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जेंडर पहचान में परिवार की क्या भूमिका है ? (What is the role of family in gender identity ?)
परिभाषाएँ (Definitions)— परिवार के अर्थ को अधिक स्पष्ट करने के लिए कुछ परिभाषाएँ दृष्टव्य हैं-
मैकाइवर तथा पेज के अनुसार (According to Maciver and Page) – “परिवार एक ऐसा समूह है जो पर्याप्त रूप से लैंगिक सम्बन्ध पर आधारित होता है तथा जो इतना स्थायी होता है कि इसके द्वारा बालकों के जन्म तथा पालन-पोषण की व्यवस्था हो जाती है।”
“the family is a group defined by sex relationship sufficiently precise and enduring to province for the procreation and upbringing of children.”
क्लेयर के अनुसार (According to Clare) – ” परिवार से हम सम्बन्धों की वह व्यवस्था समझते हैं जो माता-पिता तथा उनकी सन्तानों के मध्य पायी जाती है।”
“By family we mean a system of relationship existing between parents and children.”
परिवार की विशेषताएँ (Characteristics of Family)
उपर्युक्त विवेचन के पश्चात् परिवार की निम्नांकित विशेषताएँ दृष्टिगत होती हैं-
- लैंगिक सम्बन्ध पर आधारित होता है ।
- पालन-पोषण तथा भरण-पोषण हेतु उत्तरदायी होता है।
- एकात्मक तथा संयुक्त दोनों ही रूपों में पाया जाता है।
- स्त्री-पुरुष दोनों की महत्ता होती है जिससे लैंगिक भेदभावों में कमी आती हैं।
- बालकों की प्राथमिक पाठशाला होती है ।
- रक्त सम्बन्धों पर आधारित होते हैं।
- मानव समाज की आधारभूत इकाई है ।
परिवार का महत्व एवं कार्य (Importance and Function of Family)
परिवार किसी भी देश की सामाजिक संरचना का ही नहीं, अपितु सांस्कृतिक, आर्थिक तथा राजनैतिक इत्यादि की संरचना में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है। कोई भी मनुष्य चाहे वह कितना भी सक्षम हो, परंतु उसे परिवार की आवश्यकता होती है। बिना परिवार के व्यक्ति के जीवन की कल्पना करना भी मुश्किल है। परिवार का महत्व तथा कार्य जानने से पूर्व इसके प्रकार मानना अत्यावश्यक है।
परिवार के दो प्रकार – संयुक्त परिवार, जिसमें माता-पिता के अतिरिक्त अन्य रक्त सम्बन्धी बाबा-दादी, चाचा-चाची आदि रहते हैं और एकाकी परिवार, जिसमें माता-पिता और उनकी सन्तानें रहती हैं। वर्तमान में आर्थिक गतिविधियों के परिणामस्वरूप एकाकी परिवारों का प्रचलन बढ़ा है। आर्थिक तथा सामाजिक आदि गतिविधियों के आधार पर ही हम गतिशील परिवार अर्थात् जो समय के साथ-साथ चलते हैं और परिवर्तनशील हैं, दूसरे रूढ़िवादी परिवार जो समय के साथ-साथ अपनी मान्यताओं सोच तथा दृष्टिकोण में परिवर्तन नहीं लाते हैं। इसी कारण इस प्रकार के परिवार पीछे रह जाते हैं। परिवार चाहे जिस प्रकार का भी हो, उसका महत्व बालक के जीवन में समाज और राष्ट्र के लिए अत्यधिक है। परिवार के महत्व का आकलन निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत किया जा सकता है-
1. बालक परिवार में ही उत्पन्न होता है । इस दृष्टि से परिवार महत्वपूर्ण है।
