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नेतृत्व की अवधारणा, परिभाषा, कार्य, सिद्धांत, लक्षण, आवश्यकता तथा महत्व

नेतृत्व की अवधारणा, परिभाषा, कार्य, सिद्धांत, लक्षण, आवश्यकता तथा महत्व
नेतृत्व की अवधारणा, परिभाषा, कार्य, सिद्धांत, लक्षण, आवश्यकता तथा महत्व

नेतृत्व की अवधारणा एवं परिभाषाएं (CONCEPT AND DEFINITIONS OF LEADERSHIP)

नेतृत्व का वास्तव में क्या आशय है, इस बात पर लोग एक मत नहीं हैं। कुछ लोग इसका आशय संगठन क्रम में एक विशिष्ट पद या स्थिति से लगाते हैं, जैसे कम्पनी का प्रबन्ध संचालक या मुख्य प्रबन्धक सर्वोच्च पद पर आसीन होने के कारण नेता माना जाता है। कुछ अन्य लोग व्यक्तिगत विशेषताओं के आधार पर नेतृत्व को परिभाषित करते हैं अर्थात् कुछ विशिष्ट गुण (परिपक्वता, चतुराई, योग्यता आदि) रखने वाले व्यक्ति नेता माने जाते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ लोग एक विशिष्टं व्यवहार को, जो अन्य लोगों को प्रभावित करता है, नेतृत्व गुण मानते हैं और ऐसा व्यवहार करने वाले को नेता मानते हैं। नेतृत्व की विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गई निम्न परिभाषाएं इस तथ्य की पुष्टि करती हैं:

(1) मूने तथा रेले के अनुसार, “नेता एक समूह का सदस्य होता है जिसे एक निश्चित पद प्रदान किया जाता है और वह प्राप्त पद के अनुरूप व्यवहार प्रदर्शित करता है।”

(2) एल्विन गोल्डनर के अनुसार, “नेता एक समूह का सदस्य होता है जिसे एक निश्चित पद प्रदान किया जाता है और वह प्राप्त पद के अनुरूप व्यवहार प्रदर्शित करता है।”

(3) रॉबर्ट सी. एप्लेबी के अनुसार, “नेतृत्व निर्देशन का साधन है, अधीनस्थों को विश्वास एवं इच्छाशक्ति पूर्वक समूह आदर्शों के लिए कार्य को प्रेरित करने की योग्यता है।”

(4) आर्डवे टीड के अनुसार, “नेतृत्व गुणों का ऐसा संयोजन है जिसके होने से एक व्यक्ति दूसरों से कुछ कार्य करा पाने के योग्य हो जाता है, क्योंकि उसके प्रभाव के अन्तर्गत वे ऐसा करने के इच्छुक होते हैं।”

नेतृत्व के कार्य (FUNCTIONS OF LEADERSHIP)

वैसे तो नेतृत्व के कार्यों में अनुयायियों के प्रकार, नेतृत्व शैली तथा लक्ष्य की विविधता के अनुसार अन्तर आ जाता है फिर भी सामान्य रूप में नेतृत्व के निम्न कार्य माने जाते हैं:

(1) नियोजन एवं निर्देशन (Planning and Direction)- नेतृत्व का प्रथम कार्य है- कार्य का नियोजन तथा समूह सदस्यों का लक्ष्य प्राप्ति की ओर निर्देशन । समूह का नेता समूह के प्रतिनिधि के रूप में उच्चस्तरीय बैठकों में भाग लेता है तथा उपक्रम के लक्ष्य एवं नीतियां निर्धारित करने में सहयोग करता है। इसके उपरान्त वह उन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए सदस्यों का मार्गदर्शन करता है।

(2) अभिप्रेरणा व समन्वय (Motivation and Co-ordination)- नेतृत्व का दूसरा कार्य है— समूह सदस्यों को क्षमतानुसार कार्य करने के लिए प्रेरित करना तथा उनके कार्य में समन्वय उत्पन्न कर लक्ष्य को प्राप्त करना।

(3) सूचनाएं व तकनीकी सहायता प्रदान करना (Providing information and Technical Help)- नेतृत्व का यह कार्य है कि वह समूह के सदस्यों को उनके कार्य तथा हितों से सम्बन्धित सूचनाएं प्रेषित करता है तथा उन्हें कार्य करते समय कठिनाई उत्पन्न होने पर तकनीकी तथा अन्य प्रकार की सहायता प्रदान करता है।

