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बालिका विद्यालयीकरण से क्या तात्पर्य है ? इसके उद्देश्य, महत्त्व एवं आवश्यकता | What do you mean by School of Girls? Objectives, Importance and Need

बालिका विद्यालयीकरण से क्या तात्पर्य है ? इसके उद्देश्य, महत्त्व एवं आवश्यकता | What do you mean by School of Girls? Objectives, Importance and Need
बालिका विद्यालयीकरण से क्या तात्पर्य है ? इसके उद्देश्य, महत्त्व एवं आवश्यकता | What do you mean by School of Girls? Objectives, Importance and Need

बालिका विद्यालयीकरण से क्या तात्पर्य है ? What do you mean by School of Girls?

बालिका विद्यालयीकरण से तात्पर्य है— बालिकाओं की विद्यालय में पहुँच अथवा उपस्थिति दर्ज कराना । स्वतन्त्रता के पश्चात् बालिकाओं की शिक्षा को उनकी वैयक्तिक उन्नति न मानकर समाज और राष्ट्र की उन्नति से जोड़कर देखा जा रहा है । बालिका विद्यालयीकरण में बालिकाओं का विद्यालयी कक्षा में नामांकन और उनकी उपस्थिति की निरन्तरता बनाये रखने से है। बालिका विद्यालयीकरण इस प्रकार बालिकाओं की शिक्षा से सम्बद्ध है जिसके अन्तर्गत वे विद्यालयी शिक्षा निर्बाध और अनिवार्य रूप से प्राप्त कर सकें । बालिका विद्यालयीकरण के लिंगीय, जातीय, आर्थिक, सामाजिक इत्यादि किसी भी आधार पर भेद-भाव न करके उनकी शिक्षा और विद्यालय में नियमित आने हेतु प्रयास किये जाते हैं ।

उद्देश्य (Aims ) — बालिका विद्यालयीकरण के उद्देश्य विभिन्न कालों में भिन्न-भिन्न रहे हैं, क्योंकि शिक्षा पर समाज का प्रभाव अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष दोनों ही प्रकार से पड़ता है। अतः विभिन्न कालों में बालिकाओं की शिक्षा के उद्देश्य निम्न प्रकार रहे हैं-

बालिका शिक्षा के उद्देश्य

1. प्राचीन काल

  • आचरण की शुद्धता
  • पवित्र जीवन की तैयारी
  • चारित्रिक उत्थान
  • ज्ञान की प्राप्ति
  • सत्य की खोज
  • सुयोग्य सन्तानों हेतु

2. मध्य काल

  • इस्लाम की शिक्षाओं को जानना
  • कुरान तथा शरियत से अवगत होना
  • इस्लाम धर्म का समुचित पालन करने की सीख
  • जीवन के कर्त्तव्यों का पालन करना

3. आधुनिक काल

  • नौकरी प्राप्ति हेतु
  • आर्थिक आत्म-निर्भरता तथा स्वावलम्बन
  • लोकतंत्रीय आदर्शों की पूर्ति हेतु
  • राष्ट्रीय विकास हेतु
  • सभ्य समाज के निर्माण निर्वहन के लिए
  • स्त्रियों के अस्तित्व तथा आत्म-सम्मान हेतु
  • सुयोग्य नागरिकों तथा भावी पीढ़ी के निर्माण हेतु
  • सर्वांगीण विकास हेतु

इस प्रकार हम देखते हैं कि प्राचीन कालीन स्त्री शिक्षा में स्त्रियों की शिक्षा, उनकी आध्यात्मिक तथा भौतिक, दोनों ही प्रकार की उन्नति कराती हैं, परन्तु मध्यकाल तक आते-आते स्त्रियों की पारिवारिक और सामाजिक अर्थात् घर तथा बाहर दोनों ही स्थलों पर कमजोर हो गयी । आधुनिक काल में लोकतन्त्र की सुदृढ़ नींव रखने के लिए स्त्रियों की शिक्षा पर अत्यधिक बल दिया जाने लगा जहाँ एक बार फिर वे पारिवारिक उत्तरदायित्वों के साथ-साथ अपने व्यक्तित्व विकास और राष्ट्रीय विकास में शिक्षा के द्वारा अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने लगी हैं।

महत्त्व तथा आवश्यकता (Importance and Need)

आज ज्ञान-विज्ञान ने चाहे जितनी भी उन्नति क्यों न कर ली हो, कितने ही बड़े-बड़े औपचारिक शिक्षण संस्थानों की स्थापना हो गयी हो, कितने ही सुयोग्य तथा प्रशिक्षित शिक्षकों की नियुक्ति कर दी गयी हो, परन्तु माता को ही बच्चे की प्रथम शिक्षिका माना जाता है। स्त्री शिक्षा के विषय में महात्मा गाँधी का कथन अक्षरशः सत्य प्रतीत होता है कि जब एक स्त्री शिक्षित होती है तो उसका पूरा परिवार शिक्षित हो जाता है, जबकि एक पुरुष शिक्षित होता है तो वह स्वयं ही शिक्षित होता है। इस प्रकार बालिका शिक्षा अर्थात् बालिका विद्यालयीकरण की आवश्यकता और महत्त्व का क्षेत्र अति व्यापक है जो निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत दृष्टव्य है-

