पास-पड़ोस तथा कार्य-क्षेत्र में महिला उत्पीड़न पर प्रकाश डालें ।
पास-पड़ोस का कार्य-क्षेत्र ही नहीं अपितु परिवार, समाज, सार्वजनिक स्थलों पर महिलाओं के साथ उत्पीड़न होता है पास-पड़ोस और कार्य-स्थल पर होने वाला उत्पीड़न महिलाओं की गति को अवरूद्ध कर देता है । अतः इस प्रकार के उत्पीड़न को समाप्त किया जाना अत्यावश्यक है। पास-पड़ोस के वातावरण का बालिकाओं के समाजीकरण, सोच तथा अन्तर्निहित शक्तियों और सर्वांगीण विकास पर अनुकूल तथा प्रतिकूल दोनों प्रकार का प्रभाव पड़ता है पास-पड़ोस का वातावरण, पड़ोसियों के दृष्टिकोण का बालिकाओं पर प्रभाव पड़ता है क्योंकि यही पास-पड़ोस का वातावरण बालिकाओं को प्रोत्साहित करने या उनकी खेलने-कूदने, वस्त्र पहनने, शिक्षा आदि पर छींटाकशी करके उनका मार्ग अवरुद्ध करने का कार्य करता है मनुष्य सामाजिक प्राणी है अतः पास-पड़ोस के बिना वह नहीं रह सकता और बालिकाओं को सामाजिकता का पाठ परिवार के पश्चात् पास-पड़ोस के वातावरण से ही मिलता है। पास-पड़ोस में बालिकाओं का आना-जाना, सम्पर्क तथा पास-पड़ोस के लोग क्या सोचते हैं, इन बातों का अभिभावकों पर गहरा प्रभाव पड़ता है इसी कारण से और भी बालिकायें पास-पड़ोस के उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाना तो दूर, घर पर बात भी नहीं कर पाती हैं।
कार्य-क्षेत्र पर महिलाओं का उत्पीड़न किया जाता है और वे अपने सपनों को साकार करने के लिए समाज के दबाव के कारण उत्पीड़न सहती रहती हैं और जब पानी सिर से ऊपर होने लगता है तो नौकरी छोड़ देना या उस शोषण को चुपचाप सहते रहने का विकल्प ही बचता है। यदि उन्होंने आवाज उठायी तो घर तथा समाज उन्हीं को हेय दृष्टि से देखेगा।
Contents
कारण-
पास-पड़ोस और कार्य-क्षेत्र में होने वाले उत्पीड़न के कुछ प्रमुख कारण निम्न प्रकार हैं-
- लोगों का दृष्टिकोण
- महिलाओं की चुप्पी
- पुरुष-प्रधान समाज
- घर, परिवार और समाज का असहयोग
- अशिक्षा
- जागरूकता का अभाव
- कानूनी प्रावधानों की जानकारी न होना
- आर्थिक कमजोरी
- प्रशासनिक असहयोग
- सामाजिक कुरीतियाँ ।
1. लोगों का दृष्टिकोण — पास-पड़ोस तथा कार्य-क्षेत्र इत्यादि स्थलों पर लोगों का स्त्रियों के प्रति दृष्टिकोण संकुचित है। वे महिलाओं को पैर की जूती और घर की सजावट की सामग्री मात्र मानते हैं और जब भी कोई महिला उत्पीड़न की शिकार होती है तो सर्वप्रथम उसके वस्त्रों, बाहर निकलने इत्यादि को दोषी ठहराया जाता है। परन्तु उस समय हम यह भूल जाते हैं कि छः साल तथा कुछ महीनों और वृद्ध महिलाओं के साथ भी तो उत्पीड़न की घटनायें हो रही हैं। इस प्रकार लोगों का संकुचित दृष्टिकोण उत्पीड़न के एक प्रमुख कारक के रूप में उभरता है।
