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लिंग की समानता की शिक्षा में धर्म की भूमिका | Role of Religion in education of Gender Equality in Hindi

लिंग की समानता की शिक्षा में धर्म की भूमिका | Role of Religion in education of Gender Equality in Hindi
लिंग की समानता की शिक्षा में धर्म की भूमिका | Role of Religion in education of Gender Equality in Hindi

लिंग की समानता की शिक्षा में धर्म की भूमिका पर प्रकाश डालें ।

चुनौतीपूर्ण लिंग की समानता की शिक्षा में धर्म की भूमिका अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है, परन्तु धर्म को समानता की शिक्षा में अपनी भूमिका का निर्वहन करते समय कुछ सावधानियाँ बरतनी चाहिए, जैसे-

1. धर्म को चुनौतीपूर्ण लिंग की समानता की शिक्षा का अंग बनाते समय यह बात विशेष- रूप से ध्यान रखनी चाहिए कि शिक्षा में संकीर्ण धार्मिक विचार या धार्मिक भेद-भाव न आने पायें।

2. धार्मिक शिक्षा का आयोजन करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि यह शैक्षिक उद्देश्यों पर जनतांत्रिक मूल्यों की प्राप्ति करने में समर्थ हो सके।

3. चुनौतीपूर्ण लिंग की समानता की शिक्षा में धर्म की प्रभावी भूमिका हेतु यह सतर्कता रखनी चाहिए कि धर्म-निरपेक्षता को किसी भी प्रकार से हानि न पहुँचने पाये ।

4. सर्व धर्म समभाव की भावना का विकास होना चाहिए। धर्म को चुनौतीपूर्ण लिंग की समानता की शिक्षा के आयोजन में सहयोग करना चाहिए, क्योंकि पढ़ी-लिखी, अनपढ़, ग्रामीण एवं शहरी, निर्धन एवं अमीर सभी प्रकार के व्यक्तियों की धर्म में प्रगाढ़ आस्था होती है। अतः जब धर्म के द्वारा कोई बात स्वीकृत होती है, प्रचारित की जाती है तो उसे उस धर्म विशेष के अनुयायियों का साथ प्राप्त होता है।

धर्म की चुनौतीपूर्ण लिंग की समानता हेतु शिक्षा में भूमिका निम्न प्रकार है-

1. धार्मिक गतिशीलता द्वारा- धार्मिक गतिशीलता के द्वारा धर्म चुनौतीपूर्ण लिंग की समानता के लिए शिक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं। धार्मिक गतिशीलता से तात्पर्य है धर्म में निहित बुराइयों, आडम्बरों और अवरोधक तत्त्वों को समाप्त करके उनके स्थान पर धर्म को व्यक्ति के जीवन और गतिशीलता का अंग बना लेना । गतिशीलता के द्वारा धर्म स्त्री हो या पुरुष, दोनों को ही समान महत्त्व प्रदान करते हैं ।

2. धर्म के व्यापक तथा मूल स्वरूप से परिचय- धर्म चाहे कोई भी हो वह प्रेम, मानवता तथा साथ-साथ मिल-जुलकर रहने पर बल देता है, परन्तु अपनी अविरल धारा में धर्म में अनेक संकीर्ण विचारधाराओं का समावेश हो जाता है जिसके कारण धर्म का उपयोग आपसी मतभेद तथा असमानता उत्पन्न करने के लिए किया जा रहा है। इन परिस्थितियों में धर्म के मूल स्वरूप की ओर पुनः लौटकर धर्म अपने को प्रासंगिक और उपयोगी बना रहे हैं जिससे स्त्रियों की शिक्षा में धर्म की सकारात्मक भूमिका सम्मुख आ रही है।

3. धार्मिक सम्मेलनों एवं क्रिया- कलापों द्वारा-धर्म के द्वारा समय-समय पर धार्मिक सम्मेलनों तथा क्रिया-कलापों का आयोजन किया जाता है जिससे धर्म भेद-भावों को समाप्त करने पर बल देते हैं। धार्मिक सम्मेलनों तथा क्रिया-कलापों में स्त्रियों को महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान करने से, स्त्रियों के कार्यों तथा उनकी सामाजिक भूमिका और महत्त्व के वर्णन द्वारा भी चुनौतीपूर्ण लिंग की समानता की शिक्षा के लिए प्रेरणा प्राप्त होती है।

