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पाठ्य-पुस्तक के विषय सामग्री के चुनाव (Selection of Content of Text-Book)
पाठ्य-पुस्तक के विषय सामग्री के चुनाव निम्नलिखित बिन्दुओ के आधार पर कर सकते है-
1. विषय – सामग्री का चुनाव
1. सम्बन्धित विषय सामग्री (Relevant content)- विषय – सामग्री इतिहास के अनुदेशनात्मक उद्देश्यों से सम्बन्धित होनी चाहिए।
2. कोर्स को पूरा करने वाली (Coverage of the course)– विषय सामग्री में दिए गए पाठ्यक्रम के सभी उपविषय सम्मिलित होने चाहिए।
3. पर्याप्त विषय-सामग्री (Adequate content)- विषय-सामग्री प्रत्येक उपविषय के लिए पर्याप्त होनी चाहिए।
4. नवीन सामग्री (Up-to-date content)- विषय सामग्री नवीनतम होनी चाहिए।
5. विश्वसनीय सामग्री (Authentic content)- विषय-सामग्री प्रत्येक उपविषय के सम्बन्ध में विश्वसनीय होनी चाहिए।
6. निरन्तरता तथा सन्तुलन (Continuity and balance)– पुस्तक के विविध उपविषयों में निरन्तरता तथा सन्तुलन स्थापित किया जाना चाहिए।
7. संगठित सामग्री (Integrated content)- चयनित उपविषय उचित रूप से संगठित होने चाहिए।
8. जीवन से सम्बन्धित (Integrated content)- जीवन की व्यावसायिक स्थितियों तथा दैनिक जीवन से गई सामग्री को भी पाठ्य-पुस्तक में सम्मिलित किया जाना चाहिए।
2. विषय-सामग्री का संगठन
9. इकाइयों में विभाजन (Division into units)- विषय-सामग्री उचित अध्यायों तथा इकाइयों में विभाजित की जानी चाहिए।
10. विभागों में विभाजन (Division into sections)– विषय-सामग्री का विभागों तथा अनुच्छेदों में पूर्णतः विभाजन किया जाना चाहिए।
11. मनोवैज्ञानिक उपागम (Psychological approach)- पुस्तक में अनुसृत किया जाने वाला उपागम विद्यार्थियों की आवश्यकताओं के अनुसार होनी चाहिए।
12. विषय-सामग्री में समरूपता (Coherence in the subject-matter)- विषय-सामग्री से संगठन में पर्याप्त सामंजस्य तथा क्रम होना चाहिए।
13. लचकशील संगठन (Flexible organisation)- संगठन पर्याप्त रूप से लचकशील होना चाहिए ताकि अनुदेशनात्मक योजनाओं के परिवर्तन के साथ इसमें परिवर्तन किए जा सकें।
3. विषय-सामग्री का प्रस्तुतीकरण
14. उपयुक्त शीर्षक (Suitable title) – अध्यायों के शीर्षक उपयुक्त होने चाहिए।
15. प्रेरणाप्रद प्रस्तुतीकरण (Motivating presentation)- प्रस्तुतीकरण आगे अध्ययन के लिए प्रेरणाप्रद होने चाहिए।
16. रुचिकर तथा रचनात्मक बनावट (Interesting and creative converage)- विषय-सामग्री इस ढंग से प्रस्तुत की जानी चाहिए कि यह विद्यार्थियों की रुचि को बनाए रखे।
17. पर्याप्त शब्दावली (Sufficient terminology)– प्रस्तुतीकरण में पाठ्यक्रम से सम्बन्धित पर्याप्त शब्दावली होनी चाहिए।
18. पूर्ति के पर्याप्त प्रबन्ध (Adequate provision for replication)– इसे पूर्ति तथा प्रयोग द्वारा अधिगम की नई मदों का पर्याप्त प्रबन्ध करना चाहिए।
19. अध्यापकों के लिए उपयुक्त सुझावों का प्रबन्ध (Provision for suitable suggestions for teachers)- प्रस्तुतीकरण को अध्यापक द्वारा प्रभावशाली शिक्षण विधियों तथा अनुदेशनात्मक नीतियों को अपनाने के लिए कुछ सुझावों का प्रबन्ध करना चाहिए।
4. मौखिक सम्प्रेषण (भाषा)
20. उपयुक्त शब्दावली (Suitable vocabulary)- शब्दावली कक्षा-स्तर के अनुसार उपयुक्त होनी चाहिए।
21. छोटे तथा साधारण वाक्य (Short and simple sentences)– वाक्य साधारण तथा छोटे होने चाहिए।
22. सही शब्द-विन्यास (Correct spelling) – शब्द-विन्यास सही होनी चाहिए।
23. व्याकरणिक रूप से सही भाषा (Grammatically correct language)- भाषा व्याकरणिक रूप से सही होनी चाहिए।
24. सही विराम चिह्न का विधान (Correct punctuation) – विराम-चिन्ह विधान सही होना चाहिए।
25. तकनीकी शब्दों का उचित प्रयोग (Proper use of technical terms)- तकनीकी शब्दों का उचित रूप से प्रयोग किया जाना चाहिए तथा जहाँ आवश्यक हो उनकी व्याख्या भी की जानी चाहिए।
5. दृश्य सम्प्रेषण दृष्टान्त
26. स्पष्ट दृष्टान्त (Clear illustrations)- दृष्टिान्त सही होने चाहिए।
27. दृष्टान्तों का उद्देश्यपूर्ण प्रस्तुतीकरण (Purposeful presentation of illustrations)—पाठ्य-पुस्तक में दृष्टान्त उद्देश्यपूर्ण तथा उपयुक्त स्थान पर होने चाहिए।
