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पारंपरिक लिंग भूमिकाओं से आप क्या समझते हैं ? What do you understand by Traditional Gender Roles?
जेंडर भूमिकाएँ- “जेंडर” शब्द की व्युत्पत्ति फ्रांसीसी शब्द “जेनर” से हुई ‘जिसका अर्थ लिंग (सेक्स) है। लिंग का अर्थ शारीरिक लक्षणों, क्रोमोसोम, हारमोन और गौण यौन विशेषताओं की दृष्टि से महिला और पुरुष के बीच का द्वि-अंगी विभाजन है। जबकि जेंडर का अर्थ स्त्री और पुरुषों की उन विशेषताओं से है जो सामाजिक कारकों से बनती हैं। जीवन प्रत्याशा में जेंडर अंतर की जाँच करते समय हम उत्तरजीविता पर सामाजिक प्रभावों का हलावा देते हैं। जैसे पुत्र प्राप्ति को प्राथमिकता देना और शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, पोषण आदि के मुद्दों में महिलाओं और लड़कियों से भेदभाव करना। दरअसल, पुरुष और महिलाओं के बीच के अंतर तीन स्रोतों से बनते हैं; (i) जीवविज्ञान, (ii) समाज में पुरुषों एवं महिलाओं की पारम्परिक भूमिकाएँ और (iii) समाज में व्याप्त आस्थाएँ एवं मत ।
पुरुष और महिलाओं के बीच की मौजूदा असमानताएँ और महिलाओं का पुरुषों के अधीन होना ऐसा एक क्षेत्र है जहाँ लिंग जेंडर के बीच के फर्क का पता चलता है। पुरुष और महिलाओं को समाज द्वारा सौंपी जाने वाली जेंडर- आधारित भूमिका को समझना बेहद जरूरी है वास्तव में ये सभी पारम्परिक भूमिकाएँ मानव जीवन के हर पहलू को प्रभावित करती हैं। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि जेंडर भूमिकाएँ ऐसा व्यवहार समूह है निर्धारण पुरुषों एवं महिलाओं के लिए समाज द्वारा किया जाता है।
चिरकाल से विविध संस्कृतियों एवं समाजों में व्याप्त जेंडर भूमिकाओं का गौण विश्लेषण पर्याप्त विभिन्नता को दर्शाता है। विश्वभर में हम देखते हैं कि लगभग सभी समाजों ने महिलाओं एवं पुरुषों को अलग-अलग भूमिकाएँ सौंपी हैं। असल में, इतिहास दर्शाता है। कि ऐसा बहुत कम हुआ है कि स्त्री/पुरुषों ने समान भूमिकाएँ निभाई हों या समान पदों पर काम किया हो, सिवाय कुछ विशेष मामलों को छोड़कर जहाँ पुत्री को विरासत में अपने पिता से शासन मिला हो अन्यथा पुरुषों को महिलाओं से हमेशा उच्च माना गया है। संक्षेप में • महिलाओं को दुर्बल और पुरुषों को प्रबल माना जाता है। पुरुषों को आजीविका अर्जक, परिवार का मुखिया और विविध क्षेत्रों में समाज का मुखिया माना जाता है। जबकि महिलाओं को जो पारम्परिक भूमिका मिली है, उसमें परिवार को बढ़ाना और घर की देखरेख करना, आदर्श-माँ, पत्नी, बहन और पुत्री की भूमिका निभाना और परिवार में पुरुष सदस्यों की खुशी के लिए अपने निजी हितों का बलिदान देना शामिल है।