2. महिलाओं की चुप्पी – जिस प्रकार किसी पक्षी को चिरकाल तक में रखा जाये तो वह अपने उड़ने की शक्ति भी नहीं जान पाता, कुछ ऐसा ही महिलाओं के साथ हुआ । चिरकाल से उनके साथ शोषणपूर्ण व्यवहार होता आया है और माँ अपनी बेटी को यही सीख देती है कि वे सहती रहें ये सब परन्तु सहन-शक्ति की सीमा होती है। ऐसी सहन-शक्ति और धैर्य से क्या लाभ है जब अस्मिता पर ही संकट उत्पन्न हो जाये। बेटियाँ कभी भी अपनी माँ और पिता से उनके साथ हो रहे उत्पीड़न पर खुलकर बात नहीं कर पाती हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि उल्टा उन्हें ही दोषी समझा जाने लगेगा। घर से निकलना और लिखना पढ़ना भी दूभर हो जायेगा या किसी लड़के को ढूँढ़कर आनन-फानन में विवाह करा दिया जायेगा। वे इन विषयों पर चुप्पी साधना ही बेहतर समझती हैं, जिससे उत्पीड़न करने वालों के मनोबल में वृद्धि होती है।
3. पुरुष – प्रधान समाज — सामाजिक ताने-बाने में पुरुषों को महत्त्व दिया गया है। वे वंश चलाने वाले, पितरों का उद्धार करने वाले, वंश की गरिमा को बढ़ाने वाले, आर्थिक उत्तरदायित्वों का निर्वहन करने वाले, परिवार का भरण-पोषण करने वाले, निर्णय लेने वाले, धार्मिक क्रिया-कलापों को सम्पन्न करने वाले होते हैं, जिसके कारण पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों की स्थिति समाज में निम्न हो जाती है। पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं का उत्पीड़न पास-पड़ोस तथा कार्य-क्षेत्र का कोई पुरुष करता है क्योंकि वह स्वयं को श्रेष्ठ तथा स्त्रियों को हीन समझता आया है ।
4. घर, परिवार और समाज का असहयोग — महिलाओं का उत्पीड़न इसलिए भी होता है कि उन्हें घर, परिवार और समाज का असहयोग ही प्राप्त होगा। महिलाओं के सामने अनेक ऐसे उदाहरण होते हैं जब वे उत्पीड़न का शिकार भी होती हैं तथा घर, परिवार और समाज की उपेक्षा को भी झेलती हैं। अत: वे इस विषय में अपने माता-पिता, परिवारीजनों और समाज का दृष्टिकोण भली प्रकार समझती हैं जिसके कारण उत्पीड़न करने वाले बच जाते हैं और वे एक के बाद दूसरी महिला को अपनी बदनियती का शिकार बनाते रहते हैं।
5. अशिक्षा – महिलाओं के पास-पड़ोस तथा कार्य-स्थल पर उत्पीड़न के पीछे एक प्रमुख कारण उनका तथा समाज में फैली अशिक्षा है। महिलाओं की शिक्षा आज भी पिछड़ी अवस्था में है। औरतों और पिछड़ी जातियों, जनजातियों, अल्पसंख्यकों तथा शारीरिक चुनौतीग्रस्त महिलाओं—इनमें भी ग्रामीण तथा शहरी स्तर पर स्थिति में अन्तर और चिन्तापूर्ण है हमारे समाज में भी प्रौढ़ शिक्षादि के कारण भी अशिक्षा व्याप्त है अशिक्षित समाज स्त्रियों के महत्त्व से परिचित नहीं हो पाता है, जिस कारण से भी उनका उत्पीड़न होता रहता है। पढ़ी-लिखी महिलायें आर्थिक रूप से सशक्त होती हैं और समाज तथा परिवार भी उनकी प्रतिभा का लोहा मानता है, जिससे उनके प्रति उत्पीड़न और भेद-भाव कम होता है । अतः अशिक्षा महिलाओं के पास-पड़ोस और कार्य-स्थल पर होने वाले उत्पीड़न का प्रमुख कारण है।
