भूगोल में प्रायोगिक और मानचित्रीकरण के कार्य का छात्रों में कौशल विकास आप किस प्रकार करेंगें।
मानचित्र कला का इतिहास प्राचीन है। सभ्यता के विकास के साथ मानचित्र कला में शुद्धता और सौन्दर्यता में अत्यधिक वृद्धि हुई है। एफ.जे. मॉक हाऊस के अनुसार ‘मानचित्र कला में धरातल के वास्तविक सर्वेक्षण से मानचित्र मुद्रण तक मानचित्रण के प्रक्रमों की सम्पूर्ण श्रृंखला सम्मिलित है।’ मानचित्र कला आज विज्ञान और कला दोनों है। इस सम्बन्ध में दूरविन रेज का कथन सही है कि प्रक्षेप का चयन, मानचित्रकार 50% भूगोलवेत्ता 30% कलाकार, 10% गणितज्ञ तथा 10% अन्य विषयों का ज्ञाता होता है। मानचित्रण की प्रमुख तकनीक मापनी का चयन, मानचित्र संकलन, मानचित्र का संघटन, अक्षरलेखन, आरेखन, आदि है। मानचित्रण में उपयोग में आने वाली सामग्री कागज, पेन्सिल, रबड़, स्याही, आभाएँ, जलरंग, और उपकरणों में मेज, सैट-स्क्वेयर, समानान्तर रेखक वक्र, पैमाना, चाँदा, परकार, डिवाइडर्स अक्षर लेखन यंत्र है।
भूगोल में प्रायोगिक कार्य का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। मानचित्रीकरण तो प्रायोगिक कार्य है ही, लेकिन सर्वेक्षण, मॉडल बनाना, मौसम यंत्रों का पठन, चन्द्रकला, पृथ्वी गति को प्रदर्शित करने वाले यंत्रों का संचालन परिवर्तनकारी शक्तियों के कार्यों का अवलोकन, आदि भी प्रायोगिक कार्य हैं। इनके कौशल विकास का उत्तरदायित्व भूगोल शिक्षक का है। इस कौशल के विकास के लिए शिक्षक को निम्नलिखित प्रयास करने चाहिये-
- मानचित्रीकरण के लिए आवश्यक सामग्री का छात्रों के सामने प्रदर्शन तथा प्रत्येक उपकरण के उपयोग को प्रदर्शन द्वारा समझाना।
- एक मानचित्र या रेखाचित्र बनाने की विधि का शिक्षक द्वारा प्रदर्शन और उसके बाद छात्रों से अभ्यास करवाना। अभ्यास के समय शिक्षक को प्रत्येक छात्र के पास जाकर उचित परामर्श देना।
- सर्वप्रथम मानचित्र निर्माण का अभ्यास पैन्सिल से करवाना।
- मॉडल निर्माण की सम्पूर्ण प्रक्रिया का शिक्षक द्वारा कक्षा में प्रदर्शन तथा आवश्यक सामग्री प्रदान करके मॉडल निर्माण का छात्रों से अभ्यास करना।
- सर्वेक्षण के उपकरणों का ज्ञान करना तथा सर्वेक्षण करने की विधि सर्वेक्षण क्षेत्र में छात्रों को ले जाकर समझाना।
- छात्रों को लघु भ्रमण पर ले जाकर स्थलाकृति निर्माण की प्रक्रिया समझाना।
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