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सम्राट अशोक की जीवनी (जीवन परिचय)
नाम | सम्राट अशोक |
जन्म और स्थान | 304 ई. पू पाटलिपुत्र |
शासन का समय | 269 ई.पू से 232 ई.पू |
पहचान | महान राजा के रूप में |
पत्नी का नाम | देवी, कारुवाकी, पद्मावती, तिष्यरक्षिता |
पिता एवं माता | बिन्दुसार एवं शुभाद्रंगी |
मृत्यु | 232 ई पु |
सम्राट अशोक की उपलब्धियां
अशोक के साम्राज्य का विस्तार अफगानिस्तान से ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे तक तथा कश्मीर से मैसूर तक था। उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि है कलिंग विजय। उसने बौद्ध धर्म को चीन, जापान, दक्षिण एशिया के देशों और श्रीलंका तक फैलाया। बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए उसने अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजा था।
भारत के महानतम सम्राटों में से एक अशोक चंद्रगुप्त मौर्य का पौत्र और बिंदुसार का पुत्र था। पाटलिपुत्र के राजा बिंदुसार की मृत्यु के बाद राजगद्दी अशोक के बड़े भाई सुमन को मिलने वाली थी, लेकिन मंत्रियों ने अशोक को ज्यादा सक्षम पाया, इसलिए उन्होंने अशोक को सत्तासीन होने में मदद की। उस समय पाटलिपुत्र में अराजकता और मारकाट का वातावरण व्याप्त था। अशोक ने अपने को कुशल प्रशासक सिद्ध करते हुए तीन साल के भीतर ही राज्य में शांति स्थापित की और उसके बाद ही ईसा पूर्व 273 में औपचारिक रूप से राजगद्दी संभाली। उसके शासनकाल में देश ने विज्ञान व तकनीक के साथ-साथ चिकित्सा शास्त्र में काफी तरक्की की। उसने धर्म पर इतना जोर दिया कि प्रजा ईमानदारी और सच्चाई के रास्ते पर चलने लगी। चोरी और लूटपाट की घटनाएं बिलकुल ही बंद हो गईं। अशोक घोर मानवतावादी था। वह रात-दिन जनता की भलाई के काम ही किया करता था । उसे अपने विशाल साम्राज्य के किसी भी हिस्से में होने वाली घटना की जानकारी रहती थी। धर्म के प्रति उसकी कितनी आस्था थी, इसका अनुमान इसी लगाया जा सकता है कि वह बिना एक हजार ब्राह्मणों को भोजन कराए स्वयं कुछ नहीं खाता था। कलिंग युद्ध अशोक के जीवन का पहला और आखिरी युद्ध था, जिसने उसके जीवन को ही बदल डाला। अशोक इस छोटे-से किंतु बहुत ही समृद्ध राज्य को अपने साम्राज्य में मिलाना चाहता था, लेकिन स्वाभिमानी और बहादुर कलिंगवासी अपनी स्वतंत्रता बनाए रखना चाहते थे। अंततः अशोक ने कलिंग पर चढ़ाई की और घमासान युद्ध शुरू हुआ। इस युद्ध में हुए भारी रक्तपात ने उसे हिलाकर रख दिया। उसने सोचा कि यह सब लालच का दुष्परिणाम है और जीवन में फिर कभी युद्ध न करने का प्रण लिया। उसने बौद्ध धर्म अपना लिया और अहिंसा का पुजारी हो गया। उसने देशभर में बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए स्तंभों और स्तूपों का निर्माण कराया। विदेशों में बौद्ध धर्म के विस्तार के लिए उसने भिक्षुओं की टोलियां भेजीं।
सम्राट अशोक मौर्य के शिलालेख
शिलालेख | स्थान |
रूपनाथ | जबलपुर ज़िला, मध्य प्रदेश |
बैराट | राजस्थान के जयपुर ज़िले में, यह शिला फलक कलकत्ता संग्रहालय में भी है। |
मस्की | रायचूर ज़िला, कर्नाटक |
येर्रागुडी | कर्नूल ज़िला, आंध्र प्रदेश |
जौगढ़ | गंजाम जिला, उड़ीसा |
धौली | पुरी जिला, उड़ीसा |
गुजर्रा | दतिया ज़िला, मध्य प्रदेश |
राजुलमंडगिरि | बल्लारी ज़िला, कर्नाटक |
गाधीमठ | रायचूर ज़िला, कर्नाटक |
ब्रह्मगिरि | चित्रदुर्ग ज़िला, कर्नाटक |
पल्किगुंडु | गवीमट के पास, रायचूर, कर्नाटक |
सहसराम | शाहाबाद ज़िला, बिहार |
सिद्धपुर | चित्रदुर्ग ज़िला, कर्नाटक |
जटिंगा रामेश्वर | चित्रदुर्ग ज़िला, कर्नाटक |
येर्रागुडी | कर्नूल ज़िला, आंध्र प्रदेश |
अहरौरा | मिर्ज़ापुर ज़िला, उत्तर प्रदेश |
दिल्ली | अमर कॉलोनी, दिल्ली |
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