6. जागरूकता का अभाव – जागरूकता का समाज में अभाव है। इसी कारण से वे पुरातन रूढ़ियों, अन्ध-विश्वासों और परम्पराओं में जकड़े हुए हैं और महिलाओं को दोयम दर्जे का मानते हैं। स्त्रियों की शिक्षा, उनके प्रति होने वाले उत्पीड़न की पहचान इत्यादि विषयों के प्रति तथा स्त्रियाँ स्वावलम्बी तथा सशक्त हो सकती हैं, इस विषय में जागरूकता का अभाव है। महिलाओं को सदैव ही पिता तथा पुत्र के सान्निध्य में रखा जाता है जिसके कारण उनका उत्पीड़न पुरुष अपनी जागीर तथा उनकी नियति समझकर करता है।
7. कानूनी प्रावधानों की जानकारी न होना- महिलाओं को तथा उनके माता-पिता इत्यादि को कानूनी प्रावधानों के विषय में जानकारी नहीं है। जब किसी महिला का उत्पीड़न किया जाता है तो न उसे ही और न उसके परिवार को यह ज्ञात होता है कि क्या कानून है तथा न्याय हेतु किसकी सहायता प्राप्त करनी है। यद्यपि जनसंचार के माध्यमों द्वारा स्त्रियों को उत्पीड़न की पहचान करने, महिला सहायता नम्बरों पर फोन कर सहायता प्राप्त करने की जानकारी दी जा रही हैं, परन्तु संसाधनों और दो समय के भोजन की जुगाड़ में महिलायें तथा उनके परिवारीजन इन प्रावधानों के ज्ञान से वंचित रह जाते हैं। इस प्रकार कानूनी प्रावधानों की जानकारी न होने के कारण पास-पड़ोस तथा कार्य-स्थल पर उन्हें उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है 1
8. आर्थिक कमजोरी- पितृ सत्तात्मकता के कारण सम्पत्ति पर पिता के पश्चात् पुत्र का अधिकार होता है । ससुराल में भी पति ही सम्पत्ति का अधिकारी होता है, उसके पश्चात् पुत्र । कार्य करने में महिलाओं से बेगारी, समान कार्य हेतु समान वेतन न देकर आर्थिक शोषण किया जाता है आर्थिक कमजोरी के कारण महिलायें जब उत्पीड़न की शिकार होती तो वे इसके विरुद्ध आवाज नहीं उठा पातीं। आर्थिक पराश्रितता के कारण और उत्पीड़न का चक्र चलता रहता है ।
9. प्रशासनिक असहयोग – प्रशासनिक असहयोग के कारण महिलाओं का पास-पड़ोस और कार्य-स्थल पर उत्पीड़न किया जाता है, क्योंकि महिलाओं को प्रशासनिक असहयोग का सामना करना पड़ता है, जिसके कारण वे प्रशासन से किसी भी प्रकार का सहयोग लेने में कतराती हैं प्रशासनिक असहयोग के कारण उत्पीड़न की शिकार युवती के प्रति उपेक्षित का भाव रहता है, जिससे उत्पीड़न की घटनायें रुकती नहीं हैं ।
10. सामाजिक कुरीतियाँ — समाज में अनेक कुरीतियाँ व्याप्त हैं, जिनके कारण स्त्रियों को उपेक्षा झेलनी पड़ती है। इन कुरीतियों के कारण स्त्रियों का स्वयं के प्रति उपेक्षा का भाव जाग्रत हो जाता है जिस कारण से पास-पड़ोस और कार्य-स्थल पर उनका जब शोषण होता है तो वे अपनी हीन मानसिकता कारण शोषण तथा उत्पीड़न का शिकार होती रहती है।
पास-पड़ोस तथा कार्य-क्षेत्र में महिलाओं के उत्पीड़न की रोकथाम हेतु किये गये उपाय तथा किये जाने वाले उपाय तथा सुझाव निम्न प्रकार हैं-