1. पारिवारिक उन्नति हेतु

2. योग्य सन्तान हेतु

3. आर्थिक स्वावलम्बन हेतु

4. राष्ट्रीय एकता तथा उन्नति हेतु

5. सांस्कृतिक संरक्षण हेतु

6. मानवीय संसाधन की गुणवत्ता हेतु

7. संवैधानिक प्रावधानों की रक्षा हेतु

8. सभ्य समाज की स्थापना हेतु

9. जागरूकता हेतु

10. नेतृत्व हेतु

11. स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता हेतु

12. सामाजिक कुरीतियों की समाप्ति हेतु

1. पारिवारिक उन्नति हेतु— पारिवारिक उन्नति में स्त्रियों का योगदान पुरुषों की ‘अपेक्षा अधिक होता है, क्योंकि पारिवारिक सुख-शान्ति की नींव उन्हीं के कर-कमलों द्वारा रखी जाती है। बालिका विद्यालयीकरण की आवश्यकता और उनकी शिक्षा का महत्त्व इस दृष्टि से भी अत्यधिक है, क्योंकि पढ़ी-लिखी बालिका जब पारिवारिक उत्तरदायित्वों का निर्वहन करेगी तो उसकी समझदारी से पारिवारिक सदस्यों में प्रेम तथा सहयोग इत्यादि सकारात्मक भावनाओं का विकास होगा, जिससे पारिवारिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त होगा ।

2. योग्य सन्तान हेतु – बालिका विद्यालयीकरण इस हेतु भी महत्त्वपूर्ण और आवश्यक है कि गर्भ में नौ माह तक सन्तान को वही रखती है, उसके विचारों का अप्रत्यक्ष प्रभाव यहाँ पड़ता है। जन्म के पश्चात् भी प्रारम्भ के कुछ वर्षों में सन्तान सर्वाधिक माता के सान्निध्य में रहता है, इसीलिए परिवार को बालक की प्रथम पाठशाला तथा माता को प्रथम शिक्षिका कहा जाता है । शिक्षित बालिकाओं द्वारा भविष्य में सुयोग्य तथा कर्तव्यनिष्ठ सन्तानों को जन्म दिया जायेगा ।

3. आर्थिक स्वावलम्बन हेतु— दैनिक व्यवहार में भी यह देखने को मिलता है कि शिक्षित व्यक्तियों की अपेक्षा अशिक्षित व्यक्तियों की कार्यकुशलता कम होती है । अतः बालिकाओं में शिक्षा के प्रसार द्वारा उनके आर्थिक स्वावलम्बन की नींव डाली जाती है। बालिकाओं को लिंगीय असमानता का शिकार होना पड़ता है जिसे दूर करने हेतु उनके आर्थिक स्वावलम्बन पर बल दिया जा रहा है और यह कार्य शिक्षा के द्वारा ही सम्भव है ।

4. राष्ट्रीय एकता तथा उन्नति हेतु— राष्ट्रीय एकता और उन्नति में स्त्रियों की भूमिका सराहनीय रही है। बालिकाओं के विद्यालयीकरण के द्वारा उन्हें जनसंख्या, पर्यावरण, राष्ट्रीय एकता में बाधक तत्त्व अन्तर्राष्ट्रीयता की आवश्यकता इत्यादि से परिचय कराया जाता है और वे अपने जीवन में इन शिक्षाओं का प्रयोग करके राष्ट्रीय एकता और उन्नति में सहयोग प्रदान करती हैं।

5. सांस्कृतिक संरक्षण हेतु — बालिका विद्यालयीकरण के द्वारा उन्हें भारत की अमूल्य संस्कृति और सांस्कृतिक धरोहरों से परिचित कराया जाता है जिसके कारण वे अपनी पारिवारिक संस्कृति के साथ-साथ भारतीय संस्कृति को पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तान्तरित करके संरक्षण प्रदान करने का कार्य करती हैं। पढ़ी-लिखी स्त्रियाँ संस्कृति के गलत तत्त्वों की अपेक्षा उसके सकारात्मक पक्षों को संरक्षित करती हैं। ऐसी ही सांस्कृतिक कथा-कहानियों और लोकोक्तियों को हम दादी, नानी के मुख से सुनकर बड़े हुए हैं।