(4) पुरस्कार व दण्ड की व्यवस्था करना (Arranging Rewards and Punishments)- नेतृत्व अपने समूह सदस्यों के लिए पुरस्कार व दण्ड की व्यवस्था करता है। वह अच्छा कार्य करने वालों को पुरस्कार तथा अक्षम या गलत कार्य करने वालों को दण्ड देता है अथवा उच्च प्रबन्ध को इस सम्बन्ध में सिफारिश करता है। नेता को ही अपने समूह सदस्यों के मनोभावों का ठीक पता रहता है कि किस प्रकार का पुरस्कार उन्हें अच्छा कार्य करने के लिए प्रेरित कर सकता है।

(5) स्वास्थ्यप्रद वातावरण का निर्माण (Creation of Healthy Atmosphere)- एक उपक्रम में संगठनात्मक वातावरण का कर्मचारियों के कार्य पर भारी प्रभाव पड़ता है। नेता का यह कार्य है कि वह अपने विभाग में ऐसे स्वास्थ्य व मित्रतापूर्ण वातावरण का निर्माण करे जिससे कर्मचारी इच्छापूर्वक तथा प्रसन्नता के साथ कार्य करने के लिए प्रेरित हों। कर्मचारियों के मध्य व्याप्त आपसी मनुमुटाव तथा कटुताओं को दूर करने का प्रयास भी नेता को करना चाहिए अन्यथा इनसे कार्य वातावरण दूषित होता है।

(6) सदस्यों की प्रोन्नति तथा विकास (Promotion and Advancement of Members)- नेतृत्व का यह महत्वपूर्ण कार्य है कि वह अपने समूह सदस्यों की आकांक्षाओं तथा इच्छाओं को समझे और उन्हें संतुष्ट करने में योगदान दे। सदस्यों को आगे बढ़ाने और विकास करने के अवसर प्रदान करे।

(7) अधीनस्थों का सहयोग प्राप्त करना (Securing Co-operation of Subordinates)- नेता को चाहिए कि वह नेतृत्व की ऐसी शैली अपनाए जो अधीनस्थों को पूर्ण सहयोग प्रदान कर सके। इस दृष्टि से वह जनतांत्रिक दृष्टिकोण अपना सकता है जिसमें समय-समय पर समस्याओं के समाधान हेतु कर्मचारियों का परामर्श प्राप्त किया जा सकता है और प्रबन्धकीय निर्णयों में उन्हें सहभागीदार बनाया जा सकता है।

(8) आदर्श प्रस्तुत करना (Establishing Ideals)- नेतृत्व निष्पक्ष, निस्वार्थी, योग्य व साहसी होना चाहिए । नेतृत्व को समूह के सदस्यों के सामने अपने व्यवहार व आचरण से ऐसे आदर्श प्रस्तुत करने चाहिए जैसे वह अपने अनुयायिों से अपेक्षा रखता है। आचरण द्वारा आदर्शों का प्रस्तुतीकरण नेतृत्व को प्रभावशाली बनाने का एकमात्र अचूक शस्त्र है।

नेतृत्व का गुण-मूलक दृष्टिकोण या सिद्धांत (TRAISTEST APPROACH OR THEORY OF LEADERSHIP)

अर्वाचीन काल के ग्रीक दर्शनशास्त्र प्लेटो का यह कथन कि “नेता जन्म लेते हैं, बनाए नहीं जाते” सन् 1990 के अन्त तक लोगों का विश्वास प्राप्त करता रहा। यह कथन या सिद्धांत इस तथ्य पर आधारित था कि महान् नेता महान् कार्य करने के लिए पैदा होते हैं और उनमें प्रारम्भ कुछ प्रकृतिदत्त गुण या विशेषताएं विद्यमान होती है जिनके कारण लोग उनसे प्रभावित होते हैं। से ही इसीलिए इसे महान् व्यक्तियों का सिद्धां (The Great Men Theory) का नाम दिया गया।

अलेक्जेंडर दी ग्रेट, नैपोलियन, रूजवेल्ट, लेनिन, महात्मा गांधी आदि ऐसे ही जन्मे महान नेता थे जिनमें नेतृत्व के गुण प्रकृतिदत्त थे और वे हर परिस्थिति में सफल नेता सिद्ध होने की क्षमता रखते थे।