1. पास-पड़ोस तथा कार्य-क्षेत्र में होने वाले उत्पीड़न के लिए विद्यालयों में वाद-विवाद, गोष्ठी, कार्यशाला आदि का आयोजन किया जाता है।
2. पास-पड़ोस तथा कार्य-क्षेत्र में होने वाले उत्पीड़नों की पहचान, समझ तथा उससे बचाव हेतु उपायों के विषय में जनसंचार के अभिकरणों द्वारा प्रचार-प्रसार किया जाता है ।
3. पास-पड़ोस तथा कार्य-क्षेत्र में महिलाओं के आर्थिक, शारीरिक तथा मानसिक उत्पीड़न हेतु कानूनी प्रावधान किये गये हैं।
4. महिलाओं को उत्पीड़न से बचाने के लिए महिला आयोग की स्थापना की गयी है ।
5. महिलाओं को पास-पड़ोस तथा कार्य-क्षेत्र में होने वाले उत्पीड़न से बचाव हेतु पाठ्यक्रम तथा पाठ्य सहगामी क्रियाओं द्वारा जानकारी तथा जागरूकता प्रदान की जा रही है।
6. असाक्षरता दूर करने के लिए सतत् शिक्षा, वयस्क शिक्षा, पत्राचार पाठ्यक्रम तथा दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रमों का संचालन किया जा रहा है, जिससे शिक्षा पर प्रचार-प्रसार होगा और महिलाओं के उत्पीड़न में कमी आयेगी ।
7. व्यावसायिक पाठ्यक्रमों का बालिकाओं हेतु शुभारम्भ हुआ तथा उनके लिए पृथक् विद्यालयों और महिला शिक्षिकाओं की नियुक्ति की जा रही है।
8. महिलाओं को पास-पड़ोस तथा कार्य-क्षेत्र में होने वाले उत्पीड़न से बचाव के लिए जूडो-कराटे तथा व्यक्तिगत सुरक्षा हेतु नियम सिखाये जाते हैं।
9. महिलाओं के आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक आदि अधिकारों की सुरक्षा के लिए समानता तथा स्वतन्त्रता का अधिकार प्रदान किया गया है।
10. संविधान के अनुच्छेद 14 तथा 15 में महिलाओं की समानता, अनुच्छेद 21 के द्वारा गरिमामयी जीवन जीने का अधिकार प्रदान किया गया है। स्त्रियों को कार्य स्थल पर उत्पीड़न से बचाव के लिए 2013 में अधिनियम बनाया गया ।
11. महिलाओं को पास-पड़ोस तथा कार्य-स्थल पर उत्पीड़न से बचाव के लिए लोगों के दृष्टिकोण में परिवर्तन लाया जा रहा है|
12. उत्पीड़न की शिकार महिलाओं को अब विविध कार्यक्रमों द्वारा प्रोत्साहित किया जा रहा है, जिससे अन्य महिलाओं को प्रोत्साहन मिल रहा है।
13. महिलाओं की उत्पीड़न से रक्षा के लिए मानवाधिकार आयोग, अन्तर्राष्ट्रीय महिला आयोग इत्यादि कार्य कर रहे हैं।
14. महिलाओं को पास-पड़ोस तथा कार्य-स्थल पर हो रहे उत्पीड़न से बचाने के लिए समाज तथा महिलाओं में जागरूकता के लिए गैर-सरकारी संस्थायें कार्य कर रही हैं।
15. महिलाओं को पास-पड़ोस तथा कार्य स्थल पर होने वाले उत्पीड़न से बचाने हेतु उनके लिए आवाज उठानी चाहिए।
सुझाव (Suggestions)—
पास-पड़ोस और कार्य-क्षेत्र में हो रहे उत्पीड़न से महिलाओं की सुरक्षा करने हेतु कुछ निम्न सुझाव प्रस्तुत किये जा रहे हैं—
1. बालिका तथा महिला शिक्षा का व्यापक स्तर पर प्रचार-प्रसार।
2. अपव्यय तथा अवरोधन के कारणों की पहचान कर उसको दूर करने के उपाय करना ।
