उपचारात्मक शिक्षण से आप क्या समझते हैं? इसकी प्रविधि एवं शिक्षण के नियम की विवेचना कीजिए।
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उपचारात्मक शिक्षण (Remedial Teaching)
छात्रों की नियमित अशुद्धियों को दूर करने के लिए जो शिक्षा-क्रम व्यवस्थित किया जाता है उसे उपचारात्मक या निवारणात्मक शिक्षा कहते हैं। छात्र की कठिनाई का निदान हो चुकने और उसका कारण जान चुकने पर ऐसे गृह कार्यों का विधान करना चाहिए, जिससे छात्र की वह निर्दिष्ट कठिनाई दूर हो जाय। इसके लिए यह आवश्यक है कि बालक की कठिनाई की प्रकृति भली-भाँति समझ ली जाय।
अधिगम मनोविज्ञान और अमनोवैज्ञानिक प्रक्रिया भी उपचारात्मक शिक्षा के लिए आवश्यक है। मान लीजिए किसी छात्र को बीजगणित के अभ्यास की किसी प्रक्रिया में नियमित रूप से भूल होती है, इसका उपचार केवल बार-बार आवृत्ति से सम्भव नहीं है, वरन् उसमें बीजगणित सम्बन्धी प्रवृत्ति तथा समझ का भी अभाव है।
उपचारात्मक शिक्षण के लिए प्रायः अनुभव का आधार लेना चाहिए, अर्थात् ज्ञात से अज्ञात की ओर चलना चाहिए। विशेष रूप से उन विषयों की शिक्षा के लिए जिसका आधार प्रत्यक्ष ज्ञान है जैसे भौतिकशास्त्र, सामाजिक अध्ययन, वनस्पतिशास्त्र, जीवनशास्त्र, प्राकृतिक विज्ञान एवं गणित आदि ।
कभी-कभी इस प्रकार के उपचारात्मक शिक्षण के लिए विशेष कक्षाओं का आयोजन भी करना चाहिए, जिनमें विशेष योग्य अध्यापक ही छात्रों को उपचारात्मक शिक्षण दें विशेषतः वे भी गुणी अध्यापक जो कई विषयों के पंडित हों और छात्रों के मनोविज्ञान से भी परिचित हों। इस प्रकार के कुछ आवृत्यात्मक अभ्यास अथवा व्याख्यात्मक अभ्यास निश्चय ही उपचारात्मक या निवारणात्मक शिक्षण के लिए लाभप्रद सिद्ध होते हैं।
योकम तथा सिम्पसन ने उपचारात्मक शिक्षण की व्याख्या करते हुए यह मत व्यक्त किया है कि इस प्रकार का शिक्षण कुशल एवं सफल अध्यापक सदा से ही करते आये हैं लेकिन मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के विकास के फलस्वरूप इसके क्षेत्र का विस्तार हुआ है। आज जो उपचारात्मक शिक्षण से सम्बन्धित साधन उपलब्ध हैं उनके आधार पर अध्यापक निश्चित रूप से ऐसे अध्ययन की व्यवस्था करता है जो बालकों की कठिनाइयों को दूर करता है। इस सम्बन्ध में योकम तथा सिम्पसन ने लिखा है- “उपचारात्मक शिक्षण निश्चित एवं ठीक-ठीक होने का प्रयास करता है; उसकी कोशिश होती है एक ऐसी प्रक्रिया ढूँढ़ना जो बालक को अपनी कार्य-कुशलता अथवा विचार सम्बन्धी त्रुटियों को स्वयं सुधारने के योग्य बनाती है। इसका उद्देश्य है पुरानी त्रुटियों को सुधारना और भावी त्रुटियों को रोकना।”
उपचारात्मक शिक्षण की प्रविधियाँ (Techniques of Remedial Teaching)
उपचारात्मक शिक्षण की प्रवृत्तियों का चुनाव निदान के आधार पर करना चाहिए। दूसरे शब्दों में, छात्र अथवा छात्रों की कठिनाई विशेष को दूर करने के लिए उपचारात्मक शिक्षण की प्रविधियों का प्रयोग किया जाय।
साधारणतः उपचारात्मक शिक्षण की विभिन्न प्रविधियाँ भिन्न-भिन्न प्रकार के अभ्यासों पर निर्भर होती हैं। इन प्रविधियों में निम्नलिखित प्रकार के अभ्यासों को स्थान दिया जाता है-
(1) सामान्य अभ्यास (General exercises)- उपचारात्मक शिक्षण में सामान्य अभ्यास द्वारा सामान्य प्रकार की अध्ययन सम्बन्धी त्रुटियों का उपचार होता है। उदाहरण के लिए कोई छात्र एक शब्द का अर्थ गलत बताता है। उसे उस शब्द का अर्थ न बताकर बल्कि उसे प्रयोग द्वारा सिखाया जाता है। इस प्रकार का सामान्य अभ्यास गणित की सामान्य भूलों को ठीक करने में भी उपयोगी होता है।
