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इतिहास शिक्षण में श्रव्य-दृश्य उपकरणों का महत्त्व

इतिहास शिक्षण में श्रव्य-दृश्य उपकरणों का महत्त्व
इतिहास शिक्षण में श्रव्य-दृश्य उपकरणों का महत्त्व

“इतिहास शिक्षण में श्रव्य-दृश्य उपकरणों का विशेष महत्त्व होता है।” व्याख्या कीजिए। किन्हीं दो सरल दृश्य उपकरणों के उपयोग का उल्लेख कीजिए जो शिक्षण-अभ्यास पाठों में इस्तेमाल किये हैं। 

इतिहास शिक्षण में श्रव्य-दृश्य उपकरणों का महत्त्व

श्रव्य-दृश्य उपकरणों के शैक्षिक महत्त्व को निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता-

(1) स्पष्ट प्रत्यय निर्माण- जब हम किसी तथ्य को देखते हैं और उसके बारे में सुनते हैं तो उसका स्पष्ट प्रतिबिम्ब हमारे मस्तिष्क में बन जाता है और इन ज्ञानेन्द्रियों द्वारा प्राप्त ज्ञान से स्पष्ट एवं स्वाभाविक प्रत्यय निर्माण होता है।

(2) उत्प्रेरणा – शैक्षिक तकनीकी के श्रव्य-दृश्य उपकरणों के माध्यम से किया गया शिक्षण शिक्षार्थी को अधिगम हेतु उत्प्रेरित करता है। शिक्षार्थियों की पाठ्यवस्तु के प्रति रुचि जागृत होती है और उनका उत्साह बढ़ जाता है। उन्हें दुरूह विषयवस्तु को समझने में आसानी होती है। इस तरह श्रव्य-दृश्य उपकरण शिक्षार्थी में शिक्षण और अधिगम के हेतु अन्तःप्रेरणा का संचार करते हैं

(3) पाठ्यवस्तु में रोचकता और विविधता का समावेश- जब शिक्षक द्वारा किसी विषयवस्तु को श्रव्य-दृश्य उपकरणों की सहायता से स्पष्ट किया जाता है तो पाठ्यवस्तु में विविधता और रोचकता आ जाती है तथा छात्रों की बोधगम्यता में वृद्धि होती है। छात्र विषयवस्तु को आत्मसात करने में सफल हो जाते हैं।

(4) स्वाभाविक वातावरण के निर्माण में सहायक शिक्षण में श्रव्य- दृश्य उपकरणों के प्रयोग से कक्षा में एक जीवन्त वातावरण तैयार हो जाता है। यह वातावरण स्वाभाविक होता है जिसमें बच्चे आसानी से सीखते हैं और उनका भ्रम दूर हो जाता है।

(5) मौखिक अनुदेशन को सीमित करते हैं- शिक्षक कक्षा शिक्षण के दौरान प्रायः मौखिक अनुदेशन ही देते हैं जो छात्रों को नीरस एवं व्यर्थ लगते हैं। शिक्षण में सहायक श्रव्य दृश्य साधन शिक्षक के मौखिक अनुदेशन को सीमित करते हैं। श्रव्य-दृश्य उपकरणों के प्रयोग में शिक्षक निर्देशन मात्र देता है और छात्रों को स्वयं देख-सुनकर सीखने का अवसर प्रदान करता है। इसके फलस्वरूप छात्रों की ज्ञानात्मक, भावनात्मक और श्रवणेन्द्रियाँ एक साथ क्रियाशील हो जाती हैं और वे जो ज्ञान प्राप्त करते हैं वह स्थायी होता है।

(6) कल्पना को साकार करना सम्भव- परम्परागत शिक्षण प्रणाली को अपनाने से अनुभव एवं कल्पना को साकार रूप देना सम्भव नहीं होता किन्तु शिक्षा में यांत्रिकी के प्रयोग और इन उपकरणों की सहायता से उन शैक्षिक तथ्यों जिनकी हम कल्पना मात्र कर सकते हैं, को साकार रूप दिया जाता है। संसार में ऐसे अनेक पदार्थ एवं घटनाएँ हैं जिनका हम प्रत्यक्ष अनुभव नहीं कर सकते। एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचकर उसे देखना सभी के लिए सम्भव नहीं है किन्तु वह दूरदर्शन पर छात्रों को स्पष्ट रूप से दिखाया जा सकता है। शैक्षिक तकनीकी के माध्यम से छात्र दूर-दराज में रहने वाले किसी विद्वान के विचारों को सुन सकते हैं और उसे देख सकते हैं। कम्प्यूटर की सहायता से उसकी याद सुरक्षित रख सकते हैं। कुछ समय पूर्व जो बात काल्पनिक लगती थी वे अब प्रत्यक्ष अनुभव में आ रही हैं।

उपर्युक्त विवेचन के आधार पर यह स्पष्ट है कि शिक्षण में सहायक तकनीकी उपागम कक्षा | शिक्षण को सुरुचिपूर्ण बनाने में सहायक होते हैं। इनके प्रयोग से विषयवस्तु के प्रति छात्रों की रुचि बढ़ती है और उनकी बोधगम्यता का विकास होता है, उनके अधिगम-शक्ति का विकास होता और उनमें उत्प्रेरणा जाग्रत होती है। दुरूह एवं नीरस विषयों का भी शिक्षण सहज एवं स्वाभाविक हो जाता है। श्रव्य-दृश्य उपकरणों का समुचित प्रयोग करके शिक्षक छात्रों की सभी इन्द्रियों को एक साथ सक्रिय करने में सफल हो जाता है और इस तरह पाठ आसानी से समझ में आ जाता है। आधुनिक वैज्ञानिक प्रगति के फलस्वरूप शिक्षण में इन उपकरणों का प्रयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।