2. बालकों के पालन-पोषण का कार्य परिवार में सम्पन्न होने की दृष्टि से भी परिवार महत्वपूर्ण है।
3. परिवार से ही रहन-सहन, बोलचाल इत्यादि की शिक्षा मिलती है। अतः यह जीवन की प्राथमिक पाठशाला के रूप में महत्वपूर्ण है ।
4. परिवार से ही संवेगात्मक तथा मनोवैज्ञानिक सुरक्षा प्राप्त होती है।
5. परिवार चारित्रिक उन्नति, व्यक्तित्व विकास तथा समुचित शिक्षा की व्यवस्था करने के कारण महत्वपूर्ण है ।
6. सामाजीकरण (Socialization) की प्रक्रिया परिवार में ही सम्पन्न होती है। प्रेरणा तथा सीखने के लिए वातावरण का सृजन परिवार द्वारा किया जाता है।
7. कर्त्तव्यनिष्ठा, त्याग, धैर्य, ईमानदारी, सहयोग तथा परोपकार आदि गुणों का विकास परिवार में रहकर ही सम्भव हैं ।
8. परिवार बालक का स्वाभाविक विकास करने के कारण महत्वपूर्ण है ।
9. अनुशासन की नींव परिवार से ही पड़ती है। अतः परिवार महत्वपूर्ण है।
10. सामाजिक उत्तरदायित्व तथा देश-प्रेम की भावना का विकास परिवार में ही होता है ।
11. समानता तथा न्याय के आदर्शों का विकास परिवार में ही होता है।
12. परिवार में ही जाति-पाति, ऊँच-नीच इत्यादि संकीर्ण विचारों से मुक्त होकर उदारता की शिक्षा प्राप्त होती है।
13. परिवार लैंगिक मुद्दों पर संवेदनशीलता तथा समानता का दृष्टिकोण विकसित करने की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं ।
14. परिवार से पुश्तैनी धन्धों की शिक्षा प्राप्त होती है।
15. परिवार सांस्कृतिक विरासतों को हस्तान्तरित करने के कारण भी महत्वपूर्ण है। परिवार के महत्व के विषय में विचारकों में विचार निम्न प्रकार हैं-
लैंगिकता हेतु सामाजीकरण में परिवार की भूमिका (Role of Family in Gendered Socialization)
समाज में जाति, भाषा, धर्म, रंग, प्रजाति, देश, जन्मस्थान आदि के आधार पर मनुष्य, मनुष्यों से भेदभावपूर्ण व्यवहार सदियों से करता आया है। इसी प्रकार के एक भेदभाव है लैंगिकता को लेकर किया जाने वाला भेदभाव । स्त्री-पुरुष दोनों ही ईश्वर की अमूल्य कृतियाँ हैं या यूँ कहें कि एक व्यक्ति की दोनों आँखों के समान हैं, फिर भी स्त्रियों को सदैव पुरुषों की अपेक्षा नीचा समझा जाता है, उनसे सम्मानपूर्ण तथा बराबरी का व्यवहार नहीं किया जाता है। चूँकि किसी भी व्यक्ति में विचारों, आदशों, मान्यताओं तथा दृष्टिकोणों की नींव परिवार में पड़ती है । अतः इस ज्वलन्त समस्या का समाधान भी पारिवारिक पृष्ठभूमि में खोजने का प्रयास इन बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा रहा है-
- सर्वांगीण विकास का कार्य
- समानता का व्यवहार
- समान शिक्षा की व्यवस्था
- उदार दृष्टिकोण का विकास
- बालिकाओं के महत्व से अवगत कराना
- साथ-साथ रहने, कार्य करने की प्रवृत्ति का विकास
- पारिवारिक कार्यों में समान सहभागिता
- हीनतायुक्त शब्दावली का प्रयोग निषेध
- सामाजिक वातावरण में बदलाव
- अन्धविश्वासों तथा जड़ परम्पराओं का बहिष्कार
- उच्च चरित्र तथा व्यक्तित्व का निर्माण
- व्यावसायिक कुशलता की शिक्षा
- जिम्मेदारियों का अभेदपूर्ण वितरण
