जीवन दक्षता से क्या तात्पर्य है ? इसकी आवश्यकता एवं महत्त्व की विवेचना करें ।
जीवन दक्षता प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकतायें भोजन, वस्त्र तथा मकान हैं, जिनके बिना व्यक्ति जीवन व्यतीत नहीं कर सकता है। इन मूलभूत आवश्यकताओं के अतिरिक्त व्यक्ति के जीवन की कुछ भौतिक तथा आध्यात्मिक आवश्यकतायें हैं जो मनुष्य के शरीर, मन, बुद्धि तथा आत्मा को पोषित करती हैं। आदिकाल में मनुष्य के जीवन में दक्षता हेतु प्रशिक्षण का अभाव था, जिसके कारण वह वृक्षों की छाल पहनता था, कन्दराओं में निवास करता था और वृक्षों की छाल तथा पत्तियों से अपना शरीर ढ़कता था। जीवन दक्षता से तात्पर्य ऐसी दक्षता है जिसके द्वारा व्यक्ति को जीवन व्यतीत करने हेतु दक्ष अर्थात् कुशल बनाया जाता है। जीवन दक्षता के द्वारा व्यक्ति के जीवन के विविध पक्षों का कुशलता से जीने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। जीवन दक्षता के विभिन्न पक्ष इस प्रकार हैं-
- सामाजिक पक्ष में दक्षता
- सांवेगिक पक्ष में दक्षता
- आर्थिक पक्ष में दक्षता
- धार्मिक पक्ष में दक्षता
- व्यावसायिक पक्ष में दक्षता
- सांस्कृतिक पक्ष में दक्षता
- राजनैतिक पक्ष में दक्षता
- राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय पक्ष में दक्षता
1. सामाजिक पक्ष में दक्षता – सामाजिक पक्ष के अन्तर्गत सामाजिक सुधारों, सामाजिक व्यवस्था, ताना-बाना, सामाजिक समता और न्याय, सामाजिक परिवर्तन के कारकों, सामाजिक सौहार्द्र तथा सामाजिक जीवन को सफलतापूर्वक व्यतीत करने की शिक्षा प्रदान की जाती है सामाजिक जीवन में दक्षता को लिंगीय आधार प्रभावित करते हैं क्योंकि स्त्री-पुरुष दोनों के साहचर्य और संयोग द्वारा सामाजिक जीवन चलता है। अकेले पुरुष या स्त्री कोई भी दोनों में से सामाजिक पक्षों का संचालन अकेले नहीं कर सकता है। इसी कारण से प्राचीन काल से ही स्त्री-पुरुषों के कार्यों, अधिकारों और उत्तरदायित्वों का बँटवारा कर दिया गया था जो आज रूढ़ हो गयी हैं। लिंगानुसार सामाजिक जीवन में दक्षता आवश्यक है, क्योंकि स्त्री-पुरुष दोनों की शारीरिक संरचना ही अलग नहीं है, अपितु उनकी रुचियाँ विचार तथा गुणों में भिन्नता है और ये दोनों मिलकर सामाजिक ढाँचे को सुचारु रूप से आगे बढ़ाते हैं ।
2. सांवेगिक पक्ष में दक्षता- बालक तथा बालिकाओं की वृद्धि तथा विकासक्रम में कुछ असमानतायें उनके लिंग के कारण होती हैं। सांवेगिक रूप से बालिकायें और बालकों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। मनुष्य जानवरों से इसीलिए अलग और श्रेष्ठ माना जाता है कि वह बुद्धि के प्रयोग द्वारा अपने संवेगों को नियंत्रित तथा मार्गान्तरीकृत करता है। सांवेगिक दक्षता में प्रशिक्षण की आवश्यकता वर्तमान में अत्यधिक है क्योंकि सांवेगिक अस्थिरता व्यक्ति के जीवन के प्रत्येक पक्ष और विकास को प्रभावित कर कुण्ठा और आपराधिक प्रवृत्ति की ओर अग्रसर करती है। बालक तथा बालिकाओं को प्रारम्भ से ही उनके लिंग की विशेषताओं, आवश्यकताओं के अनुरूप सांवेगिक प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिए जिससे वे जीवन में अच्छे मनुष्य बन सकें, संवेगों के बहाव को नियंत्रित कर सकें, सांवेगिक आतुरता मैं गलत निर्णय लेने से बचें। इस प्रकार लिंग की भूमिका सांवेगिक दक्षता के विकास हेतु है।
