यौन शिक्षा की समस्याओं एवं स्वरूप | Problems and Nature of sex education
औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों ही रूप से प्रदान की जाने वाली यौन शिक्षा का अपना-अपना महत्त्व है। विद्यालय, घर तथा बाहर सुरक्षात्मक अनुभूति और सकारात्मक लैंगिक झुकाव के निर्माण में इस मार्ग में आने वाली कुछ समस्यायें निम्न प्रकार हैं-
- यौन शिक्षा के स्वरूप की समस्या
- यौन शिक्षा प्रदाता की समस्या
- भारतीय समाज
- उपेक्षा का भाव
- शर्म की भावना
- उत्साही लोगों का अभाव
- संसाधनों की कमी
- पाठ्यक्रम की दोषपूर्णता
- अशिक्षा
- प्रशिक्षण का अभाव
1. यौन शिक्षा के स्वरूप की समस्या – यौन शिक्षा प्रदान करने में एक समस्या यह है कि इसका किस स्तर पर क्या स्वरूप हो ? अनौपचारिक रूप से घर, परिवार में यौन शिक्षा प्रदान करने के इसके स्वरूप को लेकर कठिनाई होती है, क्योंकि बच्चों को इसके विषय में जो ज्ञान प्रदान करना है उतना ही प्रदान करना चाहिए अन्यथा उनमें गलत धारणाओं का जन्म होगा । अतः यौन शिक्षा के स्वरूप को लेकर समस्या औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों ही स्तरों पर है।
2. यौन शिक्षा प्रदाता की समस्या – यौन शिक्षा के स्वरूप की समस्या यदि हल हो भी जाती है तो यह समस्या है कि इसे प्रदान कौन करे ? जिससे बालक तथा बालिकायें सहज रूप से ग्रहण कर सकें। शिक्षक, माता-पिता, भाई-भाभी, मित्र इत्यादि कौन इसको प्रभावी रूप से तथा वैज्ञानिक रूप से प्रदान कर सकता है। यौन शिक्षा प्रदाता का चयन करते समय यह ध्यान रखना भी अत्यावश्यक है कि वह स्वयं स्वस्थ लैंगिक दृष्टिकोणयुक्त तथा वैज्ञानिकतापूर्ण यौन शिक्षा के विषय में जानकारी रखता हो ।
3. भारतीय समाज — भारतीय समाज की संरचना में अभी भी यौन शिक्षा की खुलकर बात करना बेशर्मी भरा समझा जाता । विद्यालयों में यौन शिक्षा प्रदान करने में एक समस्या यह आती है कि इस प्रकार के प्रयास को सामाजिक विरोध का सामना करना पड़ सकता है और इसके परिणामस्वरूप बालक तथा बालिकाओं को विद्यालय आने से भी रोका जा सकता है। इसी दृष्टिकोण के कारण विद्यालयों ने इस शिक्षा पर खुलकर बात कर पाना सम्भव नहीं हो पाता है और घर में तो इस पर बात करना भी गलत माना जाता है।
4. उपेक्षा का भाव – यौन शिक्षा के विविध क्षेत्र हैं, जिनसे सम्बन्धित जागरूकता कार्यक्रम तथा क्रिया-कलाप जनसंचार के माध्यमों द्वारा सामान्य जनता के मध्य तक पहुँचायी जा रही हैं तथा सरकार के द्वारा यौन शिक्षा प्रदान करने का कार्य आँगनबाड़ी तथा ए. एन. एम. इत्यादि के द्वारा भी किया जा रहा है और इससे सम्बन्धित सेवायें तथा सुविधायें निःशुल्क प्रदान की जा रही हैं, परन्तु उपेक्षा के भाव के कारण इस दिशा में सकारात्मक उन्नति नहीं हो पा रही है।
5. शर्म की भावना – यौन शिक्षा या यौन विषयों पर खुलकर बात करना हमारे समाज में हेय समझा जाता है। अतः इन विषयों पर शर्म और झिझक व्याप्त हो जाती है, जिसका परिणाम हम युवा पीढ़ी के भटकाव के रूप में देख सकते हैं। पर्याप्त जानकारी के अभाव में असुरक्षित यौन सम्बन्ध, गर्भ धारण, महिलाओं के प्रति अनुचित व्यवहार तथा अभद्र आचरण इत्यादि कार्य नित्य प्रति हो रहे हैं, फिर भी शर्म की चादर ओढ़े हुए हमारे समाज में ये अनैतिकतापूर्ण कृत्य हो रहे हैं और यौन शिक्षा प्रदान करने वाले या ग्रहण करने वाले को बेशर्म समझकर हतोत्साहित किया जाता है, बल्कि यौन शिक्षा के द्वारा ही यौन दुर्व्यवहारों की रोकथाम हो सकेगी।