परन्तु बीसवीं सदी के प्रारम्भ में व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिकों के शोध अध्ययनों के प्रभाव में जन्मजात नेतृत्व प्रतिभा या प्रकृतिदत्त गुणों के सिद्धांतों से लोगों का विश्वास हटने लगा और विद्वान लोग महान् व्यक्तियों के सिद्धांत (The Great Men Theory) का पुनर्मूल्यांकन करने में लग गए। इस पुनर्मूल्यांकन के दो प्रमुख कारण थे- प्रथम, यदि वास्तव में महान् व्यक्ति या नेता जन्मजात होते हैं और उनमें गुण प्रकृतिदत्त हैं जो सामान्य लोगों में नहीं पाए गए तो उन गुणों या विशेषताओं की अनुसंधान द्वारा पहचान की जा सकती है। द्वितीय, यदि ये विशिष्ट गुण पहचाने जा सकते हैं तो अन्य व्यक्ति भी अनुभव तथा शिक्षण द्वारा इन्हें प्राप्त कर सकते हैं। यहीं से उपक्रमों के नेतृत्व के लिए गुण-मूलक दृष्टिकोण (Trait approach) का प्रारम्भ होता है जिसमें यह माना जाता है कि नेतृत्व केवल जन्मजात नहीं होता वह सीखा भी जा सकता है अर्थात् नेता बनाए भी जा सकते हैं।

इसी गुणमूलक दृष्टिकोण (Trait approach) के अन्तर्गत 1904 और 1948 के मध्य लगभग 125 शोध अध्ययन किए गए जिनमें सफल नेताओं और असफल नेताओं के विशिष्ट गुणों की तुलना करके उन्हें पृथक्-पृथक् किया गया ताकि सफल नेता की विशिष्टताओं या गुणों (traits) को पहचाना जा सके। इस सम्बन्ध में अब तक किए गए शोध अध्ययनों में आर.एम. स्टोगडिल तथा एडविन घिसैली के अध्ययन अधिक वैज्ञानिक व महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इन अध्ययनों के आधार पर एक सफल नेतृत्व में मुख्यतया निम्न गुण या विशिष्टताओं (traits) का होना पाया जाता है:

(1) शारीरिक क्षमता (Physical Capacity) – नेता में उच्च शारीरिक क्षमता होती है; जैसे अधिक ऊंचाई, अधिक भार, कार्य करने की पर्याप्त शक्ति तथा भरा हुआ चेहरा आदि।

(2) बौद्धिक योग्यता (Intelligence)- नेता बौद्धिक रूप से योग्य होते हैं तथा वे किसी भी तथ्य को समझने तथा विश्लेषण करने की क्षमता रखते हैं।

(3) अभिक्राणशीलता (Initiative)- नेता के अन्दर अभिक्रमणशीलता पाई जाती है, वह प्रत्येक कार्य में आगे बढ़कर अपने अनुयायियों को नेतृत्व प्रदान करता है।

(4) निर्णय शक्ति (Decisiveness)- नेता के अन्दर प्रत्येक परिस्थिति में निर्णय लेने की क्षमता होती है। ये निर्णय अधिकांश दशाओं को नेतृत्व प्रदान करता है।

(5) आत्म-विश्वास (Self-Confidence)- नेता के अन्दर कूट-कूटकर आत्मविश्वास भरा होता है। वह जो कार्य करता है उसे पूर्ण विश्वास के साथ करता है, वह आलोचकों की चिन्ता नहीं करता।

(6) परिपक्वता (Maturity)- नेता परिपक्व होते हैं, वे जल्दबाजी में या भावावेश में कोई निर्णय नहीं लेते। अपने अनुभव तथा धारणाओं के आधार पर खरा सिद्ध होने पर ही निर्णय लेते हैं।

(7) आक्रामकता (Aggresiveness) – कुछ नेता आक्रामक दृष्टिकोण वाले होते हैं। वे अपनी विचारधारा का अनुमोदन पाने के लिए विनय या प्रार्थना न करके दूसरों पर प्रभुत्व जमाने का प्रयास करते हैं।

(8) दायित्व वहनीय क्षमता (Responsibility Bearing Capacity) – नेता में दायित्व वहन करने की क्षमता होती है। वह अपने दायित्व को पूरा करने के लिए अधीनस्थों को अभिप्रेरित करता है।

(9) नवाचार क्षमता (Innovation)- नेता के अन्दर नवाचार क्षमता पाई जाती है। वह प्रत्येक कार्य को करने तथा लक्ष्य प्राप्त करने का नवीन बेहतर ढंग खोजने का प्रयास करता है।

(10) पर्यवेक्षणीय योग्यता (Supervisory Ability)- व्यावसायिक उपक्रमों में पर्यवेक्षण योग्यता रखने वाला व्यक्ति ही सफल नेतृत्व प्रदान कर सकता है। वह नियोजन, संगठन, निर्देशन, नियंत्रण व समन्वय करने की योग्यता रखता है।