3. आर्थिक पक्ष में दक्षता- आर्थिक पक्ष में दक्षता की आवश्यकता अत्यधिक है। मनुष्य अपने जीवन की मूलभूत और विलासपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति आर्थिक जीवन में दक्षता प्राप्त किये बिना नहीं कर सकता है। स्त्रियों को लिंग के आधार पर घरेलू कार्यों का दायित्व दे दिया गया और आर्थिक जीवन में उनकी भागीदारी न के बराबर रह गयी, परन्तु वर्तमान में लिंगीय असमानता को समाप्त करने के लिए पुरुषों की ही भाँति स्त्रियों को भी आर्थिक दक्षता का प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है। आर्थिक दक्षता पर लिंग का प्रभाव स्पष्ट असे परिलक्षित होता है। स्त्रियों और पुरुषों के स्वभाव के चयन में अन्तर प्राप्त होता है। रूप स्त्रियाँ आर्थिक दक्षता के लिए कम जोखिमपूर्ण क्षेत्रों का चयन करती हैं और उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए गृह विज्ञान, पाक कला, बाल विज्ञान तथा पोषण विज्ञान आदि पर बल दिया जाता ।
4. धार्मिक पक्ष में दक्षता- धर्म व्यक्ति को उसके कर्त्तव्यों, अच्छाईयों तथा बुराईयों से अवगत कराकर मानसिक शान्ति और आत्मिक उत्थान करने में सहायता प्रदान करता है । स्त्री तथा पुरुषों का लिंगीय आधार पर धार्मिक दक्षता हेतु प्रशिक्षित किया जाता है। धार्मिक परम्पराओं का पालन और उसके हस्तान्तरण का कार्य स्त्रियाँ करती हैं, अतः उनके प्रशिक्षण की आवश्यकता अत्यधिक है जिससे धर्म के संकुचित रूप नहीं, व्यापक रूप का प्रशिक्षण प्रदान कर भावी पीढ़ियों से भी संकीर्णता को समाप्त किया जा सके। अच्छे जीवन के लिए धार्मिक दक्षता का महत्त्व अत्यधिक है धर्म ही व्यक्ति को शान्ति और आन्तरिक ऊर्जा प्रदान करता है। धार्मिक पक्ष में स्त्रियों की अनदेखी की जाती रही है, जिसको समाप्त कर वैदिक काल की भाँति स्त्रियों को पुरुषों की ही भाँति धार्मिक जीवन के लिए दक्ष किया जाना चाहिए।
5. व्यावसायिक पक्ष में दक्षता- स्त्रियों को व्यवसायों में भागीदारी देने की अपेक्षा घरेलू कार्यों में ही संलग्न रखा जाता है, परन्तु वर्तमान में लैंगिक मिथकों को तोड़ती हुई स्त्रियाँ घरेलू व्यवसायों के साथ-साथ अपना स्वयं का व्यवसाय भी कर रही हैं। व्यावसायिक पक्ष में दक्षता के लिए बालिकाओं को उनकी रुचि तथा विशिष्ट आवश्यकता के अनुरूप व्यावसायिक विषयों के चयन की स्वतन्त्रता तथा उपलब्धता और व्यावसायिक निर्देशन तथा परामर्श की व्यवस्था प्रदान की जानी चाहिए। व्यावसायिक जीवन में दक्षता के द्वारा स्त्रियाँ स्वावलम्बी बनेंगी, देश तथा समाज में गतिशीलता आयेगी, जिससे लैंगिक भेद-भावों में कमी आयेगी व्यावसायिक पक्ष में स्त्रियों की दक्षता के परिणामस्वरूप जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि होती है।