6. मानवीय संसाधन की गुणवत्ता हेतु- किसी भी देश के विकास में प्राकृतिक तथा मानवीय संसाधनों की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता हो, परन्तु मानवीय संसाधन न हों या अशिक्षित और अकुशल हों तो राष्ट्रीय विकास नहीं हो सकता है । शिक्षा के द्वारा महिलाओं, जो महत्त्वपूर्ण मानवीय संसाधन हैं, उनका समुचित उपयोग किया जाता है। इस प्रकार बालिका विद्यालयीकरण के द्वारा मानवीय संसाधन के रूप में उनकी गुणवत्ता और दक्षता का विकास किया जाता है।

7. संवैधानिक प्रावधानों की रक्षा हेतु— संविधान में स्वतन्त्रता, समानता तथा न्याय इत्यादि के जो प्रावधान किये गये हैं वे स्त्रियों तथा अन्य पिछड़े वर्गों को समान धारा में लाने के लिए किये गए हैं, परन्तु शिक्षा के बिना इन प्रावधानों से लाभान्वित नहीं हुआ जा सकता है । अत: संवैधानिक प्रावधानों की रक्षा करने के लिए बालिका विद्यालयीकरण को प्रोत्साहित किया जाना अत्यावश्यक है।

8. सभ्य समाज की स्थापना हेतु- बालिकाओं की शिक्षा की उपेक्षा करके कोई भी समाज सभ्य समाज नहीं बन सकता, क्योंकि कोई भी परिवर्तन परिवार और घर से प्रारम्भ होता है, जिसकी अग्रदूत स्त्रियाँ होती हैं। अतः बालिका विद्यालयीकरण सभ्य समाज की स्थापना के लिए आवश्यक और महत्त्वपूर्ण है ।

9. जागरूकता हेतु-  समाज में अनेक प्रकार की रूढियाँ, अन्ध-विश्वास तथा कुरीतियाँ व्याप्त हैं जिन्हें अशिक्षित स्त्रियाँ पीढ़ी-दर-पीढ़ी वहन करती रहती हैं, परन्तु समाज में जागरूकता तभी आयेगी जब बालिकाओं के विद्यालयीकरण को गति प्राप्त होगी । दहेज-प्रथा, बाल-विवाह, प्रर्दा प्रथा, पुत्र की प्रधानता आदि कुरीतियों के प्रति जागरूकता बालिकाओं के विद्यालयीकरण द्वारा लायी जा सकती है ।

10. नेतृत्व हेतु— बालिका विद्यालयीकरण के द्वारा विद्यालय में बालिकाओं में नेतृत्व की क्षमता का विकास किया जाता है, जिससे वे पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, प्रबन्धन आदि क्षेत्रों में नेतृत्व के लिए तैयार होती हैं। महिलायें श्रेष्ठ नेतृत्वकर्त्ता सिद्ध हो रही हैं, अतः विद्यालयीकरण की आवश्यकता उनमें नेतृत्व के गुणों के विकास हेतु भी है।

11. स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता हेतु- घर के सदस्यों तथा सन्तानों के खान-पान और आहार-व्यवस्था की जिम्मेदारी का निर्वहन भारतीय समाज में महिलाओं द्वारा ही किया जाता है। ऐसी स्थिति में उन्हें सन्तुलित आहार, पोषक तत्त्वों, संक्रामक बीमारियों के लक्षण तथा बचाव आदि से परिचित होना चाहिए। बालिका शिक्षा के अन्तर्गत इन विषयों का समावेश होता है अशिक्षा के कारण भारत में कितने बच्चे और स्त्रियाँ कुपोषण की शिकार हैं, बीमारियों से ग्रस्त हैं, रक्ताल्पता इत्यादि बीमारियों से ग्रस्त हैं । अशिक्षित स्त्रियाँ अपने तथा परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रख पाती हैं और गरीबी में बीमारी की मार झेलने के कारण उनकी स्थिति और भी बुरी हो जाती है। अशिक्षा के कारण कितने बच्चे डायरिया से मर जाते हैं, संक्रमित भोजन खाकर बीमार पड़ जाते हैं, दूषित पानी पीकर मर तक जाते हैं। भारत में मातृ मृत्यु दर 677 प्रति लाख है तथा शिशु मृत्यु-दर भी अत्यधिक है । अतः स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता लाने के लिए भी बालिका विद्यालयीकरण महत्त्वपूर्ण है ।

12. सामाजिक कुरीतियों की समाप्ति हेतु – सामाजिक कुरीतियों की शुरुआत भी घर तथा परिवार से होती है। लड़के-लड़की में भेद-भाव, लड़कियों को बोझ समझना, टोना-टोटका, अन्ध-विश्वास इत्यादि समाज में फैली कुरीतियों की समाप्ति बालिका विद्यालयीकरण द्वारा उनकी शिक्षा के प्रबन्ध से ही सम्भव है।

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About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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