28. उपयुक्त दृष्टान्त (Suitable illustration)- दृष्टान्त पर्याप्त, आकार में उचित होने चाहिए।
29. पाठ्य सामग्री की सम्पूर्णता (Supplementation of text)- दृष्टान्तों को पाठ्य वस्तु को सम्पूर्णता प्रदान करनी चाहिए।
30. दृष्टान्तों की विविधता (Veriety of illustrations) – दृष्टान्तों में विविधता होनी चाहिए।
6. अधिगम दत्तकार्य (अभ्यास तथा परियोजनाएँ)
31. पर्याप्त अभ्यास (Adequate exercise)- विविध उद्देश्यों जैसे पुनरावृत्ति, दृढीकरण आदि के परीक्षण के लिए अभ्यास पर्याप्त होने चाहिए।
32. व्यापक पूर्ति (Wide Coverage)- अभ्यासों को विषय सामग्री को पूर्ण रूप से लेना चाहिए।
33. परियोजनाओं के लिए क्षेत्र (Scope for projects) — दी गई योजनाएँ इतिहास शिक्षण के विभिन्न उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक होनी चाहिए।
34. वास्तविक परियोजनाएँ (Real projects) – परियोजनाओं का यथार्थ जीवन स्थितियों से निकटतम रूप से सम्बन्धित होना चाहिए।
35. चुनौतीपूर्ण अभ्यास (Challenging exercises)– अभ्यास को विद्यार्थियों में जाँच की भावना का विकास करना चाहिए तथा विद्यार्थियों को आगे अध्ययन के लिए प्रेरित करना चाहिए
36. ग्रेडिड अभ्यास (Graded exercises) – इन अभ्यासों को प्रतिभाशाली तथा धीरे सीखने वाले सभी प्रकार के बालकों की आवश्यकताओं को पूरा करना चाहिए।
7. पिछले पृष्ठ तथा उपबन्ध
37. उपयुक्त मुख्य पृष्ठ (Appropriate title page)- मुख्य पृष्ठ को आवश्यक सूचनाएँ अवश्य प्रदान करनी चाहिए जैसे उपयुक्त शीर्षक, लेखक का नाम, प्रकाशक का नाम, प्रकाशन स्थान तथा प्रकाशन वर्ष आदि।
38. उपयुक्त आमुख (Suitable preface)- आमुख को कार्यक्षेत्र तथा पुस्तक के केन्द्रीय विषय के विचार प्रस्तुत करना चाहिए।
39. प्रभावशाली भूमिका (Effective introduction)- भूमिका को पुस्तक की योजना तथा उद्देश्य की व्याख्या करनी चाहिए।
40. विषय सामग्री की उचित तालिका (Correct table of contents) – विषय-सामग्री की तालिका सही होनी चाहिए।
41. पुस्तक-सूची (Bibliography)– पुस्तक – सूची उचित रूप से तथा एक रूप व्यवस्था के अनुसार दी जानी चाहिए।
42. उपयुक्त शब्दार्थ सूची (Suitable glossary) – शब्दार्थ सूची पर्याप्त भाषा में दी जानी चाहिए।
43. सूची (Index)- जहाँ सम्भव हो वहाँ सूची दी जाए।
8. पुस्तक का आकार
44. उपयुक्त आकार (Suitable size)- पुस्तक का आकार विद्यार्थियों की आयु के दृष्टिकोण से उपयुक्त होना चाहिए।
45. उपयुक्त परिमाण (Suitable volume)- पुस्तक का आकार विषय-सामग्री के परिमाण के अनुसार उपयुक्त होना चाहिए।
9. प्रकाशित नमूना
46. उपयुक्त लम्बाई (Suitable length) – पंक्ति की लम्बाई इस प्रकार की होनी चाहिए जिसे विद्यार्थियों द्वारा आसानी से पढ़ा जा सके।
47. उपयुक्त किस्म (Suitable type)- अध्याय के शीर्षक उपशीर्षकों, फुटनोट्स, अभ्यासों आदि का आकार विद्यार्थियों की आयु के अनुसार होनी चाहिए।
48. उपयुक्त हाशिया (Appropriate margin) – बाईं ओर का, दाईं ओर का, ऊपरी तथा नीचे के भाग का हाशिया उपयुक्त होनी चाहिए
49. सौन्दर्यात्मक दृष्टि (Aesthetic outlook)- हाशिए को पुस्तक के पृष्ठ को सुन्दर दिखावट प्रदान करनी चाहिए।
50. उपयुक्त स्थान (Appropriate spacing)- पंक्तियों तथा अनुच्छेदों के मध्य उपयुक्त स्थान छोड़ा जाना चाहिए।
10. मजबूती
51. मजबूत कागज (Durable paper)– कागज की मजबूती आयु समूह के अनुसार होनी चाहिए।
52. पुस्तक का जीवन (Life of the book) – कागज पुस्तक के प्रत्याशित जीवन के अनुसार मजबूत होनी चाहिए।
53. कागज का उपयुक्त मूल्य (Suitable price paper) – कागज की गुणवत्ता पुस्तक के मूल्य के अनुसार होनी चाहिए।
54. उपयुक्त जिल्द (Suitable binding)– पुस्तक के जिल्द उसके परिणाम तथा कार्यात्मक जीवन के अनुसार मजबूत होनी चाहिए।
55. आकर्षक जिल्द (Attractive binding)- जिल्द आकर्षक होनी चाहिए।
56. उपयुक्त मूल्य (Suitable price)- पुस्तक का मूल्य विद्यार्थियों की आर्थिक पृष्ठभूमि के अनुसार तय किया जाना चाहिए।
57. यथोचित मूल्य (Reasonable Price)– पुस्तक का मूल्य उसकी दिखावट, आकार तथा मजबूती के अनुसार तय किया जाना चाहिए।
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