(11) मिलनसारिता (Sociability)- नेता समूह का ‘बॉस’ नहीं बनता बल्कि एक अच्छा साथी बनना चाहता है। वह अपने अधीनस्थों या अनुयायियों का सहयोग प्राप्त कर तथा उनके साथ मिलकर लक्ष्य प्राप्ति का प्रयास करता है।

(12) सहयोगात्मकता (Co-operativeness)- नेता का रुख अपने समूह के प्रति हमेशा सहयोग का होता है। वह उनके कार्य में तथा कठिनाइयों के निवारण में सहयोग करना अपना कर्तव्य समझता है।

(13) हंसमुख (Sense of Humour)- नेता के अन्दर हंसमुख बने रहने का गुण पाया जाता है जिससे उसके अनुयायी तथा अधीनस्थ उसे पसन्द करते हैं और उसके मार्ग पर चलना पसन्द करते हैं। वे निःसंकोच अपनी कठिनाई भी नेता के सम्मुख रख पाते हैं।

(14) लोकप्रियता (Popularity)- नेता लोग अपने समूह के बीच लोकप्रिय होते हैं। निष्कर्ष : यद्यपि इन अध्ययनों के आधार पर कुछ गुणों या विशिष्टताओं को और सफल नेतृत्व को सह-सम्बन्धित पाया गया है, परन्तु इस सम्बन्ध में स्पष्टतया व शुद्धता का अभाव दृष्टिगत होता है। अभी भी पूर्ण निश्चितता के साथ यह कहा जाना सम्भव नहीं है कि अमुक विशिष्टताएं ही प्रभावशाली नेतृत्व उत्पन्न करती हैं। यह भी पाया गया है कि सभी नेताओं में ये सभी गुण नहीं होते और बहुत सारे गैर-नेताओं (सामान्य लोगों) में इनमें अधिकांश गुण देखने को मिल जाते हैं। इसके अतिरिक्त, कुण्ट्ज एवं ओ’ डोनेल के अनुसार, नेतृत्व से सहसम्बन्ध भी महत्वपूर्ण नहीं पाया गया हैं। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक यूजैन ई. जैनिंग ने कहा है, शोध अध्ययनों ने नेतृत्व के बखान के लिए मान्य गुणों (traits) की सूची इतनी बहुरंगी प्रस्तुत की है कि वह कुछ भी बखान नहीं करती। 50 वर्षों का यह अध्ययन एक भी ऐसी व्यक्तित्व विशिष्टता या गुण समूह का प्रतिपादन करने में असफल रहा है जो नेता तथा गैर-नेता मैं अन्तर करने के लिए प्रयोग किया जा सके।

नेतृत्व के लक्षण (CHARACTERISTICS OF LEADERSHIP)

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर नेतृत्व के निम्न लक्षण कहे जा सकते हैं:

(1) सामान्यतया अधिकारी वर्ग नेतृत्व प्रदान करता है।

(2) नेता एक समूह का प्रतिनिधित्व करता है। समूह के अन्य सदस्य उसके अनुयायी होते हैं।

(3) नेता अपने अनुयायियों या समूह सदस्यों को लक्ष्य प्राप्ति के लिए मार्गदर्शन व निर्देशन प्रदान करता है।

(4) नेतृत्व समूह सदस्यों को प्रभावित कर कार्य की ओर बढ़ने की इच्छा जाग्रत करता है। कार्य के लिए कोई दबाव नहीं डाला जाता।

(5) नेता अपने अनुयायियों के समक्ष एक आदर्श प्रस्तुत करता है। नेताओं के आचरण ही अनुयायियों के आदर्श होते हैं और उनसे वे प्रेरणा प्राप्त करते हैं।

(6) नेतृत्व सभी परिस्थितियों में अपने अनुयायी के कार्यों के सम्बन्ध में उत्तरदायित्व वहन करता है, क्योंकि ये कार्य नेतृत्व के निर्देशन में ही किए जाते हैं।

(7) नेतृत्व में कुछ विशिष्ट योग्यताएं होती हैं; जैसे तकनीकी योग्यता, बौद्धिक परिपक्वता, निर्णय शक्ति, निष्पक्षता आदि। इन योग्यताओं के कारण ही वह समूह सदस्यों को प्रभावित करता है और नेतृत्व प्रदान करता है।

