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शिक्षक परिवर्तन का एक एजेन्ट होता है। / Teacher is an Agent of Change in Hindi

शिक्षक परिवर्तन का एक एजेन्ट होता है। / Teacher is an Agent of Change in Hindi
शिक्षक परिवर्तन का एक एजेन्ट होता है। / Teacher is an Agent of Change in Hindi

शिक्षक परिवर्तन का एक एजेन्ट होता है। 

शिक्षक चुनौतीपूर्ण लिंग की समानता और उनकी भूमिका के सशक्तीकरण में महत्त्वपूर्ण है। शिक्षक शिक्षा के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और प्रभावी है। यह बात शिक्षा की ‘द्विमुखी’ और ‘त्रिमुखी’ प्रक्रिया के द्वारा भी प्रमाणित होती है ।

उपर्युक्त द्विमुखी तथा त्रिमुखी प्रक्रिया के अन्तर्गत शिक्षक का स्थान महत्त्वपूर्ण रूप में देखा जा सकता है । शिक्षा प्रदान करने में शिक्षक का स्थान सर्वोपरि है क्योंकि यदि शिक्षक नहीं होगा तो पाठ्यक्रम चाहे कितना भी प्रभावी हो, वह अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में कभी सफल नहीं हो सकता लिंग के प्रति असमानतापूर्ण व्यवहार वर्षों से चला आ रहा है। यह शिक्षक का परम कर्त्तव्य है और उनसे यह अपेक्षा है कि वह विद्यालयी वातावरण को असमानता से मुक्त करें ।

शिक्षक विद्यार्थियों के लिए Role model होता है। यदि वह स्वयं भी स्त्रियों के प्रति आदर और सम्मान का भाव रखता हैं तो वह छात्रों के समक्ष आदर्श स्थापित कर पायेगा और विद्यार्थीगण उसका अनुकरण करेंगे। शिक्षक का दृष्टिकोण व्यापक तथा उदार होना चाहिए तभी वह लिंगीय पक्षपात से दूर होगा और लिंगीय समानता को सुनिश्चित कर सकेगा ।

शिक्षकों को पाठ्य सहगामी क्रियाओं के आयोजन तथा सामूहिक क्रिया-कलापों पर अत्यधिक बल देना चाहिए। इससे छात्र-छात्राएँ साथ-साथ कार्य करेंगे और एक-दूसरे के गुणों से परिचित होंगे। शिक्षकों से अपेक्षा है कि वे जेण्डर पक्षपात की हानियों से अवगत करायें और बतायें कि जेण्डर समानता कैसे स्थापित हो सकती है। लिंग की समानता के प्रभावी भूमिका के निर्वहन हेतु समाज से सहयोग लेना चाहिए। शिक्षक को शिक्षण कार्य का सम्पादन केवल नौकरी करने के भाव के कारण ही नहीं करना चाहिए अपितु राष्ट्र-निर्माण और आदर्श नागरिकों के विकास के लिए भी किया जाना चाहिए। शिक्षकों को लिंग की समानता एवं सम्बन्धित कानूनी प्रावधानों से परिचित कराया जाना चाहिए। शिक्षक का भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में अटूट विश्वास होना चाहिए और उनका आधार भी जनतांत्रिक होनी चाहिए। इससे किसी भी तरह का भेद-भाव और असमानता नहीं होगी । शिक्षकों को बालकों की भाँति बालिकाओं में भी नेतृत्व क्षमता का विकास करना चाहिए । शिक्षक को लिंग की समानता और सकारात्मक भूमिका के प्रस्तुतीकरण के लिए जागरूकता लानी चाहिए।

