इतिहास शिक्षण के शिक्षण सूत्रों की सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
इतिहास शिक्षण के शिक्षण सूत्र
प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री रूसों, कॉमेनियस तथा हरवई स्पेन्सर ने शिक्षण के लिए कुछ सूत्र प्रतिपादित किए। इनका मानना था कि यदि हम किसी भी विषय के शिक्षण को कुछ सूत्रों के आधार पर संगठित या नियोजित करने का प्रयत्न करेंगे तो यह शिक्षण हमारे लिए लाभदायक तो होगा ही, साथ ही छात्रों के लिए रोचक व ग्राह्या भी होगा। शिक्षण के सूत्र छात्रों की मानसिक विशेषताओं को ध्यान में रखकर नियोजित किए जाते हैं। यह सूत्र शिक्षण कार्य में तीव्रता प्रदान करते है। इतिहास के शिक्षक को शिक्षण के समय निम्नलिखित सूत्रों का प्रयोग करना चाहिए-
(1) ज्ञात से अज्ञात की ओर (From Known to Unknown),
(2) सरल से जटिल की ओर (From simple to complex),
(3) सुगम से कठिन की ओर (From Easy to Difficult),
(4) स्थूल से सूक्ष्म की ओर (From Concrete to abstract),
(5) अनिश्चित से निश्चित की ओर (From Indefinite to Definite),
(6) विशिष्ट से सामान्य की ओर (From Particular to General),
(7) पूर्ण से अंश की ओर (From Whole to Port),
(8) विश्लेषण से संश्लेषण की ओर (From Analysis to synthesis),
(9) मनोवैज्ञानिक से क्रमबद्धता की ओर (From Psychological to logical)
(10) समीप से दूर की ओर (From Near to a far)
यहाँ हम शिक्षण के सूत्रों की संक्षिप्त व्याख्या प्रस्तुत कर रहे हैं-
(1) ज्ञात से अज्ञात की ओर (From Known to Unknown) :- यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि बच्चा अपने पूर्व के अनुभव का लाभ लेकर आगे नवीन ज्ञान प्राप्त करता है। अतः बालक जो जानता है उसी पर नवीन ज्ञान को आधारित किया जाएं। नागरिक शास्त्र के शिक्षक को, छात्र जो कुछ जानते हैं, उसको आधार बनाकर नया पाठ पढ़ाना चाहिए। अतः शिक्षक द्वारा प्रत्येक पाठ में इस सूत्र का प्रयोग किया जाना चाहिए।
(2) सरल से जटिल की ओर (From Simple to complex) :- इस सूत्र का अभिप्राय है कि बालकों को पहले विषय से संबंधित सरल बातें बताई जानी चाहिएं, उसके बाद ही जटिल बातों का ज्ञान करवाया जाना चाहिए। यदि इस क्रम से विपरीत क्रम शिक्षक द्वारा अपनाया गया तो बालक की विषय में रूचि पैदा नहीं हो पाएगी।
(3) सुगम से कठिन की ओर (From Easy to Difficult) :- इस सूत्र का अभिप्राय है कि बालकों को पहले पाठ की सुगम बातें बताई जाएं। इसके बाद ही उन्हें पाठ की कठिन बातों का ज्ञान करवाया जाएं।
(4) स्थूल से सूक्ष्म की ओर (From Concrete to Abstract) :- इस सूत्र का अभिप्राय है कि प्रारंभ में बालकों को स्थूल वस्तुओं का ज्ञान देना चाहिए। बाद में उन्हें सूक्ष्म विचारों की जानकारी प्रदान की जाएं।
(5) अनिश्चित से निश्चित की ओर (From Indefinite to Definite) :- प्रारंभ में बालक का ज्ञान अनिश्चित होता है। इस सूत्र के शिक्षक को इस अस्पष्ट तथा अनिश्चित ज्ञान को प्रारंभिक बनाकर धीरे-धीरे इसे स्पष्ट किया जाना चाहिए।
(6) विशिष्ट से सामान्य की ओर (From Particular to General) : इस सूत्र का अभिप्राय है-विभिन्न विशिष्ट उदाहरणों अथवा तथ्यों के आधार पर कोई सामान्य नियम निकालना। इस सूत्र का प्रयोग करते समय शिक्षक को बालकों के सम्मुख कुछ विशिष्ट उदाहरण प्रस्तुत करने पड़ते हैं और छात्र उनका परीक्षण करके उनसे संबंधित नियम निकालते हैं।
(7) पूर्ण से अंश की ओर (From whole to Part) :- इस सिद्धान्त के अनुसार बालक को पहले पूर्ण ज्ञान करवाया जाएं और उसके बाद ही उसके अंशों को बताया जाएं। इसी सिद्धान्त के आधार पर शिक्षण में इकाई योजना (Unit Plan) का जन्म हुआ। अतः शिक्षक को बालकों को पूरी बात बताने के बाद उसके भागों (Parts) को बताना चाहिए।
(8) विश्लेषण से संश्लेषण की ओर (From Analysis to Synthesis) :- बालकों को किसी विषय का पूर्ण ज्ञान एवं निश्चित ज्ञान देने के लिए शिक्षक द्वारा विषय-वस्तु का विश्लेषण एवं संश्लेषण करना अनिवार्य है। क्योंकि विश्लेषण बालक को किसी बात को समझने में मदद देता है और संश्लेषण उस ज्ञान को निश्चित स्वरूप प्रदान करता है।
(9) मनोवैज्ञानिक से क्रमबद्धता की ओर (From Psychological to logical) :- इस सूत्र का अभिप्राय है कि बालकों की रूचियों, रूझानों आदि के अनुसार विषय-वस्तु को प्रस्तुत किया जाना चाहिए। अन्य शब्दों में, बालक की रूचियों, रूझानों, क्षमताओं, योग्यताओं आदि को ध्यान में रखकर ही छात्रों को पढ़ाया जाना चाहिए।
(10) समीप से दूर की ओर (From Near to Far) :- इस सूत्र का अभिप्राय है कि पहले बालक को अपने समीपवर्ती वातावरण का ज्ञान करवाया जाना चाहिए और उसके बाद ही उसे दूर के वातावरण से परिचित करवाया जाना चाहिए।
उपर्युक्त सिद्धान्तों एवं सूत्रों का अनुसरण करके शिक्षक अपने शिक्षण को सफल एवं प्रभावशाली बना सकता है। साथ ही वह अपने छात्रों को कुछ सिखाने में भी समर्थ होगा। यह आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक पाठ में प्रत्येक सूत्र का प्रयोग किया जाएं यह पाठ की प्रकृति पर निर्भर है कि उसके अध्यापन हेतु किस शिक्षण-सूत्र का प्रयोग किया जाएं।