Contents
समाज तथा समाजीकरण में लिंग की भूमिका का वर्णन कानून तथा राज्य के संदर्भ में कीजिए ।
मनुष्य ने अपनी सुरक्षा और आवश्यकता की पूर्ति के लिए संगठित होकर रहना प्रारम्भ किया जिससे समाज तथा परिवार इत्यादि संस्थाओं का उदय हुआ। धीरे-धीरे सामाजिक व्यवस्था को नियंत्रित करने की आवश्यकता के परिणामस्वरूप कानून तथा राज्य की अवधारणा का जन्म हुआ। कानून तथा राज्य के विषय में वर्णन निम्नवत् हैं-
कानून (Law) सामाजिक व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने हेतु आवश्यक है। कानून सामान्यीकृत नियम होते हैं जिन पर अधिकांश व्यक्तियों के मत और हित समाहित होते हैं। कानून तथा व्यवस्था की स्थापना करना राज्य का परम कर्त्तव्य है। कानून से तात्पर्य ऐसी नियमावली से है जिसको उस राज्य के अधिकांश सदस्य तथा बुद्धिजीवियों द्वारा मान्यता प्राप्त होती है राज्य तथा संस्थाओं में कानून अवश्य होता है। कानून में जो प्रावधान बनाये जाते हैं उनके प्रति राज्य वचनबद्ध होता है। कानून का पालन करना, कानून के अनुरूप व्यवस्था चलाना इत्यादि राज्य के परम उत्तरदायित्व हैं। प्रजातन्त्र में कानून का महत्त्व और भी बढ़ जाता है क्योंकि इसके द्वारा सामान्य जनता भी न्याय की शरण में जा सकती है और उसके अधिकारों को कोई कानून के भय से दबा नहीं सकता ।
समाज तथा समाजीकरण में लिंग की भूमिका के सशक्तीकरण के साधन के रूप में कानून तथा राज्य के कार्य तथा भूमिका – प्रजातन्त्र में कानून तथा न्याय के शासन की स्थापना की जाती है, जिससे सभी को अवसरों की समानता और स्वतन्त्रता प्राप्त हो सके प्रजातन्त्र में अभेदपूर्ण व्यवहार किया जाता है। यहाँ कोई भी व्यक्ति बड़ा या छोटा नहीं होता धर्म, स्थान, जाति, लिंग आदि किसी भी आधार पर भेद-भाव नहीं किया जाता है, क्योंकि इस व्यवस्था का प्रत्येक व्यक्ति नींव की ईंट की भाँति होता है। वर्तमान में राज्य तथा कानून के समक्ष अनेक चुनौतियाँ व्याप्त हैं, जैसे-
चुनौतियाँ
- अशिक्षा
- गरीबी
- धार्मिक असहिष्णुता
- सांस्कृतिक मतभेद
- सामाजिक मान्यताएँ एवं कुरीतियाँ
- भाषायी मतभेद
- भ्रष्टाचार
- लैंगिक भेद-भाव तथा इससे सम्बन्धित मुद्दे
- औद्योगिकीकरण तथा विकास
इन्हीं चुनौतियों में से एक चुनौती है बालक-बालिकाओं के मध्य किया जाने वाला भेद-भाव, जिससे बालिकाओं को आगे बढ़ने में समाजीकरण की प्रक्रिया से वंचित कर दिया जाता है। विभिन्न कालखण्डों में कानून तथा राज्य ने लैंगिक समानता में क्या भूमिका निभायी। है, इसका निरूपण निम्न प्रकार है-
1. वैदिक काल में कानून तथा राज्य की भूमिका समाज, समाजीकरण तथा लैंगिक सुदृढ़ता हेतु — वैदिक कालीन समाज में सामाजिक व्यवस्था हेतु कुछ नियम थे, जैसे— आश्रम व्यवस्था, वर्ण-व्यवस्था तथा पुरुषार्थ चतुष्ट्य । राजा का कार्य प्रजा की पुत्रवत् रक्षा करना था। राजा के हाथ में ही कानून की भी शक्ति निहित होती थी और वह अपने मन्त्रियों तथा गुरु से विचार-विमर्श के ही कठिन विषयों पर निर्णय लेता था। उस समय समाज तथा समाजीकरण की प्रक्रिया में स्त्रियों को पुरुषों की ही भाँति अधिकार प्राप्त थे जिससे उनका समाजीकरण भी उन्नत दशा में था।