जेंडर भूमिकाओं पर पड़ने वाला मुख्य प्रभाव ऐसी रूढ़िबद्ध लिंग भूमिकाओं से प्रभावित होता है जो हर समाज में कायम हैं। लगभग सभी पारम्परिक भूमिकाएँ पुरुष-निर्मित हैं इन्हें प्राकृतिक माना जाता है। दरअसल, ऐसी पुरुष निर्मित रूढ़ियाँ पीढ़ी दर पीढ़ी कायम हैं जिससे समाज में महिलाओं के साथ भेदभाव भी अभी तक बरकरार है। बच्चे के जन्म के साथ ही उसके लिंग की पहचान हो जाती है और जिससे उसे जेंडर- आधारित भूमिका सौंपने की शुरूआत होती है और यह प्रक्रिया बच्चे के वयस्क बनने तक कायम रहती है। अधिकांश रूढ़िबद्ध भूमिकाएँ या संदेश बच्चों को उनके माता-पिता, भाई-बहिनों, समसमूहों, समाज और जनसंचार माध्यमों द्वारा बचपन से ही मिलने शुरू हो जाते हैं। वास्तव में ये संदेश उन्हें बताते हैं कि कुछ व्यवहार लड़कियों के लिए नहीं सिर्फ लड़कों के लिए ही अपनाने योग्य हैं और इसी तरह कुछ सिर्फ लड़कियों के लिए ही हैं। बच्चा जब बड़ा होता है तो समान लिंग के अभिभावक जैसा खुद को देखने लगता है। लड़का अपने पिता की विशेषताओं और लड़की अपनी माँ की विशेषताओं को ग्रहण करने लगती है ।
जेंडर भूमिकाएँ विकास काल में भी किशोरों के व्यवहार को प्रभावित करना जारी रखती हैं। व्यावसायिक भूमिकाएँ, घरेलू भूमिकाएँ, नातेदारी संबंधी भूमिकाएँ, समुदाय नेतृत्व भूमिकाएँ, दांपतिक भूमिकाएँ और पैतृक भूमिकाएँ, किशोरावस्था के दौरान विकसित होती रहती हैं। ऐसी जेंडर परिभाषित भूमिकाओं में मनोवृत्ति, व्यवहार और मूल्य अभिविन्यास का विकास होता है और जिसे किसी सांस्कृतिक व्यवस्था में पुरुषों और महिलाओं के लिए सही माना गया है।
इसलिए विकास काल में युवाओं में उपयुक्त जेंडर भूमिका विकास को संवर्धित करने की जरूरत है ताकि महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव को चुनौती दी जा सके और समाज में जेंडर संबंधों की पारम्परिक आदर्श भूमिकाओं में बदलाव लाया जा सके। यदि हम सभ्य समाज बनाना चाहते हैं जहाँ पुरुष और महिलाएँ आत्मविश्वास के साथ सार्थक जीवन जी सकें तो हमें ऐसा बदलाव लाना ही होगा ।
जेंडर एवं लिंग भूमिकाओं का तुलनात्मक अध्ययन
जेंडर भूमिकाएँ | लिंग भूमिकाएँ |
1. एक समाज से दूसरे समाज में भिन्न हो सकती है। | 1. सभी समाजों में एक जैसी होती हैं, ये सार्वभौमिक है। जैसे- विश्वभर में बच्चों को जन्म महिलाएँ ही देती हैं । |
2. समय के साथ बदल सकती है। | 2. समय के साथ कभी बदलती नहीं है। |
3. इन्हें स्त्री/पुरुष दोनों निभा सकते हैं। | 3. इन्हें महिला/पुरुष कोई एक ही कर सकता है। |
4. इनका निर्धारण सामाजिक, सांस्कृतिक रूप से होता है । | 4. इनका निर्धारण जैविक रूप से होता है। |
जेंडर रूढ़ियाँ (Gender Stereotyping)
जेंडर रूढ़ियाँ वे धाराएँ हैं जो हम पुरुषों व महिलाओं के विषय में अपने मन में रखते हैं। प्रत्येक समाज पुरुषों तथा महिलाओं की भूमिकाओं को परिभाषित करता है और इन भूमिकाओं में उन्हें समाजीकृत करता है ताकि प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, इन मापदण्डों को ‘सामान्य’ एवं ‘प्राकृतिक’ मानकर स्वीकार कर ले। जैसे लड़कियों को सहनशील, गृहणी, नम्र, आज्ञाकारी एवं सौम्य होना चाहिए। जबकि लड़कों को मजबूत, परिवार का संरक्षक, चुस्त और आक्रामक होना चाहिए। लड़कियों और महिलाओं से अपेक्षित है कि वे—