6. उत्साही लोगों का अभाव — यौन शिक्षा प्रदान करने के लिए जो लोग नियुक्त हैं। वे स्वयं इसके महत्त्व से अपरिचित हैं तथा समाज के विचारों से ही ओत-प्रोत हैं। अत: ऐसे में ये इस महनीय कार्य का उत्तरदायित्व तो स्वीकार कर लेते हैं परन्तु इस दिशा में कोई उत्साह प्रदर्शित नहीं करते हैं जिससे यौन शिक्षा की समस्या जस-की-तस रह जाती है।
7. संसाधनों की कमी – यौन शिक्षा को प्रभावी रूप से प्रदान करने के लिए आवश्यक संसाधनों, जैसे—प्रोजेक्टर, स्लाइड्स इत्यादि भौतिक तथा मानवीय संसाधनों का अभाव है। ऐसे में यह शिक्षा किस प्रकार उन्नति के पथ पर अग्रसर हो पायेगी ।
8. पाठ्यक्रम की दोषपूर्णता— यौन शिक्षा प्रदान करने के निस्सन्देह विद्यालयी प्रभावी स्थल हैं, परन्तु पाठ्यक्रम दोषपूर्ण होने से स्वस्थ लैंगिक दृष्टिकोणों का विकास नहीं हो पाता । यौन शिक्षा के पाठ्यक्रम जिसमें कक्षीय तथा कक्षेतर दोनों प्रकार के क्रिया-कलाप होते हैं, स्पष्ट रूप से निर्देशित होने चाहिए। यह पाठ्यक्रम का अभिन्न अंग होना चाहिए, स्वैच्छिक नहीं। तभी तो इस शिक्षा से युवाओं को लाभ प्राप्त हो सकेगा ।
9. अशिक्षा — यौन शिक्षा बालक तथा बालिकायें प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से अपने परिवार द्वारा भी ग्रहण करते हैं और यदि परिवार तथा समाज अशिक्षित हैं तो लैंगिक भेद-भाव, दुर्भावनायें, यौन शिक्षा को हेय समझने की प्रवृत्ति, भ्रान्तियाँ तथा अन्ध-विश्वासपूर्ण जानकारी प्राप्त होगी। कहा भी गया है कि ‘नीम-हकीम खतरा-एजान’ अर्थात् अपूर्ण और अधकचरा ज्ञान बहुत बड़ी समस्या बन सकता है। इससे कहीं बेहतर अज्ञानी होना है। जब बालक तथा बालिकायें अपने परिवार और समाज की अपूर्ण तथा भ्रान्तियुक्त यौन मान्यताओं को देखते हैं तो वे उसका अनुकरण सत्य समझकर करने लगते हैं, जिससे विद्यालय में प्रदान की जाने वाली यौन शिक्षा से वे तादात्म्य स्थापित नहीं कर पाते हैं। अशिक्षा के कारण परिवार के सदस्य तथा माता-पिता विद्यालय में प्रदान की जाने वाली यौन शिक्षा का विरोध करते हैं तथा पढ़ाई तक छुड़वा देते हैं।
10. प्रशिक्षण का अभाव – यौन शिक्षा से सम्बन्धित कार्यक्रमों के संचालन हेतु प्रशिक्षण कार्यक्रमों की सुनिश्चित रूपरेखा का अभाव है तथा एक ही व्यक्ति यदि विविध स्तरों पर यौन निर्देशन प्रदान करेगा तो तालमेल हो जाना सम्भव है, जिससे बालक-बालिकाओं के मानसिक स्तर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। अतः पर्याप्त मात्रा में लोगों को इस शिक्षा हेतु शिक्षण प्रदान करने, जागरूकता लाने के कार्य हेतु प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
यौन शिक्षा का स्वरूप (Nature of Sex Education)
यौन शिक्षा औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों रूप बालक तथा बालिकाओं को प्रदान की जाती है। विद्यालय, घर तथा बाहर सभी स्थलों पर यौन शिक्षा तथा यौन सम्बन्धी जानकारी वर्तमान में जनसंचार के साधनों द्वारा प्रदान की जा रही है। अतः इसके स्वरूप का अध्ययन दो बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जायेगा-
- औपचारिक यौन शिक्षा का स्वरूप,
- अनौपचारिक यौन शिक्षा का स्वरूप ।
1. औपचारिक यौन शिक्षा का स्वरूप- औपचारिक रूप से यौन शिक्षा के प्रमुख केन्द्र विद्यालय हैं, अतः विद्यालयी शिक्षा के विविध स्तरों पर यौन शिक्षा का स्वरूप निम्न प्रकार होना चाहिए :
