उपरिव्ययों का बंटवारा (Allocation) अभिभाजन एवं संविलयन (Apportionment and Absorption of Overheads) से क्या आशय हैं? उपरिव्ययों के अभिभाजन एवं आबंटन में अन्तर कीजिए। उपरिव्ययों के अभिभाजन के आधार बताइये।
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उपरिव्ययों का बँटवारा, अभिभाजन एवं संविलयन (Allocation, Apportionment and Absorption of Overheads)
उपरिव्ययों का बँटवारा (Allocation of Overheads) – अप्रत्यक्ष सामग्री, अप्रत्यक्ष श्रम तथा अप्रत्यक्ष व्यय के योग को उपरिव्यय कहते हैं। इनका बँटवारा विभिन्न उत्पादों व कार्यों पर एक निश्चित आधार पर किया जाता है अर्थात् उपरिव्ययों के योग का विभिन्न उप-कार्यों, उत्पादों अथवा सेवाओं में वितरित करने की प्रक्रिया को ही उपरिव्ययों का बंटवारा कहते हैं। उपरिव्ययों का बँटवारा विभिन्न उत्पादों के बीच मुख्य दो कारणों से किया जाता है- (i) प्रत्येक इकाई की सही लागत की जानकारी प्राप्त करना तथा (ii) उपरिव्ययों को समस्त वस्तुओं या उत्पादों पर फैलाना।
उपरिव्ययों का अभिभाजन (Apportionment of Overheads) – यहाँ अभिभाजन का अर्थ उपरिव्ययों को विभिन्न विभागों के बीच बांटने से है। उपरिव्यय सभी विभागों के लिए सामूहिक रूप से किये जाते हैं। इन उपरिव्ययों को एक उचित आधार पर विभिन्न उत्पादन विभागों में वितरित कियाज जाता है। दूसरे शब्दों में, उपरिव्ययों को समस्त उत्पादन विभागों में एक उचित आधार पर वॉटना ही अभिभाजन कहलाता है।
उपरिव्ययों का संविलयन (Absorption of Overheads) – एवं संविलयन दोनों एक ही अर्थ में प्रयुक्त होते हैं। सही अर्थ में उपरिव्ययों
उपरिव्ययों के आवंटन एवं अभिभाजन में अन्तर (Difference Between Allocation And Apportionment of Overheads)-
इनमें मुख्य अन्तर निम्नलिखित हैं-
1. उपरिव्यय के आवंटन की प्रक्रिया के अन्तर्गत उपरिव्यय की राशि को किसी एक विभाग में ही आवंटित किया जाता है, जबकि अभिभाजन के अन्तर्गत उपरिव्यय की कुछ राशि को विभिन्ना विभागों में एक उचित आधार पर बाँटा जाता है।
2. जब किसी व्यय का आवंटन होता है तो उसके लिए उचित आधार का होना आवश्यक नहीं होता, जबकि व्ययों का अभिभाजन करने के लिए उचित आधार का होना आवश्यक होता है।
3. जब उपरिव्यय किसी विशेष विभाग से सम्बन्धित होते हैं तो उनका आवंटन किया जाता है और जब वे अनेक विभागों से सम्बन्धित होते हैं तो उनका अभिभाजन किया जाता है।
उपरिव्ययों के अविभाजन के आधार (Base of The Apportionment of Overheads)- उपरिव्ययों को विभिन्न विभागों के बीच बॉटने को ही उपरिव्ययों का विभाजन कहा जाता है। इन व्ययों के विभाजन के निम्नांकित आधार हो सकते हैं-
( 1 ) प्रत्यक्ष वितरण आधार (Direct Distribution Base) – कुछ व्यय ऐसे होते हैं जिन्हें विभिन्न विभागों के बीच वास्तविक व्यय के आधार पर बाँट दिया जाता है, जैसे- यदि विभिन्न में बिजली के मीटर अलग-अलग हों तो प्रकाश का व्यय उनके वास्तविक उपभोग के आधार पर बाँट दिया जायेगा। कार्यहीन समय (Idle Time) एवं अधिसमय (Overtime) का परिश्रमिक भी इसी आधार पर बाँटा जा सकता है।
( 2 ) भवन के क्षेत्रफल का आधार (Area Base of the Building)- भवन से सम्बन्धित व्ययों (जैसे-किराया, कर, बीमा, ह्रास, मरम्मत एवं सफाई आदि) को भवन के क्षेत्रफल के आधार पर बाँटा जा सकता है।
( 3 ) सम्पतियों के पूँजीगत मूल्यों का आधार (Capita; Value Base of the (Assets)- ऐसे व्यय जो विभागों की सम्पत्तियों तथा यन्त्र आदि से सम्बन्धित होते हैं, जैसे-यन्त्रों का हास, बीमा, मरम्मत आदि, उन्हें सम्पत्तियों के पूँजीगत मूल्य के आधार पर बाँटा जा सकता है।
( 4 ) प्रत्यक्ष श्रम घण्टों का आधार (Direct Labour House Base) – कुछ अप्रत्यक्ष व्ययों को कारखाने के विभिन्न विभागों के प्रत्यक्ष श्रम घण्टों के आधार पर विभाजित करना अधिक उपयुक्त समझा जाता है, जैसे- प्रशासन सम्बन्धी व्यय, निरीक्षण व्यय अनुसंधान व्यय आदि।
(5) कर्मचारियों की संख्या का आधार (Population of the Employees Base)- कुछ अप्रत्यक्ष व्ययों को कर्मचारियों की संख्या के आधार पर विभाजित करना अधिक उपयुक्त समझा जाता है, जैसे-कैण्टीन के व्यय,…….विश्राम गृह के व्यय, मनोरंजन व्यय आदि ।