नेतृत्व की आवश्यकता तथा महत्व (NEED AND IMPORTANCE OF LEADERSHIP)

बहुधा यह देखा गया है कि जो व्यवसाय असफल होते हैं और कुछ वर्ष चलने के बाद बन्द हो जाते हैं, अच्छे नेतृत्व के अभाव से ग्रसित रहे होते हैं। आज भी बड़ी-बड़ी कम्पनियों को ऊंचे वेतन देने पर भी पर्याप्त संख्या में ऐसे प्रबन्धक नहीं मिल पाते जो नेतृत्व प्रतिभा सम्पन्न हों। अच्छे नेतृत्व की आवश्यकता न केवल व्यावसायिक उपक्रमों को ही है बल्कि सरकार, शिक्षण संस्थाओं, सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं को भी प्रभावशाली नेतृत्व की आवश्यकता होती है। वास्तव में, एक उपक्रम के लिए प्रभावशाली नेतृत्व का निम्न कारणों से महत्व है:

(1) सामूहिक प्रयासों की प्रेरणा (Motivation to Group Efforts) – ऐसे लोग कम होते हैं जिनमें कार्य करने की स्वतः प्रेरणा पाई जाती हो बल्कि अधिकांश लोगों में यह प्रेरणा ‘जाग्रत करनी होती है। इस प्रेरणा को जाग्रत करने में नेतृत्व की प्रमुख भूमिका होती है। इस प्रकार उपक्रम लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कर्मचारियों को प्रेरणादायक शक्ति के रूप में नेतृत्व का विशिष्ट महत्व है।

(2) संगठन संरचना तथा नियोजन की अपूर्णताओं की पूर्ति (Compensation of Imperfections in Organisation Structure and Planning) – एक उपक्रम में नियोजन तथा संगठन संरचना उच्च प्रबन्ध के महत्वपूर्ण कार्य हैं, परन्तु आधुनिक बड़े संगठनों में इसमें कुछ अपूर्णताएं तथा खामियां रह जाना स्वाभाविक है। प्रभावशाली नेतृत्व अपने गुणों तथा अनुभव द्वारा इन अपूर्णताओं को भर देता है और उपक्रम को हानि नहीं होने देता।

(3) सामाजिक, सांस्कृतिक एवं तकनीकी परिवर्तन का सामना करना (To face Social, Cultural and Technological Changes) – आधुनिक समय में टेक्नोलॉजीकल, सामाजिक व सांस्कृतिक परिवर्तन तीव्रता के साथ हो रहे हैं, जिनका सामना करने के लिए उपक्रम की संगठन संरचना तथा कर्मचारी नीतियों में शीघ्र ही आवश्यक परिवर्तन करने होते हैं। इन परिवर्तनों का पूर्वानुमान करने तथा उसके अनुरूप कदम उठाने में एक उपक्रम तभी सफल हो सकता है जब उसे अच्छा नेतृत्व प्राप्त हो। वास्तव में, अच्छा नेतृत्व ही उच्च प्रबन्ध को इन परिवर्तनों का कर्मचारियों पर पड़ने वाले प्रभाव का ब्यौरा प्रस्तुत कर सकता है और उपचारात्मक उपाय सुझा सकता है।

(4) अनौपचारिक नेतृत्व के प्रभाव को रोकना (Check on the Influence of Informal Leadership) – यदि एक उपक्रम के प्रबन्धकों में नेतृत्व क्षमता का अभाव है तो कर्मचारी समूहों के मध्य से अनौपचारिक नेतृत्व उभर कर सामने आ जाता है, जो प्रबन्धकों के साथ संघर्ष उत्पन्न कर सकता है। अतः एक उपक्रम के सफलतापूर्वक संचालन के लिए प्रबन्धकों में नेतृत्व क्षमता का विकसित किया जाना नितान्त आवश्यक है।

(5) सहयोग में वृद्धि (Increase in Co-operation) – एक उपक्रम के कर्मचारी विभिन्न सम्प्रदायों, धर्मों, शैक्षणिक पृष्ठभूमियों तथा आर्थिक स्तरों वाले होते हैं। इन विविधताओं के रहते हुए उनमें समूह भावना (team spirit) उत्पन्न करना और बनाए रखना उपक्रम की सफलता के लिए अत्यन्त आवश्यक है। एक अच्छा नेतृत्व ही समूह भावना विकसित करने में समर्थ हो सकता है। निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि प्रभावशाली प्रबन्धकीय नेतृत्व एक उपक्रम की सफलता तथा विकास का मूलाधार है।

About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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