- आर्थिक संसाधनों पर एकाधिकार
- बालिकाओं को आत्म-प्रकाशन के अवसरों की प्रधानता
- सशक्त बनाना ।
इनका संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है-
1. सर्वांगीण विकास का कार्य— सर्वांगीण विकास से तात्पर्य है शरीर, मन तथा बुद्धि का समन्वयकारी विकास । परिवार को अपने सभी बच्चे, चाहे वे लड़की हों या लड़के को उनके सर्वांगीण विकास का प्रयास करना चाहिए, जिससे उनमें किसी भी प्रकार की हीनता का भाव न पनप पाये। जिन बालकों का सर्वांगीण विकास नहीं होता, उनमें हीनता की भावना व्याप्त रहती है और वे विकृत मानसिकता के शिकार होकर लैंगिक भेदभावों को जन्म देते हैं तथा महिलाओं के प्रति संकीर्ण विचार रखते हैं।
2. समानता का व्यवहार— परिवार में यदि लड़के-लड़कियों के प्रति समानता का व्यवहार किया जाता है, तो ऐसे परिवारों में लिंगीय भेदभाव कम होते हैं। समानता का व्यवहार के अन्तर्गत लड़के-लड़कियों को पारिवारिक कार्यों में समान स्थान, समान शिक्षा, रहन-सहन, और खान-पान की सुविधाएँ प्राप्त होनी चाहिए, जिससे प्रारम्भ से ही बालकों में श्रेष्ठता का बोध स्थापित न हो और वे बालिकाओं और भविष्य में महिलाओं के साथ समान व्यवहार करेंगे। पारिवारिक सदस्यों को चाहिए कि वे लिंगीय टिप्पणियाँ, भेदभाव तथा शाब्दिक निन्दा और दुर्व्यवहार कदापि न करें। क्योंकि बालक जैसा देखता है वह वैसा ही अनुकरण करता है। इस प्रकार परिवार में किया जाने वाला समानता का व्यवहार लैंगिक भेदभावों को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वहन करता है।
3. समान शिक्षा की व्यवस्था- परिवार में प्रायः देखा जाता है कि लड़के-लड़कियों की शिक्षा व्यवस्था में असमानता का व्यवहार किया जाता है, जिससे लड़कियाँ उपेक्षित और पिछड़ी रह जाती हैं। लड़कियों की शिक्षा की व्यवस्था भी उत्तम कोटि की करनी चाहिए, परंतु पैसे इत्यादि की समस्याओं के कारण लड़कियों की इत्यादि के अनुरूप शिक्षा व्यवस्था नहीं मिल पाती है, जिससे वे स्वावलम्बी नहीं बन पाती हैं। अतः लैंगिक भेदभाव को कम करने के लिए लड़कों के समान ही लड़कियों की शैक्षिक स्थिति उन्नत होने से सुधार आयेगा।
4. उदार दृष्टिकोण का विकास- परिवारों में महिलाओं और लड़कियों के प्रति संकीर्ण दृष्टिकोण बरता जाता है। पारिवारिक कार्यों तथा महत्वपूर्ण विषयों पर निर्णय लेते समय महिलाओं की राय पूछी तक नहीं जाती है और यही भाव परिवार की भावी पीढ़ियों में भी व्याप्त हो जाता । महिलाओं को कठोर और पारिवारिक प्रतिबन्धों में रहना पड़ता है। यदि उनसे कोई चूक हो जाये तो कठोर दण्ड दिये जाते हैं। इस प्रकार परिवार के सदस्यों तथा रीति-रिवाजों एवं परम्पराओं में महिलाओं के प्रति उदार दृष्टिकोण का विकास करना चाहिए। इस प्रकार महिलाओं को भी समुचित स्थान और सम्मान मिलेगा तथा उनको समानता का अधिकार मिलेगा ।
5. बालिकाओं के महत्व से अवगत कराना — परिवार को चाहिए कि वह अपने बालकों को बालिकाओं के महत्व से परिचित कराएँ जिससे वे इन पर धाक जमाने की बजाय सम्मान करना सीखें। बालिकायें ही बहन, माता, पत्नी आदि हैं और इन रूपों की उपेक्षा करके पुरुष का जीवन अपूर्ण रह जायेगा ।