(6) विभागीय मजदूरी के आधार (Departmental Wages Base) कुछ अप्रत्यक्ष व्ययों को विभिन्न विभागों के श्रमिकों की मजदूरी के आधार पर बॉटना उचित होगा, जैसे- श्रमिकों की क्षतिपूर्ति, बीमा प्रीमियम आदि।
(7) तकनीकी अनुमानों का आधार (Technical Estimation Base) – हवा, गैस, पानी, भाग आदि के व्ययों का विभाजन तकनीकी अनुमानों के आधार पर किया जाता है।
( 8 ) सेवा का आधार (Service Base)- सेवा विभाग से सम्बन्धित व्यय विभिन्न विभागों में उस अनुपात में बाँटे जाते हैं जिस अनुपात में उसे सेवा विभाग ने सेवा प्रदान की हो।
उपरिव्ययों के अभिभाजन के सिद्धान्त (Principles of Apportionment of Overheads)-
(1) सेवा या उपयोगिता का सिद्धान्त (Principle of Service or Utility) इस सिद्धान्त के अन्तर्गत उपरिव्ययों का अभिभाजन (Apportionment) प्रत्येक विभाग द्वारा प्राप्त सेवा या उपयोग के अनुसार होना चाहिए। यदि सेवा या लाभ किसी एक विभाग विशेष को ही प्राप्त हुआ हो तो व्यय की सम्पूर्ण राशि उसी विभाग से वसूल से वसूल की जानी चाहिए। दूसरी ओर, यदि सेवा या उपयोगिता का लाभ विभिन्न विभागों को प्राप्त हुआ हो तो, व्यय की राशि को किसी उचित एवं न्यायसंगत आधार पर विभिन्न विभागों या लागत केन्दों मध्यश अभिभाजित करना चाहिए। उदाहरण के लिए, भवन का किराया विभागों द्वारा घेरे गये स्थान के आधार पर (Area) श्रम कल्याण व्ययों को कर्मचारियों की संख्या के आधार पर तथा शक्तिगृह (Power House) के व्ययों को उपयोग की गयी शक्ति के आधार पर विभाजित करना चाहिए।
उपरिव्ययों के अभिभाजन का यह सिद्धान्त अत्यन्त महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह इस मान्यता पर आधारित है कि प्रत्येक विभागी द्वारा प्राप्त की गयी सेवा या लाभ को मापा जा सकता है और जो विभाग जितनी अधिक सेवा या लाभ प्राप्त करे उसे उस सेवा का लाभ के लिए किये गये व्ययों का उतना ही अधिक भाग वहन करना चाहिए।
(2) तकनीकी सर्वेक्षण एवं विश्लेषण सिद्धान्त (Principle of Technical Survey)- कभी-कभी विभिन्न विभागों द्वारा प्राप्त की जाने वाली सेवा या उपयोगिता का सही आकलन करने सम्भव नहीं होता और न ही विभिन्न विभागों के लाभ की मात्रा का सही अनुमान लगाया जा सकता है तो ऐसी स्थिति में सर्वेक्षण के द्वारा उपरिव्ययों का विभिन्न विभागों पर प्रभाव तथा योगदान को ज्ञात किया जाता है और इसी आधार पर उपरिव्ययों का अभिभाजन कर दिया जाता है।
उपरिव्ययों के अभिभाजन के मुख्य सिद्धान्तों के अध्ययन से स्पष्ट है कि विभिन्न उपरिव्ययों को अलग-अलग लागत केन्द्रों के मध्य अलग-अलग आधारों पर वितरित या अभिभाजित किया जा सकता है, आवश्यकता इस बात की है कि वितरण का आधार उचित एवं न्यायसंगत हो, ताकि लागत इकाइयों पर विभिन्न उपरिव्ययों को उचित भार डाला जा सके और वस्तु या कार्य का सही लागत ज्ञात की जा सके। इस विधि का प्रयोग उस परिस्थिति में किया जाता है जब अनुभाजन के उपयुक्त आधार का चुनाव करना कठिन हो। ऐसे में विभिन्न घटकों का सर्वेक्षण करके विभिन्न विभागों में अनुभाजन का अनुपात निश्चित किया जाता है। उदाहरण के लिये प्रकाश व्ययों को बल्बों टयूब लाइटों, पंखों इत्यादि के सर्वेक्षण के आधार पर अनुभाजित किया जा सकता है। इसी प्रकार, कम्पनी के मुख्य प्रबन्धक का वेतन सर्वेक्षण के आधार पर कितना समय प्रबन्धक ने किस विभाग में लगाया) निश्चित अनुपात में विभिन्न विभागों में अनुभाजित किया जा सकता है।
( 3 ) भुगतान क्षमता विधि (Ability and Pay Method)- इस विधि के अन्तर्गत उपरिव्ययों को बिक्री क्षमता, आय अथवा लाभोपार्जन की क्षमता के आधार पर विभिन्न विभागों में अनुभाजित किया जा सकता है। इस विधि में यह माना जाता है कि जिस उत्पादन विभाग की आय अधिक होती उस विभाग पर उपरिव्ययों का अधिक भाग चार्ज किया जायेगा। यह विधि न्यायपूर्ण नहीं है क्योंकि इसके अन्तर्गत अधिक कुशल विभागों को अपनी कुशलता के लिये हर्जाना देना पड़ता है और अकुशल विभाग लाभान्वित होते हैं।
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