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बालक तथा बालिका शिक्षा की आवश्यकता तथा महत्त्व | Need and Importance of Boys and Girls Education in Hindi

बालक तथा बालिका शिक्षा की आवश्यकता तथा महत्त्व | Need and Importance of Boys and Girls Education in Hindi
बालक तथा बालिका शिक्षा की आवश्यकता तथा महत्त्व | Need and Importance of Boys and Girls Education in Hindi

बालक तथा बालिका शिक्षा की आवश्यकता तथा महत्त्व पर प्रकाश डालें।

शिक्षा के बिना वर्तमान में सभ्य समाज और सभ्य मनुष्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। शिक्षा का वर्तमान समय सम्प्रत्यय मानता है कि शिक्षा के द्वारा व्यक्ति की अन्तर्निहित शक्तियों का सर्वोत्तम विकास किया जाता है अर्थात् प्रत्येक मनुष्य में जन्मजात कुछ शक्तियाँ निहित होती हैं, जिनको निखारने का कार्य शिक्षा के द्वारा सम्पन्न किया जाता है । महान दार्शनिक अरस्तु के अनुसार “मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, वह समाज में रहकर ही अपना विकास करता है। समाज के लिए व्यक्ति को शिक्षा प्राप्त करना अनिवार्य है ।” इस प्रकार समाज के प्रत्येक व्यक्ति के लिए शिक्षा अत्यावश्यक है । स्वतन्त्रता के पश्चात् भारतीय संविधान निर्माताओं ने शिक्षा को महत्त्वपूर्ण माना और देश के कर्णधारों ने भी इसके प्रसार पर बल दिया। जनता जब तक शिक्षित नहीं होगी, तब तक लोकतन्त्र सुदृढ़ नहीं हो सकेगा । अतः लोकतान्त्रिक सुदृढ़ता के लिए शिक्षा की आवश्यकता अत्यधिक है । संविधान की प्रस्तावना में मूल अधिकार, मूल कर्त्तव्य तथा नीति निदेशक तत्त्वों के द्वारा शिक्षा की प्रगति के लिए पर्याप्त प्रयास किये गये ।

भारत में शिक्षा के क्षेत्र में आने वाली कुछ बाधायें हैं जिनसे बालक तथा बालिकाओं की ओर विशेषतः बालिकाओं की शिक्षा अवरोधित हो जाती है। ये बाधायें बालक तथा बालिकाओं के सन्दर्भ में निम्नवत् हैं-

  1. जागरूकता का अभाव,
  2. दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली,
  3. गरीबी,
  4. बचपन से ही कार्य में संलग्न कर दिया जाना,
  5. विद्यालयों का दूर होना,
  6. सामाजिक कुप्रथायें तथा परम्परायें,
  7. सह-शिक्षा,
  8. आवागमन के साधनों का अभाव,
  9. छात्रावासों का न होना,
  10. शिक्षा का रोजगारोन्मुखी न होना।

परन्तु वर्तमान में इन बाधाओं को लाँघकर शिक्षा की ओर जनसामान्य में झुकाव हो रहा है, क्योंकि इसकी आवश्यकता तथा महत्त्व से अब लोग परिचित हो रहे हैं। बालक तथा बालिका शिक्षा की आवश्यकता और महत्त्व भारतीय समाज में निम्नवत् है-

  1. सभ्य समाज के निर्माण के लिए।
  2. व्यक्ति की जन्मजात प्रवृत्तियों का मार्गान्तरीकरण और शोधन ।
  3. व्यक्ति के सर्वांगीण विकास हेतु ।
  4. तार्किक क्षमताओं के विकास हेतु ।
  5. निर्णय क्षमता के विकास हेतु
  6. आत्म-प्रकाशन हेतु ।
  7. रचनात्मक शक्तियों के विकास हेतु ।
  8. उचित तथा अनुचित के ज्ञान हेतु ।
  9. आध्यात्मिक तथा नैतिक मूल्यों के विकास में सहायक ।
  10. नवीन अनुसन्धान तथा तकनीकी ज्ञान हेतु ।
  11. प्रजातान्त्रिक सफलता हेतु ।
  12. लिंगीय असमानता की समाप्ति हेतु ।
  13. आदर्श नागरिकता के विकास हेतु ।
  14. विश्व बन्धुत्व, विश्व शान्ति तथा अवबोध की स्थापना हेतु ।
  15. राष्ट्रीय एकता हेतु ।
  16. स्वस्थ राजनीति हेतु ।
  17. सामाजिक कुरीतियों तथा अन्ध-विश्वासों की समाप्ति के लिए ।
  18. आर्थिक उन्नति हेतु ।
  19. चारित्रिक एवं नैतिक विकास हेतु ।
  20. सांस्कृतिक संरक्षण एवं विकास हेतु

इस प्रकार बालक तथा बालिकाओं की शिक्षा वर्तमान में अत्यावश्यक है। शिक्षा के द्वारा ही बालक तथा बालिकायें दोनों ही अपनी व्यक्तिगत उन्नति करते हैं। बालिकाओं की सामाजिक स्थिति बालकों की अपेक्षा उपेक्षित रही है। अतः वर्तमान में बालिका शिक्षा की आवश्यकता और भी अत्यधिक है, क्योंकि समाज में बालिकाओं के प्रति जो कुरीतियाँ और कुप्रथायें है उसकी समाप्ति शिक्षा के द्वारा ही हो सकती है लैंगिक भेद-भावों को दूर करने के लिए बालिकाओं की शिक्षा की प्रासंगिकता अत्यधिक है, क्योंकि शिक्षा के द्वारा ही इन भेद-भावों को समाप्त कर समाज में समानता लाई जा सकती है। प्रजातांत्रिक प्रणाली में वहाँ के सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त हैं क्योंकि यहाँ पर शक्ति जनता में निहित होती है और यदि जनता अशिक्षित होगी तो प्रजातन्त्र सफल तथा सुदृढ़ कदापि नहीं हो सकता है। ऐसी परिस्थितियों में बालक-बालिकाओं की शिक्षा की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती । भारत में लिंगानुपात में तीव्रता से अन्तर आ रहा है, परन्तु यदि शिक्षा का व्यापक रूप से प्रसार किया जाये तो साम्प्रदायिकता, लैंगिक भेद-भाव, गरीबी इत्यादि समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। इस प्रकार शिक्षा की प्रासंगिकता बालक तथा बालिकाओं दोनों ही के लिए है, क्योंकि दोनों ही समाज के अभिन्न अंग हैं।

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Anjali Yadav

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