शिक्षक का यह परम कर्त्तव्य है कि वह प्रयासरत रहें कि विद्यालय किसी भी आधार पर भेद-भाव और पक्षपात नहीं रहे तथा बालकों में सामूहिकता की भावना का विकास हो । सह-शिक्षा के द्वारा बालकों तथा बालिकाओं के मन में प्रारम्भ से ही स्वस्थ दृष्टिकोण, सहयोग और आदर की प्रवृत्ति का विकास होता है। शिक्षकगण यह प्रयास करते हैं कि विद्यालय में प्रेम तथा भ्रातृत्व आदि गुणों का विकास किया जाये और विद्यार्थियों में सामूहिकता की भावना विकसित किया जाये ।

लिंगीय आधार पर शिक्षक को टीका-टिप्पणी और भेद-भाव नहीं करना चाहिए और यही सीख बालकों को भी देनी चाहिए। यौन जीवन की मूल प्रतिक्रियाओं को विषयों की जानकारी प्रदान करनी चाहिए। पाठ्यक्रम में प्रजनन तथा शरीर विज्ञानादि के ज्ञान को सम्मिलित किया जाता है, अतः शिक्षक को प्रभावपूर्ण ज्ञान प्रदान करना चाहिए। बालक तथा बालिकाओं के साथ समान व्यवहार करना चाहिए तथा समानतापूर्ण व्यवहार की सीख देनी चाहिए ताकि परस्पर सहयोग की भावना विकसित हो सके। लिंगीयहीनता बोधक व्यवहार तथा शब्दावली का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

विद्यार्थियों में स्वस्थ लैंगिक दृष्टिकोण का विकास करना चाहिए तथा खेल-कूद की समुचित व्यवस्था की जानी चाहिए। बालक-बालिकाओं में अन्तःक्रिया तथा सहयोग प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। शरीर विज्ञान की शिक्षा के साथ-साथ यौन विषयी प्रश्नों के उत्तर तथा समस्याओं के समाधानों का प्रस्तुतीकरण किया जाना चाहिए। पुरुषत्व तथा स्त्रीत्व का समुचित निर्देशन होना चाहिए। कार्यशालाओं, प्रश्नोत्तर तथा अन्य मनोरंजनात्मक क्रियाओं द्वारा ज्ञान प्रदान करना चाहिए। आत्म-संयम की प्रवृत्ति का विकास करना चाहिए। यौन सम्बन्धों में स्वेच्छा नहीं अपितु उत्तरदायित्व का बोध हो, यह सिखाना चाहिए। यौन सम्बन्ध के विचार और भारतीय समाज की मान्यताओं से अवगत कराना चाहिए ।

बालिकाओं के प्रति अभद्र व्यवहार एवं आचरण तथा भाषायी प्रयोग न करने की सीख देनी चाहिए। विवाह तथा परिवार के महत्त्व से अवगत कराना चाहिए।

शिक्षक को मनोवैज्ञानिकता का ज्ञान अवश्य हो तथा उनका सन्तुलित व्यक्तित्व होना चाहिए। शिक्षक में नेतृत्व की क्षमता उच्च शैक्षिक पृष्ठभूमि तथा योग्यता, व्यक्तिगत समायोजन तथा वृत्तिक समर्पण का होना भी नितान्त आवश्यक है। शिक्षक का अच्छा स्वास्थ्य, निष्ठावान, उत्तरदायित्व के बोध से युक्त तथा नैतिक आचरण वाला होना भी जरूरी है। शिक्षक को प्रभावी निर्देशन तथा परामर्श हेतु अन्य अभिकरणों के साथ ताल-मेल स्थापित करना चाहिए। उचित प्रशिक्षण कार्यक्रमों द्वारा शिक्षकों को प्रशिक्षण प्रदान करना ‘चाहिए। कार्यशालाओं इत्यादि के आयोजन द्वारा समय-समय पर शिक्षकों को प्रभावी निर्देशन तथा परामर्श के लिए नए तरीकों से अवगत कराना चाहिए। इस सम्बन्ध में शिक्षक को जेण्डर संवेदनशील होना चाहिए तथा इस हेतु भावी शिक्षकों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए, जिससे सकारात्मक लैंगिक झुकाव और यौन व्यवहारों को नियंत्रित करने की क्षमता का विकास किया जा सके।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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