6. सांस्कृतिक पक्ष में दक्षता- पुरुषों की अपेक्षा सांस्कृतिक विरासतों के संरक्षण और भावी पीढ़ी तक हस्तान्तरण का कार्य स्त्रियों द्वारा अधिक सफलतापूर्वक सम्पन्न किया जाता है। सांस्कृतिक तत्त्वों, उनकी उत्तरजीविता और उसमें स्त्रियों की भूमिका इत्यादि से स्त्रियों को अवगत कराकर स्वस्थ सांस्कृतिक परम्परा की नींव डाली जा सकती है। इस प्रकार संस्कृति में स्त्रियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका स्त्री-पुरुष के मध्य सहयोग की अभिवृत्ति का विकास होने से लैंगिक भेद-भावों में कमी आयेगी ।
7. राजनैतिक पक्ष में दक्षता- राजनीति में पुरुषों की प्रधानता और उनका वर्चस्व देखा जा सकता है, परन्तु महिलायें अब राजनीति के उच्च पदों पर आसानी हो रही हैं और राजनीति में उनकी प्रभावी भूमिका के लिए इनको राजनैतिक दक्षता के लिए बिना किसी लैंगिक भेद-भाव के प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। अब यह भ्रम टूट रहा है कि स्त्रियाँ राजनीति के लिए अनुपयुक्त हैं। वर्तमान में लिंगीय भेद-भावों से ऊपर उठकर महिलाओं के जीवन स्तर (Quality of life) में वृद्धि के लिए उन्हें राजनीति में दक्ष बनाया जा रहा है ।
8. राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय पक्ष में दक्षता- राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों में भी स्त्रियों को बिना स्त्री-पुरुष के भेद-भाव के प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। स्त्रियों को करुणा, प्रेम, दया, त्याग और विश्व शान्ति का अग्रदूत माना जाता है। वर्तमान में वैश्वीकरण, उदारीकरण, संचार और सूचना क्रान्ति के कारण कोई भी राष्ट्र अलग-थलग नहीं रह सकता । ऐसे में स्त्रियों की अनदेखी नहीं की जा सकती है और राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों से उनको पृथक नहीं रखा जा सकता यदि देश की और विश्व मानवता की सच्ची सेवा और उन्नति करनी है। राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व के मुद्दों पर स्त्रियों को प्रशिक्षित कर उनकी शक्तियों का भरपूर उपयोग कर जीवन दक्षता में वृद्धि करनी चाहिए। इस प्रकार लिंगीय अभेदपूर्णता के कारण स्त्रियाँ पुरुषों के समान ही राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों पर जागरूक होकर जागरूकता का प्रचार-प्रसार करेंगी, जिससे जीवन की दक्षता तथा गुणवत्ता में वृद्धि का कार्य शीघ्रता से सम्पन्न होगा।
जीवन दक्षता : आवश्यकता तथा महत्त्व जीवन दक्षता की आवश्यकता स्त्रियों और पुरुषों दोनों के लिए समान रूप में उपादेय है। स्त्रियों पर उनका सम्पूर्ण परिवार आश्रित रहता है, अतः उनका जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में कुशल अर्थात् दक्ष होना अत्यावश्यक है चाहे वह घर की रसोई हो या बाहरी वातावरण। पर्यावरण, जनसंख्या, विश्व शान्ति एवं भ्रातृत्व, स्वास्थ्य एवं पोषण, रोजगार एवं व्यवसाय इत्यादि कोई भी विषय ऐसा नहीं है जिसको स्त्रियों से पृथक् करके देखा जा सके। जीवन दक्षता की आवश्यकता तथा महत्त्व को निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत वर्णित किया जा सकता है-
- जीवन की गुणवत्ता हेतु जीवन दक्षता की आवश्यकता है।