औपचारिक यौन शिक्षा का स्वरूप
- प्राथमिक स्तर
- माध्यमिक स्तर
- उच्च स्तर
प्राथमिक स्तर
- शारीरिक अंगों तथा प्रजनन अंगों की जानकारी ।
- बालक-बालिकाओं में सामूहिकता की भावना का विकास ।
- परस्पर लिंगों के प्रति सम्मान तथा सहयोग की भावना ।
- सेक्स को जीवन के विकास की प्रक्रिया के रूप में बताना ।
- शारीरिक विकास की जानकारी प्रदान करना ।
माध्यमिक स्तर
- यौन शिक्षा अत्यावश्यक तेजी से हो रहे शारीरिक परिवर्तन हेतु ।
- श्रम-साध्य खेल-कूद की व्यवस्था ।
- पुरुषत्व तथा स्त्रीत्व के प्रति समुचित दृष्टिकोण का विकास ।
- सामूहिक क्रिया-कलापों का आयोजन ।
- शरीर विज्ञान का ज्ञान प्रदान करना ।
- त्रुटिपूर्ण अवधारणाओं तथा समस्याओं का समाधान ।
- कार्यशाला तथा यौन विषयों के प्रति जागरूकता लाने हेतु पाठ्य सहगामी क्रियाओं का आयोजन ।
- विवाह तथा सामाजिक नियमों से परिचय कराना ।
उच्च स्तर
- यौन व्यवहारों के प्रति आत्म-संयम का विकास ।
- यौन व्यवहारों को उत्तरदायित्वपूर्ण बनाने का प्रशिक्षण ।
- जीवन में यौन क्रियाओं का महत्त्व ।
- परिवार तथा समाज के मानकानुरूप यौन क्रियायें।
- स्वस्थ लैंगिक तथा यौन दृष्टिकोण हेतु वाद-विवाद इत्यादि के द्वारा आत्म-प्रकाशन के अवसर प्रदान करना।
- कार्यशाला तथा गोष्ठियों के द्वारा ।
- यौन जनित बीमारियों से बचाव हेतु जागरूकता ।
यौन शिक्षा हेतु पुस्तक – यौन शिक्षा प्रदान करने के लिए पुस्तक में निम्नांकित गुणों का होना आवश्यक है—
(1) पुस्तक में यौन विषयों से जुड़े मिथकों और अन्ध-विश्वासों का खण्डन होना चाहिए।
(2) वैज्ञानिकतापूर्ण हो ।
(3) बालकों के स्तर के अनुरूप मनोवैज्ञानिकतापूर्ण विषय-वस्तु का समावेश हो ।
(4) शब्दावली पर विशेष ध्यान ।
(5) विषय-वस्तु की आवश्यकता हेतु आवश्यक चित्र आदि ।
(6) सामाजिक तथा नैतिक मान्यताओं का ध्यान रखा जाये ।
(7) सकारात्मक लैंगिकता के विकास को दृष्टिगत रखते हुए सामग्री का समावेश ।
2. अनौपचारिक यौन शिक्षा का स्वरूप – अनौपचारिक रूप से यौन शिक्षा बालक तथा बालिकाओं को उनके परिवार में माता-पिता तथा परिवारीजनों द्वारा प्राप्त होती है। अनौपचारिक यौन शिक्षा का विविध आयु में स्वरूप निम्न प्रकार है-
औपचारिक यौन शिक्षा का स्वरूप
4 वर्ष की आयु तक
- शारीरिक अंगों के सही नामों की जानकारी ।
- शारीरिक अंगों से खिलवाड़ या क्षति की रोकथाम ।
5 से 7 वर्ष की आयु तक
- बालक-बालिका के समानता का परिचय ।
- पारिवारिक सम्बन्धों की जानकारी ।
- विवाह इत्यादि सम्बन्धों की जानकारी
- यौन प्रश्नों का समुचित उत्तर
8 से 12 वर्ष की आयु तक
- शारीरिक परिवर्तनों तथा स्वच्छता से परिचय कराना ।
- प्रजनन क्षमता का विकास इस उम्र में हो जाता है, अत: समाज द्वारा मान्य और नैतिक पूर्ण सम्बन्धों की जानकारी ।
- यौन तथा समाज के मध्य सम्बन्धों का ज्ञान ।
13 से 19 वर्ष की आयु तक
- सुरक्षित यौन सम्बन्धों की जानकारी ।
- यौन हिंसा तथा दुर्व्यवहारों से बचाव की जानकारी एवं पहचान का ज्ञान ।
- यौन शिक्षा पर अच्छे साहित्य तथा पुस्तकों की व्यवस्था ।
- यौन समस्याओं का समाधान करने की व्यवस्था ।
इस प्रकार यौन शिक्षा प्रदान करने में औपचारिक तथा अनौपचारिक अभिकरणों से सहयोग प्राप्त कर इसे प्रभावी बनाया जाना चाहिए।
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