3. महिलाओं को उत्पीड़न से बचाने के लिए स्व-रक्षा हेतु प्रशिक्षित किया जाना चाहिए तथा प्रत्येक विद्यालय में इस प्रणाली का विकास किया जाना चाहिए ।
4. महिलाओं को उत्पीड़न से बचाने के लिए कार्य स्थल पर कठोर नियम तथा कानून बनाये जाने चाहिए और उन्हें सख्ती से लागू किया जाना चाहिए।
5. महिलाओं को उत्पीड़न से बचाने के लिए कार्य-स्थल तथा पास-पड़ोस के वातावरण में स्त्रियों की समानता, स्वतन्त्रता हेतु प्रयास किये जाने चाहिए।
6. महिलाओं को उत्पीड़न से बचाने के लिए सरकार द्वारा बनाये गये कानूनों का पालन और सार्वजनिक स्थलों पर उन कानूनों का अंकन किया जाना चाहिए।
7. प्रशासन को चाहिए कि उत्पीड़न की शिकार महिला के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करे और उन्हें यथासम्भव सहायता प्रदान करे ।
8. महिला उत्पीड़न को कम करने के लिए न्यायिक सक्रियता लानी चाहिए ।
9. महिला उत्पीड़न में कमी के लिए प्रशासन को समाज से सहयोग प्राप्त करना चाहिए ।
10. महिला उत्पीड़न की रोकथाम से सम्बन्धित साहित्य का प्रकाशन किया जाना चाहिए।
पास-पड़ोस तथा कार्य-क्षेत्र सहित लगभग सभी क्षेत्रों में महिलाओं का उत्पीड़न किया जा रहा है, फिर भी महिलायें आज साहित्य, कला, विज्ञान, तकनीकी, खेल-कूद, अभिनय, चिकित्सा आदि क्षेत्रों में अपनी पहुँच से लोगों को हतप्रभ कर रही हैं। यदि महिलाओं के प्रति समाज का दृष्टिकोण व्यापक हो जाये तो महिलायें पारिवारिक ही नहीं, अपितु सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक तथा सांस्कृतिक इत्यादि सभी क्षेत्रों में अपनी कार्य शैली का परचम लहरायेंगी, जिससे उनकी व्यक्तिगत उन्नति के साथ-साथ राष्ट्रीय उन्नति का मार्ग भी प्रशस्त होगा। कार्य-क्षेत्र में भी महिलाओं को उचित सम्मान दिया जाना चाहिए जिससे उनके श्रम और शक्ति का समुचित नियोजन किया जा सके। पास-पड़ोस का वातावरण महिलाओं की सामाजिकता और उनके मनोविज्ञान आदि पर प्रभाव डालता है। अतः इसमें परिवर्तन आना अवश्यम्भावी है। पास-पड़ोस तथा कार्य-क्षेत्र में महिला उत्पीड़न को रोकने के लिए सरकारी प्रयासों के साथ-साथ व्यक्तिगत सहभागिता भी आवश्यक है।
IMPORTANT LINK
- लैंगिक दुर्व्यवहार की प्रकृति एवं प्रकार
- विद्यालय के सकारात्मक लैंगिक झुकाव हेतु कार्य
- यौन शिक्षा से क्या तात्पर्य है? इसकी आवश्यकता एवं महत्त्व
- महिलाओं की स्थिति की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि एवं उपाय
- यौन शिक्षा की समस्याओं एवं स्वरूप
- महिला सशक्तीकरण से क्या तात्पर्य है? उसकी आवश्यकता एवं महत्त्व
- महिला सशक्तीकरण की रणनीतियाँ और मुद्दे
- महिला सशक्तीकरण में बाधायें एवं इसकी स्थितियाँ
- पुरुषत्व एवं नारीत्व से क्या अभिप्राय है ? इसके गुण एवं आवश्यकता
- जेण्डर स्टीरियोटाइप से आप क्या समझते हैं?