2. बौद्ध काल में कानून तथा राज्य की भूमिका समाज, समाजीकरण तथा सुदृढ़ता हेतु- बौद्ध काल तक आते-आते भारतीय सामाजिक, धार्मिक तथा आदि व्यवस्थाओं में परिवर्तन के चिन्ह परिलक्षित होते हैं। गणराज्यों का उदय हुआ जिसके रूप में राज्यों में शक्ति का बोलबाला रहा। इस काल में स्त्रियों की दशा में पूर्व की भाँति उन्नति के चिन्ह नहीं दिखाई देते हैं, फिर भी राज्य और कानून स्त्रियों के प्रति लचीला व्यवहार अपनाते थे। परन्तु स्त्रियों को जो सामाजिक प्रवंचना झेलनी पड़ती थी उस पर राज्य सर्वथा मौन सहमति प्रदान करते थे, जैसे स्त्रियों की शिक्षा की ही बात हो, इस विषय पर राज्य तथा कानून ने आगे बढ़कर कोई प्रयास नहीं किया। पश्चात् में प्रियदर्शी अशोक ने अवश्य ही स्त्रियों को पुरुषों के समान शिक्षा प्राप्त करने, बौद्ध धर्म का देश-विदेश में प्रचार-प्रसार करने तथा सभी प्राणियों के प्रति दया इत्यादि के भाव पर बल दिया था। इस प्रकार स्त्रियों ने राष्ट्रीय ही नहीं, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी समाज के मध्य जाकर ज्ञान का प्रसार किया।
3. मध्य काल में कानून तथा राज्य की भूमिका समाज, समाजीकरण तथा लैंगिक सुदृढ़ता हेतु— इस काल को मुस्लिम काल तथा सल्तनत काल इत्यादि नामों से जाना जाता है। मध्य काल में गुलाम, खिलजी, सैयद, लोदी तथा मुगल वंश के शासकों ने शासन किया। ये बाहर से आकर यहीं पर रहे गये, परन्तु इनकी संस्कृति और शारीरिक गठन में भारतीयों से अत्यधिक भिन्नता थी। भारतीयों को येन-केन-प्रकारेण मुस्लिम बनाने का कार्य भी किया गया, जिससे भारतीय समाज में अनेक बुराइयों का जन्म हुआ। स्त्रियों की सामाजिक स्थिति, सामाजिकता और लैंगिक सुदृढ़ता की दृष्टि से यह काल सर्वाधिक चिन्तनीय रहा, फिर भी साधन सम्पन्न लोगों के घरों की स्त्रियों ने शिक्षा प्राप्त की तथा मकतबों में प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने बालिकाएँ विधिवत जाती थीं चाँद बीबी, नूरजहाँ, रजिया सुल्तान, गुलबदन बेगम, जीजाबाई तथा मुक्ताबाई इत्यादि ने शिक्षा प्राप्त की तथा सशक्तीकरण की प्रतीक भी बनीं। परन्तु जनसामान्य में महिलाओं की स्थिति और उनसे सम्बन्धित कुरीतियों का जन्म सर्वाधिक इसी काल में हुआ जिससे स्त्रियों की सामाजिक स्थिति, समाजीकरण और लैंगिक सुदृढ़ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा ।
4. ब्रिटिश काल में कानून तथा राज्य की भूमिका समाज, समाजीकरण तथा लैंगिक सुदृढ़ता हेतु — ब्रिटिश काल में भारतीयों पर दिन-प्रतिदिन शोषण बढ़ता जा रहा था और इसी के साथ-साथ स्वतन्त्रता की माँग और राष्ट्रीय आन्दोलन में भी तीव्रता आने लगी राजा राममोहन राय, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, स्वामी विवेकानन्द, दयानन्द सरस्वती तथा महात्मा गाँधी इत्यादि ने स्त्रियों की सामाजिक तथा शैक्षिक स्थिति में उन्नयन की आवश्यकता महसूस की स्त्रियों को समाज में उन्नत स्थिति प्रदान कराने, अनिवार्य तथा निःशुल्क शिक्षा प्रदान करने हेतु पर्दा प्रथा, बाल-विवाह, विधवा विवाह निषेध, सती प्रथा तथा दहेज-प्रथा आदि के विरुद्ध आवाज उठायी गयी। ब्रिटिश काल में हण्टर आदि आयोगों ने स्त्री शिक्षा के लिए सुझाव दिये। राष्ट्रीय जागरण का प्रभाव इस काल में स्त्रियों की सामाजिक स्थिति पर सकारात्मक रूप से पड़ा तथा कानून और राज्य के द्वारा लैंगिक सुदृढ़ता हेतु प्रयास किये गये जिससे स्वतन्त्र भारत में स्त्रियों के सशक्तीकरण तथा समाजीकरण की नींव पड़ी।
