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लिंग पाठ्यक्रम पर प्रकाश डालें।
पाठ्यक्रम का स्थान शिक्षा में महत्त्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि पूर्व में ही कहा जा चुका है कि शिक्षा एक सोद्देश्य प्रक्रिया है और यह अपने उद्देश्यों की पूर्ति पाठ्यक्रम के द्वारा करती है। शिक्षण लक्ष्य जैसे होंगे, पाठ्यक्रम भी उसी प्रकार का होगा । पाठ्यक्रम की चुनौतीपूर्ण लिंग की समानता और भूमिका के प्रस्तुतीकरण में क्या है, इसके निरूपण से पूर्व पाठ्यक्रम की अवधारणा का स्पष्टीकरण निम्नांकित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा रहा है-
1. शाब्दिक अर्थ – पाठ्यक्रम के लिए अंग्रेजी में ‘करीकुलम’ शब्द प्रयुक्त किया जाता है जो लैटिन के ‘कुर्रेर’ से निष्पन्न है, जिसका अर्थ है- दौड़ का मैदान ।
Curriculum (English) → Currere (Latin) = Ground of Race
इस प्रकार करीकुलम ऐसा मैदान है जिसके इर्द-गिर्द बालकों की क्रियाएँ सम्पादित होती हैं।
2. संकुचित अर्थ – पाठ्यक्रम का संकुचित अर्थ कोर्स (Course) मात्र से है, जिसके आधार पर अध्ययन-अध्यापन कार्य का सम्पादन किया जाता है।
3. परिभाषीय अर्थ – पाठ्यचर्या के अर्थ के स्पष्टीकरण हेतु अनेक विद्वानों की परिभाषाएँ निम्न प्रकार हैं-
कनिंघम की पाठ्यक्रम विषयी परिभाषा सर्वाधिक लोकप्रिय है। इनके शब्दों में “पाठ्यक्रम शिक्षक के हाथ में एक साधन है, जिससे वह अपने विद्यालय में, अपने उद्देश्य के अनुसार अपने छात्रों को कोई भी रूप दे सकता है।”
प्रोबेल के अनुसार- “पाठ्यक्रम में समस्त अनुभव निहित हैं, जिनको विद्यालय द्वारा शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उपयोग में लिया जाता है। “
मुनरो के अनुसार – “पाठ्यक्रम में वे समस्त अनुभव निहित हैं, जिनको विद्यालय द्वारा शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्त के लिए उपयोग में लाया जाता है।”
कैसबेल के अनुसार- “बालकों एवं उनके माता-पिता तथा शिक्षकों के जीवन में आने वाली समस्त क्रियाओं को पाठ्यक्रम कहा जाता है। शिक्षार्थी के कार्य करने के समय जो कुछ भी कार्य होता है, उससे पाठ्यक्रम का निर्माण होता है । वस्तुतः पाठ्यक्रम को गतियुक्त वातावरण कहा गया है।”
जॉन डीवी के अनुसार- “पाठ्यक्रम केवल अध्ययन की योजना या विषय-सूची ही नहीं, बल्कि कार्य और अनुभव की सम्पूर्ण शृंखला है। पाठ्यक्रम समाज में कलात्मक ढंग से परस्पर रहने के लिए बच्चों के प्रशिक्षण का शिक्षकों के पास एक साधन है।”
बूबेकर के अनुसार- “पाठ्यक्रम एक ऐसा क्रम है, जो किसी व्यक्ति को गन्तव्य स्थान पर पहुँचने के लिए तय करना पड़ता है।”
के. जी. सैयदेन के अनुसार, “पाठ्यक्रम वह सहायक सामग्री है, जिसके द्वारा बच्चा अपने आपको उस वातावरण के अनुकूल ढालता है जिसमें वह अपना दैनिक कार्य व्यवहार करता है तथा जिसमें उसके भविष्य की योजनाएँ और क्रियाशीलता निहित है।”
