“उत्प्रेरणा अधिगम का सर्वोत्तम राजमार्ग है।” कैसे? इस कथन के संदर्भ में समझाइये कि विभिन्न स्तरों के विद्यार्थियों को किस प्रकार उत्प्रेरित किया जा सकता है?
अभिप्रेरणा अधिगम को प्रारम्भ करने, जारी रखने एवं नियंत्रित करने वाली प्रक्रिया है। इससे अधिगम प्रक्रिया सरल, सुगम एवं प्रभावी बनती है। यह व्यवहार के सभी पक्षों, यथा प्रत्यक्षीकरण, ध्यान, स्मृति व विस्मृति, समस्या समाधान एवं सृजनशीलता को प्रभावित करती है। यह सभी प्रकार के अधिगम कार्यों को सुगम बनाती है। वस्तुत: यह अधिगम का सर्वोत्तम राजमार्ग है। अध्यापक को अभिप्रेरणा के महत्व को समझकर अपने छात्रों को निम्नवत् अभिप्रेरित करना चाहिए:
1. महत्वाकांक्षा के स्तर को बढ़ाना :- सर्वप्रथम अध्यापक को छात्रों के महत्वाकांक्षा स्तर में वृद्धि करना चाहिए। यह वृद्धि उनके सम्मुख लक्ष्य निर्धारित करके की जा सकती है।
2. छात्रों से अध्यापक की क्या अपेक्षा है, यह बताना भी छात्रों को अभिप्रेरित कर सकता है। अध्यापक यदि यह भविष्यवाणी करे कि अमुक-अमुक छात्र प्रथम श्रेणी प्राप्त करेगा, तो वे छात्र उस भविष्यवाणी से उत्प्रेरित होकर प्रथम श्रेणी प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
3. अभिरुचि जाग्रत करना – छात्रों में अभिरुचि जाग्रत करके भी उन्हें अभिप्रेरित किया जा सकता है। अभिरुचि आन्तरिक अभिप्रेरणा है। यदि बालक की किसी कार्य या विषय में अभिरुचि हो तो वह उस कार्य को करने तथा विषय को पढ़ने के लिए अभिप्रेरित होगा। अभिरुचि जगाने के लिए अध्यापक सहायक सामग्री का उपयोग कर सकता है। खेल विधि, क्रियात्मक विधि आदि का उपयोग भी रुचि को बढ़ाने में सहायक होता है। विषय को जीवन से सम्बद्ध करना तथा विषय को पढ़ने की आवश्यकता से परिचित कराने से भी छात्र की अभिरुचि में वृद्धि होती है।
4. प्रतियोगिता, स्पर्धा एवं सहयोग की भावना- को विकसित करने से छात्रों को अभिप्रेरणा मिलती है।
5. प्रोत्साहन का उपयोग: प्रोत्साहनों का उपयोग भी अभिप्रेरणा की वृद्धि में सहायक प्रोत्साहन देने के लिए अध्यापक निम्नांकित उपाय कर सकता है:
(अ) ग्रेड देना: अधिकतर अध्यापक बच्चों को अच्छी ग्रेड देने का प्रलोभन देकर अभिप्रेरित करते हैं।
(ब) असफलता का भय : असफलता का भय दिखाकर भी बच्चों को अभिप्रेरित किया जा सकता है।
(स) पुरस्कार एवं दण्ड : पुरस्कार एवं दण्ड भी अभिप्रेरण का कार्य करते हैं, पर इनका उपयोग विवेकपूर्ण ढंग से ही करना चाहिए।
(द) प्रतिपुष्टि : प्रतिपुष्टि देना अर्थात् परिणाम की जानकारी देकर भी बालकों को अभिप्रेरित किया जा सकता है।
(य) प्रशंसा एवं आलोचना : प्रशंसा एवं आलोचना दोनों शक्तिशाली अभिप्रेरक हैं। कुछ बच्चे प्रशंसा से और कुछ आलोचना से अभिप्रेरित होते हैं। अतः अध्यापक को ध्यान रखना चाहिए कि किस की प्रशंसा की जाएं और किस की आलोचना।
6. बाल केन्द्रित दृष्टिकोण – अध्यापक को बच्चों की व्यक्तिगत भिन्नताओं का ध्यान रखकर ही शिक्षण करना चाहिए। इससे बच्चे अभिप्रेरित होंगे।
7. नये ज्ञान को पूर्व ज्ञान से संबंधित करना: यदि शिक्षक नये ज्ञान को पूर्व ज्ञान से सम्बन्ध करके शिक्षण करेगा तो छात्र शिक्षण में रुचि लेंगे और रुचि से अभिप्रेरणा प्राप्त होगी।
8. प्रभावशाली शिक्षण विधियों का उपयोग करके भी अभिप्रेरणा को जगाया जा सकता है।
9. लक्ष्यों एवं उद्देश्यों को निश्चित करना भी अभिप्रेरणा में सहायक होता है।
10. अहं भावना : अहं में वे व्यवहार सम्मिलित होते हैं जिनका संबंध आत्मा से होता है। बच्चा आत्म-तुष्टि चाहता है; अतः अध्यापक को न तो उनका मजाक बनाना चाहिए और न उन्हें अपमानित करना चाहिए। उनके आत्म-सम्मान को ठेस नहीं लगनी चाहिए, वरन् उनकी संतुष्टि की जानी चाहिए।
11. उचित दृष्टिकोण का विकास : छात्रों में अध्ययन के प्रति उचित दृष्टिकोण का विकास करने से भी उन्हें अध्ययन के प्रति प्रेरणा प्राप्त होती है।
12. उचित-अधिगम वातावरण की रचना करना : अधिगम का वातावरण यदि उचित होगा तो बच्चों को सीखने के प्रति अभिप्रेरणा मिलेगी। उचित वातावरण की सृष्टि करना इसलिए अध्यापक के लिए आवश्यक है। ऐसा वातावरण वह स्नेह से बना सकता है। बच्चों को स्वतंत्रता देना, भय रहित बनाना एवं उन्हें सुरक्षा का भाव देना आदि से भी उचित वातावरण बनाया जा सकता है।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि शिक्षा में प्रेरणा के बिना नवीन ज्ञान सिखाना या क्रिया को प्रभावशाली ढंग से पूरा करवाना सम्भव नहीं है। अतएव अध्यापकों को प्रेरणा के साधनों का ज्ञान होना शिक्षण को प्रभावशाली बनाने की दृष्टि से आवश्यक है। प्रेरणा सीखने का ऐसा शक्तिशाली साधन है जिसके प्रयोग से अध्यापक बालकों के व्यवहार में वांछित परिवर्तन पैदा करके उनके समायोजन में सहायता कर सकता । अध्यापक को प्रेरणों के उपयोग में सतर्कता बरतनी चाहिए। उसे बाह्य साधनों के स्थान पर आन्तरिक प्रेरकों का अधिक उपयोग करना चाहिए।
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