- भौतिक सुख-सुविधाओं तथा ऐश्वर्य की प्राप्ति हेतु जीवन दक्षता की आवश्यकता होती है।
- जीवन दक्षता के द्वारा व्यक्ति अपनी सभी प्रकार की क्रियाओं का सम्पादन अविराम गति से करता है।
- जीवन दक्षता व्यक्ति को उसके सर्वश्रेष्ठ गुण को बाहर निकालने में सहायता करती है।
- जीवन दक्षता के द्वारा अन्तर्निहित शक्तियों का सर्वोत्तम विकास होता है।
- जीवन दक्षता परिवार के भरण-पोषण के लिए आवश्यक है।
- जीवन दक्षता का सदुपयोग स्वस्थ मनोरंजनात्मक क्रियाओं के लिए आवश्यक है।
- जीवन दक्षता पर्यावरण, जनसंख्या इत्यादि मुद्दों पर जागरूकता लाने के लिए आवश्यक है।
- जीवन दक्षता विश्व शान्ति और भ्रातृत्व के लिए आवश्यक है।
- जीवन दक्षता सन्तुलित व्यक्तित्व तथा सृजनात्मकता का विकास करती है।
- जीवन दक्षता सभी प्रकार की योग्यताओं का विकास करती है।
- जीवन दक्षता के द्वारा देश-प्रेम और एकता की भावना का विकास होता है।
- जीवन दक्षता के द्वारा लैंगिक मुद्दों के प्रति जागरूकता का विकास होता है।
- जीवन दक्षता के द्वारा सामाजिक कुरीतियों की समाप्ति होती है।
- जीवन दक्षता आर्थिक विकास के लिए अत्यावश्यक है।
- जीवन दक्षता का प्रभाव व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन से लेकर राष्ट्रीय विकास तक पड़ता है।
- जीवन दक्षता व्यक्ति को कत्र्त्तव्यनिष्ठ बनाती है।
- जीवन दक्षता सामुदायिक जीवन हेतु व्यक्ति को तैयार करती है।
- जीवन दक्षता वैज्ञानिक तथा तकनीकी आविष्कार के लिए आवश्यक है।
- जीवन दक्षता जीवन की गुणवत्ता के लिए आवश्यक है।
- जीवन दक्षता के द्वारा अन्तर्राष्ट्रय सम्बन्धों में सुधार होता है
- जीवन दक्षता सामाजिक सक्रियता और श्रम के प्रति उचित दृष्टिकोण विकसित करती है।
- आधुनिकीकरण की प्रक्रिया हेतु आवश्यक है।
- जीवन दक्षता साथ रहने, साथ-साथ सीखने, क्रिया करने और अस्तित्व का विकास करती है।
- स्त्रियों की समानता और स्वतन्त्रता के लिए महत्त्वपूर्ण है ।
इस प्रकार हम निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि जीवन दक्षता अत्यावश्यक है। जीवन दक्षता के द्वारा स्त्री-पुरुषों के जीवन में गुणवत्ता आती है और लिंगीय भेद-भावों में कमी आती है। जीवन दक्षता के द्वारा ही स्त्री-पुरुषों के मध्य भेद-भावों में कमी आती है और स्त्रियों की प्रतिभा और अन्तर्निहित शक्तियों का विकास होता है, जिससे उन्हें समानता और स्वतन्त्रता प्राप्त होती है । जीवन के प्रत्येक क्षेत्र, घर-गृहस्थी के चूल्हा-चौके से लेकर राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय विषयों हेतु अत्यावश्यक होता है। दक्षता के द्वारा प्रबन्धन कौशल का स्त्रियों में विकास होता है जिससे वे पारिवारिक तथा काम-काज के स्थलों पर भली प्रकार से कार्य करती हैं और विकास के पथ पर अग्रसर होती है। लिंगीय मुद्दों में कमी का एक माध्यम है वंचितों तथा उपेक्षित लोगों को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में दक्ष तथा कार्य कुशल बना देना, जिससे वे अपनी दीन-हीन स्थिति से ऊपर उठकर मुख्य धारा में आ सकें ।
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