माध्यमिक शिक्षा आयोग के अनुसार “पाठ्यक्रम का अर्थ केवल उन सैद्धान्तिक विषयों से नहीं है, जो विद्यालय में परम्परागत रूप से पढ़ाये जाते हैं वरन् इसमें अनुभवों की यह समग्रता सम्मिलित होती है जिसको छात्र विद्याल की उन बहुमुखी क्रियाओं से प्राप्त करता है जो कक्षा, पुस्तकालय, कार्यशाला, प्रयोगशाला और खेल के मैदान में तथा शिक्षकों एवं छात्रों के अगणित अनौपचारिक सम्पर्कों से प्राप्त होती है। इस प्रकार विद्यालय का सम्पूर्ण जीवन पाठ्यक्रम हो जाता है, जो छात्रों के जीवन के सभी पक्षों को प्रभावित कर सकता है और उनके सन्तुलित व्यक्तित्व के विकास में सहायता देता है।”
शिक्षा आयोग के अनुसार- “विद्यालय पाठ्यक्रम अधिगम अनुभव की वह समग्रता है जो विद्यालयों द्वारा छात्रों को विद्यालय में या उसके बाहर की बहुमुखी क्रियाओं द्वारा प्रदान की जाती है। ये समस्त क्रियाएँ विद्यालय के परिनिरीक्षण में संचालित की जाती है। “
4. व्यापक अर्थ – पाठ्यक्रम अपने संकुचित अर्थ में बौद्धिक विषयों हेतु बहुत पहले से प्रचलित था परंतु ये विषय पाठ्यक्रम के अंग मात्र हैं। पाठ्यक्रम के व्यापक अर्थ की और ये इंगित नहीं करते हैं। इन विषयों की सामग्री को अन्तर्वस्तु कहा जाता है। कक्षा में शिक्षण की दृष्टि से सुविधा के लिए जब इस विषय सामग्री को व्यवस्थित कर लिया जाता है तो उसे ‘पाठ्य-विवरण’ (Syllabus) कहते हैं। भ्रमवश पाठ्यक्रम (Curriculum) तथा ‘पाठ्य-विवरण’ (Syllabus) को एक अर्थ में प्रयुक्त कर दिया जाता है परंतु पाठ्य-विवरण पाठ्यक्रम का अंशमात्र है, न कि सम्पूर्ण पाठ्यक्रम । पाठ्यक्रम में बताया जाता है कि वर्ष भर के लिए निर्धारित विषय-वस्तु को साप्ताहिक तथा मासिक स्तर पर कैसे पूर्ण करना है । कोर्स, अन्तर्वस्तु, पाठ्यक्रम विवरण आदि शब्द पाठ्यक्रम की अवधारणा के स्पष्टीकरण में असमर्थ हैं । पाठ्यक्रम हेतु शिक्षाक्रम तथा पाठ्यचर्या शब्द का प्रयोग किया जाता है।
पाठ्यक्रम की आधुनिक अवधारणा अत्यधिक व्यापक है। इसके अन्तर्गत कक्षीय वातावरण के साथ-साथ छात्र जो भी अनुभव प्राप्त करते हैं, वे सभी आते हैं । पाठ्यक्रम में बौद्धिक विषय, विविध कौशल, पढ़ना, लिखना, शिल्प, खेल-कूद तथा अन्य क्रिया-कलाप भी आते हैं । पाठ्यक्रम को क्रिया के रूप में समझना चाहिए, न कि अर्जित ज्ञान या संग्रहीत तथ्यों के रूप में । पुस्तकालय, कक्षा, प्रयोगशाला, खेल के मैदान तथा विद्यालय परिसर में प्राप्त किये जाने वाले सभी अनुभव पाठ्यक्रम के अन्तर्गत आते हैं तथा इस प्रकार पाठ्यक्रम की व्यापक अवधारणा के अन्तर्गत विद्यालय में संचालित समस्त गतिविधियाँ आ जाती हैं। परंतु यह ध्यान रखना चाहिए कि यह इतना भी व्यापक नहीं है कि इसके अन्तर्गत मनुष्य का समग्र जीवन आ जाये।
पाठ्यक्रम निर्माण हेतु सावधानियाँ (Cautions For Syllabus Formation)
पाठ्यक्रम विद्यालय की समस्त गतिविधियों तथा समग्र विकास हेतु उत्तरदायी है। अतः पाठ्यक्रम निर्माण के समय कुछ सावधानियों का ध्यान रखना भी आवश्यक है-
- पाठ्यक्रम बालकों की अवस्था, आवश्यकता के अनुरूप तैयार किया जाना चाहिए।
- पाठ्यक्रम निर्माण का आधार मनोवैज्ञानिक होना चाहिए।
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