6. साथ-साथ रहने, कार्य करने की प्रवृत्ति का विकास- परिवार को चाहिए कि वह अपने सदस्यों में, जिससे स्त्री-पुरुष के मध्य किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं रहता है, क्योंकि कार्य सम्पादन में दोनों ही एक-दूसरे का सहयोग कर रहे हैं। साथ-साथ कार्य करने की प्रवृत्ति के द्वारा महिलाओं की महत्ता स्थापित होती है जिससे लैंगिक भेदभावों में कमी आती है।
7. पारिवारिक कार्यों में समान सहभागिता- परिवार को अपने सभी सदस्यों की रुचि के अनुरूप कार्यों में सहभागिता सुनिश्चित करनी चाहिए न कि लिंग के आधार पर। अधिकांश परिवारों में लड़कों और लड़कियों के लिए कार्यों का एक दायरा बना दिया जाता है जो उचित है। इससे लड़कियाँ कभी भी बाहरी दुनियाँ और बाह्य कार्यों को कर नहीं पाती हैं और उन्हें इस हेतु अयोग्य जाता है और बाहरी कार्यों को करने में वे स्वयं भी असहज महसूस करने लगती हैं।
8. हीनतायुक्त शब्दावली का प्रयोग निषेध- परिवार में भाषा का प्रयोग कैसा हो रहा है, उसका प्रभाव भी लैंगिक भेदभावों पर पड़ता है। कुछ परिवारों में लड़कियों और महिलाओं के लिए हीनतायुक्त शब्दावलियों का प्रयोग किया जाता है। जिससे वे हीन भावना का शिकार हो जाती हैं और बालकों का मनोबल बढ़ता है। वे भी बालिकाओं को सदैव हीन समझकर उनके लिए हीनतायुक्त शब्दावली का प्रयोग करते हैं, जिससे लैंगिक भेदभावों को बढ़ावा मिलता है।
9. सामाजिक वातावरण में बदलाव— परिवार को चाहिए कि वह लड़के-लड़की में किसी भी प्रकार का भेदभाव न करें। ऐसी सामाजिक परम्परायें जिसमें लड़कियों के प्रति भेद भाव किया जाता है और उनकी सामाजिक स्थिति में ह्रास आता हो, ऐसी स्थितियों में परिवार को बदलाव लाने की पहल करनी चाहिए। परिवार से ही सामाजिक वातावरण को सुधारा जा सकता है क्योंकि समाज परिवार का समूह होता है। इस प्रकार परिवार को लैंगिक भेदभावों तथा महिलाओं की लत स्थिति हेतु कृतसंकल्प होना चाहिए जिससे सामाजिक कुरीतियों और भेदभाव पूर्ण व्यवहार की समाप्ति की जा सके ।
10. अन्धविश्वासों तथा जड़ परम्पराओं का बहिष्कार- लड़के ही वंश चलाते हैं, वे ही नरक से पिता को बचाते हैं, पैतृक कर्मों तथा सम्पत्तियों को वही संचालित करते हैं, पुत्र ही अन्त्येष्टि तथा पिण्डदान इत्यादि कार्य करते हैं । इस प्रकार के कई अन्धविश्वास और जड़ परम्परायें परिवारों में मानी जाती है। अतः इन परम्पराओं और विश्वासों को तार्किकता की कसौटी पर कसना चाहिए। यदि परिवार इन जड़ परम्पराओं, अन्ध-विश्वासों और कुरीतियों के प्रति जागरूक हो जाये तो स्त्रियों की स्थिति स्वतः उन्नत हो जायेगी ।
11. उच्च चरित्र तथा व्यक्तित्व का निर्माण- परिवारों को चाहिए कि वे अपनी संततियों के उच्च चरित्र तथा सुदृढ़ व्यक्तित्व निर्माण पर बल दें। उच्च चरित्र और व्यक्तित्व सम्पन्न व्यक्ति अपने अस्तित्व के साथ-साथ सभी के अस्तित्व का आदर करता है। स्वामी विवेकानन्द, महात्मा गाँधी आदि उच्च उच्च चरित्र तथा सुदृढ़ व्यक्तित्व वाले नायकों में स्त्रियों की समानता पर बल दिया। इस प्रकार चारित्रिक और व्यक्तित्व के विकास के द्वारा परिवार लैंगिक भेदभावों में कमी करने का प्रयास कर सकते हैं।
