निदानात्मक परीक्षण से आप क्या समझते हैं?
निदानात्मक परीक्षण का अर्थ एवं परिभाषाएं- डॉ. भट्ट व गुप्ता के अनुसार, “निदान शब्द का प्रयोग साधारणतया डाक्टरी विद्या में किया जाता है। जब भी कोई मरीज डॉक्टर के पास चिकित्सा के लिये आता है तो वह रोग का निदान या रोग निर्णय करने के उपरान्त ही उसकी उपयुक्त चिकित्सा करता है।
यदि डॉक्टर की निदान प्रणाली (रोग-निर्णय विधि) में किसी प्रकार की त्रुटि रह जाती है तो उस रोगी का स्वास्थ्य भी शीघ्रता से ठीक नहीं होता। इसी प्रकार अध्यापक भी यदि किसी विद्यार्थी की कमजोरियों (कठिनाइयों) के कारणों का पता लगाने में भूल कर जाता है, तो उसके निर्देश भी सफल नहीं होंगे।” शिक्षा क्षेत्र में ‘निदान’ का अर्थ है-छात्रों को शिक्षा सम्बन्धी कमजोरियों तथा कठिनाइयों का अवलोकन करके उनका ज्ञान प्राप्त करना अथवा विषयगत कमजोरियों का पता लगाना।
क्रो व क्रो के अनुसार, “निदानात्मक परीक्षणों का निर्माण, छात्रों की शिक्षा प्राप्त करने सम्बन्धी कठिनाइयों की खोज करने या उनका निदान करने के लिये किया जाता है। उचित प्रकार से निर्माण किये गए निदानात्मक परीक्षण में किसी विशेष विषय के आवश्यक पक्ष पर बल दिया जाता है, जिससे छात्र की योग्यताओं और दुर्बलताओं की जानकारी प्राप्त की जा सके और उन दुर्बलताओं को दूर करने के लिये उपचारात्मक शिक्षा का प्रयोग किया जा सके।”
डॉ. भट्ट एवं गुप्ता के मतानुसार, “निदानात्मक परीक्षणों से विद्यार्थियों के स्तर का पता नहीं लगाया जाता बल्कि यह पता लगाया जाता है कि विद्यार्थियों को किसी विषय को समझने में कहाँ कठिनाई अनुभव होती है। इस प्रकार इन परीक्षाओं का उद्देश्य बालकों की कठिनाइयों का पता लगाना है जो कि उन्हें किसी विषय विशेष के पढ़ने में हुई है और जिसके कारण वे कक्षा की प्रगति के साथ सामान्य रूप से प्रगति करने में असमर्थ रहते हैं।”
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