5. आधुनिक काल में कानून तथा राज्य की भूमिका समाज, समाजीकरण तथा लैंगिक सुदृढ़ता हेतु – 15 अगस्त, 1947 को भारत को स्वतन्त्रता प्राप्त हुई और प्रजातन्त्र की स्थापना हुई प्रजातांत्रिक व्यवस्था में समानता, स्वतन्त्रता तथा न्याय पर बल दिया गया और इसका लाभ जन-सामान्य को दिलाने के लिए कानून तथा राज्य का आश्रय प्राप्त किया जाना अत्यावश्यक था। स्वतन्त्रता के समय मात्र 9% स्त्रियाँ ही साक्षर थीं और इस समय सामाजिक कुप्रथाएँ और अशिक्षा अपनी चरम सीमा पर थी। स्त्रियों, निम्न जातियों, पिछड़े तथा अनुसूचित जनजातियों की स्थिति दयनीय थी जिसे अन्य वर्गों के समानान्तर लाने के लिए संविधान ने जो प्रावधान किये, उसमें कानून तथा राज्य की भूमिका अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है । स्वतन्त्र भारत अर्थात् आधुनिक भारत में समाज, समाजीकरण तथा लैंगिक सुदृढ़ता के लिए कानून तथा राज्य द्वारा किये जाने वाले कार्यों तथा भूमिका का निरूपण निम्न प्रकार है-
1. संविधान द्वारा लैंगिक भेद-भावों को समाप्त कर लैंगिक सुदृढ़ता लाने के लिए, लोगों को जागरूक बनाना ।
2. संविधान की उद्देशिका के द्वारा ही संविधान ने स्वतन्त्रता, समानता, न्याय इत्यादि शब्दों का जो प्रयोग किया है, वह स्त्रियों को समाज में समान स्थान प्रदान करने की इच्छा-शक्ति और दृढ़ संकल्प के परिचायक हैं ।
3. संविधान की धारा 14, 15, 17, 21, 22, 23, 24, 25, 29 इत्यादि के द्वारा स्त्रियों को पुरुषों की ही भाँति अधिकार प्राप्त हैं, स्त्रियों को पुरुषों के समान अभिव्यक्ति, रहन-सहन, धार्मिक स्वतन्त्रता के अधिकार प्राप्त हैं, जिससे उनकी समाज में स्थिति, समाजीकरण तथा लैंगिक सुदृढ़ता में वृद्धि हो रही है ।
4. स्त्रियों के लिए पृथक् बालिका विद्यालय तथा उनकी रुचियों पर आधारित पाठ्यक्रम द्वारा।
5. महिला शिक्षिकाओं की नियुक्ति द्वारा लैंगिक सुदृढ़ता और समाजीकरण में वृद्धि ।
6. राज्य के द्वारा बालिकाओं की शिक्षा के द्वारा समाज में, समाजीकरण में और लैंगिक सुदृढ़ता के लिए प्रोत्साहन प्रदान करने हेतु छात्रवृत्तियों, निःशुल्क शिक्षा, गणवेश, पृथक् छात्रावास तथा अन्य प्रकार के प्रोत्साहन द्वारा प्रयास किये जा रहे हैं।
7. संविधान की धारा 45 के अनुसार 6 से 14 वर्ष की आयु तक अनिवार्य तथा निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा के प्रावधान द्वारा भी स्त्रियों की सामाजिक स्थिति मजबूत हुई है।
8. स्त्रियों की व्यावसायिक शिक्षा के प्रबन्ध द्वारा लिंगीय सशक्तीकरण तथा समाजीकरण की प्रक्रिया को तीव्र करना ।
9. स्त्रियों को सुदृढ़ तथा स्वावलम्बी बनाने हेतु नौकरियों में योग्यतानुरूप आरक्षण प्रदान करके।
10. प्रौढ़ शिक्षा की व्यवस्था द्वारा ।
11. पत्राचार पाठ्यक्रमों, खुला विश्वविद्यालयों इत्यादि के द्वारा भी महिलाओं की सामाजिक स्थिति, समाजीकरण और लैंगिक सुदृढ़ता हेतु प्रयास किये जा रहे हैं ।
12. स्त्री शिक्षा के द्वारा समाज में उनकी स्थिति के उन्नयन तथा समाजीकरण की गति में तीव्रता लाने के लिए निजी प्रयासों को राज्य द्वारा प्रोत्साहित करना ।