- सौम्य, सहनशील, आदर करने वाली, दूसरों की देखरेख करने वाली और आज्ञाकारी हों ।
- घरेलू कामकाजों एवं बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी उठाने वाली हों।
- उनका पहनावा एवं बोलचाल का ढंग मर्यादापूर्ण हो ।
- पुरुषों को खुश करने वाली और उनकी आज्ञाकारी हो ।
- अपनी कामुकता को नियंत्रित करने योग्य हों और उनका रवैया संतुलित हो और वे अपनी कामभावना को दबाने वाली हों ।
लड़कों और पुरुषों से अपेक्षित है कि वे—
- परिवार के महत्वपूर्ण फैसले लें जैसे घरेलू खर्च या परिवार की संख्या बढ़ाने से जुड़े फैसले।
- विवाह करें और अपने परिवार की देखरेख करें ।
- मजबूत हों और अपनी संवेदनाओं को प्रकट न करें।
- सामान्य कामों में एवं यौन संबंधों में पहल करें।
- बहुत से समाज महिलाओं एवं लड़कियों की तुलना में पुरुषों एवं लड़कों को ज्यादा महत्व देते हैं।
- लड़कों की तुलना में लड़कियों को भोजन अक्सर कम मिलता है और इसी तरह उनके स्वास्थ्य की देखरेख पर भी लड़कों की तुलना में कम ही ध्यान दिया जाता है |
- लड़कियों का स्कूल जाना या पढ़ाई पूरी करना जरूरी नहीं माना जाता जबकि उनके भाइयों की शिक्षा-दीक्षा को प्राथमिकता दी जाती है।
- लड़कियों से भविष्य में पत्नी/माँ की भूमिका भलीभाँति निभाने के लिए पहले से ही घरेलू कामकाज में हाथ बँटाने की उम्मीद की जाती है। इसी तरह महिलाओं को अकेले घर से बाहर जाने की भी इजाजत नहीं होती ।
- हमारे देश में लड़कियों की बहुत ही छोटी आयु में शादी हो जाने से वे जल्द ही माँ भी बन जाती है ।
- लड़की के गर्भधारण करते ही, अक्सर उसका स्कूल छूट जाता है या उनके परिवार वाले ऐसी स्थिति में उन्हें पढ़ने की इजाजत नहीं देते जबकि लड़के के पिता बनने के बावजूद भी स्कूल में उसके आने का सिलसिला जारी रहता है।
- लड़कियों या महिलाओं को जमीन/जायदाद विरासत में नहीं मिलती या वे ऐसी जायदाद पर स्वामित्व का हक नहीं जमा सकतीं और न ही वे अपनी मर्जी से तलाक ले सकती हैं या कुछ संस्कृतियों में तलाक के बाद बच्चों की सुरक्षा का अधिकार उन्हें अपनी मर्जी से नहीं मिलता ।
- लड़कियों और महिलाओं को हिंसा, विशेष रूप से यौन हिंसा का खतरा अपेक्षाकृत अधिक होता है।
- लड़कियों एवं महिलाओं को काम करने या कुछ विशेष प्रकार के काम करने की मनाही होती है और पुरुषों की भाँति समान किस्म के काम करने के बावजूद भी, अकसर उन्हें ऐसे काम के लिए अपेक्षाकृत कम पैसे मिलते हैं। निर्णायक मंडलों में महिलाओं को कम महत्व दिया जाता है ।
- पुरुषों एवं लड़कों के साथ भी कई तरीकों से भेदभाव किया जाता है जैसे—उनसे मजबूत दिखने और अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने की उम्मीद की जाती है।
- कुछ खेल सिर्फ लड़कियाँ ही खेल सकती हैं और जिन्हें खेलने के शायद लड़के योग्य नहीं होते और लड़कों को अपनी माँ या अन्य महिलाओं के साथ ज्यादा समय व्यतीत करने से रोका जाता है ।
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