(2) विशिष्ट अभ्यास ( Special exercises) – उपचारात्मक शिक्षण में विशिष्ट अभ्यास पर आधारित प्रविधि विशेष प्रकार की अध्ययन सम्बन्धी त्रुटियों को दूर करने में सहायक होती है। कोई विद्यार्थी कुछ अक्षरों एवं शब्दों का उच्चारण शुद्ध रूप से नहीं कर पाता। इसके पीछे उसमें एक विशेष प्रकार का वाक्-दोष हो सकता है। इस वाक्-दोष को अथवा बोलते समय होने वाली कठिनाइयों को दूर करने के लिए विशिष्ट अभ्यास पर आध रित उपचारात्मक शिक्षण प्रविधि काम में लाई जा सकती है।
(3) आवृत्यात्मक अभ्यास (Drill exercises) – इस प्रकार के अभ्यास में आवृत्ति पर बल देते हैं। दूसरे शब्दों में, किसी त्रुटि के उपचार के लिए छात्र बार-बार अथवा कई बार अभ्यास करके अपनी गलती सुधारता है, लेकिन उपचारात्मक शिक्षण की इस प्रविधि में छात्र पर दबाव न डाला जाय। दबाव के स्थान पर उसे प्रेरणा दी जाय तभी प्रविधि उपयोगी हो सकती है। यदि छात्र की इच्छा के विरुद्ध आवृत्यात्मक अभ्यास कराया जायगा तो वह उपचारात्मक शिक्षण की प्रविधि के रूप में असफल होगा।
(4) व्याख्यात्मक अभ्यास (Exposition exercises) – जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है, इस प्रविधि में उन बातों पर बल देते हैं जो अध्ययन सम्बन्धी कठिनाई की व्याख्या द्वारा दूर करती है। अध्यापक इस उपचारात्मक शिक्षण की प्रविधि का उपयोग उन छात्रों की शैक्षणिक कठिनाइयों को दूर करने के लिए किया जाता है जो मानसिक दृष्टि से इतने विकसित हों कि व्याख्या की जाने वाली बातों को समझ सकें।
इन चार प्रविधियों के अतिरिक्त शिक्षण की सामूहिक विधि, कक्षा में वाद-विवाद एवं विचार गोष्ठी शैक्षणिक यन्त्रों द्वारा स्व-मूल्यांकन एवं परीक्षण आदि की प्रविधियाँ भी उपचारात्मक शिक्षण में सहायक होती हैं।
उपचारात्मक शिक्षण सम्बन्धी नियम (Rules Pertaining to Remedial Teaching)
उपचारात्मक शिक्षण सम्बन्धी कुछ विशेष नियम निम्नलिखित हैं-
- निदान द्वारा छात्रों की कठिनाइयों का यथासम्भव विश्लेषण किया जाय।
- छात्रों की रुचियों एवं मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए उपचारात्मक शिक्षा की प्रविधि का प्रयोग किया जाय।
- छात्रों की अध्ययन सम्बन्धी त्रुटियों को दूर करने के लिए वांछनीय उपचारात्मक शिक्षण की व्यवस्था की जाय।
- उपचारात्मक शिक्षण में उन सूत्रों को भी काम में लाया जाय जो सामान्य शिक्षण . में बहुत उपयोगी पाये जाते हैं।
- छात्र की अध्ययन कठिनाई जिस स्तर पर हो उसी से उपचारात्मक शिक्षण का आरम्भ किया जाय।
- उपचारात्मक शिक्षण सम्बन्धी प्राविधियों में समयानुसार उपेक्षित परिवर्तन किये जायँ जिससे कि छात्रों के मन में नीरसता उत्पन्न न हो।
- छात्रों को स्व-मूल्यांकन द्वारा एवं सामूहिक मूल्यांकन द्वारा होने वाली प्रगति से परिचित कराया जाय। जब छात्र को यह मालूम होता है कि उपचारात्मक शिक्षण उसकी शैक्षिक प्रगति में सहायक हो रहा है तब उसका उत्साह बढ़ जाता है।
- आवश्यकतानुसार व्यक्तिगत एवं सामूहिक उपचारात्मक शिक्षण की प्रविधि को काम में लाया जाय जिससे कि सभी छात्रों की कठिनाइयाँ सन्तोषजनक रीति से दूर हो सकें।
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