कुछ प्रमुख श्रव्य द्रव्य सामग्रियों का विवरण निम्नलिखित है-

1. टेलीविजन- शिक्षण के श्रव्य-दृश्य साधनों में टेलीविजन एक महत्त्वपूर्ण साधन है। छात्र टेलीविजन के द्वारा अपनी श्रव्य एवं दृश्य दोनों ही इन्द्रियों का प्रयोग कर, किसी भी तथ्य को अत्यन्त शीघ्रता एवं सहजता से सीख जाता है। टेलीविजन की तुलना में रेडियो, जिसके माध् यम से छात्र केवल उच्चकोटि के शिक्षाविदों एवं कलाकारों तथा संगीतज्ञों की वाणी मात्र सुन सकते हैं, पर टेलीविजन से इन सब व्यक्तियों की आवाज सुनने के साथ-साथ उनके चेहरे भी देखे जा सकते हैं अर्थात् टेलीविजन के द्वारा दर्शकों (छात्रों) की दोनों इन्द्रियों का विकास समुचित रूप से होता है। यद्यपि शिक्षण के क्षेत्र में टेलीविजन का प्रयोग शुरू तो हो गया है परन्तु महँगा उपकरण होने की वजह से इसका प्रयोग सर्वत्र नहीं सम्भव है। शिक्षा के क्षेत्र में इसका प्रयोग सीमित रूप से हो रहा है। हमारे देश में मुख्यतया दिल्ली व कुछ अन्य बड़े महानगरों में ही टेलीविजन द्वारा शिक्षण कार्य शुरू हुआ है। महँगा उपकरण होने के साथ ही कुछ अन्य कठिनाइयों के कारण टेलीविजन का प्रयोग सर्वत्र नहीं है।

  1. महँगा उपकरण होने की वजह से।
  2. सर्वत्र विद्युत प्रवाह का न होना।
  3. विद्युत प्रवाह में अनिश्चितता।

परन्तु इन सब कठिनाइयों के बावजूद टेलीविजन का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह किसी बात अथवा तथ्य को हमेशा ही दोषरहित रूप में तथा उसी क्षण ही पर्दे पर प्रस्तुत कर देता । ब्रूट एवं गोरबेरिच ने टेलीविजन के महत्त्व को इस प्रकार वर्णित किया है- “यह सर्वाधिक आशापूर्ण श्रव्य-दृश्य उपकरण है क्योंकि संदेशवाहन के इस यंत्र में रेडियो व चलचित्र के समस्त गुणों को समावेशित किया गया है।”

2. चलचित्र – शिक्षण के क्षेत्र में चलचित्रों को एक अमूल्य साधन के रूप में उपयोग किया जाता है। पाठ को अधिक रोचक एवं स्पष्ट बनाने के लिए चलचित्रों का प्रयोग किया जाता है। चलचित्रों के द्वारा छात्रों के मस्तिष्क में कल्पनाशक्ति, निरीक्षणशक्ति आदि का भी समुचित विकास किया जा सकता है। इसके द्वारा अर्जित ज्ञान ज्यादा समय तक याद रख सकते हैं। इसके साथ ही विषय-वस्तु पर छात्रों का ध्यान आकर्षित करने के लिए या केन्द्रित करने के लिए भी चलचित्रों का प्रयोग महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ है। शिक्षा के क्षेत्र में चलचित्रों के प्रयोग पर एण्ड क्रो ने लिखा है, “चलचित्रों का शैक्षिक महत्त्व इसलिए होता है, क्योंकि वे गति को व्यक्त करते हैं, विचार और कार्य की निरन्तरता का विकास करते हैं, वास्तविक होते हैं, मानव नेत्र की सीमाओं की पूर्ति करते हैं तथा अपने प्रस्तुतीकरण में प्रारम्भ से अन्त तक एक से होते हैं।” उपरोक्त महत्त्व के कारण प्रगतिशील देशों में विभिन्न भाषा विषयों के अलावा, विज्ञान के प्रयोगों, भूगोल के तथ्यों आदि का शिक्षण देने हेतु इसका प्रयोग किया जाता है, परन्तु हमारे देश में चलचित्रों का प्रयोग शिक्षा के साधन के रूप में नहीं किया जा रहा है क्योंकि हमारे देश में न तो शिक्षा से सम्बन्धित उत्तम एवं पर्याप्त चलचित्र है तथा न ही शिक्षालयों में उनके प्रदर्शन हेतु आर्थिक साधन उपलब्ध है।

चलचित्रों के प्रयोग से लाभ

(1) इसके माध्यम से छात्रों को विभिन्न देशों की स्थितियों, परिस्थितियों मानव एवं उनके विविध कार्यकलापों आदि का ज्ञान सहजतापूर्वक दिया जा सकता है

(2) विद्यार्थियों में कल्पना एवं निर्णय-शक्ति में विकास चलचित्रों के माध्यम से आसानी से संभव है।

(3) अन्य साधनों की तुलना में चलचित्रों द्वारा अर्जित ज्ञान अधिक स्थायी होता है।

(4) चलचित्रों के द्वारा समस्त विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास होता है।

(5) चलचित्रों के द्वारा वैज्ञानिक अनुसन्धानों, ऐतिहासिक घटनाओं एवं भौगोलिक तथ्यों तथा उनके प्रभाव का साक्षात्कार कराने में सहायता प्रदान करते हैं

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About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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