्यवसाय विशेष तक सीमित स्त्रियों के प्रति षड्यंत्र है। यह एक विशिष्ट प्रकार की राजनीति कही जाती है ।
विश्व की क्रांतिकारी नारीवादी साइमन डी. बी. वियर ने भी अपनी पुस्तक Second Sex में कहा है कि “स्त्री पैदा नहीं होती बल्कि बनाई जाती है।” इस सम्बन्ध में उनका विचार था कि “समाजवाद भी पुरुषों की सर्वोपरिता को ही स्वीकार करता है। स्त्री-मुक्ति तो केवल स्त्रियों में अपने अधिकार और समाज में अपने स्थान को बना लेने से ही सम्भव है।”
नारीवाद के सम्बन्ध में भारतीय विचारधारा (Indian Views Regarding Feminism)— ‘नारीवाद को जिस प्रकार विश्व भर में समर्थन मिला उसी प्रकार भारत में भी नारीवाद का समर्थन किया गया है। ‘भारतीय नारीवाद’ की प्रमुख समर्थक आशा रानी तथा डॉ. प्रभा खेतान प्रमुख हैं, जिन्होंने नारीवाद के समर्थन में अपने-अपने विचार व्यक्त किये हैं। जिनका विवरण इस प्रकार है-
1. डॉ. आशा रानी व्होरा के विचार- नारीवाद के अन्तर्राष्ट्रीय विचारों से प्रभावित होकर श्रीमती आशा रानी व्होरा ने अपनी पुस्तक ‘भारतीय नारी दशा-दिशा, 1983 में लिखा है कि “नारीवाद नारी का पुरुष के प्रति संघर्ष नहीं है वरन् सौहार्द्रपूर्ण स्थिति में उसे हक दिलाने का एक विचारित तरीका है। नारी को हक माँगने से नहीं मिलता है, हक या अधिकार लड़कर माँगने से मिल तो जाते हैं, लेकिन इससे स्त्री-पुरुष में एक अवांछित प्रतिद्वन्द्विता से एक चिढ़ पैदा होती है, घरों में पारिवारिक अशांति घरों से बाहर नारी की असुरक्षा बढ़ती है । अतः अधिकार की माँग नहीं अधिकारों को अर्जन ही वह लक्ष्य हैं, जिसके लिये हमें अपने आप से और अपने से बाहर दो मोर्चों पर दुहरा संघर्ष करना है। यह संघर्ष जितना तीव्र होगा जीत उतनी ही सुनिश्चित होगी ।
2. डॉ. प्रभा खेतान के विचार- भारत में नारीवाद का समर्थन डॉ. प्रभा खेतान ने भी किया है । उन्होंने विश्व की प्रमुख नारीवाद साइमन डी. वी. वियर की पुस्तक Second Sex का हिन्दी अनुवाद करके अपने विचारों को इस प्रकार व्यक्त किया है- “बी. वीयर ने सेकेण्ड सेक्स में ठीक ही लिखा है कि औरत की पहली लड़ाई अर्थ की दुनिया से शुरू होती है। मैंने भी जीवन जीते यही सीखा है कि पैसे कमाने से ही निर्णय लेनी सिखती है और निर्णय की क्षमता उसके संघर्ष को मजबूत करती है ।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि नारीवाद का एक ही लक्ष्य है कि नारीवाद के लिये अधिकारों की माँग करना।
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