4. स्त्रियों की सहभागिता तथा आदर द्वारा- धार्मिक कार्यों में जिन धर्मों में स्त्रियों को समान रूप से सहभागी बनाया जाता है, उन्हें आदर प्रदान किया जाता है तो ऐसे धर्म के मानने वालों में भी स्त्रियों की समानता और उनके प्रति आदर का भाव जाग्रत होता है।

5. चारित्रिक एवं नैतिक विकास द्वारा- धर्म अपने अनुयायियों के चारित्रिक तथा नैतिक उत्थान का कार्य करता है जिससे स्त्रियों के प्रति आदर, सम्मान और समाज में उनके प्रति दुर्व्यवहार नहीं होता है चारित्रिक तथा नैतिक उत्थान सम्पन्न समाज में स्त्रियाँ समान तथा सुरक्षित होती हैं। इस प्रकार चुनौतीपूर्ण लिंग की समानता की शिक्षा में धर्म चारित्रिक तथा नैतिक विकास के कार्य द्वारा योगदान प्रदान करता है।

6. कर्म के सिद्धान्त की प्रतिष्ठा- धर्मों की यह मान्यता है कि ‘कर्म ही पूजा ‘है’ अर्थात् अपने कर्तव्यों को करने वाला व्यक्ति ही सच्चा धार्मिक है और जो व्यक्ति अपने कर्त्तव्य तथा कर्म की अवहेलना करता है वह धार्मिक कदापि नहीं हो सकता है। कर्म-प्रधान धर्म से अनुप्राणित समाज में लैंगिक भेद-भाव नहीं होंगे, क्योंकि वहाँ पर कर्म की संस्कृति होगी। ऐसे में स्त्रियों को सभी प्रकार के अधिकार तथा स्वतन्त्रताएँ प्राप्त होंगी जिससे उनकी शिक्षा में भी वृद्धि आयेगी ।

7. सामाजिक कुरीतियों तथा भेद- भावों को गैर-धार्मिक घोषित करना- हमारे यहाँ धर्म के द्वारा कुछ सामाजिक कुरीतियों और मनुष्य मनुष्य के मध्य किये जाने वाले भेद-भाव को धार्मिक घोषित किया गया है, जिससे इन कृत्यों को करने में उस धर्म के व्यक्तियों में भय रहता है। कन्याओं की भ्रूण हत्या तथा शिशु हत्या, बाल-विवाह तथा दहेज प्रथा आदि को सभी धर्मों में कुत्सित माना जाता है जिस कारण इन कृत्यों का सम्पादन लोग चोरी-छिपे भले ही करें, अन्यथा उन्हें धर्म से बहिष्कृत होना पड़ेगा। इस प्रकार धर्म के इस कार्य द्वारा चुनौतीपूर्ण लिंग की समानता की शिक्षा में वृद्धि हो रही है

8. विद्यालयों की स्थापना – धार्मिक स्थलों पर लोग आस्थावश बड़ी-बड़ी भेंटें और उपहारस्वरूप सोना-चाँदी और अन्य महँगी चीजें चढ़ाते हैं, दान करते हैं जिनका उपयोग अब धार्मिक ट्रस्ट और सोसायटी विद्यालयों, चिकित्सालयों इत्यादि जनहित के कार्यों को करने में करते हैं। धार्मिक संस्थाओं द्वारा कन्याओं तथा गरीब बच्चों हेतु विद्यालयों की स्थापना करने से उनकी समानता हेतु शिक्षा के कार्य में वृद्धि हो रही है ।

9. जागरूकता का प्रसार— धर्म के द्वारा लोगों को जागरूक बनाने का प्रयास किया जाता है। यह जागरूकता बाल-विवाह, बालिका विद्यालयीकरण, नशा-पान के विरुद्ध इत्यादि विषयों पर चलाया जाता है। जागरूकता के प्रसार से चुनौतीपूर्ण लिंग की समानता के लिए शिक्षा में वृद्धि होती है।

10. अन्य अभिकरणों से सहयोग — धर्म एक प्रभावी और शक्तिशाली संस्था है । अतः चुनौतीपूर्ण लिंग की शिक्षा के लिए धर्म अन्य अभिकरणों से सहयोग प्राप्त करता है, इस कारण से चुनौतीपूर्ण लिंग की समानता की शिक्षा में वृद्धि हो रही है।

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Anjali Yadav

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