12. व्यावसायिक कुशलता की शिक्षा – परिवार को चाहिए कि वह अपने सभी सदस्यों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उनकी व्यावसायिक कुशलता की उन्नति हेतु प्रयास करे। यह शिक्षा परिवार द्वारा औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों ही प्रकार से प्राप्त कराने का प्रबंध किया जा सकता है। जब परिवार के सभी सदस्य अपने-अपने कार्यों में संलग्न रहेंगे तो उनके विचारों और सोच में गतिशीलता आयेगी जिससे लैंगिक भेदभावों में कमी आयेगी ।
13. जिम्मेदारियों का अभेदपूर्ण वितरण – परिवार में स्त्री-पुरुष, लड़के-लड़कियों के मध्य लिंग के आधार पर भेदभाव न करके सभी प्रकार की जिम्मेदारियाँ बिना भेदभाव के प्रदान करनी चाहिए, जिससे लैंगिक भेदभाव की बात तक भी दिमाग में न आये ।
14. आर्थिक संसाधनों पर एकाधिकार की प्रवृत्ति का समापन — परिवार को चाहिए कि वह आर्थिक संसाधनों का इस प्रकार प्रबंधन और वितरण करे कि स्त्री पुरुष में किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव न रहे। पिता की सम्पत्ति में हमारे यहाँ पुत्र का अधिकार तो समझा जाता है, परंतु पुत्रियों का कोई भी अधिकार नहीं समझा जाता, जिससे वे सदैव अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आर्थिक रूप से पुरुषों पर निर्भर हो जाती हैं। इस प्रकार आर्थिक संसाधनों पर पुरुष वर्ग के एकाधिकार की समाप्ति का परिवार लैंगिक भेदभावों को समाप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर सकते हैं ।
15. बालिकाओं को आत्म-प्रकाशन के अवसरों की प्रधानता— परिवार में बालिकाओं की रुचियों और प्रवृत्तियों के आत्म-प्रकाशन के अवसर बालकों के समान ही प्रदान करने चाहिए, इससे उनमें आत्मविश्वास आयेगा, हीनता नहीं आयेगी और अपनी प्रतिभा को प्रकाशित करने का उन्हें अवसर प्राप्त होगा। आत्म-प्रकाशन के द्वारा उनमें भावना ग्रन्थियाँ नहीं पनपेंगी अतः परिवार को लैंगिक भेदभावों में कमी लाने हेतु बालिकाओं और स्त्रियों को अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति के पर्याप्त और समान अवसर प्रदान करने चाहिए।
16. सशक्त बनाना — कुछ परिवारों में प्रत्येक कार्य में लड़कियों को यह स्मरण कराया जाता है कि वे लड़कियाँ है । अतः उन्हें अपनी सीमा में रहना चाहिए। परंतु इस प्रकार का व्यवहार उनमें कुण्ठा और निराशा के भाव भर देता है वहीं यदि परिवार के सदस्य सदैव महिलाओं के सशक्त रूप का वर्णन और प्रोत्साहन करते हैं तो ऐसे परिवारों में लड़कियाँ भी लड़कों के समान सभी उत्तरदायित्वों को पूर्ण करती हैं। अतः परिवार को चाहिए कि वे स्त्री को अबला न सझकर उसे शक्ति और सबला समझे जिससे भावी पीढ़ियों की सोच में परिवर्तन आयेगा और लैंगिक भेदभावों में कमी आएगी।
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