13. राज्य द्वारा स्त्रियों को स्वावलम्बी बनाने हेतु सस्ते ब्याज दर पर ऋण की उपलब्धता जिससे वे आत्म-निर्भर बन सकें तथा समाजीकरण की प्रक्रिया में कदम से कदम मिलाकर चल सकें।
14. महिलाओं को घरेलू तथा बाहरी कार्यों को अच्छे से करने तथा उनके शिशुओं को व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करने हेतु आँगनबाड़ी केन्द्रों की स्थापना की गयी है।
15. महिला समूह तथा महिला मण्डलों द्वारा लैंगिक सुदृढ़ीकरण तथा समाजीकरण में भूमिका का निर्वहन ।
16. स्त्रियों को पुरुषों की ही भाँति समान कार्य हेतु समान वेतन, कार्य की समुचित दशाएँ इत्यादि प्रदान करने हेतु राज्य ने कानून का निर्माण किया है।
17. मातृत्व अवकाश प्रदान कर स्त्रियों का विशेष ख्याल राज्य द्वारा रखा गया है।
18. कानून द्वारा स्त्रियों की सामाजिक स्थिति में उन्नयन के लिए 26 अक्टूबर, 2006 को ‘घरेलू हिंसा अधिनियम’ लागू किया गया जिससे स्त्रियों की लैंगिक सुदृढ़ता में वृद्धि हुई है।
19. धारा 366 के कानून द्वारा महिला को शादी करने पर विवश, अपहरण करने पर 10 वर्ष की सजा का प्रावधान करता है।
20. धारा 494 के द्वारा स्त्रियों के हितों की रक्षा करने हेतु एक पत्नी के रहते दूसरा विवाह करने पर सात वर्ष की सजा का प्रावधान किया गया है।
21. धारा 498 के द्वारा स्त्रियों का अपमान करने, क्रूरतापूर्ण व्यवहार करने पर तीन वर्ष की सजा का प्रावधान किया गया है।
22. धारा 498 (a) में दहेज इत्यादि विषयों पर सजा वर्णित है।
23. धारा 306 के द्वारा महिलाओं को सुदृढ़ बनाने के लिए प्रावधान किया गया है कि यदि किसी महिला को आत्म-हत्या के लिए उकसाया जाता है या वैसी परिस्थितियों का सृजन किया जाता है तो ढाई वर्ष की सजा का प्रावधान है।
24. धारा 306 के ही द्वारा अश्लील कार्यों हेतु सजा का प्रावधान है।
25. धारा 294 के अनुसार स्त्रियों के प्रति अश्लील गीत इत्यादि गाने तथा क्रिया-कलापों पर तीन माह की कैद या जुर्माने की सजा का प्रावधान है।
26. धारा 354 के अन्तर्गत शील भंग के प्रयास में दो वर्ष की सजा का प्रावधान है।
27. धारा 509 के अन्तर्गत स्त्रियों के प्रति अपशब्दों के प्रयोग पर एक वर्ष की सजा का प्रावधान है।
28. धारा 376 बलात्कार हेतु दस वर्ष की सजा या उम्र कैद का प्रावधान करती है।
29. प्रत्येक राज्य में महिलाओं के प्रति हो रहे भेद-भाव तथा अपराध की रोकथाम और उनके प्रति जागरूकता उत्पन्न करने हेतु ‘राज्य महिला आयोग’ की स्थापना की गयी है।
30. महिलाओं के सशक्तीकरण तथा समाजीकरण हेतु 24 x 7 महिला हेल्प लाइन की व्यवस्था।
31. समय-समय पर महिलाओं की शैक्षिक, सामाजिक इत्यादि स्थिति को द्योतित करने वाले आँकड़ों का प्रदर्शन राज्य द्वारा करके इनकी लैंगिक सुदृढ़ता का प्रयास किया जा रहा है।
32. स्त्रियों के शारीरिक स्वास्थ्य तथा पोषण हेतु CARE, HHRM इत्यादि द्वारा केन्द्र तथा राज्य सरकारें WHO के सहयोग से प्रयासरत हैं।
33. राज्य सरकार तथा कानून द्वारा स्त्रियों की सामाजिक स्थिति में उन्नयन, समाजीकरण में वृद्धि और लैंगिक सुदृढ़ता हेतु सेमिनार, वर्कशॉप, वॉल राइटिंग, वार्ता, मुशायरा, कवि सम्मेलन, प्रदर्शनी, डॉक्यूमेंट्री फिल्म तथा रेडियो, टेलीविजन इत्यादि का आश्रय लेते हैं।
34. पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा स्त्रियों की सामाजिक स्थिति, समाजीकरण तथा लैंगिक सुदृढ़ता हेतु प्रयास किये जा रहे हैं।
35. स्वतन्त्र भारत में मठित आयोगों, नीतियों, समितियों जैसे राधाकृष्णन् आयोग, दुर्गाबाई देशमुख समिति, हंसा मेहता समिति, मुदालियर आयोग, शिक्षा आयोग, राममूर्ति समिति इत्यादि ने स्त्रियों की लैंगिक सुदृढ़ता तथा समाज में प्रभाविता हेतु सुझाव दिये।
36. अपव्यय तथा अवरोधन के कारणों की पहचान कर राज्य सरकारें उनको दूर करने के यथासम्भव प्रयास कर रही हैं जिससे लैंगिक सुदृढ़ता में वृद्धि हो रही है।
37. स्त्रियों तथा बालिकाओं का समाजीकरण तभी होगा जब वे अधिक-से-अधिक समाज के सम्पर्क में आयेंगी। समाज में सुरक्षा का वातावरण सृजित करने के लिए राज्य द्वारा सार्वजनिक स्थलों पर सी. सी. टी. वी. कैमरे तथा सादी वर्दी में पुलिस की तैनाती की जा रही है जिससे लैंगिक सुदृढ़ीकरण में वृद्धि हो रही है ।
38. राज्य तथा कानून द्वारा स्त्रियों की लैंगिक सुदृढ़ता, समाज में उनकी स्थिति तथा समाजीकरण की दिशा में प्रयास किये जा रहे हैं, परन्तु राज्य द्वारा कानून इनको प्रभावशाली बनाने के लिए जनता की सहभागिता भी सुनिश्चित कर रही है। इसी क्रम में ‘सेल्फी विद डॉटर’ तथा हिंसा की भनक पड़ने पर चुप न रहकर सम्बन्धित घर की कॉलबैल बजाना जब तक उत्तर प्राप्त न हो जाये इत्यादि ।
इस प्रकार कानून तथा राज्य सशक्त भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं और सामूहिक भागीदारी के सुनिश्चितीकरण हेतु प्रयासरत भी हैं।
IMPORTANT LINK
- पितृसत्ता के आदर्शात्मक एवं व्यावहारिक स्वरूप | Ideal and practical form of Patriarchy in Hindi
- पितृसत्ता क्या है ? What is Patriarchy ?
- स्त्रियों की स्थिति में सुधार के उपाय | Measure of Status Upliftment in Women in Hindi
- भारत में स्त्रियों की स्थिति एवं शिक्षा | Status and Education of Women in India in Hindi
- लैंगिक समानता की सुदृढ़ता हेतु राज्य तथा कानून की भूमिका | Role of state and law for parity of gender equality in Hindi
- लैंगिक भेद-भाव से संबंधित व्यवहार | Gender discrimination related to Behaviour in Hindi
- लैंगिक दुर्व्यवहार की प्रकृति एवं प्रकार | Nature and Types of sexual abuse in Hindi
- विद्यालय के सकारात्मक लैंगिक झुकाव हेतु कार्य | घर के सकारात्मक लैंगिक झुकाव हेतु कार्य | बाहर के सकारात्मक लैंगिक झुकाव हेतु कार्य | यौन शिक्षा की प्रभाविता हेतु सुझाव
- पास-पड़ोस तथा कार्य-क्षेत्र में महिला उत्पीड़न | Women’s Violence in Neighbourhood and Work Place in Hindi
- स्त्रियों की शिक्षा तथा लैंगिक शिक्षा में प्रतिमान विस्थापन | Paradigm Shift in Women’s Education and Gender Education in Hindi
- महिलाओं की स्थिति की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि एवं उपाय | historical background and measurement of Women Status in Hindi
- यौन शिक्षा की समस्याओं एवं स्वरूप | Problems and Nature of sex education in Hindi