पाठ्यक्रम एवं पाठ विवरण में क्या अन्तर है ? इतिहास शिक्षक के लिए पाठ्य-विवरण क्यों आवश्यक है ? स्पष्ट कीजिए।
पाठ्यक्रम एवं पाठ्य विवरण
पाठ्यक्रम शब्द अपने आप में परिपूर्ण है क्योंकि इसके द्वारा बालक सिर्फ कक्षा के अन्दर ही नहीं बल्कि कक्षा के बाहर भी पाठ्यक्रम से सम्बन्धित विषय वस्तुओं का बोधात्मक ज्ञान प्राप्त कर सकता है।
शिक्षा-शब्दकोश के अनुसार- “पाठ्यक्रम, विषयवस्तु (कोर्स) और नियोजित अनुभवों का समूह है जिसे एक छात्र विद्यालय अथवा महाविद्यालय के निर्देशन से प्राप्त करता है।”
पाठ्य-विवरण छात्रों को पूरे साल शिक्षक द्वारा दिये जाने वाले ज्ञान से सम्बन्धित होता है।
शिक्षा-शब्दकोश के अनुसार “पाठ्यवस्तु अध्ययन की विषयवस्तु के मुख्य बिन्दुओं का कथन अथवा संक्षिप्त रूपरेखा है।”
पाठ्यक्रम, पाठ्यवस्तु एवं अध्ययन की विषयवस्तु सभी एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं क्योंकि यह तीनों ही शिक्षा प्रणाली के अंग हैं और इनके द्वारा ही बालक का बहुमुखी विकास सम्पन्न होता है। पाठ्यक्रम का निर्धारण NCERT बोर्ड द्वारा हिन्दी मीडियम स्तर पर होता है। और CBSE, ICSE बोर्ड द्वार अंग्रेजी स्तर पर होता है। ये सभी बोर्ड ही बालक के लिये दौड़ का मैदान अर्थात् (पाठ्यक्रम) सुनिश्चित करते हैं।
इतिहास शिक्षक के लिए पाठ्य-विवरण निम्नलिखित हैं-
(1) पाठ्यक्रम निर्धारण से शिक्षकों को यह ज्ञात हो जाता है कि उन्हें कब, क्या तथा किस मात्रा में छात्रों को ग्रहण कराना है।
(2) पाठ्यक्रम के आधार पर यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि कक्ष या कक्ष से बाहर का वातावरण किस प्रकार का होना चाहिए।
(3) ज्ञान की निरर्थक पुनरावृत्ति को भी पूर्व निर्धारित पाठ्यक्रम के द्वारा ही रोका जा सकता है।
(4) पाठ्यक्रम के आधार पर ही विषय-सूची का निर्धारण किया जा सकता है।
(5) पाठ्यक्रम के आधार पर यह ज्ञात किया जा सकता है कि इसके द्वारा कौन से उद्देश्य तथा लक्ष्य प्राप्त किये जा सकते हैं।
(6) पाठ्यक्रम की सामग्री के स्वरूप के आधार पर यह निश्चित किया जा सकता है कि इसके माध्यम से छात्रों में क्या-क्या व्यावहारिक परिवर्तन किये जा सकते हैं।
(7) पाठ्यक्रम की विषय-वस्तु के आधार पर हम यह सुनिश्चित कर पाते हैं कि शिक्षण के लिए कौन-कौन सी सहायक सामग्री को प्रयुक्त किया जाए तथा किस प्रकार पाठ्य-वस्तु को सहजता तथा रुचिपूर्वक ग्रहण कराया जाए।
(8) पाठ्यक्रम सम्बन्धी पुस्तकों की रचना भी पूर्व निर्धारित पाठ्यक्रम के अभाव में असम्भव है।
(9) पाठ्यक्रम पाठ्य-वस्तु के आधार पर ही यह निश्चित करना सम्भव होता है कि विषय की किसी भी इकाई के निमित्त कौन-सी शिक्षण विधि को प्रयुक्त किया जाए।
(10) पाठ्यक्रम की विषय-वस्तु के स्वरूप के आधार पर हम यह निश्चित कर पाते हैं कि किसी पाठ्य-वस्तु को, किन प्रविधियों के द्वारा तथा किस प्रकार सहज बनाया जाए।
(11) पाठ्यक्रम के आधार पर छात्रों का मूल्यांकन करके ही शिक्षक छात्रों में उत्साह तथा अभिप्रेरणा का संचार होता है।
(12) पाठ्यक्रम के आधार पर ही शिक्षकों द्वारा प्रश्न किये जा सकते हैं।
(13) पाठ्यक्रम के आधार पर ही शिक्षक छात्रों के ज्ञान का पता लगाता है।
(14) छात्रों की परीक्षा के लिए भिन्न-भिन्न विषयों से सम्बन्धित प्रश्न-पत्रों का निर्माण भी, पाठ्यक्रम के अभाव में असम्भव है।
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